आज के युग में टूटते संयुक्त परिवार एक गंभीर समस्या है जिसका समाधान करना आवश्यक है। परिवार समाज की नींव है और इसे मजबूत रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।
टूटते परिवार आज के युग की एक कड़वी सच्चाई
आज के युग में टूटते परिवार एक चिंताजनक वास्तविकता बन गया है। पहले जहां संयुक्त परिवारों का बोलबाला था, वहीं आज एकल परिवारों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। यह बदलाव समाज के लिए हानिकारक है, क्योंकि परिवार ही समाज की आधारशिला है।आज के युग में भौतिकता, अदूरदर्शिता एवं स्वार्थ- सुख के प्रलोभन में परिवार टूटते जा रहे हैं। संयुक्त परिवार धीरे-धीरे एकल परिवार की ओर बढ़ रहे हैं। परिवार न केवल मानव-जीवन के प्रवाह को जारी रखने वाला अखण्ड स्रोत है, बल्कि मानवोचित गुणों की प्रथम पाठशाला भी है। परिवार को 'सामाजिक जीवन की अमर पाठशाला', सामाजिक गुणों का पालना या पाठशाला आदि कहा गया है। इस प्रकार परिवार मानव समाज की आधारभूत एवं सार्वभौमिक सामाजिक संरचना है।
भारत में परिवार की प्रकृति आदिकाल से ही संयुक्त रही है। इसके अन्तर्गत समस्त कुटुम्बीजन सम्मिलित रूप से ही एक मकान में निवास करते थे, वहाँ पर एक अनुभवशील वयोवृद्ध की सत्ता होती थी। उस परिवेश में प्रेम, सहयोग, सहानुभूति एवं परस्पर त्याग की भावना पूरे परिवार को एक सूत्र में बाँधे रहती थी।
संयुक्त परिवार के लाभ
संयुक्त परिवार में रहने के अपरिमित लाभ हैं। बड़े-बूढ़ों के अनुभव का फायदा अन्य लोगों को मिलता है। एक-दूसरे के साथ मिलकर सुख-दुःख में सहायता करते हैं। हारी-बीमारी में एक-दूसरे की सहायता मिल जाती है। छोटे बच्चे दादा-दादी के साथ बड़े चाव से रहते हैं। दूसरी तरफ विभक्त परिवार में पति-पत्नी और बच्चे रहते हैं। एक एकल परिवार में यदि पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं तो बच्चों को कहाँ छोड़ें, यह समस्या सामने आती है। जो परिवार अकेले रहते हैं, उन्हें भी संयुक्त परिवार में ही रहने की आवश्यकता अनुभव होती है। संयुक्त परिवार के टूटने के निम्न कारण हैं- कुछ लोग तो माता-पिता के टोकने के कारण उनका दखल नहीं चाहते और अकेले रहना पसन्द करते हैं। दूसरा कारण अलग होने का यह है कि बेटे की नौकरी दूसरे शहर में या विदेश में लग गई है तो वह अपनी पत्नी को लेकर चला जाता है और माँ-बाप पुराने स्थान पर ही रहते हैं। कुछ मनचले युवक-युवती, माता-पिता को एक बोझ समझने लगते हैं इसलिए अलग हो जाते हैं कि उनकी स्वतन्त्रता में बाधा न पड़े, परन्तु उनकी यह सोच गलत है।
परिवार का विभाजन आधुनिक काल में ही हुआ। लोगों में स्वार्थ की प्रवृत्ति का बढ़ना और घूमने-फिरने की आजादी की चाह होना, माता-पिता को अपने परिवार में न माना जाना, इन्हीं कारणों से विभाजित परिवार का चलन बढ़ा। जैसे-जैसे बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता कसे दूर रहने लगे, वैसे-वैसे ही वृद्धाश्रम खुलते चले गए। विदेशों में तो वृद्धाश्रम बहुत पहले से ही उपयोग में लाए जा रहें हैं, लेकिन भारत में तो अभी हाल में ही इनका उदय हुआ है। संयुक्त परिवार एक आदर्श परिवार है। यहाँ एक-दूसरे की आवश्यकता का ध्यान रखा जाता है। परिवार के मुखिया का पूरे परिवार पर नियन्त्रण रहता है। वह सभी का उचित मार्गदर्शन करता है। सब लोग उसका आदर करते हैं और उसकी बात मानी जाती है। ऐसे परिवार में लोग कोई गलत काम नहीं करते और न उन्हें अति की स्वतन्त्रता होती है। उनके परिवार का खर्चा बड़ों की राय के अनुसार होता है और फिजूलखर्ची नहीं होती। बुजुर्गों के पास अपने जीवन का अनुभव होता है। वे अपने बच्चों का मार्गदर्शन करते रहते हैं।
संयुक्त परिवार के टूटने के कारण
भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली ही सर्वोत्तम प्रणाली है। यह आगे आने वाले समय तक अपना महत्व रखेगी। सन्त समाज भी संयुक्त परिवार प्रणाली की ही वकालत करता है। सद्गृहस्थ वही है जो अपने पूरे परिवार को मिलाकर चलता है।
- यदि किसी संयुक्त परिवार में किसी बात को लेकर दरार पड़ जाती है तो भी यह परिवार विभाजित हो जाता है और लोग अलग-अलग रहने लगते हैं।
- भारत का युवावर्ग पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होकर भारतीय संस्कृति को भूला जा रहा है और एकल परिवार की ओर दौड़ रहा है।
- पहले भारत में जितने भी महापुरुष हुए हैं वे संयुक्त परिवार में ही रहते थे और संयुक्त परिवार में रहने की सभी को प्रेरणा देते थे। अंग्रेजी संस्कृति और शिक्षा ने बहुत से परिवारों को विभाजित कर दिया।
टूटते परिवारों की समस्या को हल करने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना होगा। हमें परिवारों को मजबूत बनाने के लिए कदम उठाने होंगे और सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देना होगा। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो इसका समाज पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।
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