विनाशकाले विपरीत बुद्धि पर हिंदी कहानी लेखन Every Action Has AN Equal Reaction Vinash Kale Viprit Buddhi in Hindi मनुष्य का समय खराब आता है तो उसकी
विनाशकाले विपरीत बुद्धि पर हिंदी कहानी लेखन
विनाशकाले विपरीत बुद्धि Vinash Kale Viprit Buddhi in Hindi इस उक्ति का अर्थ है कि जब मनुष्य का समय खराब आता है तो उसकी बुद्धि भी गलत दिशा की ओर चलने लग जाती है। वह बुरे मार्ग पर चलने लगता है और गलत कामों में लग जाता है। इसी के आधार पर एक छात्र की कहानी इस प्रकार है -
अनुज एक बहुत ही होशियार विद्यार्थी था । वह हमेशा कक्षा में पहला स्थान प्राप्त करता था। सभी शिक्षक उसे बहुत अधिक पसंद करते थे और दूसरे सभी विद्यार्थियों को भी अनुज की तरह ही कठिन परिश्रम करने के लिए कहते थे । अनुज सदा खेलों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेता था और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता था। अनुज की कक्षा में कुछ विद्यार्थी ऐसे भी थे जो शरारती प्रवृत्ति के थे । वे मन ही मन अनुज से ईर्ष्या करते थे। वे उसे किसी भी तरह से अपने साथ शामिल करना चाहते थे । वे कहते थे कि यदि थोड़ा समय निकालकर तुम हमारे साथ रहोगे तो तुम्हारी पढ़ाई में उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उनके जयादा कहने पर, अनुज भी सोचता है कि मुझे इनके साथ भी मित्रता कर लेनी चाहिए। वह उन शरारती छात्रों के साथ घूमने फिरने लग जाता है। ऐसा करने पर वह अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान नहीं दे पाता। ऐसा देखकर वे शरारती छात्र मन ही मन बहुत प्रसन्न होते थे ।
वे यही सोचते थे कि अब यह कैसे कक्षा में प्रथम आ पाएगा? अनुज का अधिक से अधिक समय अपने नए दोस्तों के साथ बीतने लगा। अब वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पा रहा था । उसका यह व्यवहार, विद्यालय के सभी शिक्षक भी देख रहे थे। वे अनुज को समय-समय पर समझाने का प्रयास कर रहे थे कि पढ़ाई पर ध्यान न देने पर आगे तुम्हारा, भविष्य भी खराब हो सकता है। लेकिन अनुज किसी की भी बात को अनसुना कर रहा था। वह सोच रहा था कि चाहे जो भी हो विद्यालय में पहला स्थान तो मैं ही प्राप्त करूँगा। अनुज के कुछ अच्छे सहपाठी भी बार-बार उसको यही समझा रहे थे कि तुम गलत बच्चों के साथ मत रहो। उनके साथ रहने पर तुम केवल अपना ही नुकसान कर रहे हो। वे तुमसे केवल ईर्ष्या करते हैं। वे नहीं चाहते कि तुम आगे बढ़ो। अनुज किसी की भी बात नहीं मानता। वह फिर से उन्हीं गलत छात्रों के साथ अपनी मित्रता बनाए रखता है ।
कुछ समय पश्चात् विद्यालय की अर्द्धवार्षिक परीक्षाएँ संपन्न होती हैं। सभी कक्षाओं का परीक्षाफल घोषित किया जाता है। अनुज भी यही सोचता है कि प्रथम तो वह ही आएगा। लेकिन ऐसा नहीं होता कक्षा में कोई दूसरा छात्र प्रथम स्थान प्राप्त करता है। अनुज के अंक कम आते हैं। ऐसा होने पर भी उसको कोई पछतावा नहीं होता। वह सोचता है कि कोई बात नहीं इस बार परीक्षा में अंक कुछ कम रह गए लेकिन वार्षिक परीक्षा में तो मैं ही प्रथम आऊँगा। वह फिर से पढ़ाई पर कोई विशेष ध्यान नहीं देता और अपना सारा समय दोस्तों के साथ घूमने-फिरने में बिताने लग जाता है। वार्षिक परीक्षाएँ जब निकट आ जाती हैं तो उसे चिंता होने लगती है कि अब वह सब कुछ कैसे इतने कम समय में याद कर पाएगा। वह यही सब सोच-सोचकर घबराने लगता है। अब उसे चिंता होने लगती है कि यदि वह परीक्षा में प्रथम नहीं आ पाया तो घर में और विद्यालय में उसके बारे में सब क्या सोचेंगे। यही सब सोचकर वह मानसिक पीड़ा के कारण न ठीक से पढ़ाई कर पा रहा था और न ही सो पा रहा था। अब उसे दिन-पर-दिन घबराहट हो रही थी।
आखिरकार वह समय भी आ गया जब वार्षिक परीक्षाएँ समाप्त हुई और परीक्षाफल घोषित किया गया। इस बार अनुज फेल हो गया था। वह मन ही मन पश्चाताप कर रहा था कि यदि मैंने समय रहते अपने शिक्षकों की और अपने सहपाठियों की बातों पर ध्यान दिया होता तो आज भी मैं ही कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करता। लेकिन अब पछताने से क्या हो सकता था। इसलिए कहते हैं कि ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि' अर्थात् जब मनुष्य का बुरा समय आता है तो उसकी बुद्धि विपरीत दिशा अर्थात् उल्टी दिशा में चलने लगती है। Every Action Has AN Equal Reaction उसे कुछ समझ में नहीं आता कि क्या अच्छा है और क्या बुरा ?
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