ईमानदार चोर हिंदी कहानी तालाब के पानी में रामू अगर भीगा न होता, अगर उसके पेट पर कमीज की झोली में चोरी के सिंघाड़े आड़े न आते तो शायद पंडित जी उस ईमानदार
ईमानदार चोर
पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित पूरे गांव और आसपास के छोटे-बड़े नगलों में श्री सत्यनारायण की कथा के लिए विख्यात थे। वह बड़े ही भाव-विभोर होकर कथा का पाठ करते थे। उन्हें कथा पाठ करते समय पत्रिका की आवश्यकता नहीं होती थी। कथा वचान करते समय वह आंखें मूंद लेते बड़े ही मगन होकर गद्य को लयबद्ध ढंग से सुनाते चले जाते थे, सुखासन में बैठे वाचन करते हुए पंडित जी कभी दाएं घुटने और कभी बाएं घुटने की ओर झुक जाते थे। एक दिन कथा आरंभ करते हुए पंडित जी ने कहा, ‘‘एक समय की बात है अठासी हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद-विद्या से रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है? हे मुनि श्रेष्ठ कोई ऐसा तप बताइए जिससे थोड़े समय में ही पुण्य मिले और मनवांछित फल की प्राप्ति हो जाए।’’
12 साल का रामू भी पंडित जी की कथा में आया था। उचित स्थान पर बैठे रामू का ध्यान कथा की भाव-भावना में नहीं था। वह तो पंडित जी की भाव-भंगिमाओं को देखकर बहुत प्रसन्न हो रहा था। उसकी निगाह पास में रखे शंख पर थी। जैसे ही पंडित जी कहते- ‘‘इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा प्रथम अध्याय संपूर्ण’’ वह जान जाता अब पंडित जी शंख बजाएंगे। वह संभलकर बैठ जाता और बड़े मनोयोग से शंखध्वनि को सुनता था। रामू के मन पर पंडित जी का बड़ा प्रभाव था।
एक दिन रामू की किसी बात को लेकर घर पर बड़ी डांट-फटकार हुई। इस पर रामू घर से बाहर चला गया। दिन भर वह बाहर ही बना रहा भूख से आत्मा व्याकुल हो रही थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। उसने देखा सामने से उसका मित्र श्यामू उसे ढंूढते हुए चला आ रहा है। पास आकर उसने कहा, मैं तुझे कहां-कहां ढूंढता फिर रहा हंू। तू यहां बैठा है। दोनों बैठकर वहीं बातें करने लगे। बातों-बातों में उसने कहा बहुत भूख लगी है। कुछ खाया नहीं है। दोनों ने विचार बनाया कि सामने की तलैया (तालाब का छोटा रूप) में सिघड़े लगे हैं। चलो तोड़कर खाएंगे। अभी वहां कोई नहीं है।
रामू-श्यामू कमर तक गहरे पानी में घुसकर सिंघाड़े तोडकर अपनी कमीज की झोली में रखने लगे। इतने में वहां पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित गुजर रहे थे। उन्होंने दोनों को ललकार कर बाहर निकाला। डांटकर पूछने लगे किसके लड़के हो। रामू ने कहा- फलां का लड़का हंू। भूख लग रही थी इसलिए तलैया में घुसकर खाने के लिए सिंघाड़े तोड़ने लगा। अच्छा तुम्हारे बाप का तालाब है। उन्होंने ललकार कहा, चलो हमारे साथ तुम्हें सबक सिखाता हंू।
रामू-श्यामू पंडित जी के पीछे-पीछे चले जा रहे थे। श्यामू ने रामू को इशारा किया कि थोड़ा धीरे-धीरे चलकर पीछे रह जाते हैं। जब पंडित जी से दूरी बढ़ जाएगी। फिर दौड़ लगा देंगे। लेकिन रामू तो जैसे पंडित जी के आदेश की अदृश्य जंजीर में जकड़ा हुआ था। उनके पीछे-पीछे चला जा रहा था। श्यामू ने जैसे ही मौका देखा तो उसने दौड़ लगा दी, दौड़ने में उसका जवाब नहीं था, फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
आगे-आगे पंडित जी चले जा रहे थे। पीछे-पीछे रामू। पंडित जी जब घर के निकट आए तो उन्होंने मुड़कर देखा तो श्यामू को नहीं पाया। उन्होंने खड़े होकर कड़कर पूछा, ‘‘वह दूसरा कहां गया?’’ रामू ने कहा, ‘‘वह तो भाग गया।’’ पंडित जी ने आश्चर्य से मन ही मन सोचा, वह भाग गया, यह क्यों नहीं भागा। उन्होंने कृत्रिम गुस्से से कहा वह भाग गया तो फिर तू क्यों पीछे-पीछे चला आ रहा है। तू भी भाग जा। पर रामू भागा नहीं कुछ सकुचाया सा खड़ा रहा। पंडित जी को उस ईमानदार चोर पर दया आ गई उनका कोमल हृदय पसीज (पिघल) गया।
रामू मुड़कर जाने के लिए जैसे उद्यत हुआ। पंडित जी ने धीरे से आवाज दी। रुक जा। इधर आ। तू किसका लड़का है? रामू बोला- रामप्रसाद का।
अच्छा तो यह बता तू भागा क्यों नहीं? रामू डरते-डरते बोला पंडित मुझे भूख लगी थी इसलिए उस श्यामू के बहकावे में आकर सिंघाड़े लेने के लिए तलैया में जाने की गलती की। अब आपके आदेश की अवहेलना करने की और गलती नहीं करना चाहता था, इसलिए नहीं भागा।
पंडित जी की कड़क के पीछे छुपी करुणा जाग्रत हो गई। उन्होंने भावुक हो उसका हाथ पकड़ लिया। तालाब के पानी में रामू अगर भीगा न होता, अगर उसके पेट पर कमीज की झोली में चोरी के सिंघाड़े आड़े न आते तो शायद पंडित जी उस ईमानदार चोर को सीने से चिपटा लेते।
भावावेश में पंडितानी को आवाज दी। भाग्यवान जरा घर में कुछ खाने को रखा हो तो लेकर आओ और गिलास में पानी भी लेती आना। पंडितानी प्लेट में दीवाली की मिठाई जलेबी, इमरती, बर्फी लेकर प्रस्तुत हुईं। पंडित जी ने रामू से कहा ले इसे खा ले। मिठाई खिलाकर पंडित जी ने रामू को विदा किया।
- महिपाल प्रजापति
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 11 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंमानवीय मूल्यों के महत्व को बताती सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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