समानांतर रेखाएं एकांकी सत्येंद्र शरत

SHARE:

समानांतर रेखाएं एकांकी सत्येंद्र शरत ने हिन्दी एकांकी मध्यम वर्ग के एक परिवार की झाँकी एकांकी का सारांश उद्देश्य एकांकी का चरित्र चित्रण नरेश माँ अशोक

समानांतर रेखाएं एकांकी सत्येंद्र शरत


मानांतर रेखाएं एकांकी सत्येंद्र शरत ने हिन्दी एकांकी-साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके द्वारा रचित 'समानान्तर रेखाएँ' एक ऐसा एकांकी है जिसमें मध्यम वर्ग के एक परिवार की झाँकी प्रस्तुत की गई है जो आधुनिक सामाजिक परिवेश में खरी उतरती है। 

लेखक ने समाज के इस वर्ग की पीड़ा को समझा है और इस एकांकी में उसे उजागर किया है। प्रस्तुत एकांकी में एक संयुक्त परिवार का चित्रण किया गया है जो समय की परिस्थितियों में फँसकर, उस स्थान पर आ खड़ा होता है जहाँ से न पीछे लौटा जा सकता है और न आगे ही बढ़ा जा सकता है। 

समानांतर रेखाएं एकांकी का सारांश 

एक मध्यम वर्ग के परिवार में विधवा माँ है, उसके दो लड़के हैं। बड़े लड़के का नाम नरेश है और छोटे लड़के का नाम अशोक । शकुन्तला बड़े लड़के नरेश की पत्नी है। रमेश बड़े लड़के नरेश का बेटा है। अशोक भी विवाहित है । इस प्रकार यह छ: सदस्यों का मध्यम परिवार है। बड़ा लड़का नरेश ही पूरे परिवार का उत्तरदायित्व निभाता है । उसी के वेतन से पूरे परिवार का खर्च चलता है । इसी कारण उसकी पत्नी शकुन्तला परिवार के बोझ से दुःखी होकर अपने पति से बातचीत करती है । छोटा लड़का अशोक अभी कुछ धन अर्जित नहीं कर पा रहा है और जो कुछ थोड़ा बहुत धन अर्जित कर भी लेता है तो वह सारा धन परिवार में न लगाकर कुछ व्यक्तिगत रूप से भी खर्च करता है। इस बात को शकुन्तला बुरा मानती है और इसी विषय में अपने पति से वार्तालाप करती है। वह कहती है कि वह अपने छोटे भाई के बारे में माँ से स्पष्ट रूप से बात करे कि वह अपना कमाया धन व्यक्तिगत रूप से अपने ऊपर या अपनी पत्नी के ऊपर खर्च न करके अपने भाई की आर्थिक रूप से सहायता करे ।

पत्नी के कहने पर नरेश अपनी माँ को बुलवाता है, माँ से अपने छोटे भाई अशोक के विषय में बात करना चाहता है किन्तु स्पष्ट रूप से बात करने में उसे संकोच होता है क्योंकि वह जानता है कि माँ उसके छोटे भाई को अधिक प्यार करती है। वह अपने छोटे लड़के की बुराई सुनना या उसे अलग करना पसन्द नहीं करेगी। इसी कारण वह पहले माँ से कहता है—सुनो माँ, लेकिन पहले तुम मुझे क्षमा कर देना, क्योंकि मैं आज तुम्हारा मन दुखाऊँगा । 

इस प्रकार नरेश साहस करके माँ से कहता है— माँ, अब अशोक पढ़-लिख गया है। अब शादी भी हो गई है। उसे
समानांतर रेखाएं एकांकी सत्येंद्र शरत
अब घर की जिम्मेदारियाँ समझनी चाहिए। घर को घर समझना चाहिए सराय नहीं। इस पर माँ कहती है कि समय लगेगा, सब ठीक हो जायगा, धीरे-धीरे जिम्मेदारी समझने लगेगा। उनके सामने तो परिस्थिति ही ऐसी आ गई थी जिसके कारण उस पर समय से पूर्व ही परिवार का भार सहन करने की जिम्मेदारी आ पड़ी थी जिस परिस्थिति का अशोक को तो पता भी नहीं है । इसके उत्तर में नरेश माँ से कहता है कि वह भी कहाँ तक घर का बोझ वहन करे, उसका भी तो एक लड़का है । वह तो घर का बोझ उठाते-उठाते परेशान हो चुका है । इसलिए अब अशोक को अवश्य हाथ बँटाना चाहिए या परिवार से अलग होकर अपना घर बसाना चाहिए। अलग होने की बात सुनकर माँ आश्चर्यचकित हो जाती है। कहती है अशोक घर से अलग होने की बात को लेकर क्या महसूस करेगा ! उसको यह सब सहन नहीं होगा। माँ इस बात को लेकर काफी चिन्तित है और अपने बड़े लड़के से इस प्रकार की बात न करने का आग्रह करती है किन्तु नरेश अपनी बात पर दृढ़ रहता है । इतने में छोटा लड़का अशोक आ जाता है और वह आते ही कहता है कि उसने उन दोनों की बातें सुन ली हैं और कहता है कि भाई साहब उसे इस बात के लिए माफ करें कि कुछ पैसा आने पर वह उस पैसे को घर में न लगाकर अपनी पत्नी के लिए साड़ी ले आया । यह सब लड़कपन के कारण हुआ, वह अभी तक यह समझता रहा कि उसके बड़े भाई का साया उसके ऊपर है तो फिर किस बात की चिन्ता की जाय। किन्तु आज उसकी आँखें खुल गई हैं। उसे अपनी जिम्मेदारी को समझने का अवसर मिला है। इस प्रकार की बात सुनकर सभी भावुक हो जाते हैं किन्तु फिर भी छोटा लड़का अशोक अब घर छोड़ने का आग्रह करता है और कहता है भाई साहब अब उसे अपने पैरों पर खड़े होने का अवसर दें। पहले तो बड़ा भाई अपनी माँ से अपने छोटे भाई अशोक के घर से अलग होने के लिए ज़ोर डाल रहा था किन्तु अब जब अशोक स्वयं घर छोड़ना चाहता है तो बड़ा भाई भावुक होकर अपने छोटे भाई को अलग नहीं करना चाहता। अब वह कहता है कि आर्थिक सहायता करके भी एक घर में रहा जा सकता है किन्तु अशोक अपनी बात पर अटल है। वह घर छोड़कर जाने लगता है तो माँ रोने लगती है । माँ उसको जाने से रोकती है तो वह माँ से कहता है- “ना माँ रोकर मेरे लिए अमंगल न करो। मुझे हँसी-खुशी विदा करो । माँ, तुम्हारा छोटा लड़का एक जिम्मेदार आदमी बनने जा रहा है। उसके मन में मोह न जगाओ। खुशी से विदा करो, और भगवान से प्रार्थना करो कि उसमें समझ आ जाए ताकि एक दिन तुम उसका फिर स्वागत कर सको ।" इस प्रकार अशोक चला जाता है। बड़ा भाई नरेश भी कहता है—“हाँ अशोक, हम हमेशा तुम्हारा स्वागत करने के लिए तैयार रहेंगे।” उसके जाते समय शकुन्तला और रमेश भी भावुक हो जाते हैं । 

समानांतर रेखाएं एकांकी का आलोचनात्मक अध्ययन 

आज के समाज में मध्यवर्गीय परिवार का विशेष महत्त्व है। यदि हम यह कहें कि समाज को चलाने वाला मध्यवर्गीय परिवार ही है तो अतिशयोक्ति न होगी । जितना अधिक मध्यवर्गीय परिवार सम्पन्न होगा, सुखी होगा उतना ही समाज सम्पन्न तथा सुखी होगा किन्तु इस परिवार की अपनी कुछ जटिल समस्याएँ होती हैं, पीड़ाएँ होती हैं। यदि ये समस्याएँ दूर हो जाएँ तभी यह परिवार सुखी होगा । सत्येन्द्र शरत् ने मध्यवर्गीय परिवार की पीड़ा को बड़े नज़दीक से समझा है और समाज की इकाई और आधार — ऐसे परिवार की टूटती दीवारों को फिर से उठाने की चेष्टा की है 

'समानान्तर रेखाएँ' एक ऐसे ही मध्यवर्गीय परिवार से सम्बन्धित एकांकी है, जो समय की परिस्थितियों में फँसकर उस स्थान पर आ खड़ा होता है, जहाँ से न पीछे लौटा जा सकता है और न आगे ही बढ़ा जा सकता है। इस एकांकी में माँ के विधवा होने पर बड़े लड़के के ऊपर पूरे घर परिवार का भार आ पड़ता है। काफी समय तक वह पूरे घर की जिम्मेदारी निभाता है। उसकी पत्नी तथा एक बच्चा है, उसका अपना छोटा परिवार है, उसकी भी कुछ आवश्यकताएँ हैं। परिवार में जब छोटा भाई अशोक शिक्षित हो जाता है, उसकी शादी भी हो जाती है तब भी बड़ा लड़का नरेश ही पूरे परिवार का पालन-पोषण कर रहा है जो कि उसके लिए अब कठिन हो रहा है । एक दिन छोटा भाई अशोक अपनी पत्नी के लिए एक नई रेशमी साड़ी खरीद लाता है। इसका पता जब नरेश की पत्नी को लगता है तो उसको बुरा लगता है । यहाँ नारी प्रकृति का चित्रण एकांकीकार बड़े अच्छे ढंग से करता है । शकुन्तला का पति उसके लिए कीमती साड़ी नहीं ला पाता है क्योंकि वह सभी की जिम्मेदारी अपने सिर पर ढोए हुए है। अत: उसके लिए इस बात का बुरा मनाना स्वाभाविक जान पड़ता है । यही छोटी-छोटी बातें समाज के मध्यवर्गीय परिवारों के लिए कलह की जड़ें होती हैं। शकुन्तला अपने पति नरेश से कहती है कि तुम अब माँ जी से साफ-साफ बात कर लो कि अशोक अपने पैरों पर खड़ा होने योग्य हो गया है । अब वह अपने परिवार का पालन-पोषण अपने आप कर सकता है इसलिए उसे अब इस घर से अलग होकर अपना अलग घर बसाना चाहिए । नरेश अपनी पत्नी शकुन्तला की बात मानकर अवसर पाकर माँ से इस विषय में अशोक के घर से अलग होने की बात करता है । तब माँ अत्यन्त परेशान हो उठती है । उसकी दृष्टि में अशोक अभी इस योग्य नहीं हुआ है कि वह घर से अलग होकर अपना अलग घर बसा सके। इस कारण माँ नरेश से अशोक को घर से अलग करने के लिए मना करती है । काफी आग्रह करती है, तर्क करती है । माँ का आग्रह करना उसके छोटे लड़के के प्रति अपार स्नेह का द्योतक है । माँ की ममता को एकांकीकार ने बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। जब नरेश और माँ आपस में अशोक के विषय में बात कर रहे होते हैं तब अशोक उनकी बातें सुन लेता है और वह स्वयं माँ और नरेश के सामने आ जाता है और कहता है कि उसने सभी बातें सुन ली हैं और वह अब स्वयं घर से अलग होना चाहता है। वह अब इस योग्य हो गया है कि अपने परिवार का पालन-पोषण कर सके। माँ अशोक से ऐसा करने को मना करती है किन्तु अशोक नहीं मानता है और वह घर से अलग होने के लिए जाने लगता है । तब बड़ा भाई नरेश भ्रातृत्व प्रेम में डूब जाता है। वह भावुक हो जाता है । फलस्वरूप वह अब अशोक को जाने से रोकता है। पूरे घर का वातावरण भावपूर्ण हो जाता है। ऐसे ही भावपूर्ण वातावरण में अशोक घर से चला जाता है। इस प्रकार इस एकांकी का अंत होता है। यद्यपि एकांकी के अन्त में छोटा भाई बड़े भाई से अलग होता है लेकिन यह अन्त दुःखद नहीं कहा जा सकता क्योंकि परिवार के बीच किसी प्रकार का मनोमालिन्य नहीं है। छोटे भाई के अपनी गलती स्वीकार करके क्षमा माँग लेने पर परिवार के बीच पहले जो तनाव पैदा हो गया था वह अब समाप्त हो चुका होता है । 

एकांकी की भाषा सरल तथा बोधगम्य है । कथोपकथन प्रभावोत्पादक है, संवाद अत्यन्त रोचक हैं जो कथानक को आगे बढ़ाने में सहायक हैं। पात्रों का चयन भी कथानक के अनुकूल है। माँ और नरेश के संवाद अत्यन्त स्वाभाविक बन पड़े हैं । नरेश प्रमुख पात्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है जिसके इर्द-गिर्द कथानक घूमता है । एकांकी के तत्वों के आधार पर यह एकांकी खरा उतरता है । इस एकांकी को पढ़कर ऐसा लगता है मानो इस प्रकार की समस्या समाज के प्रत्येक मध्यम परिवार में उत्पन्न होती है। यह एकांकी समाज के मध्यवर्गीय परिवार की दशा का प्रतिनिधित्व करता है ।
 

समानांतर रेखाएं एकांकी का उद्देश्य 

'समानान्तर रेखाएँ' एकांकी का उद्देश्य मध्यवर्गीय परिवार की झाँकी प्रस्तुत करके उनकी पीड़ाओं का अनुभव कराना है क्योंकि वर्तमान समाज मध्यवर्गीय परिवारों पर ही आधारित है जो समय की परिस्थितियों में फँसकर उस स्थान पर आ खड़े होते हैं जहाँ से वे पीछे नहीं लौट सकते और न आगे ही बढ़ सकते हैं। मध्यवर्गीय परिवार में यदि कोई विषम परिस्थिति आती है तो उससे किस प्रकार निपटा जा सकता है और संयुक्त परिवार में किस प्रकार त्याग तथा स्नेह भावना की आवश्यकता होती है, इन सभी बातों को सफलतापूर्वक दर्शाने में एकांकीकार सफल हुआ है। 

जहाँ तक शीर्षक 'समानान्तर रेखाएँ' का प्रश्न है एकांकीकार ने पूरा प्रयत्न किया है कि एकांकी में शीर्षक का पूरा निर्वाह हो । वह इस प्रकार है—पहले तो नरेश अशोक को घर से अलग करने पर जिद पकड़ता है और समझता है कि अशोक शायद मेरे कहने पर घर से नहीं जाएगा, मुझे परेशान करेगा, रुकने के लिए मेरी खुशामद करेगा किन्तु होता है इसका उल्टा । अशोक नरेश की बात सुनते ही घर से अलग होने की बात करता है जिससे नरेश आश्चर्यचकित हो जाता है और अशोक के जाने पर सभी भावुक हो जाते हैं। इस प्रकार नरेश का पूर्व व्यवहार और उसके जवाब में अशोक का तुरन्त घर से चले जाने का निश्चय यही 'समानान्तर रेखाएँ' के रूप में समझा जा सकता है । 

समानांतर रेखाएं एकांकी पात्रों का चरित्र चित्रण 

"समानान्तर रेखाएँ" एक अत्यंत प्रभावशाली और प्रेरक नाटक है। यह हमें स्त्री-पुरुष समानता, सामाजिक न्याय, शिक्षा और पारिवारिक रिश्तों के महत्व को समझने में मदद करता है।इसके प्रमुख चरित्रों का चित्रण निम्नलिखित हैं - 

नरेश का चरित्र चित्रण

इस एकांकी में नरेश प्रमुख पात्र है। वह परिवार में बड़ा भाई है। वह स्वभाव से संकोची, सहनशील, जिम्मेदार व्यक्ति है। उसकी माँ विधवा है इस कारण बचपन से ही घर की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर आ पड़ती है। नरेश अपनी जिम्मेदारी समझता है । अपने परिवार के सदस्यों के साथ उसका लगाव भी है। इस परिवार में विधवा माँ, नरेश की पत्नी, एक बच्चा रमेश तथा नरेश का एक छोटा भाई अशोक और उसकी पत्नी हैं। इस प्रकार परिवार के इतने सदस्यों का पालन-पोषण करना नरेश के लिए कठिन हो रहा है । एक दिन उसको पता लगता है कि उसका छोटा भाई कुछ धन अर्जित कर उसमें से अपनी पत्नी के लिए एक कीमती साड़ी लाया है । यह बात उसकी पत्नी को बुरी लगती है, अत: उसे भी बुरा लगता है । वह सोचता है कि मैं तो अपने बच्चे और पत्नी की सारी इच्छाओं को मारता हुआ परिवार चला रहा हूँ, यह यदि कुछ कमाता है तो उस धन को अपनी पत्नी की फरमाइशें पूरी करने में व्यय करता है । इसको घर का कुछ ख्याल नहीं । इस बात को लेकर वह अत्यन्त दुःखी हो जाता है और पत्नी के दबाव डालने पर बड़े संकोच के साथ अपनी माँ के सामने अपनी समस्या व्यक्त करता है और कहता है कि अब उसके छोटे भाई को अपना घर अलग बसाना चाहिये। इतने में अशोक सारी बातें सुन लेता है तथा क्षमा माँगता है परन्तु घर से अलग हो जाने को कहता है । तब नरेश भावुक हो जाता है । उसमें भ्रातृत्व प्रेम उमड़ आता है और उसको रुकने के लिए कहता है । 

इस सबसे यह बात सिद्ध होती है कि यद्यपि आर्थिक परिस्थितियों के कारण वह अपने भाई को अलग गृहस्थी बसाने के लिए कहता है लेकिन इसके पीछे एक यह भी भावना है कि वह चाहता है कि उसका भाई भी अपनी जिम्मेदारी समझे । वह अपनी पत्नी के विचारों का भी समर्थन करता है परन्तु माँ का आदर करता है तथा उसका दिल नहीं दुःखाना चाहता । इसी कारण वह बहुत साहस करके अत्यन्त संकोच के साथ माँ से अपने दिल की बात कहता है । परन्तु जब उसका छोटा भाई अपनी गलती स्वीकार करके उससे क्षमा माँग लेता है और अलग होने के लिए आग्रह करता है तब वह पिघल जाता है और उसका विरोध करता है। हृदय से वह भावुक है तथा इन्सानियत उसमें कूट-कूट कर भरी हुई है। 

माँ का चरित्र चित्रण

माँ इस कहानी की प्रमुख नायिका और आदर्श पात्र है । पूरी एकांकी उसी के चारों ओर घूमती है । वह ममतामयी माँ है । उसकी ममता की अनुभूति कर माँ की महानता पर गौरव होने लगता है जो जीवनपर्यन्त अपनी संतान के लिए मर मिटने को तैयार रहती है और कोई भी त्याग अपनी संतान के लिए कर सकती है । साधारणतया माँ का अपने छोटे पुत्र के लिए बड़े पुत्र से अधिक स्नेह देखा गया है। इस एकांकी में भी माँ अपने छोटे पुत्र अशोक से बड़े पुत्र से अधिक प्रेम करती है उसके अपने छोटे पुत्र के प्रति प्रेम का पता वहाँ लगता है जब उसका बड़ा लड़का नरेश अपने छोटे भाई अशोक को घर से अलग करने की बात कहता है। तब वह कहती है “डरती हूँ कि वह अपना गुज़ारा करेगा कैसे ? अरे, उससे तो अपने लिए एक अलग कोठरी तक न ढूँढ़ी जा सकेगी। वह गृहस्थी कैसे चलाएगा ?” इन वाक्यों में उसका वात्सल्य पूर्ण रूप से उभर कर सामने आ जाता है। वह अपने छोटे लड़के को घर से अलग न होने के लिए पूर्ण आग्रह करती है और पूरी वकालत करती है । बड़े बेटे के प्रति भी उसका न्यायपूर्ण दृष्टिकोण है । उसके सारे कार्यों को वह पूर्णतः सराहती है। जब अशोक घर छोड़कर जाने लगता है तो ममतावश उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं जिसके कारण घर के अन्य सदस्य भी भावुक हो जाते हैं । इसके अतिरिक्त वह अपने बड़े लड़के का सम्मान करवाना भी जानती है। जब नरेश उससे अशोक की शिकायत करता है तब वह अशोक से अपने बड़े भाई से माफ़ी माँगने को भी कहती है और उसका छोटा लड़का उसकी आज्ञानुसार अपने बड़े भाई से क्षमा याचना करता है। इससे सिद्ध होता है कि उसकी अपने परिवार में एक मज़बूत पकड़ है, बेटों पर नियन्त्रण है । तभी तो नरेश भी अपनी माँ से अशोक की एकदम शिकायत करने में संकोच करता है । वह अन्दर ही अन्दर अपनी माँ से डर रहा है, उसका आदर कर रहा है। 

अशोक का चरित्र चित्रण

अशोक अपने परिवार में छोटा लड़का है। वह अपने बड़े भाई की छत्रछाया में बड़ा होता है। जब उसके पिता का स्वर्गवास होता है उसके बाद से ही उसका पालन-पोषण बड़े भाई नरेश द्वारा होता है । वह अपने बड़े भाई को पिता की तरह मानता है, पिता की तरह उनका आदर करता है। इसी कारण अपने बड़े भाई के होते हुए वह किसी बात की चिन्ता नहीं करता ।वह स्वतन्त्र रहता है जो भी छोटे-मोटे शौक होते हैं वह भी पूरे करता है। इसी कारण थोड़े-बहुत पैसे कमाकर अपनी पत्नी के लिए साड़ी भी ले आता है क्योंकि उसे अपने बड़े भाई नरेश पर भरोसा है कि वह कभी इस बात को महसूस नहीं करेंगे । वह उसे हर प्रकार से खुश देखना चाहते हैं। जिस प्रकार पिता के होते हुए पुत्र को किसी प्रकार की चिन्ता नहीं होती, वह जैसा चाहे वैसा खर्च कर सकता है, यही बात वह अपने भाई में देखता है किन्तु जब नरेश उससे घर छोड़ने को कहता है तब वह अचम्भित रह जाता है। उसे अपनी गलती का अहसास होता है तथा वह बड़े भाई से अपनी गलती के लिए क्षमा माँगता है । वह घर छोड़ने के लिए भी राजी हो जाता है क्योंकि वह सोचता है कि इतने दिन बड़े भाई ने उसके तथा परिवार के लिए कष्ट उठाया है, उसका भी कर्त्तव्य हो जाता है कि वह भी अब घर से अलग होकर अपनी कुछ जिम्मेदारी समझे, अपने पैरों पर खड़ा हो। इससे भाई का बोझ हल्का होगा, भाई को आराम मिलेगा । 

इससे सिद्ध होता है कि उसके हृदय में भाई के बोझ को समझने की सूझ है । वह जानता है कि बड़ा भाई किसी सीमा तक ही छोटे भाई की जिम्मेदारी ढो सकता है जबकि छोटा भाई पढ़-लिख गया हो और उसकी शादी भी हो गई हो । वह सहृदय भी है तभी तो वह कहता है—“मन से तो हम कभी अलग नहीं हो सकते माँ ! पानी को लाठी से कितना ही पीटो, पानी कभी दो नहीं होता, एक ही रहता है।" इस प्रकार अशोक एक बुद्धिमान पात्र है । भाई के प्रति प्रेम उसमें कूट-कूट कर भरा हुआ है । 

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1474,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,10,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,431,हिंदी लेख,531,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,423,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,4,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,51,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: समानांतर रेखाएं एकांकी सत्येंद्र शरत
समानांतर रेखाएं एकांकी सत्येंद्र शरत
समानांतर रेखाएं एकांकी सत्येंद्र शरत ने हिन्दी एकांकी मध्यम वर्ग के एक परिवार की झाँकी एकांकी का सारांश उद्देश्य एकांकी का चरित्र चित्रण नरेश माँ अशोक
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0njrwHYDInPoAU72UlY9NRB8Utu8IDffZeXXtRTZoCKDJeF9l06JbZTp-qVwdTr4nYGpHXDaTzUQhLG0HrgW_HNjfTeEVKA2gCalzIOYxTcc1gXdST75nA0XlcArppeyqXfSzGM0bOiLpGPkyW1LAEdp3onmrD8MtiwNpGS4TfBeOGwKyXi2_cMpT75l1/s16000/ekanki.jpeg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0njrwHYDInPoAU72UlY9NRB8Utu8IDffZeXXtRTZoCKDJeF9l06JbZTp-qVwdTr4nYGpHXDaTzUQhLG0HrgW_HNjfTeEVKA2gCalzIOYxTcc1gXdST75nA0XlcArppeyqXfSzGM0bOiLpGPkyW1LAEdp3onmrD8MtiwNpGS4TfBeOGwKyXi2_cMpT75l1/s72-c/ekanki.jpeg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2024/03/samantar-rekhaye-ekanki-satyendra-sharat.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2024/03/samantar-rekhaye-ekanki-satyendra-sharat.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका