साकेत में मैथिलीशरण गुप्त ने रामकथा का मौलिक स्वरूप प्रस्तुत किया है। उन्होंने रामकथा के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हुए, पात्रों के चरित्र चित्रण मे
साकेत में मैथिलीशरण गुप्त ने रामकथा का मौलिक स्वरूप प्रस्तुत किया है
साकेत में मैथिलीशरण गुप्त ने रामकथा का मौलिक स्वरूप प्रस्तुत किया है।उन्होंने रामकथा के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हुए, पात्रों के चरित्र चित्रण में नवीनता लाकर, और मानवीय भावनाओं को गहनता से व्यक्त करते हुए, रामकथा को एक नया आयाम दिया है।महर्षि वाल्मीकि के आदिकाव्य 'रामायण' से लेकर आज तक विभिन्न भाषाओं में अगणित रामायणें लिखी गयी हैं, किन्तु गुप्तजी ने अपने कथानक में कुछ ऐसी मौलिक उद्भावनाएँ कीं, जिससे रामकथा का युग-युग से अनुमोदित और प्रचारित रूप वर्तमान युग के परिवेश के अनुकूल बन सका।
साकेत महाकाव्य की विशेषता
सबसे पहली विशेषता तो यह है कि 'साकेत' के राम ईश्वर नहीं, अपितु महामानव हैं, जो इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आये हैं-.
सन्देश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया,
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।
कैकेयी का चरित्र चित्रण
'साकेत' में कैकेयी के चरित्र का भी उन्नयन हुआ है। कैकेयी चित्रकूट की सभा में स्वयं अपनी सफाई देती है। यहाँ वह अपने कृत्य के लिए अपने वात्सल्य की दुहाई देती है तथा उस पर पश्चात्ताप प्रकट करती है। इस प्रकार उसके कुकृत्य का मनोवैज्ञानिक कारण भी स्पष्ट किया गया है। कैकेयी ने मन्थरा को गलत न ठहराकर सारा दोष अपने ऊपर ले लिया है-
युग-युग तक चलती रहे कठोर कहानी,
रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी ।
निज जन्म-जन्म में सुने जीव यह मेरा, धिक्कार !
उसे था महास्वार्थ ने घेरा ।
कोई भी माता उन परिस्थितियों में वही करती, जो कैकेयी ने किया। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य हैं-
कुछ मूल्य नहीं वात्सल्य मात्र क्या तेरा ?
पर आज अन्य-सा हुआ वत्स भी मेरा ।
थूके मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके,
जो कोई जो कह सके, कहे क्यों चूके ।।
उर्मिला का विरह वर्णन
नवम सर्ग में वर्णित उर्मिला का विरह गुप्तजी की सर्वथा मौलिक उद्भावना है। उर्मिला से सम्बन्धित सभी घटनाएँ कवि की कल्पना-प्रसूत हैं। उर्मिला और लक्ष्मण के प्रेमालाप से काव्य का आरम्भ और फिर उन्हीं के मिलन से उसका अन्त मौलिक एवं नवीन है। 'साकेत' के राजपरिवार में सबसे अधिक दुःखिनी उर्मिला की ओर अब तक किसी कवि का ध्यान नहीं गया था। गुप्तजी सर्वप्रथम उसकी ओर आकृष्ट हुए। उन्होंने उर्मिला की चौदह वर्षों की कसक, टीस एवं वेदना का अनुभव किया और उसे वाणी प्रदान की । वस्तुतः 'साकेत' की रचना का एक मुख्य उद्देश्य ही उर्मिला की मौन-व्यथा को मुखरित करना था ।
'साकेत' में अयोध्यावासियों का रण-सज्जा प्रसंग भी नवीन और मौलिक है। तुलसी के भरत हनुमान् से सीता-हरण और लक्ष्मण-मूर्च्छा का समाचार सुनकर अपने को कोसते हैं, किन्तु गुप्तजी ने भरत तथा अन्य अयोध्यावासियों को युद्ध के लिए उत्सुक दिखाया है और उर्मिला वीरांगना के वेश में शत्रुघ्न के समीप आकर खड़ी हो जाती है। इस प्रकार उर्मिला के वीरांगना-पक्ष का उद्घाटन किया गया है।
राम के चरित्र की मानवीयता
राम-रावण युद्ध में भी नवीनता दृष्टिगोचर होती है। लक्ष्मण के शक्ति लगने के पश्चात् राम विलाप नहीं करते, अपितु क्रोधांध होकर भीषण मार-काट मचा देते हैं और “भाई का बदला भाई ही” कहकर कुम्भकर्ण का वध कर देते हैं। कुम्भकर्ण की मृत्यु के पश्चात् रावण को मूर्च्छित देख उन्हें लक्ष्मण की मूर्च्छा याद हो आती है और वे "राम से रावण ही सहृदय है आज" कहकर गिर पड़ते हैं। राम के चरित्र की यह मानवीयता कवि की अपनी सूझ है। 'साकेत' में चित्रित राम का तो सम्पूर्ण चरित्र मानवीय है।
निष्कर्ष
इस प्रकार गुप्तजी ने रामकथा में कुछ मौलिक उद्भावनाओं द्वारा जहाँ एक ओर उसे आधुनिक बुद्धिवादी युग के अनुकूल तर्कसंगति एवं रोचकता प्रदान करने का प्रयास किया है, वहीं दूसरी ओर काव्य की उपेक्षिता उर्मिला एवं युग-युग से लांछित कैकेयी के साथ न्याय की दृष्टि से उनके चरित्रों को अधिक मानवीय एवं मनोवैज्ञानिक आधार पर पुनर्गठित कर उन्हें नूतन आभा से मण्डित किया है ।
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