राजनीति का अपराधीकरण पर निबंध Criminalization of Politics in India भारतीय राजनीति में अपराधीकरण एक बड़ी समस्या है। राजनीति में अपराधीकरण का अर्थ है
राजनीति का अपराधीकरण
राजनीति का अपराधीकरण पर निबंध Criminalization of Politics in India आज द्रुतगति से राजनीति का अपराधीकरण हो रहा है। हमारे नेताओं की छवि धूमिल होती जा रही है। अपराध जगत के कई कुख्यात व्यक्ति भी चुनाव जीतकर सांसद एवं विधायक हो जाते हैं। इससे राजनीति में अपराध बढ़ रहे हैं। जार्ज बर्नार्ड शॉ ने लिखा है- "राजनीति दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्तियों के लिए अन्तिम शरणालय है।” आज यह कथन सत्य प्रतीत हो रहा है। आज भारतीय राजनीति में जितने अपराधी नेता हैं उतने पहले कभी नहीं रहे। पता नहीं कैसे वे जनता के द्वारा चुन लिए जाते हैं। कितने ही लोग अपने को शान से बाहुबली या महाबली कहते हैं। ये किसी प्रकार सरकार में प्रवेश पाकर सरकार को अपने हिसाब से चलाते हैं।
राजनीति का अपराधीकरण के विभिन्न चरण
राजनीति का अपराधीकरण एकाएक नहीं हुआ। पहले कुछ राजनेताओं ने अपने चुनाव के जीतने के लिए गुंडे पाले और बाहुबली इकट्ठे किए। उन्होंने उनके प्रतिद्वन्द्वियों को ठिकाने लगाया और अपने नेताओं को येन केन प्रकारेण जिताया। चुनाव से पहले कई मुख्यमन्त्री जेलों में बन्द अपराधियों को जमानत पर खुला छोड़ देते हैं, ताकि वे मनचाहे ढंग से अपने प्रतिद्वन्द्वियों को डरा-धमकाकर अपनी गोटियाँ बिछा सकें। इसका परिणाम यह हुआ कि वे बाहुबली नेताओं पर भारी पड़ने लगे। अब उन्हें मोहरा बनकर काम करना रास नहीं आया। वे स्वयं राजनीति में प्रवेश कर गये। राजनीति में उनको सुरक्षा भी मिली और अपराध करने की आजादी भी मिली। बेचारी भोली-भाली जनता हर बार उनके चक्रव्यूह में फँस जाती है पश्चाताप करती है।
जनता को लोकतंत्र में विश्वास नहीं
राजनीति में अपराधियों का बोलबाला होने के दुष्परिणाम भी भयंकर हुए हैं। जनता को लोकतन्त्र पर विश्वास ही नहीं रहा है। अनेक प्रान्तों की ऐसी सरकारें हैं जो एक ही परिवार की मुट्ठी में बँधकर रह गई हैं, उनके समर्थक या विरोधी उनके खिलाफ कुछ बोलने से भी डरते हैं। जैसा भी सफेद-काला वो करें ठीक ही माना जाता है। इस लोकतन्त्र को तानाशाही भी कहें तो अनुचित नहीं होगा। यदि किसी प्रदेश का मुख्यमन्त्री अपराधी छवि वाला व्यक्ति हो या वह अपराधियों से घिरा हुआ हो तो उस प्रदेश का तो भगवान ही मालिक है। अपराधियों के राजनीति में प्रविष्ट होने से सबसे बड़ा खतरा खुद राजनेताओं को होने लगा है। वे स्वयं को संसद में भी सुरक्षित नहीं समझते। वे अपराधियों के सामने लाचार दृष्टिगोचर होते हैं। आम जनता हर राजनीतिज्ञ को अपराधी का रक्षक समझने लगी है। राजनीति में भ्रष्टाचार के प्रवेश करने से भी अपराधीकरण बढ़ा है। अब प्रत्येक समझदार व्यक्ति अपने को राजनीति से दूर ही रखना चाहता है। इसलिए राजनीति एक उजाड़-वन की तरह हो गई है जिसमें सम्भावना का कोई फूल खिलता दिखाई नहीं देता ।
अपराधीकरण का निराकरण
अब नेता स्वयं इसके निराकरण की बात सोचने लगे हैं। उन्होंने अनुभव किया है कि वे अपराधियों को पनाह देकर अपने पाँवों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। न्यायपालिका और चुनाव आयोग ने भी आचार-संहिता का निर्माण किया है। उनकी कठोरता के कारण कुछ परिवर्तन हुआ भी है। राष्ट्रीय दलों ने दागी लोगों को राजनीति में उतारने से बचना शुरू किया है। यह एक सुखद परिवर्तन है। 2022 के उत्तर प्रदेश के चुनावों को चुनाव आयोग ने निष्पक्ष कराने का प्रयास किया है। इस बार चुनाव आयोग की पैनी निगाह के कारण अपराधियों की दाल नहीं गल पाई, परन्तु क्षेत्रीय दलों में अभी भी बाहुबलियों का राज है।
आज समय की माँग है कि राजनीति में से अपराधियों का सफाया किया जाय। यह काम केवल जनता ही कर सकती है। वह अपने स्वार्थ से ऊपर देशहित में साफ छवि वाले व्यक्ति को ही चुनकर भेजे। सांसद और विधायकों की विधाता जनता ही है। अतः उसे सजग रहकर राजनीति को अपराधीकरण से बचाना होगा।
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