आगे कुआँ पीछे खाई पर मौलिक हिंदी कहानी लेखन आगे कुआँ पीछे खाई एक प्रसिद्ध मुहावरा है जिसका अर्थ है हर तरफ से हानि का होना और सभी ओर से विपत्ति का आना
आगे कुआँ पीछे खाई पर मौलिक हिंदी कहानी लेखन
आगे कुआँ पीछे खाई पर मौलिक हिंदी कहानी लेखन आगे कुआँ पीछे खाई एक प्रसिद्ध मुहावरा है जिसका अर्थ है हर तरफ से हानि का होना और सभी ओर से विपत्ति का आना। यह एक ऐसी स्थिति का वर्णन करता है जहाँ चुनौतियाँ सभी ओर से आ रही हों और व्यक्ति किसी भी प्रकार की समस्या से मुक्त नहीं हो पाता।यह मुहावरा हमें यह सिखाता है कि जीवन में हमें सदैव सावधान रहना चाहिए और कोई भी निर्णय लेने से पहले सभी पहलुओं पर विचार करना चाहिए। यदि हम कोई गलत निर्णय लेते हैं, तो हमें इसका पछतावा करना पड़ सकता है।
बच्चों को उत्तम शिक्षा
सेठ ब्रजभूषण शहर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, उन्होंने अपने परिश्रम के बल पर जितनी दौलत बटोरी उससे अधिक यश भी अर्जित किया। एक रूपवती, गुणवती, लक्ष्मी-सरीखी पत्नी उनकी खुशियों में मानो चार चाँद लगा रही थी। सेठ जी के दो पुत्र और एक पुत्री थी। उन्होंने अपने बच्चों को उत्तम शिक्षा देने का प्रबन्ध किया। शहर के प्रतिष्ठित स्कूल में उनका दाखिला कराया। बच्चे भी उनकी आशा के अनुरूप उन्हें परिणाम दे रहे थे। अपनी छोटी-सी बगिया में सेठ जी फूले न समाते थे। इस तरह देखते ही देखते कब बच्चे बड़े हो गए पता ही न चला।
गलत संगत का असर
अचानक सेठ जी की ज़िन्दगी को न जाने किसकी नज़र लग गई। सेठ जी का बड़ा बेटा मुम्बई जाकर एम.बी.ए. करने की जिद पर अड़ गया। सेठ ने उसे पहले तो बहुत समझाने की कोशिश की क्योंकि इधर कुछ समय से वह बेटे में कुछ परिवर्तन देख रहे थे। फिर यह सोचकर कि इस उम्र में बच्चों में परिवर्तन स्वाभाविक है, वह चुप रह गए। अन्त में उन्होंने रामशरण को मुम्बई ले जाकर दाखिला दिलवा दिया। शुरू में सब ठीक चलता रहा लेकिन प्रथम वर्ष का परिणाम सुनकर तो सेठ जी का हृदय धक् से रह गया। एक दिन जब उन्होंने बेटे को छिप-छिपकर सिगरेट व मदिरा पीते देखा तो सारा माजरा समझ में आ गया कि उनका बेटा जब से छुट्टी में घर आया है चुप-चुप क्यों रहता है तथा हर माह इतने रुपए की माँग क्यों करता है। उन्होंने अपनी पत्नी से इस विषय में बात की तो उसे तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ। उसने जब बेटे से बात करनी चाही तो उसी रात वह सबसे लड़-झगड़कर घर से भाग गया।
दूसरे दिन सेठानी ने तिजोरी का ताला टूटा देखा, वहाँ न नगदी थी और न रुपया। उन्हें तो मानो काठ मार गया। वह यह सदमा बर्दाशत न सकी और बिस्तर पकड़ लिया। इधर सेठ जी ने उसे सबक सिखाने के लिए सम्पत्ति से ही बेदखल कर दिया क्योंकि एक दिन सेठ जी ने अखबार में पढ़ा कि उसका बेटा आतंकवादियों से जा मिला है, उसने बैंक लूटा है तथा एक बड़े ट्रेन के हादसे में उसका हाथ है। पुलिस उसकी सरगर्मी से तलाश कर रही है, वह फ़रार है। दूरदर्शन पर भी रामशरण अग्रवाल नामक युवक की फोटो देखकर सेठ जी को बहुत शर्मिन्दगी हुई। उसके सिर पर दो लाख का इनाम घोषित हुआ था।
अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभाई
रात के बारह बजे थे, किसी ने कॉल बैल बजाई। सेठ जी ने द्वार के छेद से देखा, सामने उनका पुत्र रामशरण खड़ा था जो पुलिस के डर से अपने पिता के पास शरण लेने आया था। दूसरी ओर उसे आतंकवादियों से डर था जिन्होंने उसे हिदायत दी थी कि पुलिस की गिरफ्त में आने से पूर्व ही उसे सायनाइड खाकर आत्महत्या करनी होगी वरना वह सबको फँसा सकता है। पुलिस के हत्थे पड़ने पर उसे फाँसी की सजा हो सकती है, अतः अपने बचने का कोई रास्ता न देख वह पिता की शरण में आया था। उसने गिड़गिड़ाते हुए अपने पिता को सारी घटना के बारे में बताया कि किस तरह अपने मित्रों के बहकावे में आने के कारण उसकी यह दशा हुई हैं तथा आज उसके सामने आगे कुआँ और पीछे खाई वाली स्थिति है। उसके पिता ने उसे क्षमा करते हुए उसे अपने अपराधों को स्वीकार करते हुए पुलिए के आगे आत्मसमर्पण करने के लिए प्रेरित किया और इस प्रकार एक अच्छे नागरिक का कर्त्तव्य निभाया।
कहानी से सीख
जीवन में हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। हमें सदैव आशावादी रहना चाहिए और कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए ।
COMMENTS