भारत माता का मंदिर यह कविता मैथिलीशरण गुप्त भारत माता का मंदिर यह कविता की व्याख्या सारांश प्रश्न उत्तर Bharat Mata Ka Mandir Poem Summary भारतभूमि
भारत माता का मंदिर यह कविता | मैथिलीशरण गुप्त
भारत माता का मंदिर यह कविता की व्याख्या सारांश प्रश्न उत्तर मैथिलीशरण गुप्त जी की भारत माता का मंदिर यह कविता भारत माता के प्रति प्रेम और भक्ति से ओतप्रोत है।कवि भारत माता को एक मंदिर के रूप में चित्रित करते हैं, जहाँ ज्ञान, धर्म और सत्य का निवास है।
वेदों और उपनिषदों की शिक्षा यहाँ दी जाती है, और ऋषि-मुनियों का तप और वीरों का बलिदान यहाँ स्मरण किया जाता है।यह कर्मभूमि है जहाँ सत्य, अहिंसा और प्रेम के मूल्यों का पालन किया जाता है।कवि सभी को भारत माता के इस मंदिर में आने और उनकी वंदना करने का आह्वान करते हैं।
भारत माता का मंदिर यह कविता की व्याख्या भावार्थ
भारतमाता का मंदिर यह समता का संवाद जहाँ,
सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावे सभी प्रसाद यहाँ ।
जाति धर्म या सम्प्रदाय का नहीं भेद व्यवधान यहाँ,
सबका स्वागत, सबका आदर, सबका सम सम्मान यहाँ ।
राम-रहीम, बुद्ध-ईसा का सुलभ एक-सा ध्यान यहाँ,
भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के गुण गौरव का ज्ञान यहाँ।
व्याख्या - कवि के अनुसार भारत केवल एक देश नहीं, बल्कि यह भारतमाता का मंदिर है, जहाँ समानता की भावना को सबसे अधिक महत्त्व दिया जाता है। इस भारत-भूमि में सबका हित और कल्याण होता है तथा सभी को उन्नति-विकास का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह देश ऐसी भूमि है, जहाँ जाति, धर्म, संप्रदाय और वर्ग आधारित किसी भी तरह का भेदभाव नहीं है। यहाँ सभी का स्वागत होता है और सभी को उचित सम्मान की प्राप्ति होती है। भारत-भूमि समन्वय की ऐसी भूमि है जहाँ सभी धर्मों के लोगों को बिना भेदभाव के अपने धर्म और रीतिरिवाजों को पालन करने के अवसर प्राप्त हैं। राम, रहीम, बुद्ध और ईसा सबकी आराधना इसी भूमि पर संभव हैं। अतः इस समता की भूमि पर विश्व की विविध मानव-संस्कृतियों का विकास और प्रचार-प्रसार हुआ है
नहीं चाहिए बुद्धि वैर की, भला प्रेम उन्माद यहाँ,
सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ ।
सब तीर्थों का एक तीर्थ यह हृदय पवित्र बना लें हम,
आओ यहाँ अजातशत्रु बन, सबको मित्र बना लें हम ।
रेखाएँ प्रस्तुत हैं अपने मन के चित्र बना लें हम,
सौ-सौ आदर्शों को लेकर, एक चरित्र बना लें हम ।
व्याख्या - भारतमाता के इस पावन मंदिर में शत्रुता और वैर भाव के लिए कोई भी स्थान नहीं है। संसा के समस्त संकीर्ण भावों से ऊपर उठकर हमें प्रेम को अपनाना चाहिए। कवि कहते हैं कि हमें मिल- हृदय में प्रेम का संचार करना चाहिए और इसे पावन बना देना चाहिए। पावन हृदय सब तीर्थों से बड़ा है। हृद की पवित्रता और प्रेम के द्वारा ही अपने शत्रुओं को भी मित्र बनाया जा सकता है। हमें अपने मन में प्रेम, पवित्रता बंधुता और सद्भावना रूपी रेखाओं से उच्चतम चरित्र रूपी चित्र बनाना चाहिए, जिससे हम सबके सामने अपन और अपने देश-समाज का आदर्श रूप प्रस्तुत कर सकें।
कोटि-कोटि कंठों से मिलकर उठे एक जयनाद यहाँ,
सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ ।
मिला सत्य का हमें पुजारी, सफल काम उस न्यायी का
मुक्ति-लाभ कर्त्तव्य यहाँ है, एक-एक अनुयायी का,
बैठो माता के आँगन में, नाता, भाई-भाई का,
एक साथ मिल बैठ बाँट लो, अपना हर्ष-विषाद यहाँ ।
व्याख्या - कवि सभी देशवासियों को एकजुट होकर जयनाद करने का आह्वान करते हैं। वे सभी को संगठित होकर सबका विकास और सबका कल्याण करने का मंत्र देते हैं। उनके अनुसार भारत-भूमि वह पावन- भूमि है, जहाँ हमें गाँधी के रूप में सत्य का पुजारी मिला। गाँधी ने सत्य और अहिंसा के दम पर ही देश के स्वाधीनता आंदोलन को सफल बनाया और भारत स्वतंत्र हो पाया। उन्होंने लाखों लोगों को वास्तविक मुक्ति का अर्थ समझाकर एकजुट किया था । सब उनके सिद्धांत को आत्मसात् कर उनके बनाये राह पर चलें और आजाद भारत का स्वप्न पूरा हो सका। कवि कहते हैं कि यह हमारे घर के आँगन के समान है, जहाँ सबके बीच भाई-भाई का नाता है। अतः सभी को एक-साथ बैठकर अपने सुख-दुःख को आपस में बाँट लेना चाहिए और अपनी एकजुटता का परिचय देना चाहिए।
भारत माता का मंदिर यह कविता का मूल भाव सारांश
भारत केवल आकार और जनसंख्या में ही विशाल नहीं है, बल्कि इसकी विशिष्टता विश्व के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण संस्कृतियों के समन्वय में निहित है। विविध प्रकार के धर्म, जाति, संस्कृति और वातावरण के बावजूद एक साथ मिलकर भारत को 'समन्वित संस्कृति' और 'विविधता में एकता' के रूप में प्रस्तुत करना ही इसकी महानता है। मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी कविता 'भारत माता का मंदिर' में इसी सत्य को उद्घाटित किया है कवि के अनुसार भारत केवल एक देश मात्र नहीं बल्कि यह भारत माता के मंदिर के समान है जहाँ बिना किसी भेद-भाव के सभी को जीवनयापन और विकास को समान अवसर तथा उचित सम्मान प्राप्त होता है। यहाँ सभी धर्म, जाति, भाषा और समुदाय के लोग उन्मुक्त और स्वतंत्र रूप से अपने नीति, नियमों और आचरण का पालन करते हैं।
कवि लोगों से सभी प्रकार की शत्रुता को मिटाकर प्रेम और सौहार्द्र से जीवनयापन करने की प्रेरणा देते हैं। उनके अनुसार यदि अपने मन-मंदिर को स्वच्छ, शीतल और पवित्र कर लिया जाय, फिर इसी हृदय में समस्त तीर्थस्थलों का वास हो जायेगा। हमें आवश्यकता इस बात की है कि जीवन के सभी महान आदर्शों को अपनाकर अपने चरित्र को उज्ज्वल बना लें। कवि का दृढ़ विश्वास है कि हम करोड़ों भारतवासी प्रेम के द्वारा शत्रुओं के हृदय पर भी विजय का परचम लहरा सकते हैं। कवि कहते हैं कि इस महान भारतभूमि ने महात्मा गाँधी जैसे सत्य के पुजारी को जन्म दिया, जिन्होंने सत्य, अहिंसा और प्रेम के पाठ द्वारा मानव मात्र को मुक्ति और स्वाधीनता का संदेश दिया। उनकी ही प्रेरणा से सभी लोगों ने स्वाधीनता के महत्त्व को समझा और उसे अपना प्रथम कर्तव्य माना। अंततः कवि का संदेश है कि भारतभूमि पर निवास करने वाले सभी प्राणियों के बीच भाई-भाई का नाता है, चाहे वह किसी जाति, धर्म या संप्रदाय का क्यों न हो। अतः सबको एक साथ मिलकर रहने तथा सबके सुख-दुःख में बराबर के भागीदार बनकर ही भारत की समन्वित संस्कृति की परंपरा को आगे बढ़ाया जा सकता है तथा विश्व को प्रेम, दया, सत्य, अहिंसा और सहानुभूति का पाठ पढ़ाया जा सकता है।
मैथिलीशरण गुप्त का परिचय
द्विवेदी युग के रचनाकारों में मैथिलीशरण गुप्त का स्थान सबसे महत्त्वपूर्ण है। इनका जन्म 1886 ई० में झाँसी (उत्तर प्रदेश) के चिरगाँव के एक प्रतिष्ठित अग्रवाल, परिवार में हुआ था । परिवार के धार्मिक परिवेश और पिता सेठ रामचरण की साहित्यिक रुचि के कारण गुप्तजी साहित्य रचना की ओर प्रवृत्त हुए । इन्होंने घर पर ही संस्कृत, अंग्रेजी और बंगला की आरंभिक शिक्षा प्राप्त की। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आने के बाद उन्हीं की प्रेरणा से काव्य-रचना में निपुणता प्राप्त की। इनकी रचनाओं में धर्म, दर्शन, मानवीय संवेदना और उन्नत भारतीय संस्कृति की बहुत ही मनोरम झाँकी प्राप्त होती है। राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के दौर में इन्होंने महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया।
इनका यह राष्ट्रप्रेम इनकी अधिकांश कविताओं में देखा जा सकता है। भारत-भारती, पंचवटी, साकेत, जयद्रथवध, द्वापर, यशोधरा, रंग में भंग आदि इनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं । कविता के अलावा इन्होंने तिलोत्तमा, चंद्रहास और अनघ जैसे कुछ नाटकों की भी रचना की । साहित्य के क्षेत्र में अपने अमूल्य योगदान के लिए इन्हें डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर, साहित्य वाचस्पति और मंगला प्रसाद पारितोषिक जैसे सम्मान प्राप्त हुए। इन्हें दो बार संसद के राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया गया। सन् 1964 ईο में साहित्य के इस महान विभूति का देहावसान हो गया।
भारत माता का मंदिर यह कविता के प्रश्न उत्तर
प्र. 'भारत माता का मंदिर' कविता में रचनाकार ने भारतीयों से क्या अपेक्षा की है?
उत्तर : 'भारत माता का मंदिर' कविता में रचनाकार भारतीयों से यह अपेक्षा रखते हैं कि भारत के लोग समस्त भेदभाव, हिंसा-द्वेष और स्वार्थ की आहुति जलाकर प्रेम, सत्य, न्याय और अहिंसा की राह पर चलें । कवि चाहते हैं कि सभी धर्मों के बीच समन्वय, समानता, मानव की प्रतिष्ठा, सबके सुख-दुःख में बराबर की भागीदारी जैसे उच्च गुणों का विकास हो ।
प्र. 'भारत माता के मंदिर' की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर : 'भारत माता का मंदिर' समता और समन्वय की भावना से ओत-प्रोत है। यहाँ सभी जाति, धर्म, संप्रदाय और संस्कृति को समान दृष्टि से देखा जाता है। यहाँ जो व्यक्ति आता है, उसका मुक्त हृदय से स्वागत होता है। कहा जा सकता है कि भारत माता के मंदिर में सबको उच्च सम्मान और विकास करने का समान अवसर प्राप्त होता है।
प्र. “ भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के गुण गौरव का ज्ञान यहाँ” – के माध्यम से क्या संदेश देने की कोशिश की गई है?
उत्तर : भारत भूमि समन्वित संस्कृति का उत्तम उदाहरण है। यहाँ विश्व की लगभग सभी संस्कृतियों को उन्मुक्त भाव से फलने-फूलने और विकसित होने का अवसर प्राप्त हुआ है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध सभी धर्मों ने इस धरती पर आपसी सामंजस्य बनाकर अपना विकास और विस्तार किया है।
प्र. “भला प्रेम उन्माद यहाँ” का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : कवि के अनुसार भारत भूमि प्रेम की भूमि है। इस धरती ने सभी धर्म, जाति, संप्रदाय, भाषा और संस्कृति को प्रेम और सौहार्द्र के अटूट धागे से बाँधा है। इस भूमि पर हिंसा, द्वेष, वैर और कटुता का कोई महत्त्व नहीं है। हम आपसी सामंजस्य बनाकर प्रेम के साथ ही इस विविधतापूर्ण संस्कृति का और भी ज्यादा विकास और विस्तार कर सकते हैं।
प्र. “एक साथ मिल बैठ बाँट लो, अपना हर्ष विषाद यहाँ” का भाव स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर : मैथिलीशरण गुप्त की मान्यता है कि भारत में अनेक धर्म, जाति, समुदाय, भाषा और संस्कृति के मानने वालों का एक साथ विकास हुआ है। इतनी विविधताओं के बावजूद सभी एक साथ प्रेम और सौहार्द्र के साथ रहते हैं। अतः कवि भारत में एक साथ रहने वाले सभी लोगों को भारत माता की संतान मानते हैं। इस नाते सबमें आपस में भाई-भाई का रिश्ता है। इस प्रकार उन्हें एक दूसरे के सुख-दुःख में शामिल होकर और एक-दूसरे के हर्ष-विषाद को बाँटकर मानवीय एकता और प्रेम का उच्च आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए ।
Bharat mata ka asli putra kavi ne kishe mana hai
जवाब देंहटाएंBharat Mata ka asali Putra Kavi ne kise Mana hai answer
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