आधुनिक शिक्षा पद्धति छात्रों की मनोभावनाओं के प्रतिकूल है आधुनिक शिक्षा पद्धति में सुधार करके, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि यह सभी छात्रों की मनोभाव
आधुनिक शिक्षा पद्धति छात्रों की मनोभावनाओं के प्रतिकूल है
आधुनिक शिक्षा पद्धति छात्रों की मनोभावनाओं के प्रतिकूल है शिक्षा मानव-जीवन का एक अभिन्न अंग है। उसका जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। यह मानव को मानव और देवता बनाने में सक्षम है। यह एक ऐसा साधन है जो मानव के सुप्त संस्कारों को जाग्रत करती है। शिक्षा के स्वरूप पर ही मानव का जीवन एवं भविष्य निर्भर करता है। अत: समाज के निर्धन एवं दुर्बल वर्ग के लोग भी अपने बच्चों को यथासम्भव अच्छी-से अच्छी शिक्षा प्रदान करते हैं। प्रश्न यह उपस्थित होता है कि शिक्षा कौन-सी श्रेष्ठ और आदर्श होती है ? उत्तर स्पष्ट है, “जो बालक के सुप्त संस्कारों को जाग्रत करके उसे स्वस्थ, नैतिक एवं आर्थिक दृष्टि से संस्कारित जीवन की प्रेरणा देकर तैयार करती है, जो मानव में सामाजिकता का भाव उत्पन्न कर बालक को एक उपयोगी नागरिक और देशभक्त बनाती है, उसे ही आदर्श और सर्वोत्तम शिक्षा मान सकते हैं।"
शिक्षा पद्धति की आवश्यकता
अब प्रश्न यह पैदा होता है कि वर्तमान शिक्षा पद्धति व्यक्ति की भावनाओं को कहाँ तक पूर्ण करती है ? उत्तर स्पष्ट है कि वर्तमान शिक्षा पद्धति बालक को पुस्तकीय या सैद्धान्तिक ज्ञान तो अवश्य प्रदान करती है, किन्तु उसे व्यावहारिक ज्ञान तथा दैनिक जीवन की समस्याओं से दूर ही रखती है। हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली पूरी तरह अंग्रेजी शासन से प्रभावित है। उस पर चार्ल्स वुड और लॉर्ड मैकाले का प्रभाव है। तत्कालीन सरकार का उद्देश्य काले हिन्दुस्तानी गुलाम पैदा करना था, जो सरकारी कार्यालयों के क्लर्क का कार्य कर सकें। कम-से-कम पैसों पर ये गुलाम, काले अंग्रेज के रूप में उनकी सभ्यता और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में सहायता करते * थे तथा अपने धर्म और संस्कृति से घृणा करते थे।
हमारी शिक्षा प्रणाली का स्वरूप
दुर्भाग्य की बात है कि स्वतन्त्रता के बाद शिक्षा सुधार की अनेक योजनाएँ बनने के बाद भी शिक्षित व्यक्तियों की संख्या में तो सुधार हुआ है, किन्तु उनमें व्यावहारिक ज्ञान का अभाव है। मैं इस विचार के पक्ष में हूँ कि वर्तमान शिक्षा पद्धति छात्रों की भावनाओं और आवश्यकताओं के प्रतिकूल है। अपने विचार के पक्ष में मैं निम्नलिखित विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ -
- वर्तमान शिक्षा पद्धति में सैद्धान्तिक और पुस्तकीय ज्ञान को अधिक महत्व दिया गया है। छोटी-छोटी कक्षाओं में पुस्तकों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। पुस्तकों के साथ सहायक पुस्तकें, उनकी उत्तरमाला और नोट्स आदि की संख्या में दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी हो रही है जिसके कारण छात्र का बोझा बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि अधिकतर पुस्तक शिक्षा के प्रति घृणा के भाव से पूर्ण हो गयी है। समयानुसार उम्र एवं कक्षा के साथ पुस्तकों की मोटाई और वजन इतना बढ़ता जाता है कि छात्र को उन्हें देखने की भी इच्छा नहीं होती।
- पारिवारिक स्थिति भी वर्तमान शिक्षा-पद्धति के प्रति छात्र के मन में अरुचि की भावना को जन्म देती है। माता-पिता, भाई-बहन तथा छोटे-बड़े सभी शिक्षा तथा उस पर होने वाले व्यय को अनावश्यक समझते हैं। निर्धन और निम्न वर्गों में शिक्षा के प्रति रुचि उस रूप और मात्रा में नहीं बढ़ी है जितनी बढ़नी चाहिए। अधिकतर माता-पिता बच्चों का प्रवेश विद्यालय में कराने के बाद इस बात की कोई चिन्ता नहीं करते कि उनका बच्चा क्या कर रहा है? वे या तो हर परीक्षा से पूर्व और पश्चात् विद्यालय जाते हैं अथवा निम्न वर्ग के लोग छात्रवृत्ति लेने के लिए विद्यालय जाते हैं। निर्धनता के कारण अधिकतर माता-पिता बच्चों को जल्दी ही किसी-न-किसी कार्य पर लगा देते हैं। इससे उनकी शिक्षा की प्रगति प्रभावित होती है।
- विद्यालय का वातावरण भी शिक्षा के अनुकूल नहीं है। कक्षाओं में छात्र और अध्यापक का अनुपात अधिकतम 40 और 1 का होना चाहिए, किन्तु वर्तमान में यह अनुपात 80 से भी अधिक देखा जाता है। परिणाम यह है कि अध्यापक छात्रों के प्रति व्यक्तिगत रूप से ध्यान नहीं दे पाते। स्वयं को उपेक्षित पाकर छात्र भी कक्षाओं से दिल चुराने लगते हैं। इससे उनमें अनुशासनहीनता की भावना जन्म लेती है। उपसंहार - अध्यापक भी निजी स्वार्थ एवं राजनीति में लिप्त होने के कारण कक्षाओं में नहीं पढ़ाते। वे राजनीति, गुटबाजी तथा अन्य कार्यों में लिप्त रहकर कक्षाओं में नहीं जाते।
दोषपूर्ण परीक्षा पद्धति भी शिक्षा का एक दुर्भाग्य है। इसमें वर्ष भर की पढ़ाई की जाँच दो या तीन घण्टे में छात्रों द्वारा दिए गए उत्तरों पर आधारित है। इससे छात्रों के ज्ञान की पूर्ण रूप से परीक्षा नहीं हो सकती।
सरकार की उदासीनता, व्यावहारिक और व्यावसायिक शिक्षा का अभाव, बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए विद्यालयों का अभाव आदि शिक्षा पद्धति के अन्य दोष हैं।
आधुनिक शिक्षा पद्धति में सुधार करके, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि यह सभी छात्रों की मनोभावनाओं के लिए अनुकूल हो और उन्हें अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने में मदद करे।
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