वसंत को ऋतुराज क्यों कहा जाता है

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वसंत को ऋतुराज क्यों कहा जाता है ऋतुराज वसंत और वसंत पंचमी ऋतुराज बसंत का आगमन अपने आप में ही रोमांचित करने के लिए पर्याप्त है। चारों तरफ खुशहाली, नव

ऋतुराज वसंत और वसंत पंचमी


तुराज बसंत का आगमन अपने आप में ही रोमांचित करने के लिए पर्याप्त है। चारों तरफ खुशहाली, नवीन कोपलों का फूटना, नए नए कोमल पत्तों का आना, आम के पेड़ों का बौरों से लद जाना, चहुँ ओर खुशनुमा माहौल और अनुपम सुंदरता बिखेरती प्रकृति की इतनी अनुपम भेंट शायद प्रकृति कहीं और प्रदान करती होगी जो हमें बसंत ऋतु में प्राप्त होती है। ऋतुओं के राजा बसंत का आगमन माघ मास से हो जाता है। माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को एक बेहद अनूठा त्यौहार बसंत पंचमी के नाम से मनाया जाता है। इस वर्ष बसंत पंचमी 14 फरवरी को मनाई जा रही है। खेतों में पीली पीली सरसों अपनी अनुपम छटा बिखेरे हुए हम सभी को आनंदित करती हैं। फाल्गुन और चैत्र मास वसंत ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इस प्रकार हिंदू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ वसंत ऋतु में ही होता है। अतः राग रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठ मानी गई और इसे ऋतुराज कहा गया है। वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। इस कालखंड में मनाया जाने वाला सबसे पहलाऔर प्रमुख त्यौहार होता है बसंत पंचमी का। वसंत पंचमी ज्ञान, कला, विज्ञान, संगीत और प्रौद्योगिकी की देवी सरस्वती को समर्पित है। हम देवी सरस्वती की पूजा करने और वसंत ऋतु के आगमन को चिह्नित करने के लिए बसंत पंचमी मनाते हैं।

"या कुन्देन्दु तुषाराहर धवला या शुभ्रा वस्त्रवृता
या वीणा वरदण्ड मंडितकारा या श्वेत पद्मासन
या ब्रह्मच्युत शंकरा प्रभृतिभिर देवैः सदा पूजिता
सा मम पत्तु सरवति भगवती निःशेष जड्यापहा"

(अर्थात जो परमेश्वरी भगवती शारदा कुंदपुष्प, चंद्र और बर्फ के हार के समान श्वेत है और श्वेत वस्त्रों से सुशोभित हो रही है जिसके हाथों में वीणा का श्रेष्ठ दंड सुशोभित है. जो श्वेत कमल पर विराजमान है जिसकी स्तुति सदा ब्रह्मा विष्णु और महेश द्वारा की जाती है. वह परमेश्वरी समस्त दुर्मति को दूर करने वाली माँ सरस्वती मेरी रक्षा करें.)
                            
सरस्वती देवी को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। 
                         
ऋतुराज वसंत और वसंत पंचमी
भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन ब्रह्मांड की रचना की। सृष्टि की रचना करके जब उन्होंने संसार में देखा तो उन्हें चारों ओर नीरसता, सुनसान, निर्जन ही दिखाई दिया। वातावरण बिल्कुल शांत लगा जैसे किसी की वाणी ही न हो। तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए कमण्डल से जल अपने हथेली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़कर भगवान श्री विष्णु की स्तुति करनी आरम्भ की। ब्रम्हा जी के किये स्तुति को सुन कर भगवान विष्णु तत्काल ही उनके सम्मुख प्रकट हो गए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा माता का आव्हान किया। विष्णु जी के द्वारा आव्हान होने के कारण भगवती दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गयीं तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया। ब्रम्हा जी तथा विष्णु जी बातों को सुनने के बाद उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा माता के शरीर से श्वेत रंग का एक भारी तेज उत्पन्न हुआ जो एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। यह स्वरूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ में वर मुद्रा थे । अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। आदिशक्ति श्री दुर्गा के शरीर से उत्पन्न तेज से प्रकट होते ही उन देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी "सरस्वती" कहा। फिर आदिशक्ति भगवती दुर्गा ने ब्रम्हा जी से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न हुई ये देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेंगी, जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, पार्वती महादेव शिव की शक्ति हैं उसी प्रकार ये सरस्वती देवी ही आपकी शक्ति होंगी। ऐसा कह कर आदिशक्ति श्री दुर्गा सब देवताओं के देखते - देखते वहीं अंतर्धान हो गयीं। इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में संलग्न हो गए।
                                
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार वसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है। कवि देव ने वसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है कि रूप व सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाते ही प्रकृति झूम उठती है, पेड़ उसके लिए नव पल्लव का पालना डालते है, फूल वस्त्र पहनाते हैं पवन झुलाती है और कोयल उसे गीत सुनाकर बहलाती है। "भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है ऋतुओं में मैं वसंत हूँ।"                       
                                 
ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।

अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तभी से इस वरदान के फलस्वरूप भारत देश में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है।
                              
यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल ) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं। भारतीय संगीत साहित्य और कला में इसे महत्वपूर्ण स्थान है। संगीत में एक विशेष राग वसंत के नाम पर बनाया गया है जिसे राग बसंत कहते हैं। वसंत राग पर चित्र भी बनाए गए हैं।
                                
इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उनकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दण्डकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे जूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।
                                      
वसंत पंचमी का दिन हमें महाराज पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी आक्रांता मोहम्मद ग़ोरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद ग़ोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। और इसके बाद जो कुछ भी हुआ उससे हिंदुस्तान का बच्चा-बच्चा अच्छी तरह से परिचित है। ग़ोरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। महाराज पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर ग़ोरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने महाराज पृथ्वीराज को संदेश दिया।

"चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥"

महाराज ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह ग़ोरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। 1192 ई यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।
                                      
सिखों के लिए में बसंत पंचमी के दिन का बहुत महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी का विवाह हुआ था।
                                    
राजा भोज का जन्मदिवस वसंत पंचमी को ही आता हैं। राजा भोज इस दिन एक बड़ा उत्सव करवाते थे जिसमें पूरी प्रजा के लिए एक बड़ा प्रीतिभोज रखा जाता था जो चालीस दिन तक चलता था। 
                               
त्यौहार से जुड़ी एक अन्य कथा कहती है कि जब कालिदास को उनकी पत्नी, जो एक खूबसूरत राजकुमारी थी, ने छोड़ दिया था, तो उन्होंने निराशा में खुद को मारने की योजना बनाई। जब वह नदी में डूबकर आत्महत्या करने वाला था, तो देवी सरस्वती उसी पानी से निकलीं और उसे नदी में स्नान करने के लिए कहा। जब कालिदास ने नदी में डुबकी लगाई तो उसके पानी ने उन्हें ज्ञान दिया और वह एक प्रसिद्ध कवि बन गए, जिनकी पूरी दुनिया में प्रशंसा हुई।

                                 
वैदिक ज्योतिष के दृष्टिकोण से देखा जाए माघ शुक्ल पंचमी के ठीक 1 दिन पहले अर्थात चतुर्थी को सूर्य देव का गोचर कुंभ राशि से होने जा रहा है। इस प्रकार 13 फरवरी 2014 को सूर्य की संक्रांति कुंभ राशि में होने जा रही है।और उसके ठीक अगले ही दिन अर्थात 14 फरवरी को बसंत पंचमी का पावन पर्व है और इस तिथि में अनेक शुभ कार्यों को अंजाम दिया जाता है। इस दिन प्रातः 10.22 से बहुत ही फलदाई रवि योग का निर्माण भी हो रहा है। रवि योग को हम एक प्रकार का सर्वार्थ सिद्धि योग भी कह सकते हैं जो जातक को अनेक प्रकार से लाभ प्रदान करता है और साथ ही मनोकामनाएं पूर्ण करता है।
                                           
अब जहां ऋतुओं के राजा की बात हो और कलमकारों और कवियों की कलम ना चले ऐसा तो संभव नहीं हो सकता है। भारतीय साहित्य जगत में कवियों ने ऋतुराज बसंत पर एक से बढ़कर एक रचनाओं का सृजन किया है। जिनमें से एक सुभद्रा कुमारी चौहान जी द्वारा रचित "वीरों का कैसा हो बसंत..."

आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गरजता बार बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार;
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त
वीरों का कैसा हो वसंत...

गोपाल दास नीरज जी द्वारा सृजित
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना ।
धूप बिछाए फूल–बिछौना,
बग़िया पहने चांदी–सोना,
कलियां फेंके जादू–टोना,
महक उठे सब पात,
हवन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना ...

हिंदी साहित्यकारों में महादेवी वर्मा,फणीश्वर नाथ रेणु सुमित्रानंदन पंत,रामधारी सिंह दिनकर,दुष्यंत कुमार भारतेंदु हरिश्चंद्र बिहारी, नीरज, सुभद्रा कुमारी चौहान, नागार्जुन इत्यादि सभी ने वसंत ऋतु पर अपनी कलम का जादू बिखेरा है।

इति।


- इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश
9425822488

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