युवाओं को राजनीति में आना चाहिए या नहीं राजनीति में विद्यार्थियों की सहभागिता राजनीति में युवकों की भूमिका छात्र और राजनीति का पारस्परिक सम्बन्ध योगद
राजनीति में विद्यार्थियों की सहभागिता राजनीति में युवकों की भूमिका
युवाओं को राजनीति में आना चाहिए या नहीं राजनीति में विद्यार्थियों की सहभागिता राजनीति में युवकों की भूमिका छात्र-जीवन एक साधना और तपस्या का जीवन होता है, जिसमें वह अपने भावी जीवन-संघर्षों से जूझने के लिए शक्ति का संचय करता है। जीवन की इस अवधि में छात्र की शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास का पूर्ण अवसर प्राप्त होता है। इसके लिए उसे पूर्ण निष्ठा, दृढ़ता, स्वाध्याय आदि गुणों का अभ्यास करना चाहिए। छात्र-जीवन का मुख्य उद्देश्य ही है- ज्ञानार्जन । सम्बन्धित ज्ञान का सांगोपांग अध्ययन कर लेना ही छात्र-जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है, किन्तु आज व्यावहारिकता को ध्यान में रखते हुए छात्र को केवल पुस्तकीय ज्ञान की परिधि में ही रखना उचित नहीं समझा जा रहा है। किताबी कीड़े की तरह छात्र यदि अपनी पुस्तकों तक ही सीमित रहा तो जीवन- क्षेत्र में आकर वह अपने को बिल्कुल ही असफल सिद्ध कर देगा, अतः यह आवश्यक समझा गया है कि छात्र जिस वातावरण में पल रहा है, अपनी बौद्धिक और मानसिक शक्तियों का विकास कर रहा है, उसके प्रति वह पूर्णतः जागरूक रहे। इसलिए छात्र-जीवन का राजनीति से सम्बन्ध जोड़ना आवश्यक हो गया है।
छात्र और राजनीति का पारस्परिक सम्बन्ध
रामायण और महाभारत काल में राजकुमारों की गिक्षा में राजनीति एक मुख्य अंग थी। उनकी शिक्षा केवल पुस्तकों और शास्त्रों तक ही सीमित नहीं रहती थी, उन्हें राजनीति की व्यावहारिक शिक्षा भी दी जाती थी। यह तो निर्विवाद सत्य है कि छात्रों में असीमित शक्ति-स्रोत छिपा हुआ । यदि उन्हें उचित मार्ग-निर्देशन मिलता रहा तो वह बड़ा-से-बड़ा काम करने में सफल हो सकते हैं। समाज और राष्ट्र के ऊपर में जब कभी भी इन्कलाब की आवाज उठी है, छात्र क्रान्ति की मशाल ढोने वालों की अगली पंक्ति में रहे हैं। अपने स्वतन्त्रता-संग्राम को ही लिया जाय, तो उसमें भी हमारे छात्र स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर सबसे आगे सिर पर कफन बाँधे दिखलाई पड़ते हैं। इसलिए जब कभी भी हमारे देश में किसी प्रकार के परिवर्तन लाने की आवश्यकता पड़ी है तो लोगों ने छात्रों का आह्वान किया है और क्रांति की भावनाओं से ओत-प्रोत हमारे छात्रों ने बड़े ही उत्साह से उसमें योगदान दिया है। असहयोग आन्दोलन में स्कूल, कालेजों के बहिष्कार की बात आयी, छात्रों ने सहर्ष इसमें भाग लिया। स्कूल और कालेज के प्रांगण तक में पैर नहीं रखा। जलूस निकालने, पिकेटिंग करने, आन्दोलन का संगठन एवं संचालन करने में वे सबसे आगे रहे हैं।
भावी राष्ट्र निर्माण में छात्रों का योगदान
छात्र - समुदाय राष्ट्र को सुदृढ़ और शक्तिशाली बनाने के लिए अब भी बराबर कुछ-न-कुछ किया ही करता है और भविष्य में भी कुछ-न-कुछ करना चाहता है, किन्तु उसके पास कोई ठोस योजना नहीं है, कोई उचित मार्ग-निर्देशक नहीं है, इसलिए बराबर इस बात की आशंका बनी रहती है कि उसकी शक्ति की बाढ़ कहीं अनियन्त्रित हुई, तो कभी भी किसी भी समय भयंकर दुष्परिणाम भी सामने ला सकती है। इसका मुख्य कारण यह है कि युवा छात्रों में साहस है, वह कुछ कर डालने के लिए आतुर है। उसके सामने एक लक्ष्य है। वह दायें-बायें नहीं देखता। उसे परिणाम की चिन्ता नहीं। वह भावुकता के वेग में तरह बह रहा है कि चाहते हुए भी वह पीछे नहीं हट पाता ।
छात्रों का राजनीति के प्रति विशेष रुझान
छात्र असमय ही नेता बनकर आत्म-प्रदर्शन करना चाहता है। अपने कर्त्तव्य की उपेक्षा करके केवल अधिकारों की माँग के लिए लड़ता है। चिन्तन के अभाव में उसके ज्ञान की गम्भीरता समाप्तप्राय हो जाती है। वह किसी भी विषय को बिना गम्भीरतापूर्वक विचार किये राजनीति के अखाड़े में कूद पड़ता है और अपने अस्तित्व को खतरे में डाल देता है। छात्र का राजनीति के प्रति रुझान होने का कारण उसकी स्वच्छन्द-प्रवृत्ति भी है।
उपसंहार
छात्र जीवन और राजनीतिक जीवन परस्पर विरोधी होते हुए भी एक-दूसरे के सापेक्ष हैं। राजनीति की जानकारी के बिना छात्र का ज्ञान अधूरा रह जाता है और बिना शास्त्रीय अध्ययन के राजनीति में कूदना भी श्रेयस्कर नहीं है, अतः छात्रों को विद्याध्ययन के साथ-साथ राजनीति से उसी सीमा तक लगाव रखना हितकारक है, जहाँ तक उसके विद्याध्ययन में अवरोध न पैदा हो और राजनीति उसके ज्ञान का सम्वर्द्धन कर सके।
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