राजनीति में महिलाओं की भागीदारी समाज के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकार, सामाजिक संगठनों और नागरिकों को मिलकर महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ
राजनीति में महिलाओं की भूमिका पर निबंध
राजनीति में महिलाओं की भूमिका पर निबंध आजादी मिलने के पहले से ही भारतीय नारी राजनीतिक जीवन में भाग लेने लगी थी। भारतीय स्त्रियों ने असहयोग आन्दोलन, विदेशी वस्त्र बहिष्कार करने, जेल जाने, प्रदर्शन, नारेबाजी, जुलूस आदि में भाग लिया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने राष्ट्रीय फौज में लक्ष्मी सहगल को कैप्टन के पद पर नियुक्त करके स्त्रियों के लिए एक नया रास्ता खोल दिया। आजादी मिलने के पश्चात् वे हर तरह के क्षेत्रों में कार्य करने लगीं। वे लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने लगीं। मन्त्री, प्रधानमन्त्री, विधायिका, अफसर आदि पदों को विभूषित करने लगीं। इस प्रकार उनका राजनीति में सहयोग बढ़ा।
आज की नारी - आधुनिक युग में स्त्रियाँ सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक सभी क्षेत्रों में पुरुषों के समान कार्य करने लगी हैं। इनमें विजयलक्ष्मी पण्डित, कमला नेहरू, सुचेता कृपलानी, सरोजिनी नायडू, इन्दिरा गाँधी, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा आदि का नाम उल्लेखनीय है।
'नारी' तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग पल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में ।।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार ने स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए कार्य किये। सरकार ने कानून में सुधार करके नारी और पुरुष को एक समान भूमि पर लाकर खड़ा कर दिया है, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण करके नारी ने अपने आदर्शों को तिलांजलि दे दी है। सामाजिक एवं आर्थिक स्वतन्त्रता ने उसे भोगवाद की ओर प्रेरित कर दिया है। आधुनिकता के मोह में पड़कर नारी आज पतन की ओर जा रही है। उसने नारी सुलभ कोमलता, दया, ममता, करुणा की भावना को त्यागकर राजनीति में फल-फूल का रस लेने वाली तितली का रूप धारण कर लिया है।
महिलाओं की कम भागीदारी के कारण
राजनीति में स्त्रियों के भाग लेने की प्रवृत्ति को कुछ लोगों ने तो अच्छा समझा है, लेकिन समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जिसने इस प्रवृत्ति को शुभ लक्षण नहीं माना। इस पुरातनपन्थी वर्ग का कहना है कि स्त्रियाँ शरीर से पुरुषों की अपेक्षा निर्बल होती हैं। इसलिए वे पुरुषों के सभी काम उतनी दक्षता के साथ नहीं कर सकतीं। फिर समाज के असामाजिक तत्त्व उनके साथ छेड़खानी करते सीम हैं, उनका अपमान करते हैं जिससे उनके सम्मान का ह्रास होता है। इनकी अगली दलील है कि स्त्रियों के पुरुषों के साथ कार्य करने से कि स्वेच्छाचारिता और अनैतिकता में वृद्धि होती है। इनका तर्क है कि स्त्रियाँ पारिवारिक जीवन की धुरी हैं। यदि वे घर नहीं सँभालती हैं तो बच्चों की शिक्षा भली-भाँति नहीं हो पाती है। उनके पालन-पोषण और देख-रेख में कमी रह जाती है। गृहस्थी अस्त-व्यस्त हो जाती है। इसलिए स्त्रियों के लिए सबसे उपयुक्त स्थान घर ही है। अतः स्त्रियों का राजनीति में भाग लेना अनुचित एवं हानिकारक है।
महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के लाभ
विचार करने पर प्रतीत होता है कि स्त्रियों का राजनीति में प्रवेश लेना सर्वथा संगत एवं वांछनीय है। इसके पक्ष में निम्न तर्क दिये जा सकते हैं-
- प्राचीनकाल में स्त्रियाँ राजनीति में भाग लेती थीं, उच्च शिक्षा ग्रहण करती थीं।
- आधुनिक मनोवैज्ञानिक खोजों ने यह सिद्ध कर दिया है कि स्त्रियाँ योग्यताओं में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। वे सभी कार्य उतनी दक्षता से कर सकती हैं जितना कि पुरुष । इस प्रकार उनकी योग्यताओं का सदुपयोग न करना मानव शक्ति का अपव्यय है।
- स्त्रियाँ दिये कार्य हुए को अधिक गम्भीरता और लगन से करती हैं। उनके द्वारा किये गये कार्य में उत्पादन अधिक होता है। किसी विभाग में स्त्रियों की उपस्थिति वहाँ अनुशासन उत्पन्न कर देती है। उनकी उपस्थिति में पुरुष अधिक मर्यादित और शालीन आचरण करते हैं।
- आज के जटिल युग में स्त्रियों द्वारा राजनीति में भाग लेने से उनके अन्दर सामाजिकता की भावना की वृद्धि होती है। राजनीति में भाग लेने से स्त्रियाँ अधिक आत्मनिर्भर होती हैं और उनका आत्मविश्वास बढ़ता है।
- आजकल के महँगाई के युग में उनका आर्थिक योगदान परिवार की सुख-सुविधाओं में वृद्धि करता है।
उपसंहार
स्त्रियों का राजनीति में भाग लेना वांछनीय ही नहीं श्रेयस्कर भी है, यह उनके अपने परिवार के और राष्ट्र के हित में है।
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