शक्तिशाली भारत के निर्माण में विद्यार्थी वर्ग की भूमिका राष्ट्र निर्माण में युवाओं का महत्व पर निबंध विद्यार्थी राष्ट्र निर्माण में युवाओं का महत्व
शक्तिशाली भारत के निर्माण में विद्यार्थी वर्ग की भूमिका
शक्तिशाली भारत के निर्माण में विद्यार्थी वर्ग की भूमिका राष्ट्र निर्माण में युवाओं का महत्व पर निबंध विद्यार्थी राष्ट्र की आधारशिला हैं। जिज्ञासा और उत्साह की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी होती है। देश के प्रति जागरूक रहना उनका पुनीत कर्तव्य होता है। वे ही देश के भावी नागरिक और कर्णधार होते हैं। आपत्तिकाल में उनकी परीक्षा होती है। राष्ट्र-निर्माण के लिए जिस त्याग की आवश्यकता होती है, उसे विद्यार्थी को पूरा करना आवश्यक होता है। संकट की स्थिति में जनसाधारण के हृदय में उठने वाले भयावह भावों को चकनाचूर कर देश में राष्ट्रीयता और त्याग के भाव भरना विद्यार्थी वर्ग का ही कार्य होता है। दुनिया का इतिहास इस बात का साक्षी है कि राष्ट्रीय आन्दोलनों को मोड़ देने का कार्य विद्यार्थी वर्ग ने किया। अब हम विचार करेंगे कि राष्ट्र का नव-निर्माण के समय विद्यार्थी क्या योगदान कर सकता है ? आज हमें अपने राष्ट्र के कलेबर बदलना है । सदियों की गुलामी और शोषण के बाद हमारा राष्ट्र नवनिर्माण की ओर अग्रसर हो रहा है। हमें ऐसे नवयुवकों और विद्यार्थियों की आवश्यकता है जो निःस्वार्थ भाव से देश की रक्षा कर सकें।
शक्तिशाली भारत का निर्माण
जब तक राष्ट्र बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित नहीं है तब तक नव-निर्माण की आशा नहीं की जा सकती। अव सर्वप्रथम राष्ट्र की सुरक्षा का प्रश्न हमारे सामने आता है कभी-कभी विदेशी शक्ति अपनी भोंड़ी चोंच गढ़ा करे सकैट की स्थिति पैदा कर देती हैं। राष्ट्रीय सार्वभा पर खतरा उपस्थित हो जाता है। जन-जीवन में हा-हाकार मच जाता है। राष्ट्र अपने आरक्षण की याचना करता है । नवयुवकों और विद्यार्थियों से प्रतिदान माँगता है। इस पुकार को अनसुनी करना या इसकी उपेक्षा करना ठीक नहीं होता। इसकी अवहेलना करना मरण के समान है। छात्रों का कर्त्तव्य है कि वे अपने तन, मन, धन का होम देकर राष्ट्र की रक्षा करें। ऐसी स्थिति में विद्यार्थियों को चाहिये कि वे जन-जागरण पैदा कर राष्ट्र को एकता की डोर में बाँधने का प्रयास करें । जनता में फैली भ्रांतियों का निवारण करें। लोगों में आत्मबल का संचार करें। देश में धार्मिकता या प्रान्तीयता अथवा जातीयता के नाम पर पनपने वाले झगड़ों को समूल नष्ट कर दें। इस देश के नवजवान और छात्र तो अनेक बार अपने उत्तरदायित्व का परिचय दे चुके हैं । अनेक बार एकता का नारा लगा चुके हैं; और यह सिद्ध कर चुके हैं-
हम न हिन्दू हैं, न मुसलमान,
न सिक्ख हैं, न ईसाई ।
वतन पर आँच जब आई,
तो सगे सगे भाई हैं, भाई ।
संकटकाल में धन की आवश्यकता होती है। नागरिक ठीक समय पर और ईमानदारी से अपना टेक्स जमा करें इसके लिये भी विद्यार्थी को आगे कदम बढ़ाना होगा । राष्ट्रीय आय को सन्तुलित रखना होगा । शक्तिशाली भारत के निर्माण में विद्यार्थी वर्ग की भूमिका
अनिवार्य सैनिक शिक्षा की आवश्यकता
एक आदर्श विद्यार्थी राष्ट्र की डूबती नौका का कर्णधार होता है। उसके हृदय में मंडराते हुए शोले शत्रुओं को जला कर राख कर देते हैं। वह राष्ट्र के संकटकालीन स्थिति रूपी कॉटों में गुलाब की तरह मुस्कराता रहता है। छात्र अपने संरक्षकों को राष्ट्र की स्थिति से भली भाँति परिचित कराते हैं। वे जन-जन में राष्ट्र के करुण क्रन्दन की ध्वनि विस्तारित करते हैं जिनकी तरंग में आकर राष्ट्रीय-जीवन अंगड़ाइयाँ लेने लगता है। आवश्यकतानुसार नागरिकों के साथ मिलकर वे अपने श्रमदान के माध्यम से नई-नई सड़कों, नहरों एवं बाँधों का निर्माण करा देते हैं। इन दिनों उनके पैरों में पंख लग जाते हैं और 'आराम हराम है' नीति को अपनाते हुए वे 'संक्रमणकालीन' स्थिति को छिन्न-भिन्न कर देते हैं। ऐसी अवस्था में राष्ट्र अपने नव-निर्माताओं पर गर्व कर उठता है। विश्व इतिहास इस बात का साक्षी है कि नागरिकों एवं छात्रों के जागरण ने राष्ट्रीय प्रगति को नया मोड़ दिया है। जापानी आक्रमण के समय चीन में बनी लम्बी दीवार इसकी सूचना देती है। हमारे देश के स्वातन्त्र्य संग्राम को ही लें तो सारा श्रेय छात्र वर्ग पर ही जाता है। विद्यालयीय अंचल से आने वाले हृदयों ने ही हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को तीव्रगति दिया । कभी सूर्य न अस्त होने वाले अंग्रेजों के राज्य का आमना-सामना करने के लिए डट जाना कोई साधारण बात नहीं थी, राजेन्द्र, नेहरू और जयप्रकाश जैसे राजनेताओं ; सुभाष, भगत सिंह प्रभृति क्रान्तिकारियों ने उनको भी नाकों चने चबवा दिए। इस विषय में दो मत नहीं हो सकते कि संकटकालीन समय में छात्रों और नागरिकों का सम्मिलित कदम ही राष्ट्र की आन-बान-शान की रक्षा करने में सक्षम बन सकता है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक- क्षितिज पर आये दिन घटने वाली घटनाएँ इस तथ्य-कथ्य का बोध कराती हैं । शक्तिशाली भारत के निर्माण में विद्यार्थी वर्ग की भूमिका
छात्रों के मध्य अनिवार्य सैनिक-शिक्षा के प्रसार की स्थिति राष्ट्र के लिए सुरक्षा की दूसरी पंक्ति का निर्माण करती हैं। वे जमकर स्थितियों से लोहा लेते हैं। इस स्थिति में उनके कर्त्तव्यों पर ही राष्ट्र की नींव का जमना और उखाड़ना निर्भर करता है ।
संकटकालीन स्थिति जन-जीवन को विपन्न कर देती है। जहाँ बड़े-बड़े की बुद्धि और धैर्य भी पलावन कर जाते हैं, जहाँ विवेक मानसिक सन्तुलन खो बैठता है, करणीय और अकरणीय का ज्ञान नहीं रहता, ऐसी स्थिति में छात्र-समाज का कर्त्तव्य है कि नागरिकों के साथ कदम से कदम मिलाते हुए वे अपने दायित्यों के प्रति सचेत बने। इस दशा में यदि वे देश के गुहार को न सुनेंगे तो उन्हें प्रस्तर- हृदय ही कहा जायेगा । वाँछनीय तो यह है कि इस स्थिति में वे बज्र बनकर शत्र- वृत्रासुर पर टूट पड़, दावाभि बनकर शत्रु-कानन को भस्म कर दें, अराति सैन्य- सिन्धु में वाइवाग्नि-सी जलकर उसे छार कर दें। ऐसी स्थिति ही छात्रों एवं नागरिकों को श्रद्धेय एवं स्नेहास्पद तथा उनके जीवन को श्लाध्य एवं चिरन्तन यश की अधिकारिणी बना देगी जहाँ वे अनन्तकाल तक विश्व हृदयों पर शासन करेंगे ।
राष्ट्र निर्माण विद्यार्थी वर्ग का दायित्व भूमिका
आज हमारे राष्ट्र के सामने अनेक समस्याएँ विद्यमान हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या बेकारी, कालाबजारी, बढ़ती हुई अनैतिकता की भावनाएँ, आये दिन होने वाली लूट, अनुशासनहीनता, बढ़ती हुई कीमतें, शोषण, घूसखोरी आदि के झंझावातों ने इस देश की आधारशिला को झकझोर दिया है। हमारी राष्ट्रीय नैतिकता दिनोंदिन गिरती जा रही है। राष्ट्रीय चरित्र और समाज के हर ढाँचे में धुन लग गया है । ऐसी स्थिति में इस देश के विद्यार्थियों पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व आ गया है। हम आज अपने कर्त्तव्यों को भूलते जा रहे हैं। कम से कम श्रम करके अधिक से अधिक फल प्राप्त करने की भावना जोर पकड़ती जा रही है। यह भावना राष्ट्र के लिए बहुत अहितकर है। विद्यार्थी समाज ही इस संकट की घड़ी से छुटकारा दिला सकता है। उसे जोश और होश से कार्य करना होगा। यदि उसने अपना होश खोकर कार्य किया तो रक्षा में हत्या होने की ही सम्भावना अधिक हो जायेगी। जिस विद्यार्थी-समाज पर इतना गहरा उत्तरदायित्त्व है, उसका स्वरूप और चरित्र भी निखरा हुआ होना चाहिए। विद्यार्थी समाज अपने उत्तरदायित्व से मुख मोड़ रहा है। वह कलाबाजियों द्वारा परीक्षा पास करने का जो प्रयास कर रहा है, इसके द्वारा वह अपने ही पाँव में कुल्हाड़ी मार रहा है। उसे अपने उत्तरदायित्व को समझने की आवश्यकता है। जब तक वह अधेरे में भटकता रहेगा तब तक उससे प्रकाश की आशा करना आकाश- कुसुम उसकी शक्ति भविष्य की तथा राष्ट्रीय ही होगा। आज छात्रवर्ग को खुद ही यह देखना और सोचना है कि का, उनकी जानरुकता का किसी भी प्रकार से दुरुपयोग न हो। देश के सुनहली मूर्ति विकृत न होने पाये। कोई दुस्साहसी दस्यु देश की सीमा सम्पत्ति को विच्छिन्न न करने पाये। निश्चय ही देश का विद्यार्थी-समाज और युवा- वर्ग जागरूक है, वह अपने दायित्व-बोध से भली भाँति परिचित है तथा आशा की जाती है कि उनके द्वारा दायित्व-निर्वाह पूरी सजगता के साथ होगा ।
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