कैफियत | हिंदी कहानी

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तिरंगे का जैेसा जघन्य अपमान, देश विदेश में किया गया है, करोड़ों देशवासियों के दिल में नासूर बनकर उन्हें खाये जा रहा है। वे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे।

कैफियत

प तो मुझसे ऐसे पूछ रही हेैं मैम, जैसे कैफियत तलब कर रही हो। पूछ रही हैं कि सिख हो, तो इसमें क्या खास बात है! खास बात! अरे गर्व की बात है मैम। सिख होना यानी दमदार होना। किसी भीड़ में एक भी सिख हो, तो अलग नजर आता हेै। चार सिख चल रहे हों तो लगता है, सिंहों का दल आ रहा है। कुछ लोग डर तक जाते हैं। अपने ही शहर में देख लीजिए। सभी जाति, सभी संप्रदाय, सभी धर्म के लोग रहते हैं यहाँ। गुजराती, मराठी, तामिल, तेलगू मलयाली,बंगाली, उड़िया आसामी। देश के लगभग हर हिस्से के लोग। हर धर्म के लोग भी। लेकिन इन सबके बीच एक भी सिख हो तो एकदम साफ नजर आ जाता है। सिर्फ पगड़ी के कारण नहीं। अब तो बहुत से सिख पगड़ी पहनते भी नहीं। पर सिख है, तो अलग नजर आयेगा। असल में सिख के व्यक्तित्व में एक धमक होती है, एक शान होती है, जो सब पर भारी पड़ती है। और क्यों न हो ऐसी धमक, ऐसी शान,कि हम उन महान गुरूओं के अनुयायी हैं, जिन्होंने देश और धर्म के लिए महान बलिदान किए। अपने मासूम बच्चों की तक बलि चढ़ा दी। पूरे देश पर सिख गुरूओं का कर्ज हेै मैम, इसीलिए हममें इतनी शान हेै। सिखों का इतिहास, त्याग का, बलिदान का, शौर्य का, साहस और बहादुरी का लोमहर्षक इतिहास है। पूरा विश्वइतिहास खंगाल डालिये, त्याग बलिदान का ऐसा रोंगटे खड़े कर देने वाला रोमांचकारी इतिहस दूसरा नहीं मिलेगा।

क्या कहा मैम आपने, ऐसे ही बहादुर थे तो पंजाब से भागकर यहाँ क्यों आये। वहीं अत्याचारियों को  बताते अपना शौर्य। अपनी बहादुरी। मैम, ये सब गाँधीजी के कारण हुआ। कह दिया कि पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा। लोगों ने भरोसा कर लिया। जब मारकाट हुई तो हम तैयार नहीं थे। कुछ हवा जरूर थी,पर विश्वास नहीं होता था। फिर अपना घर बार, कारोबार धन दौलत, छोड़कर भाग जाना, एकदम असंभव स्थिति। दिमाग मानने को तैयार ही नहीं। और वे कत्लेआम की तैयारी किए बैठे थे। नर संहार का वह दौर,  लाखों मारे गए, लाखों लुटे पिटे, घायल, कितने तो विक्षिप्त हो गए। पीढ़ियाँ बीत गईं, यह घाव हमारी छाती से जाता नहीं।

लेकिन देखिये मैम, इस कौम की दमदारी। देखते देखते संभल गए। जम गए। पनप गए। फलने फूलने लगे। आपने कहा कि सरकार ने शरणार्थियों की बड़ी मदद की, यहाँ के लोगों ने भी सहृदयता दिखाई।  की होगी कुछ मदद। सरकारों का काम ही है।  और सहृदयता की बात मैम। यहाँ तो देश के हर हिस्से के लोग आकर बस रहे थे। हम भी बसने लगे। लेकिन उन लोगों को देखिये और हमको देखिये। पचास साठ साल में हम यहाँ छा गए।  इस समय इस शहर का सबसे दमदार समाज कौन है। साफ नजर आता है।

कैफियत | हिंदी कहानी
क्या बोलीं मैम आप, जम गए, छा गए और अपने ही देश को तोड़ने वालों की मदद करने लग गये।  आप खालिस्तानी लोगों की बात कर रही हैं मैम। उनसे हमारा कोई लेना देना नही। यह सब इंदिरा गाँधी की करतूत है मैम। उन्होंने भिंडरावाले से समझौता कर लिया वोट लेने के लिये। सिखों में काफी लोग उन्हें संत मानते थे। प्रधानमंत्री से  समझौता होने से संतजी का रूतबा और बढ़ गया। मानने वालों की उमंग बढ़ी। जोश बढ़ा। जोश बेकाबू हो गया। अलग देश की माँग करने लगे। बहुत उपद्रव हुए। नर संहार भी।  इंदिरा गाँधी ने हमारे सबसे  पवित्र धार्मिक स्थल पर तोप चढ़ा दिया। यह सदमा हम कभी नहीं भूल सकते मैम।

वह सदमा धारे रहे छाती पर। तिस पर और कहर। पचासी के दंगे। ये कहना एकदम गलत है मैम कि इंदिरागाँधी की हत्या  पर सिख लोग मिठाई बाँट रहे थे, जश्न मना रहे थे।। हकीकत हम बताते हैं मैम,  कुछ लोग सिखों सी वेशभूषा बनाकर ऐसा कर रहे थे,दंगा कराने के इरादे से। मारे गए बेचारे सिख। हजारों की जाने गईं। घर बार लुटे। तिस पर जले पर नमक। कहा गया, एक बड़ा पेड़ गिरता हेै तो धरती हिलती ही हेै। सिखों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं। बेचारे  मुआवजों के लिए बार बार आवेदन करते रहे। धरना प्रदर्शन करते रहे। सालों साल। एक बहादुर कौम की यह दुर्गति।  तिस पर हमारी ही कौम के प्रधानमंत्री जी ने कह दिया.. ”आप लोग पचासी के दंगों को कब तक धरे बैठे रहेंगे।“ बताईये,यह सदमा हमारी  छाती से कभी निकल पायेगा मैम?
  
सदमे पर सदमा मैम, अब यह प्रचार किया जा रहा है, जैसे सभी सिख अंदर से खालिस्तानी हैं। ठीक है, पंजाब में निकले हैं जुलूस खालिस्तान की माँग करने वाले। इन लोगों ने थाने पर भी कबजा कर लिया था, पर यह सब बात का बतंगड़ हेै मेैम। असल में एक दो अलगाव वादी नेता हैं। जातिवादी भावनाऐं भड़काते हैं। भोलेभाले सिख उनके प्रभाव में आ जाते हैं।  गुंडे मवाली उसमें घुस जाते हैं। देश विरोधी ताकतें  उन्हें हवा देती हैं। सिखों की छवि बिगाड़ने वाली लॉबी को मौका मिल जाता हेै। 
 
अब यह तोहमत लगाई जा रही है कि सिख लोग तो दुनिया भर में भारत की छवि बिगाड़ रहे हैं। कनेडा में आये दिन भारत विरोधी भारी प्रदर्शन, उत्तेजक नारे, भारत विरोधी जनमत संग्रह, वहाँकी संसद में भारत के खिलाफ आपत्तिजनक बयानबाजी, इन सब के लिए हम लोगों को शक की दृष्टि से देखा जाता है। जबकि हमारा उनसे कुछ लेना देना नहीं है। आपने कहा कि कनेडा ही नहीं, अमेरिका ब्रिटेन,  फ्रांस, आस्ट्रेलिया सभी देशों में भारत विरोधी प्रदर्शन, वहाँ भारतीय उच्चायोग के कार्यालय पर हमले, तिरंगे का अपमान,भारतमाता के लिये अपशब्द, सब सिख लोग कर रहे हैं। मैम ये सिख लोग नहीं हैं। हम इन्हें सिख मानते ही नहीं। हो सकता है कुछ खालिस्तानी मिजाज वाले सिख हों,मगर बाकी लोग सिखों का हुलिया बनाकर पहुँच जाते हैं। चिंगारी को भड़काने। अगर सरकार होशियारी से पड़ताल करे, तो सचाई सामने आ जायेगी।  बाकी जिन लोगों के मन में खालिस्तान की लौ लगी हेै, उनसे हमारा कुछ लेना देना नही।

क्या बोलीं मैम आप, विदेश की छोड़ो, देश में भी कहीं कोई देश की छवि बिगाड़ने वाला आंदोलन हो, सिख लोग सहयोग करने पहुँच जाते है। मैम, हम शांति पूर्ण ढंग से मिलजुलकर रहने वाले सिखों का इनसे कुछ लेना देना नहीं हैं। दूसरी बात ये है कि कुछ भटके सिख इसलिये भी इनके साथ हो लेते हैं कि इन भटकों के अंादोलनों में  ये छवि बिगाड़ने वाले खूब साथ देते हेैं। तीसरी बात  मैम, यहाँ अल्पसंख्यकों के साथ तो भेदभाव है। उनकी आवाज दबाई जाती है। उनकी छवि बिगाड़ने की कोशिश की जाती हेै। यह बात सिखों के संबंध में तो एकदम सच हेै। जहाँ कोई्र छोटा मोटा भी कांड हो, जिसमें सिख शामिल हों, दोष सिखों के सर पर। आप मान लीजिये मैम, भारी षड़यंत्र चल रहा है सिखों को बदनाम करने का। अब देखिये कि सिखों की छवि बिगाड़ने वाली ये सारी बातें तो पूरी दुनिया जान गई,  पर जो अच्छे काम सिख समाज करता है, उसे कितने लोग जानते हैं? जान भी जाते हैं, तो भी मानते नहीं। ऐसा पूर्वाग्रह भर गया हेै लोगों के मन में। यह तो जग जाहिर है कि सेवा देने में सिख समाज अव्वल है। करोना काल में सिख संगत ने हजारों भूखों को भोजन कराया। किसी भी आपदा में कराते हैं। गरीबों को शुद्ध दूध मुफ्त बाँटते हैं। ईलाज कराते हैं। पर्यावरण के लिये लोगों को पौधे बाँटते देखा ही होगा आपने। अभी  दिल्ली और हरियाणा की भीषण बाढ़ के समय देखा होगा, गले तक पानी में घुसकर लोगों  को सुरक्षित स्थानो में पहुँचा रहे हैं।ं भोजन, दवाईयाँ, कपड़े बाँट रहे हैं। सब तो दिखाया जा रहा है टी.वी. में, सोसल मीडिया में। तब भी लोगों की नजर सिखों के प्रति शंकालु। सामान्य रवैया ही सिखों के प्रति ऐसा। उनके बलिदान तक का सामान्यीकरण। गौर कीजियेगा मैम, कोई भी  मुड़भेड़ हो, चाहे आतंकियों से, चाहे नक्सलियों से, चाहे दूसरे अपराधी गिरोहों  से, बेचारे सिपाही मारे जाते हैं। बलिदानी सिपाही का सम्मान तो किया जाता है, पर सिख बलिदानी का सम्मान जरा कम किया जाता है। सिखों की सेवाओं के प्रति भी यही रवैया है। उन्हें कमतर करके आँकना। उनका मजाक बनाना। उनके बारे में ऐसे ऐसे जोक्स बनाये जाते हैं, जिनके पीछे, सोचो तो, अपमान छुपा रहता है। पता चला है ऐसे जोक्स बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हेैं। अब तो हम लोग ऐसी माँग करने की सोच रहे हैं कि सिखों के बारे में जोक्स बनाने पर ही  प्रतिबंध लगाया जाये। अगर माँग पर ध्यान नहीं दिया गया तो कोई बड़ी कार्यवाही भी कर सकते हैं। 

क्या बोलीं मैम आप, “न ऐसी माँग करने की जरूरत होगी, न किसी छोटी बड़ी कार्यवाही की। असल में तिरंगे का जैेसा जघन्य अपमान, देश विदेश में किया गया है, करोड़ों देशवासियों के दिल में नासूर बनकर उन्हें खाये जा रहा है। वे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे। नहीं ही कर सकते। इस मर्मातक पीड़ा को वे विभिन्न तरीकों से व्यक्त करते हैं। कभी मजाक बनाकर, कभी व्यंग्य कर। सेवा को तक मान नहीं दे पातेे। अगर सिखलोग छोटा मोटा जुलूस ही निकाल दें, कांेई प्रदर्शन ही कर दें कि हम लोग देश के टुकड़े कराने वालों के खिलाफ हैं, तिरंगे का अपमान करने वालों के खिलाफ हेैं तो देखो, यह छोटा मोटा जुलूस, छोटा सा कोई प्रदर्शन, कोई ऐसी  बयानबाजी ही, क्या रंग दिखलाती है। सारा देश सिखों को सर आँखों पर उठा लेगा।“ हुँ..... छोड़िये मैम, अगर  इतना ही कर लेते तो मुझे यह सब कहने की जरूरत ही क्या थी।


- शुभदा मिश्र
ईमेल - smdongargarh@gmail.com

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कैफियत | हिंदी कहानी
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