सारा आकाश उपन्यास की मूल संवेदना सारा आकाश उपन्यास राजेंद्र यादव जी द्वारा लिखा गया महत्वपूर्ण उपन्यास है। सारा आकाश उपन्यास की मूल संवेदना कई रूपों
सारा आकाश उपन्यास की मूल संवेदना
सारा आकाश उपन्यास राजेंद्र यादव जी द्वारा लिखा गया महत्वपूर्ण उपन्यास है। सारा आकाश उपन्यास की मूल संवेदना कई रूपों में व्यक्त हुई है। सारा आकाश प्रमुखतः निम्न मध्यवर्गीय युवक के अस्तित्व के संघर्ष की कहानी है, आशाओं, महत्त्वाकांक्षाओं और आर्थिक-सामाजिक, सांस्कारिक सीमाओं के बीच चलते द्वन्द्व, हारने थकने और कोई रास्ता निकालने की बेचैनी की कहानी है। उपन्यास का नायक समर देश के साहसी और कर्मठ युवक के रूप में कुछ ऐसा बनना चाहता है जिसके सामने दुनिया भुके। वह राणाप्रताप और शिवाजी के वंशज के रूप में परम्परा और संस्कृति की रक्षा करना चाहता है। पर उसके पिता ठाकुर साहब, इन्टर कक्षा के इस महत्त्वाकांक्षी छात्र का विवाह प्रभा से करवा कर उसके सारे अरमानों पर पानी फेर देते हैं। आर्थिक दृष्टि से बिना आत्मनिर्भर हुए लड़कों का विवाह करके निम्न मध्यवर्गीय अभिभावक परम्परागत संस्कारों, अंधविश्वासों तथा अविकसित मानसिकता को परिचय देते हैं। समर की इच्छा के विरुद्ध उसका विवाह जबरन कर दिया जाता है, क्योंकि उसकी शादी के सम्बन्ध में माता, पिता, मामा आदि का तर्क है- “अब तो इस घर में बहू आनी ही चाहिए । बड़े की बारात गई थी, उसे आठ साल से ऊपर हो गया ।" समर की माँ रोज भगवान से प्रार्थना करती – "वह कौन-सा दिन होगा जब देहली पर छोटी बहू का पाँव पड़ेगा ।" समर के विवाह से हतोत्साहित होने के बावजूद उनकी मानसिकता में किसी प्रकार की तत्रदीली नहीं आती। समर के मामाजी जब समर की शादी के सन्दर्भ में पहुँचते हैं तो समर के पिता अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहते हैं- "मेरी आँखों के आगे सब हो हवा जाये तो गंगा नहाऊँ, पता नहीं, फिर क्या हो ?” उपन्यासकार ने निम्न मध्यवर्गीय परिवार की इस घिनौनी मानसिकता का बड़ा मर्मस्पर्शी चित्रण किया है। मानसिक दृष्टि से अविकसित तथा अतिशय भावुक निम्न मध्यवर्गीय समर तभी सही दिशा प्राप्त करता है जब उसे शिरीष जैसा बुद्धिजीवी मार्ग-निर्देशक मिलता है। अतिशय भावुक समर के व्यक्तित्व में तभी परिवर्तन आता है जब उसका सम्पर्क शिरीष से होता है।
उपन्यास में मूल संवेदना में मध्यवर्गीय परिवार
उपन्यासकार ने निम्न मध्यवर्गीय परिवार के स्वार्थी, संकीर्ण भावनाओं, अन्ध- विश्वासों, परम्परागत रूढ़ियों एवं संस्कारों का बड़ा ही हृदयस्पर्शी चित्रांकन किया है। समर और प्रभा के न बोलने, अलग-अलग रहने से परिवार के अधिकांश सदस्य निश्चित बेपरवाह रहते हैं। पति की नजरों से गिरी प्रभा घर में नौकरानी मात्र बनकर रह जाती है। उसकी इच्छाओं, आकांक्षाओं की ओर ध्यान देनेवाला कोई नहीं है। परिवार के सभी सदस्यों में, मानसिक जकड़न के कारण, अपनी-अपनी अहं भावना विद्यमान रहती हैं। समर के पिता उसके विद्रोही स्वर को सुनकर बौखला जाते हैं तथा उसे थप्पड़ मार कर अपने अहं को तुष्ट करते हैं। समर की माँ प्रभा को, सब कुछ सहते हुए भी चुप्पी साधे देखना चाहती है। प्रभा द्वारा किसी बात का सीधा उत्तर भी तूफान मचा देता है। प्रभा का घू घट न करना परिवार के सभी सदस्यों के अहं को झकझोरता रहता है। प्रभा का मिट्टी के गणेश से, अनवान में बर्तन साफ करना, विचारगत संकोर्णता तथा अंधविश्वास से युक्त परिवार पर जैसे कहर ढा देता है। उसका, शीतकाल में छत पर जाकर धूप सेंकना अथवा बाल धोना सामाजिक प्रतिष्ठा के खोखले अहं पर मानो बज्रबात है। पुरानी पीढ़ी के प्रतिनिधि समर के पिता थोथी नेतिकता में जीना श्रेयस्कर समझते हैं। इस प्रकार 'सारा आकाश' उपन्यास में निम्नमध्यवर्गीय परिवार अपनी समस्त दुर्बलताओं के साथ सजीव तथा यथार्थरूप में चित्रित हुआ है। समर का अपना संयुक्त परिवार उसे नरक प्रतीक होता है, क्योंकि उसके व्यक्तित्व के सतही निर्माण का दायित्व उस परिवार ही पर है । फलस्वरूप वह अतिशय भावुक बन जाता है। सामाजिक-आर्थिक तथा सांस्कारिक विशेषतायें उसे स्वप्नदर्शी बना देती हैं और अन्त में वह 'कहीं भाग जाने या ट्रेन से कट कर मर जाने' के ऊहापोह में दिशाविहीन हो जाता है । उपन्यासकार ने यथार्थ की कटुता, जीवन की विषमताओं और आर्थिक अभावों में पिसते मध्यवर्गीय युवक के जीवन-संघर्ष को बड़ी मार्मिकता के साथ चित्रित किया है।
मुक्ति के लिए छटपटाहट
सारा आकाश के उद्देश्य की मार्मिकता निम्नमध्यवर्ग की मुक्ति के लिए छटपटाहट है। निम्नमध्यवर्ग मुक्ति चाहता है - परम्परागत संस्कारों, प्राचीन रूढ़ियों तथा प्राचीन धार्मिक-सांस्कृतिक पाखण्डों से । उपन्यास में समर को केवल अपनी मुक्ति की चिन्ता है, वह परिवार के अन्य सदस्यों की मुक्ति से कोई मतलब नहीं रखता । व्यक्तिगत मुक्ति की चिन्ता के चलते समर स्वप्नदर्शी तथा भावुक बन जाता है। वह अपनी पत्नी प्रभा से, सुहागरात की पावन बेला में, बोलता ही नहीं। जिस अपमान को लेकर उसका अहं प्रताड़ित होता है, वह बहुत हद तक काल्पनिक प्रतीत होता है। बेचारे समर पर पाठकों को तरस आता है। प्रायः लड़का लड़की की मनुहार करता है। लड़की तो अपने पुराने संस्कारों में काफी दिनों तक लजाधुर और भीरु बनी रहती है। मैट्रिक पास लड़की एकाएक आधुनिक कैसे बन बैठेगी ! भाभी की ईर्ष्या, भाई की अनासक्तता, पिता का आक्रोश, माँ का प्रेमाप्रेम परिवार की आर्थिक तंगी का बड़ा स्वाभाविक तथा मार्मिक चित्रण हुआ है। पुरानी पीढ़ी के पात्र अपने सड़े-गले संस्कारों से चिपके रहते हैं जबकि नयी पीढ़ी के पात्र अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए बेचन तथा सचेष्ट दिखलाई देते हैं। पर वास्तविकता यह है कि शिरीष के अतिरिक्त अन्य किसी भी पात्र में बाहरी जगत से संघर्ष मोल लेने की हिम्मत नहीं है। उपन्यास में यथार्थ काल्पनिक घटनाओं के मार्मिक चित्रण के साथ-साथ पात्रों के चरित्र को भी मार्मिकता के साथ आँका गया है।
मर्मस्पर्शी औपन्यासिक कृति
'सारा आकाश' में परम्परागत विवाह को अनुचित ठहराया गया है, दहेज-प्रथा को समाज का कोढ़ कहा गया है तथा प्राचीन संस्कारों को प्रेतों की संज्ञा दी गई है। देश की 90% जनता गाँव या कस्बों में रहती है और आर्थिक-सामाजिक दृष्टि से निम्नमध्यवर्गीय एवं अशिक्षित है। अतः उनमें प्राचीन संस्कारों के प्रति लगाव होना स्वाभाविक है। उपन्यासकार की राय में- "सारा आकाश" की ट्रेबडी किसी सन्, समय या व्यक्ति विशेष की ट्रेजडी नहीं है, खुद चुनाव न कर सकने की, दो अपरिचित व्यक्तियों को एक स्थिति में झोंक कर भाग्य को सराहने या कोसने की, ट्रेजडी है। संयुक्त परिवार में जब तक वह 'चुनाव' नहीं है; संकरी और गंदी गलियाँ की खिड़कियों के पीछे लड़कियाँ 'सारा आकाश' देखती रहेंगी, लड़के दफ्तरों, पार्की और सड़कों पर मटकते रहेंगे, 'एकान्तं आसमान' को गवाह बनाकर अपने आप से छड़ते रहेंगे। से नितांत अकेलों को यह कहानी तब तक खच है, जब तक उनके बीच का समय रुक गया है।" इसी प्रकार काले घन की छाया में दहेज और सामाजिक हैसियत की माँग पहले से बढ़ गई है और उपन्यासकार का दृढ़ विश्वास है कि “जब तक विवाह कराने की डोर माँ-बाप के हाथों में है, 'सारा आकाश' की सच्चाई जिन्दा है। लड़के-लड़कियों को आपस में एक-दूसरे को समझने की यातनाओं से गुजरना ही है. एडजस्टमेन्ट की तकलीफें बरदास्त करनी ही है।" उपन्यासकार ने अपने उक्त वक्तव्यों के अन्तराल में निम्नमध्यवर्गीय समाज की समस्याओं का निरपेक्ष मार्मिकता के साथ चित्रण किया है। उपन्यास की भाषा पत्रानुकूल, भवानुकूल एवं काव्यात्मक है। सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक वातावरण का चित्रण बड़ा हो सजीव तथा मार्मिक है। इसके संवाद भी परिस्थिति, मनःस्थिति तथा परिवेश के अनुकूल हृदयस्पर्शी हैं। उपन्यास का अन्त न तो सुखान्त है, न दुखान्त । इसका प्रारम्भ ही संघर्ष से होता है तथा विविध संघर्षों से होता हुआ संघर्ष में ही समाप्त हो जाता है। यदि इसे 'रोमांटिक एगोनी' की संज्ञा दी जाय तो अत्युक्ति न होगी ।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि 'सारा आकाश' एक मर्मस्पर्शी औपन्यासिक कृति है । व्यावहारिक, वैचारिक, कलात्मक तथा उद्देश्यात्मक गुणों से युक्त यह एक उत्कृष्ट यथार्थ बोध का उपन्यास है।
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