कुंडली में अष्टम भाव भाव क्या है, जानिए इसके रहस्य कुंडली का आठवाँ भाव आयु भाव के नाम से विख्यात है, लेकिन आठवाँ भाव आयु के साथ-साथ जीवन के अनेक आयामो
आयु भाव के विभिन्न आयाम
कुंडली का आठवाँ भाव आयु भाव के नाम से विख्यात है, लेकिन आठवाँ भाव आयु के साथ-साथ जीवन के अनेक आयामों को अपने अंदर समेटे हुए है। जीवन में अचानक होने वाले परिवर्तनों की संभावनाओं के संकेत इसी भाव से मिलते है । यह भाव छिद्र भाव भी कहलाता है, जीवन की अनेक गोपनीय बातें, रहस्य, शोध, अनुसंधान इत्यादि इस भाव में समाहित होते हैं। मृत्यु का भाव भी यही है। आठवाँ भाव मृत्यु प्राप्ति का तरीके पर भी प्रकाश डालता है। मृत्यु शांतिपूर्ण तरीके से होगी अथवा किसी दुर्घटना में, पानी में डूबने से होगी अथवा आग में जलने से, यह सब आठवें भाव से ही जाना जा सकता है। अष्टमेश की महादशा/अंतर्दशा में व्यक्ति को राजा से रंक अथवा रंक से राजा बनने में देर नहीं लगती।
यह भाव दूसरे भाव का सातवाँ है। दूसरा भाव धन भाव है, अतः आठवाँ भाव धन भाव का मारक भाव है। चूँकि यह रहस्यों का भाव है, अतः धन से संबंधित ऐसी गोपनीय गलत गतिविधियाँ भी इसी भाव से देखी जा सकती हैं, जिनके उजागर होने पर संपूर्ण धन का विनाश हो जाए। साथ ही धन से संबंधित बड़े नुकसान भी इसी भाव से देखे जा सकते हैं। इस भाव से ऐसे धन लाभ को भी देखा जा सकता है जो जातक स्वयं नहीं कमाता, अर्थात् किसी अन्य की धन संपत्ति जो जातक येन केन प्रकारेण स्वयं के नाम कर लेता है, उदाहरण के लिए रिश्वत इत्यादि का धन भी इसी भाव से देखा जा सकता है। चूँकि पैत्रिक संपत्ति भी जातक स्वयं अर्जित नहीं करता, अतः यह पैत्रिक संपत्ति का भी भाव है। पैत्रिक संपत्ति प्राप्त होगी अथवा नहीं इसी भाव से समझा जा सकता है।
आठवाँ भाव चौथे का पाँचवाँ है। चौथा भाव भूमि भवन वाहन को बताता है और पाँचवाँ भाव जातक की पसंद, प्रेम और उसके आनंद की अनुभूति की व्याख्या करता है। अतः जातक अपने घर, वाहन इत्यादि से प्रसन्नचित्त अथवा संतुष्ट रहेगा अथवा नहीं तथा इनसे आनंद का अनुभव कर पाएगा अथवा नहीं, यह भी आठवाँ भाव ही बताता है।
आठवाँ भाव पाँचवें का चौथा है, पाँचवें भाव से संतान को देखा जाता है और चौथा सुख भाव है, अतः यह संतान से प्राप्त होने वाले सुख को भी बताता है।
यह भाव छठवें का तीसरा है। छठवाँ भाव रोग, ऋण और शत्रुओं की जानकारियाँ देता है और तीसरा भाव पराक्रम भाव है। अतः आठवाँ भाव रोग, ऋण अथवा शत्रुओं के पराक्रम की जानकारियाँ देता है। रोग, ऋण अथवा शत्रु ताकतवर होंगे या कमजोर, इसी भाव से निर्धारित किया जा सकता है।
आठवाँ स्थान सातवें भाव से दूसरा है अतः यह सातवें भाव का मारक भाव है। सातवें भाव से विवाह अथवा जीवन साथी के बारे में जाना जाता है। अतः वैवाहिक संबंध कितना चल पाएगा इसकी जानकारी आठवें भाव से ही प्राप्त की जा सकती है। साथ ही ससुराल पक्ष अथवा जीवनसाथी के धन के बारे में भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। चूँकि यह रहस्य का भी भाव है और विवाह के लिए मारक भाव भी है, अतः इस भाव से विवाहेतर संबंध भी देखे जा सकते हैं। क्योंकि ऐसे अनैतिक संबंध ही विवाह के लिए मारक का कार्य करते हैं।
यह भाव नौवें का बारहवाँ भाव है, नौवां भाव धार्मिक उन्नयन का भाव है साथ ही भाग्य भाव भी है। बारहवाँ भाव व्यय भाव है। अतः आठवें भाव से धर्म से विमुखता तथा भाग्य की हानि का भी विचार किया जा सकता है। विवेकशीलता तथा सही और गलत को पहचानने की क्षमता धर्म से ही प्राप्त होती है। इसलिए यदि अष्टम भाव तथा अष्टमेश की स्थिति अच्छी नहीं होती तो व्यक्ति धर्म से पूर्णतः विमुख हो सकता है और स्वधर्म को भूलना मृत्यु के सदृश ही होता है। लेकिन बारहवाँ भाव मोक्ष का भाव भी है, अतः यदि अष्टम भाव व अष्टमेश की स्थिति शुभ हो तो जातक धर्म की राह से चलकर मोक्ष की प्राप्ति भी कर सकता है।
यह भाव दसवें का ग्यारहवाँ है। चूँकि दसवां भाव कर्म भाव है, अतः आठवाँ भाव कर्म के लाभ को इंगित करता है। अतः जातक अपने कर्म से लाभान्वित होगा अथवा नहीं यह इसी भाव से देखा जा सकता है। अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि जातक अपने कर्म (नौकरी या व्यवसाय) के कारण यश तथा खुशियाँ प्राप्त करेगा अथवा नहीं, उसे अपने पद से लाभ की प्राप्ति होगी या नहीं, यह भी इसी भाव से देखा जा सकता है।
यदि लग्नेश तथा अष्टमेश आपस युति अथवा दृष्टि के द्वारा आपस में संबंध बनाते हों तो अष्टमेश की महादशा/अंतर्दशा में जातक के जीवन में बड़े बदलाव आने की संभावना होती है। कभी कभी यह बदलाव इतना अच्छा होता है कि जातक देश या समाज में यशस्वी हो जाता है। अच्छा या बुरा बदलाव पूर्णतया ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है।
यदि पंचमेश तथा अष्टमेश केंद्र या त्रिकोण युति करते हों अथवा दृष्टि संबंध बनाते हों तो, अष्टमेश की महादशा/अंतर्दशा में पूर्व जन्मों के सत्कर्मों के उदय होने के कारण जातक को अचानक लॉटरी इत्यादि लग सकती है तथा उसकी मनोकामना पूरी हो सकती है। इसके विपरीत पंचमेश तथा अष्टमेश की अशुभ स्थान में युति से जातक को संतान से संबंधित कष्टों का सामना करना पड़ सकता है।
यदि नवमेश तथा अष्टमेश एक दूसरे के साथ युति अथवा दृष्टि के द्वारा केंद्र या त्रिकोण में संबंध बनाते हैं तो अष्टमेश की महादशा/अंतर्दशा में जातक को मोक्ष की प्राप्ति होने की संभावना रहती है।
दसवाँ भाव कर्म का भाव होता है। यदि आठवें और दसवें भाव के भावेश एक दूसरे से दृष्टि संबंध बनाते हों या एक दूसरे के साथ युति करके केंद्र या उपचय भाव में स्थित हों तो जातक को राजनीतिक पद अथवा बड़े सरकारी पद की प्राप्ति होती है।
अष्टमेश कुंडली के जिस भाव में स्थित होता है जातक को उस भाव से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
यदि अष्टमेश कुंडली के लग्न भाव में स्थित हो तो जातक अहंकारी तथा विवेकहीन हो सकता है। ऐसी स्थिति में जातक स्वधर्म से विमुख रहकर गुप्त गतिविधियों में लिप्त, परेशानियों का सामना करता हुआ, अपनी ही गलतियों से स्वयं का नुकसान करने वाला हो सकता है। ऐसी स्थिति में यदि अष्टमेश पर गुरु की दृष्टि होती है तो स्थितियां खराब होने से बच जाती है। किसी पित्त तुल्य सज्जन व्यक्ति अथवा गुरु का सहायता तथा आशीर्वाद से जातक के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। अतः यदि अष्टम भाव को सुधारना हो तो नवम भाव को सबल बनाना होगा।
यदि अष्टमेश द्वितीय भाव में स्थित हो जाए तो जातक अधार्मिक गतिविधियों से लिप्त होकर धन की हानि करवा सकता है। जातक के परिवार में पैत्रिक संपत्ति को लेकर लड़ाई झगड़ा अथवा विघटन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
यदि अष्टमेश की स्थिति कुंडली के तीसरे भाव में हो तो पुरुषार्थ में अधर्म की स्थिति बनती है, अर्थात जातक का स्वभाव आलसी हो सकता है। इसके अलावा जातक के छोटे भाई बहनों में से किसी की रुचि ज्योतिष में हो सकती है। तीसरे भाव में बैठकर अष्टमेश नवम भाव में दृष्टि डालता है अतः ऐसी स्थिति में धर्म का नाश के कारण जातक को परेशानियाँ उठानी पड़ सकती है।
यदि अष्टमेश कुंडली के चतुर्थ भाव में अच्छी स्थिति में हो तो जातक की माता की रुचि ज्योतिष में हो सकती है तथा जातक के घर का वातावरण भजन पूजन से युक्त हो सकता है। संभव है कि जातक पैतृक संपत्ति प्राप्त करने के बाद स्वयं के मकान बना पाए। लेकिन यदि अष्टमेश बुरे प्रभाव में हो तो जातक अधार्मिक होकर चालबाज अथवा धोखेबाज हो जाता है। तब उसके घर का वातावरण अत्यंत खराब हो सकता है तथा जातक को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
यदि अष्टमेश पंचम भाव में स्थित हो जाए तो जातक की ज्योतिष या ज्योतिष से संबंधित ज्ञान में विशेष रुचि होती है। जातक संतान से संबंधित धर्म का पालन करने में लापरवाह हो सकता है, जिसके कारण जातक को संतान से संबंधित कष्ट उठाने पड़ सकते हैं।
यदि अष्टमेश जातक की कुंडली में छठवें भाव में स्थित हो जाए तो जातक को पैतृक संपत्ति से लाभ की प्राप्ति होने की संभावना होती है इसके अलावा वह ज्योतिष से संबंधित शोध कार्यों से भी लाभ प्राप्त कर सकता है क्योंकि छटवाँ भाव आठवें का ग्यारहवाँ है।
यदि अष्टमेश जातक की कुंडली के सातवें भाव में स्थित हो तो जातक अपने विवाह को लेकर अधार्मिक बन सकता है। संभव है कि जातक अपने पति या पत्नी का अथवा उसके परिवार का आदर-सम्मान न करे। यदि अष्टमेश अत्यंत बुरी स्थिति में हो तो ऐसी स्थिति में जातक कभी-कभी विवाहेतर संबंध बनाने से भी नहीं चूकता। इसलिए अष्टमेश का सातवें भाव में बैठना विवाह के लिए घातक साबित हो सकता है। ऐसी स्थिति में जातक को स्वयं की इच्छा शक्ति से कार्य लेना चाहिए तथा सकारात्मक बदलाव के लिए कोशिश करना चाहिए।
अष्टमेश का अष्टम में ही बैठना शुभ माना जा सकता है क्योंकि कोई भी भावेश अपने भाव को कभी खराब नहीं करता। अतः ऐसी स्थिति में जातक लंबी आयु वाला, पैतृक संपत्ति को पाने वाला तथा ज्योतिष अथवा ज्योतिष से संबंधित विषयों में पारंगत हो सकता है।
यदि अष्टमेश नवम में बैठ जाए तो जातक के धर्म की हानि के संकेत देता है ऐसी स्थिति में जातक नास्तिक हो सकता है। किसी आध्यात्मिक और ज्ञानी गुरु की सलाह तथा आशीर्वाद से ही परिस्थिति में सुधार संभव है।
यदि अष्टमेश जातक की कुंडली के दसवें भाव में स्थित हो जाए तो जातक अपने कार्य क्षेत्र में अधर्म का व्यवहार करता है। वह बार-बार अपनी नौकरी बदलता है और अपने अधिकारियों से विश्वासपात्र नहीं बन पाता है। जातक कई बार अपनी नौकरी या व्यवसाय की दिशा को ही पूरी तरह से बदल देता है।
यदि अष्टमेश जातक की कुंडली के ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो जातक लाभ प्राप्ति के लिए कई बार अधर्म के पथ भी चलने लगता है, जिसके कारण उसे परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
यदि अष्टमेश जातक की कुंडली के बारहवें भाव में स्थित हो तो यह एक विपरीत राजयोग बनता है। चूँकि बारहवाँ भाव व्यय भाव है, अतः जातक के अष्टम भाव की नकारात्मकता का व्यय हो जाता है। ऐसी स्थिति में जातक मोक्ष प्राप्ति की ओर प्रयत्नशील हो जाता है। संभव है कि जातक कोई आश्रम इत्यादि बनवाकर आध्यात्मिक उन्नति की राह पर चल पड़े।
उपरोक्त विवेचना एक अति सामान्य विवेचना है। विशिष्ट विवेचना के लिए ग्रहों की स्थिति, युति, दृष्टि तथा वर्ग कुंडलियों में इतनी स्थिति को दृष्टिगत रखना अति आवश्यक होता है।
अष्टम भाव जातक के जीवन में होने वाले अमूलचूल परिवर्तन की ओर संकेत करते हैं। यह भाव अंतर्मन की यात्रा को बताने में सक्षम है। अष्टम भाव की तुलना एक गहरे जलाशय से की जाती है। एक अंतहीन अंधेरे गड्ढे से भी इस भाव की तुलना की जाती रही है, जहाँ कुछ भी खोजने के लिए चिंतन मनन अथवा साधना की आवश्यकता होती है। इसलिए यदि इस भाव को साधना का भाव कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि किसी व्यक्ति को अंधेरे से उबारने के लिए अथवा उसे स्वधर्म पर अग्रसर करने के लिए अष्टम भाव का सहारा लिया जा सकता है। यदि किसी जातक को अष्टम भाव अथवा अष्टमेश की अशुभ स्थितियों के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ता है तो जातक को अपनी इच्छा शक्ति को जाग्रत करके, किसी सज्जन, ज्ञानी, पितृतुल्य शुभचिंतक अथवा किसी अच्छे गुरु की सलाह अवश्य लेना चाहिए। अर्थात् अष्टम भाव को सुधारने के लिए जातक को अपना नवम भाव बलवान करना चाहिए।
- डॉ. सुकृति घोष (Dr. Sukriti Ghosh)
प्राध्यापक, भौतिक शास्त्र
शा. के. आर. जी. कॉलेज
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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