सरस्वती पूजा पर निबंध हिंदी में Saraswati Puja Essay in Hindi सरस्वती पूजा का शुभ समय सरस्वती पूजा का समारोह सरस्वती पूजा का महत्व सफलता भारत प्रार्थन
सरस्वती पूजा पर निबंध हिंदी में | Saraswati Puja Essay in Hindi
सरस्वती पूजा पर निबंध हिंदी में Saraswati Puja Essay in Hindi - भारत में पूजाओं के प्रति इतनी श्रद्धा और प्रेम है कि कोई भी भारतीय पूजा का नाम सुनते ही हर्षोत्फुल्ल हो उठता है। पूजा वस्तुतः देवताओं को प्रसन्न कर कष्टों से त्राण पाने के लिए की जाती है। कष्टों को दूर करने में देवताओं से अधिक देवियों की पूजा का विधान है; जैसे- दुर्गा पूजा, लक्ष्मी पूजा। जिस प्रकार शक्ति की अधिष्ठात्री दुर्गा और धन की देवी लक्ष्मी हैं, उसी प्रकार विद्यादायिनी माँ सरस्वती हैं।हमारे धर्म-ग्रन्थों में सरस्वती के ज्ञानदायिनी, शुभ सुहासिनी, वीणाधारिणी, विश्वव्यापिनी, वीणापाणि आदि अनेक नाम हैं।
सरस्वती पूजा का शुभ समय
पहले सरस्वती की पूजा यों तो प्रत्येक विद्यालय में प्रत्येक शनिवार को करने का विधान था, परन्तु इधर कुछ वर्षों से वर्ष में एक ही बार माघ शुक्ल पंचमी के पुनीत दिवस को यह पूजा बड़ी धूम-धाम से की जाती है। छात्र- छात्राएँ एवं शिक्षकगण बड़ी धूम-धाम से भगवती शारदा की उपासना करते हैं। सभी प्रान्तों में थोड़ी-बहुत पूजा की जाती है, किन्तु बंगाल में इस पूजा को राष्ट्रीय पूजा का रूप दिया जाता है।
सरस्वती पूजा का समारोह
बसंत पंचमी के दिन प्रत्येक शिक्षण-संस्था में बड़ी चहल-पहल रहती है। विद्यालय तो बन्द रहते हैं, किन्तु छात्र-छात्राएँ और शिक्षकगण सब उपस्थित होकर बड़ी श्रद्धा के साथ तन्मय होकर सरस्वती पूजा करते हैं। छात्र भगवती भारती की भव्य मूर्ति निर्मित करा उसे स्थापित करते हैं। प्रत्येक विद्यालय में अपने-अपने ढंग की मूर्ति होती है और अपने ढंग का आयोजन होता है। इस अवसर पर छात्रों में नवीन उत्साह रहता है। सरस्वती पूजा वैदिक रीति से की जाती है। शिक्षक एवं विद्यार्थी सामूहिक प्रार्थना करते हैं। आरती के पश्चात् संगीत आदि भी होते हैं और अन्त में प्रसाद वितरण होता है।
उस दिन रात्रि में छात्र-छात्रों की ओर से अभिनय का कार्यक्रम भी अनेक विद्यालयों में रखा जाता है। अभिनय-प्रदर्शन में शिक्षक भी सहयोग देते है। विद्यालयों के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी सरस्वती की प्रतिमा बनाकर उपासना की जाती है।
द्वितीय दिन प्रतिमा-विसर्जन होता है। गाजे-बाजे, नगाड़े के साथ सरस्वती की मूर्ति किसी ट्रक या टमटम पर रखकर एक बड़ा जुलूस निकाला जाता है। नगर के प्रमुख मार्गों से होता हुआ यह जुलूस किसी सरोवर या सरिता तट पर जाकर रुक जाता है। वहाँ पर तैराक छात्र प्रतिमा को लेकर जल में प्रवेश करते हैं और मध्य धारा में जाकर छोड़ देते हैं।
सरस्वती पूजा का महत्व
वीणावादिनी माँ सरस्वती फलदायिनी हैं। इन्हीं की कृपा से हमारे ज्ञान-चक्षु खुलते हैं। हमारे अन्तर के सारे कलुषों का परिहार इन्हीं के द्वारा होता है। हमें शुभ कार्यों को करने की प्रेरणा यही देती हैं। अध्ययन, मनन, चिन्तन, लेखन और अनुसन्धान के कार्य बिना इनकी कृपा के सम्भव नहीं। यदि माँ सरस्वती की अनुकम्पा नहीं हुई होती, तो हम वैभवाभूषित नहीं होते। हमारी यश-वृद्धि, प्रतिष्ठा- वृद्धि एवं गौरव-वृद्धि सरस्वती की कृपा से ही होती है। वीणापणि की कृपा से ही संसार में अनेक व्यक्ति पूज्य हो गये हैं। वीणापणि ने ही मानवों को देव-तुल्य बना दिया। वीणापणि के प्रसाद से अनेक व्यक्ति मृत्यु के पश्चात् भी अमर हैं। आज कवि- कुल-कमल-दिवाकर गोस्वामी तुलसीदास, विद्यापति, सूर, कबीर, जायसी, मीरा, नानक, दादू, गाँधी आदि इस धराधाम पर नहीं हैं, पर इनके नाम अमर हैं। राजा धन से पूजित होता है, किन्तु वाणी का वरदपुत्र अपनी विद्या तथा सरस्वती के प्रसाद से राजा से अधिक प्रतिष्ठा पाता है।कहा भी है-
"स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।"
अतः हम देखते हैं कि माँ सरस्वती की अर्चना निष्फल नहीं जाती । इसके माहात्म्य को भूलने वाला व्यक्ति अज्ञानी है, पृथ्वी का भार है।
सरस्वती पूजा की सफलता
सरस्वती पूजा भारत में युग-युग से चल रही है। प्राचीन काल में भी सरस्वती पूजा हमारे देश में होती थी। इस पूजा का भारत में सर्वोपरि स्थान था। यही कारण है कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में सरस्वती की प्रार्थना कई स्थानों पर पायी जाती है। कालक्रम में इसमें त्रुटि आती गयी और पूजा की परम्परा समाप्तप्राय थी। अब जब हमारा देश स्वतन्त्र हो गया, हमें अपने इष्ट देवों की पूजा-अर्चना में अधिक तत्परता दिखलानी चाहिए। हिन्दू-मुसलमान सभी छात्रों का पावन कर्तव्य है कि वे एक हो इस पूजा में भाग लें। सरस्वती हमें नियमित, अनुशासित, आज्ञाकारी और विनम्र होने का सन्देश देती हैं। अत: शुद्ध भाव से हमें सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। वे वैभव की भूखी नहीं, शुद्ध भाव की भूखी हैं। हमें भी वैभव को विशेष महत्व न देकर विद्या को प्रधानता देनी चाहिए। सरस्वती पूजा की सफलता इसी में निहित है।
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