सच्चा प्रेम कहीं भी पनप सकता है। वह जाति मजहब नहीं देखता है। ऐसा प्रेम पवित्रता को समेटे हुए होता है। आदर्शमयी होता है। सच्चे प्रेम में पवित्र ह्रदय
मेरा सच्चा प्रेम
पहली बार मैंने देखा उसे,तो मेरे अंदर प्रेम की आग जल गई। वह अच्छी लगने लगी थी। मेरे को भा गई । वह मेरे हृदय में धंसी चली जा रही थी। वह बैठी थी एक कुर्सी पर। एकटक मैं उसे निहारता रहा। वह सकुचा रही थी। न जाने क्यों घूर रहा है नालायक। इतना आज तक कोई नहीं घूरा। उसको थोड़ा अच्छी फीलिंग हुई। वह मधुर गति से मुश्काई। जी मेरा हरा भरा हो गया। मन मंदिर में द्वीप प्रज्ज्वलित हो उठा। भावना मेरी तीव्र गति से आगे बढ़ गई। आज मुझे महसूस हुआ कि किसी को मेरी जरूरत है जो पूर्णता की ओर बह पड़ा है। पहला एहसास गहराई तक चोट की। बहुत देर तक मैं उसे निहारता रहा। वह भी बेचारी निहारती रही। मेरा प्रेम उच्चतम स्कोर की तरफ था। मन कर रहा था कि उसको अपना बना लूँ। अपनी जिंदगी उसके साथ जोड़ दूं। पर असम्भव चीज सोंचने लगा। मैंं नालायक हूँ ऐसा सोचना मेरी मूर्खता का यह प्रमाण है।
मेरा नाम सावन है। सावन की तरह हरा भरा। सदैव लोगों को खुश करने की इच्छा रहती है। मैं एक अस्पताल में काम करता हूँ। उसी अस्पताल में वह आयी थी। माँ बीमार थी। भर्ती कर रखा था। कोई नहीं था माँ के सिवा। इसी अस्पताल में वह आयी थी। माँ की सेवा में वह पूर्ण रूप से तल्लीन थी। उसकी अस्पताल में हर चहलकदमी पर मेरी निगाह जाती। वह भी थोड़ा देख लेती। जब वह थोड़ा देख लेती तो मेरा हृदय प्रफुल्लित हो जाता। मैं उसे हर बार निहारता। जब भी वह सामने से गुजरती। मैं भावना के वशीभूत हो चुका था। उसके हृदय में मेरे प्रति भावना जागृत होने लगी थी। पहला पुरुष मैं था जो उसे चाहत भरी दृष्टि से देखा था। उसकी शारीरिक बनावट के कारण किसी लड़के ने प्रेम दृष्टि से देखा ही नहीं।
उसके अंदर भी प्रेम की आग जल चुकी थी। उसके मन भावना में धीरे धीरे मैं बसने लगा था। अब वह बार-बार मेरे आस-पास आ जाती। अभी तक कोई लड़के ने मेरे जैसा चाहत भरी नजरों से कभी नहीं देखा था। तीन-चार दिन में सिर्फ हम दोनों एक दूसरे को देख-देख कर प्रेम प्रकट कर रहे थे। बातचीत का सिलसिला मैं शुरू करना चाह रहा था ताकि हम दोनों की नजदीकियां कुछ और बढ़ सके। आखिर उसको आते ही मैंने पूछ लिया अब तुम्हारी माँ कैसी है। उसने बताया कि तीन चार दिन से कुछ नहीं खाया था। आज हल्की दलिया खाया था। कई दिन बाद आज वह मुस्कराई। उसने बताया कि मेरी माँ के सिवा इस दुनिया में कोई नहीं है। पिता जी बचपन में चल बसे। यह कह कर तेजी से माँ के पास चली गयी। मैं एकटक उसको देखता रह गया और उसके बारे में सोंचता रहा।
सच्चा प्रेम कहीं भी पनप सकता है। वह जाति मजहब नहीं देखता है। ऐसा प्रेम पवित्रता को समेटे हुए होता है। आदर्शमयी होता है। सच्चे प्रेम में पवित्र ह्रदय की आवश्यकता होती है। लालच का इसमें महत्व नहीं दिया जाता है। इस तरह का प्रेम ईश्वरीय प्रेम होता है जो कभी न टूटने वाला प्रेम। भावना प्रधान प्रेम अपने आप में सभी गुणों से सम्पन्न होता है। यही सोचकर कर वह मेरे तरफ झुक गई थी क्योंकि यहाँ पर उसे सच्चा प्रेम मुझमें नज़र आने लगा था। मैं उसकी सुन्दरता पर नहीं न्यौछावर अपने को कर दिया था बल्कि उसकी आत्मा की गहराइयों में प्रेम का स्वरूप नजर आया।
माँ की तवियत ठीक हो गयी। घर जाते-जाते वह अपना मोबाइल नंबर एक हल्की मुस्कान के साथ थमा दिया। बड़ी होनहार दिखी। चपल लड़की थी। एक पैर से विकलांग थी। पिता की मृत्यु के बाद उसकी पढाई रुक गई। निराशा का दौर। सारा दिन निकल जाता दूसरे के खेतों में काम करके। माँ अक्सर बीमार रहती है। माँ की सेवा भाव में लगी रहती। नाम उसका भावना है। इंटर तक पढाई हो पाई थी तभी पिता जी इस दुनिया को छोड़ चले गये। अधिकारी बनने का ख्वाब धरा का धरा रह गया। कुछ सालों के बाद माँ भी चल बसी। अब भावना अकेली हो गई। उसका जीवन उदासी से भर गया।
बरसात का मौसम था। पानी बरस रहा था जैसे अस्पताल से बाहर निकला। भावना ने बुखार होने की सूचना दी। बादलों की गड़गड़ाहट। तेजी से हो रही बारिश कि चिंता किये बगैर भीगते हुये मै उसके घर पहुँचा। भावना को दवा दी। कुछ देर बाद भावना का बुखार उतर गया। ठंड से भीगने के कारण मैं कांप रहा था। भावना ने मुझे कांपते हुए देखा। तुरंत मुझे रजाई लाकर दिया। मेरे पैर सिर दबाने लगी थी। उसके छूने से जैसे मेरा ठंडक गायब हो गया। पहली बार किसी लड़की के छूने से दिल में प्रेम भावना उमड़ पड़ी। वह मेरे पास बैठ गयी। मैं अपने हाथों से उसके हाथों को दबाया। एक छुवन से भावना के शरीर मे सिहरन सी दौड़ गयी। उस रात हमने उसके साथ गुजारी। हम दोनों एक दूसरे को बहुत करीब से जाना। निम्न जाति की लड़की के साथ हमारा संबंध जुड़ गया। प्रेम जात पात नहीं देखता।
अब वह मेरे बच्चे की माँ बनने वाली थी। भावना ने सूचना दी। भयभीत थी। डर से चेहरे पर निराशा झलक रही थी। अब क्या होगा। यह समाज मार डालेगा। जब समाज को पता चलेगा कि उच्च बिरादरी के लड़के के साथ रात गुजारी थी। तब क्या होगा। मैं इस गाँव को छोड़ दूंगी। ऐसा उसने कहा। मैंने कहा कि नहीं तुम ऐसा नहीं करोगी। काली रात थी। रात में मंदिर में पहुँच कर मांग मे सिन्दुर भर दी। सुबह पता चला कि मनोहर का लड़का ने अपने से छोटी जाति की लड़की से शादी कर लिया है। सुबह भीड़ लग गई। सवालों के घेरे में। नीच जाति से शादी कर ली है। उपर से विकलांग भी। तूने तो समाज में नाक कटा दी। मैंने एक लाइन में कह दी मैं ईश्वर की बनाई चीज से शादी की है। गाय भैंस से नहीं। सबको एक ईश्वर ने बनाया है। उसने बनाते हुए ये नही कहा कि तुम नीच जाति के हो, तुम उच्च जाति के हो। मैं गाँव के लोगों की मानसिकता को बदल दी।
पिताजी अवाक सब देख रहे थे। कभी मुझे तो कभी भावना को। पिताजी आप कहा करते थे सब एक ईश्वर की संतान है। कोई जात पात नहीं। आपका बेटा पिता के बताये रास्ते पर चला। मैं आज्ञाकारी पुत्र की तरह आप का नाम रौशन किया है। पति पत्नी के रुप में पिता के पैर छुये। पिताजी हम दोनों को आशीर्वाद दिया। पिताजी ने कहा कि बेटा एक तुम लायक़ पुत्र की तरह मेरा नाम रोशन कर दिया।
- जयचंद प्रजापति "जय'
प्रयागराज
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