गाड़ी अंबाजी के लिए सड़क पर दौड़ चुकी थी। दो घंटे की यात्रा के बाद लगभग 7:30 बजे अम्बा जी मंदिर के पास निर्धारित होटल पर पहुँच कर सभी आश्वस्त लग रहे थे।
लाल डिब्बा
गाड़ी सुबह 6:30 बजे ही आ गयी थी, किशोर ने हार्न बजा कर दरवाजे के पास पार्क करने का संकेत दे दिया था।
“माँ, जल्दी करो, देर हो रही है”, संगीता ने अपने बालों पर अंतिम बार कंघी फेरते हुये कहा।
“तुम्हारे पापा को बोलो बैग में लाल डिब्बा रखना न भूलें”, रमा संगीता को कहते हुये बाथरूम में घुसीं, “मैं बस अभी नहा कर निकली”।
जोशी परिवार माँ अम्बा के दर्शन के लिए सांबरकांठा को जल्दी निकलना चाहता था, ताकि रास्ते में अन्य मंदिरों के दर्शन भी करते चले।
“हमारे पास तीन दिन का समय है, क्यों न नजदीक के हिल स्टेशन को अपनी यात्रा में सामिल कर लिया जाए”, विनीत ने चाय खत्म करते हुये अपने पापा की तरफ देखा और बाहर ड्राइवर से प्लान फाइनल करने बाहर निकाल गया।
दोनों कुछ देर ताल प्लान बनाते रहे, “हमें कोशिश करनी होगी कि प्लान मुताबिक यात्रा करें”, कहते हुये विनीत अपना बैग लेने अंदर चला आया।
किशोर को पिछली यात्रा का घटनाक्रम याद आ रहा था। एक दिन पहले ही वो राजस्थान का पाँच दिन एक प्रोग्राम पूरा करके वापिस आया था। वापसी में कई बार गाड़ी का इंजन, उपयुक्त दबाब न बनाने के कारण, सही गति नहीं पकड़ पा रहा था, जिसके कारण दो घंटे की यात्रा लगभग पाँच घंटे में पूरी हो पायी थी। देर रात लौटने के कारण वह अपनी गाड़ी को गैरेज नहीं ले जा पाया था। उसको डर था कि इस वजह से जो प्लान विनीत से फाइनल किया था कहीं खराब न हो जाये। उसका इरादा था कि रास्ते ही में किसी मैकेनिक को दिखा कर गड़बड़ी ठीक कारवा कर इस ट्रिप को मैनेज कर लेगा। यात्रा से लौटने के बाद गाड़ी की पूरी जांच करवाएगा।
घर बंद कर निकलते हुये 8:00 बज गए थे। सारा समान गाड़ी में व्यवस्थित करके जब सब लोग गाड़ी में बैठ गए, तो किशोर ने अम्बे माता का नाम लेकर स्टार्ट करने के लिए गाड़ी की चाबी घुमाई। गाड़ी खच-खच आवाज करके बंद हो गयी। दो-तीन बार कोशिश करने पर भी जब गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई तो किशोर को थोड़ी घबराहट होने लगी। बार-बार गाड़ी से उतरता और बोनट खोल कर स्पार्क प्लग चैक करता और फिर गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश करता, लेकिन गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही थी, “ऐसी मुसीबत तो पहले कभी नहीं आयी थी”, किशोर मन ही मन बड़बड़ाता हुआ विनीत को देख कर बोला। विनीत ड्राइवर की बगलवाली शीट पर ही बैठा था।
अब तो विनीत की बैचेनी बड़ती जा रही थी। उसका हिल स्टेशन वाला प्लान बिगड़ता हुआ नजर आ रहा था। किशोर ने अपने मित्रा को फोन करना चाहा ताकि दूसरी गाड़ी का प्रबंध किया जा सके, परंतु फोन भी इस समय नहीं लग रहा था।
“शायद यात्रा का सही मुहूर्त ही नहीं है आज”, रमा मन ही मन बुदबुदाई। रमा स्वभाव से काफी धार्मिक विचारों वाली थी, अक्सर शुभ मुहूर्त देख कर ही कार्य करने का उनका स्वभाव था।
“सभी समय कार्य के लिए शुभ ही होता है”, मुकेश ने रमा को सांत्वना दी। रमा के पति मुकेश स्वछंद विचार वाले व्यक्ति थे, “भला ऊपर वाला अपनी बसाई इस दुनिया में कुछ बुरा क्यों रखेगा”।
“अच्छा, अपने लाल डिब्बा तो बैग में रख लिया था ना?” रमा के दिल में अब शक के बादल घुमड़ने लगे थे हालातों को देखते हुये।
रमा धार्मिक यात्राओ में प्रायः लाल डिब्बा सांथ लेकर चलती थी। उनका विश्वास था कि इससे माता रानी का आशीर्वाद उनके सांथ बना रहेगा, यात्रा की मुसीबतें भी टल जाएंगी।
पिछले लगभग दस वर्षों से वे यह परंपरा निभा रहीं थीं। प्रति वर्ष नवरात्रों के पर्व पर वह माता के दरबार में साड़ी व श्रंगार का अन्य समान माँ को अर्पण करने शहर के सबसे पुराने दुर्गा पंडाल पर जया करतीं थीं और वहाँ से लाल सिंदूर कि एक पुड़िया माँ के आशीर्वाद के रूप में घर लाकर एक लाल डिब्बे रख दिया करतीं थी। उसमें से थोड़ा थोड़ा सिंदूर रोज़ माँ को स्मरण कर उनकी मूर्ति को चड़ाया करतीं थी।
इस वर्ष नवरात्रों के समय उन्हें माइके में एक शादी में सामिल होने के लिया जाना पड़ा था, इस वजह से वे यह परंपरा नहीं निभा सकीं थीं। यह उनके दिल और दिमाग को कचोट रहा था। उन्होने यह तय किया कि शादी से लौट कर वे अंबाजी के दरबार में जाकर यह परंपरा पूरी करेंगी और माँ से क्षमा याचना कर आने वाले वर्षों में इस परंपरा को जारी रखने का संकल्प लेंगी।
सूरज ऊपर आ चुका था, सुबह के 10:30 बज चुके थे जब किशोर का मित्र नई गाड़ी लेकर पहुंचा। सारा समान नई गाड़ी में स्थानांतरित करके सभी गाड़ी में माँ अंबा का नाम लेकर सवार हुए और गाड़ी रवाना हुई।
रास्ते में चाय-नाश्ता के लिए हाई-वे के नजदीक रुकने पर रमा को यूं ही ख़याल आया कि अम्बे माँ को चढ़ाने के लिए ले जा रहे सिंदूर के डिब्बे की एक बार तसल्ली कर ली जाए। मुकेश को देख कर बोलीं, “ सुनिए, जरा भूरे रंग वाला बैग गाड़ी से बाहर निकाल दीजिये, मुझे लाल डिब्बा चैक करना है कि सिंदूर की डिबिया है कि नहीं”।
“आधे से ज्यादा रास्ता पूरा हो चुका है, अंबाजी जाकर आराम से देखती रहना,” मुकेश बड़ बड़ाए, “हमेश शक के घेरे में ही रहती हो, थोड़ा विश्वास भी कर लिया करो”।
चाय के लिए होटल में जाते हुए मुकेश बोले “चाय पीकर आगे की यात्रा जड़ी पूरी करनी है”। अंधेरा होने से पूर्व ही वो अंबा जी पहुँच जाना चाहते थे। वैसे भी शाम के 5:00 बज गए थे।
“लगभग ढाई घंटे का सफर अभी बाकी है”, किशोर ने बताया। चाय आदि खत्म कर अभी आधा घंटा ही चले थे कि किशोर ने गाड़ी के पिछले पहिये पर लहराने का अनुभव किया। सड़क से गाड़ी उतार कर उसने पिछले पहिये को चैक किया तो उसे पहिये में हवा का दबाब कम महसूस हुआ।
“सर, पिछले पहिये को बदलना होगा, पंचर लगता है”, किशोर ने सभी से गाड़ी से उतर जाने का आग्रह किया। वह गाड़ी के पहिये को निकाल कर नया पहिया लगाने में लग गया। रमा का दिल नहीं मान रहा था, उसने सोचा कि यही समय है, लाल डिब्बे को चैक कर सिंदूर होने की तसल्ली कर ली जाए।
“आज का दिन ही शायद ठीक नहीं है, आप सब गाड़ी से उतरो, मैं लाल डिब्बे की तसल्ली कर लेती हूँ”, बुद बुदाते हुये रमा गाड़ी से उतर गयी और समान बाहर निकालने का आग्रह करने लगी। विनय और संगीता बेमन से खीज़ते हुये उतार रहे थे, तब तक किशोर दोनों बड़े बैग उतार कर साइड में रख कर स्टैपनी निकालने लगा।
रमा ने भूरे बैग का ताला खोला और लाल डिब्बे को तलाशने लगी। आधा बैग खाली हो जाने पर भी उसे डिब्बा नहीं दिखा तो वो जल्दी से बाकी समान को भी हटाने लगी, “शायद डिब्बा सबसे नीचे रखा हो”।
“सुनिए, लाल डिब्बा अपने किस बैग में रखा था”, मुकेश से पूछते हुये रमा ने दूसरा बैग भी खोल डाला। परंतु वह बैग पूरा खाली हो जाने पर भी लाल डिब्बा कहीं नहीं दिखा।
“गाड़ी चलने के लिए तैयार है’, किशोर ने तब तक पंचर वाले टायर को बदल के गाड़ी को स्टार्ट कर दिया और समान को वापिस गाड़ी में रखने लगा।
मुकेश के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ती नज़र आ रहीं थीं, रमा का चेहरा शांत लेकिन गुस्से में तम-तमाया दिख रहा था। सभी अनमने भाव से गाड़ी में बैठ गए। गाड़ी में सन्नाटा छाया हुआ था, बस सरपट दौड़ते पहियों की और कभी-कभी हल्के ब्रैक लगने से पहियों के घिसने की आवाज़ आती थी।
लगभग एक घंटे चलने के बाद जब गाड़ी जब फ़िर लहराने लगी तो किशोर को आभास हो गया कि दूसरा पहिया भी शायद पंचर हो गया है। धीमी करके गाड़ी एक बार फिर उसने सड़क से उतार कर खड़ी कर दी।
“यार तुमने चलाने से पहले ये गाड़ी भी ठीक से चैक नहीं की, कैसे लापरवाह हो,” विनय किशोर को झल्लाते हुये बोला, “लो हो गया टूर का सारा मज़ा किरकिरा”।
आगे बाएँ पहिये में पंचर हुआ था और अब तो स्टेपनी भी नहीं थी गाड़ी में। सबरकांठा की पहाड़ियों के बीच ओझल होते सूरज की रोशनी भी अब आहिस्ता आहिस्ता कम हो रही थी।
“नज़दीक में पंचर की दुकान ढूंड कर पंचर ठीक करवाना पड़ेगा”, कहते हुए किशोर ने गाड़ी जैक में टिका कर पहिया निकाला और सामने से आती एक गाड़ी को इशारा कर रोका। उसके ड्राइवर से कुछ बात कर वह पहिया लेकर उसमें बैठ गया, “आप लोग इंतज़ार करिए, मैं पहिया ठीक करके जल्दी लौटता हूँ।“
समान के सांथ सड़क के किनारे चारों बैठकर माता रानी को याद करते हुये इंतजार करने लगे। सड़क के दोनों तरफ काफी दूर तक कोई बस्ती नज़र नहीं आ रही थी, बस पेड़ों के झुरमुट और कुछ घनी झाड़ियाँ नज़र आती थीं। धीरे-धीरे सूरज अपने ठिकाने को लौटता नज़र आ रहा था, अंधकार का साया बड़ता जा रहा था। विनय और संगीता अपने-अपने मोबाइल पर व्यस्त थे। मुकेश बार-बार सड़क के सामने वाले छोर, जिस तरफ किशोर टायर बनवाने गया था, नज़र घुमाते थे कि शायद किशोर नज़र आ जाए। उस तरफ से आती हर गाड़ी से किशोर के टायर के सांथ उतरने की एक झूठी उम्मीद बनती, पर सभी गाडियाँ सन-सनती वहाँ से गुजर जातीं थीं।
“माता रानी रुष्ट हो गयीं लगतीं हैं, शायद”, बुद-बुदाते रमा मुकेश पर खीझ उठी, “आप लाल डिब्बा रखना कैसे भूल सकते हैं”।
तभी दूसरे छोर से आती एक गाड़ी थोड़ी धीमी हुयी, दरवाजे के काँच को नीचे करते हुये एक शख़्स ने पूछा, ”इस सुनसान जंगल के बीच आप लोग समान के सांथ किसका इंतज़ार कर रहे हैं, यह जगह खतरनाख है अक्सर लूटपाट होती है यहाँ”। मुकेश ने नज़दीक जाकर पूरी बात बताई।
“हो सके उतनी जल्दी आप लोग इस जगह से निकाल जाने का प्रबंध करें,” कहते हुये उसने काँच ऊपर चड़ाया और गाड़ी आगे निकाल गयी।
लगभग एक घंटे से ज्यादा हो गया था, चारों ओर अंधरा फैल चुका था। सभी के चेहरे किसी अनहोनी घटना के आशंका से घबराये हुये लग रहे थे। कुछ गाडियाँ रफ़्तार से निकाल जातीं थीं, कुछ लोग कारण जानकार उनको आगे सुरक्षित जगह में छोड़ देने का आग्रह करते। परंतु मुकेश मना कर देते, “इस सुनसान जगह पर गाड़ी की ज़िम्मेदारी कौन लेगा, हमने किराए पर ली है, ये हमें ही देखना पड़ेगा”।
तभी एक मोटरबाइक पास आ कर रुकी, एक नौजवान उतार कर आया और उनसे बातचीत कर मदद का भरोसा देकर यह कहता हुआ चला गया कि वह अपनी ज़ीप लेकर तुरंत आता है और उनको नजदीक के होटल पर छोड़ देगा।
रात के नौ बज चुके थे, किशोर अभी तक नहीं पहुंचा था। मुकेश उससे मोबाइल पर संपर्क के कई असफल प्रयास कर चुका था, परंतु जंगल विस्तार होने से नैटवर्क नहीं पकड़ रहा था। सभी चुप थे।
“विनय तुम जरा कोशिश करो, शायद किशोर को फोन लग जाये”, रमा ने बुझी आवाज़ में कहा। विनय ने नहीं में सर हिलाया।
“कोई गाड़ी वाला भी अब रुकने की हिमाकत नहीं कर रहा है”।
“इतनी रात अब कौन जंगल में रुकने का साहस करेगा”, सब एक दूसरे की हिम्मत बढ़ाने की कोशिश में लगे थे, ख़ुद हालांकी डरे हुए थे। “माता रानी रक्षा करना, आपके दरबार में सिंदूर चढ़ने अवश्य आऊँगी”, रमा मन ही मन अम्बे माँ को मना रही थी।
तभी एक खुली जीप नज़दीक आकर रुकी। सड़क के किनारे जीप लगाते हुए एक हष्ट-पुष्ट नौजवान उतर कर उनकी ओर आया और सांतवना देते हुये बोला आप समान के सांथ जीप में बैठ जाइए। “हम आप लोगों को सुरक्षित एक पास के होटल तक पहुंचा देते हैं”, कहते हुये वह समान को उठाने को बढ़ा। उसका एक और मित्र भी तब तक नजदीक आ कर मदद करने का प्रयास करने लगा।
“आप लोग कौन हैं?” विनय को वो दोनों ठीक व्यक्ति नहीं लगे। उसने उन दोनों को ठहरने का इशारा करते हुए जीप पर ही रहने का आग्रह किया। “हम पड़ोस के गाँव के हैं, हमारा मित्र अभी मोटरबाइक पर आपसे बात करके ही गया था”, उनमें से एक बोला।
उन लोगों की बात-चीत अभी चल ही रही थी कि एक वॉल्वो गाड़ी रुकते हुए पास आयी। वॉल्वो से चालक तेजी से उतार कर आया और समान के सांथ उसने मुकेश व विनय को वॉल्वो में धकेलते हुए अंदर बैठा दिया। उसने तेज आवाज़ में रमा और संगीता को वॉल्वो में बैठने का निर्देश दिया, “आप दोनों भी तुरंत बैठ जाइए”।
खुली जीप के दोनों लड़के वॉल्वो वाले से गली-गलौज से बहस करते हुए झगड़ने लगे। तब तक वॉल्वो वाले ने गाड़ी स्टार्ट करके सड़क में दौड़ा दी। जीप में सवार नौजवानों ने कुछ दूर तक वॉल्वो का पीछा किया। वॉल्वो की रफ़्तार के सामने जीप धीमी पड़ रही थी, थोड़ी देर बाद वो जीप वापिस मुड़ कर दूसरी तरफ लौट गयी।
जब तक मुकेश और उसका परिवार वाले कुछ संभलते, वॉल्वो तेजी से जंगल के बीच दौड़ते हुए वहाँ से दूर निकाल गयी।
“आप सब माता रानी का शुक्रिया कीजिये कि सही समय पर मैं वहाँ पहुँच गया अन्यथा आप जिस खुली जीप में बैठने जा रहे थे वो कफी खतरनाख हो सकता थे आप सब के लिए,” उसने बताया कि वह खुली जीप पास के गाँव वालों की है और वो दोनों नवयुवक उस इलाके के एक सक्रिय लुटेरों के गैंग के सदस्य हैं।
मुकेश की घबराहट देखते हुए वॉल्वो चालक ने आश्वासन दिया कि अब परेशानी की कोई बात नहीं है, फिर उसने विस्तार से मुकेश को अपना परिचय दिया कि वह पास के कस्बे में ट्रांसपोर्ट का धंधा करता है और प्रायः इस रास्ते से देर सबेर गुजरता रहता है। इस इलाके की व्यावहारिक व भौगोलिक जानकारी रखता है,”इस जीप को और उन दोनों नौजवानों को मैं अच्छी तरह जनता हूँ, ये इस सुनसान इलाके में कई वारदातों को अंजाम दे चुके हैं”।
“कई मौकों पर राहगीरों को शारीरिक नुकशान तक पहुंचाया गया है”, अक्सर मोबाइल नैटवर्क ना होने से साहयता समय पर नहीं मिल पाती है, इसलिए अंधेरा होने के बाद लोग यहाँ से निकलना कम पसंद करते हैं। मुकेश ने उसका शुक्रिया अदा किया और बताया कि उनकी भाड़े पर ली हुयी गाड़ी अभी वहीं खड़ी है।
“आप अपने ड्राइवर को कहिए कि टायर लगा कर वो होटल विशाल पहुंचे,” वॉल्वो चालक ने मुकेश को सलाह दी। जंगल का इलाका गुज़र चुका था दूर कुछ लाइट भी दिखने लगीं थीं। मुकेश ने किशोर को फोन लगाया, दूसरी बार प्रयास करने पर फोन लग गया। नैटवर्क अब पकड़ने लगा था।
“सर आप लोग कहाँ हैं, मैं कब से कोशिश कर रहा हूँ संपर्क की”, किशोर ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “आप लोगों के ना मिलने पर टायर लगा कर मैं गाड़ी लेकर आगे चल पड़ा था”। किशोर भी उस रास्ते और वहाँ होने वाली गतिविधियों से पूरी तरह अवगत था।
“हम होटल विशाल पहुँच रहे हैं, तुम गाड़ी लेकर वहाँ आ जाओ”, मुकेश ने किशोर को निर्देश दिया।
वॉल्वो चालक ने उन सब को विशाल होटल उतार कर गाड़ी बैक करी और अपने रह चलने लगा। मुकेश ने वॉल्वो चालक को शुक्रिया कहते हुये उससे चाय पीने का आग्रह किया।
“प्रस्ताव का शुक्रिया, मुझे वापिस जाकर एक ट्रक समान भरवा कर गंतव्य पर रवाना करना है, आप सब अपना ख्याल रखिएगा”, कहते हुए उसने वॉल्वो रास्ते पर दौड़ा दी।
लगभग आधे घंटे बाद किशोर भी गाड़ी लेकर पहुँच गया और सारा व्यतांत सुनाया कि पंचर रिपेयर की कोई भी दुकान नजदीक ना होने की वजह से उसे पास के कस्बे तक जाना पड़ा, इसलिए आने जाने में कफी समय लग गया। मुकेश ने सारी बात उसे बतायी कि बस किसी तरह बच के निकल पाने में वे समर्थ हुए उस वॉल्वो वाले कि वजह से, “भगवान उसका भला करे”। मुकेश उसकी कुशलता और बिजनेस में तरक्की की दुआएं देते बार-बार ईश्वर का धन्यवाद व्यक्त कर रहा था।
वॉल्वो चालक की बात और सभी घटनाओं को जोड़ते हुये रमा भी सहम सी गई थी। मन-ही-मन माता रानी का शुक्रिया अदा करते नहीं थकती थी। संगीता को तो जैसे साँप सा सूंघ गया था, वह सारी बातों को याद करते हुए सिसक पड़ी।
“थोड़ी देर में भोर हो जाने पर ही हम आगे का सफर तय करेंगे”, मुकेश ने सभी के लिए चाय का ऑर्डर दे दिया। किशोर चाय पी के धीरे से उठकर गाड़ी साफ करने लगा आगे की यात्रा के लिए।
हल्का सा उजाला हो रहा था, गाड़ी अंबाजी के लिए सड़क पर दौड़ चुकी थी। दो घंटे की यात्रा के बाद लगभग 7:30 बजे अम्बा जी मंदिर के पास निर्धारित होटल पर पहुँच कर सभी आश्वस्त लग रहे थे। रातभर न सो सकने के बावजूद सभी स्नान आदि करके माता के दर्शन और आशीर्वाद के लिए मंदिर पहुँच गए। मंदिर में भीड़ होने से लाइन में काफी इंतज़ार करना पढ़ रहा था। अंबे माँ की जय घोष से वातावरण भक्तिमय हो रहा था, सभी की आँखें नम थीं और पूरी आस्था से माता का शुक्रिया अदा करते हुये जयकारा लगा रहे थे।
- विनोद चन्द्र पांडे
बी-59, श्रीधर पार्क, मकरपुरा डिपो के पीछे वडोदरा 390 010, गुजरात मो॰: 9825450746 e-mail: vcpande64@gmail.com
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