मेरा दैनिक जीवन my daily routine, essay on daily routine in hindi मेरा दैनिक जीवन पर निबंध Mera Dainik Jeevan par nibandh मेरा दैनिक जीवन पर निबंध
मेरा दैनिक जीवन
मेरा दैनिक जीवन पर निबंध Mera Dainik Jeevan Essay on My Daily Life दिनभर के क्रिया-कलाप को पूरा करते हुए हम जिस प्रकार अपना दिन व्यतीत करते है, उसे ही दैनिक जीवन कहा जाता है। इस प्रकार दैनिक जीवन का अर्थ है-प्रतिदिन या शेख का जीवन । मानव जीवन दिन, सप्ताह, महीना और क्यों में बँटा हुआ है। वह प्रातःकाल से अपने कार्यक्रम के अनुसार अपने कार्य में लग जाता है। आदमी का जीवन अपने दैनिक जीवन के ही अनुसार सुख-दुःख का भोग करता है। यदि किसी का दैनिक जीवन केवल खेलने, खाने और सोने तक ही सीमित रह जाये तो वह अपने वर्तमान और भविष्य दोनों को प्रत्येक व्यक्ति का दैनिक जीवन अलग-अलग प्रकार का होता है। भी अपने पूर्व निश्चित कार्यक्रम के अनुसार व्यतीत होता है। युग में मानव जीवन घड़ी की सुई की तरह अपनो कील पर घूम रहा है। अपनी कील से अलग होकर यदि वह चलने का प्रयत्न करे भी तो उसके जीवन में बेढंगी उथल-पुथल मच जायेगी। उसके जीवन की तरंग मन्द पड़ जायेगी । मेरा दैनिक जीवन घण्टों और मिनटों में बँटा हुआ है ।
जल्द सुबह उठाना
घड़ी के प्रातःकाल चार बजने की सूचना से मैं जग जाता हूँ। मेरी नींद पलायन कर जाती है। मेरी आँखों के सामने विचरने वाले सुखद स्वप्न नष्ट हो जाते हैं। मैं जगते ही मन ही मन ईश्वर का स्मरण करता हूँ। पुनः धरती माँ के पावन शरीर का स्पर्श कर धरती पर पाँव रखता हूँ। तत्पश्चात् शौच कार्य के लिए नदी तट की ओर निकल जाता हूँ । प्रातः काल की शीतल मन्द सुगन्ध पवन मन में नयी पुलक, नई चेतना और नई स्फूर्ति जगाकर हमारे रोम-रोम को पुलकित कर देती है। ऐसा मालूम होता है जैसे यह आनन्द इन्द्रियों से गद्दा नहीं जायेगा । शौच करने के पश्चात् मैं घर आता हूँ। अपने से बड़ों के पैरों का स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करता हूँ । पुनः रामचरित मानस का पाठ करता हूँ और अध्ययन करने बैठ जाता हूँ। कुछ देर के बाद माँ गरम दूध और बिस्कुट लेकर मेरे अध्ययन कक्ष में उपस्थित होती है । मैं दूध पीकर अपने अध्ययन कार्य को चलाता रहता हूँ। साढ़े आठ बजे समाचार पत्र वाला की आवाज आती है । मैं समाचार-पत्र लेकर दस मिनट तक उसका अवलोकन करता हूँ। तत्पश्चात् अपने छोटे भाई को विद्यालय में दिये गये कार्यों को पूरा करने में भी उसकी सहायता करता हूँ। इसके बाद उठ कर हाथ-मुह घोता हूँ भोजन करता हूँ। विद्यालय की पोशाक पहनकर विद्यालय के कार्यक्रम के अनुसार पुस्तकों और उत्तर पुस्तिकाओं को चुनकर विद्यालय चला जाता हूँ। 10-30 से सन्ध्या चार बजे तक विद्यालय में रहकर अपने गुरुओं की शिक्षाओं को सुनता हूँ और उनके आदेशों और उपदेशों का पालन करता हूँ । छुट्टी होने के बाद घर वापस आता हूँ ।
मेरे दैनिक जीवन का उत्तरार्द्ध भाग
विद्यालय के वापस आने के बाद मेरे दैनिक जीवन का उत्तरार्द्ध भाग आरम्भ होता है। घर पहुँचकर हाथ मुंह धोकर कुछ देर विश्राम करता हूँ। हल्का नास्ता करने के बाद खेलने चला जाता हूँ। वहाँ मेरे अन्य साथी पहले से ही मेरी प्रतीक्षा करते रहते हैं। मैं अपने साथियों के साथ खेलता हूँ, हँसता हूँ और अपना मनोरंजन करता हूँ। इस प्रकार के मनोरंजन से हमारी थकान मिट जाती है। मैं ताजगी का अनुभव करता हूँ। मेरे शरीर में एक नई स्फूर्ति आ जाती है। अपने साथियों के साथ कुछ देर के लिए प्रकृति का दृश्य देखने के लिए नदी की ओर चला जाता हूँ। हमारे पास की नदी हमारी सहचरी हो गई है। उसका मनमोहक रूप प्रातः सन्ध्या समय मुझे अपनी ओर बरबस खींच लेता है। नदी तट पर अपने साथियों के और साथ टहलने के बाद सन्ध्या छः बजे घर आता हूँ। घर आकर विद्यालय में दिए गये कार्य को पूरा करता हूँ । रात्रि आठ बजकर चालीस मिनट पर दूरदर्शग के सामने बैठकर समाचार सुनता हूँ । माँ हमारा भोजन तैयार करती रहती है । मैं अपने परिवार के साथ भोजन करता हूँ। भोजन करते समय कुछ पारिवारिक बातें होती है। बिस्तरे पर आकर कुछ देर तक मन चाहे गीतों और कविताओं को गुनगुनाता हूँ । पुनः निद्रा देवी मुझे अपनी गोद में ले लेती है और मैं स्वप्नलोक़ का यात्री बना रंगीन सपने देखने लगता हूँ।
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