देश के संकट की घड़ी में हमारा दायित्व

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देश के संकट की घड़ी में हमारा दायित्व एक राष्ट्र के नागरिक होने का अर्थ केवल अधिकारों का आनंद लेना ही नहीं है, बल्कि कर्तव्यों का पालन करना भी है। इन

देश के संकट की घड़ी में हमारा दायित्व


क राष्ट्र के नागरिक होने का अर्थ केवल अधिकारों का आनंद लेना ही नहीं है, बल्कि कर्तव्यों का पालन करना भी है। इन कर्तव्यों का महत्व विशेष रूप से उस समय उभर कर सामने आता है जब देश किसी संकट का सामना कर रहा होता है। ऐसे समय में, प्रत्येक नागरिक का यह दायित्व बन जाता है कि वे राष्ट्र की सेवा करें और उसे संकट से उबारने में अपना योगदान दें।

नागरिकों के विशेष दायित्व

'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी' का उद्घोष करनेवाले आदि कवि बाल्मीकि ने हमारा सही मार्गदर्शन करते हुए बताया है कि जन्मभूमि से बढ़कर अन्य कोई नहीं है । इसके लिए तन-मन-धन एवं प्राण तक देने में सच्चे देशभक्त कभी नहीं हिचकते। हमारे देश का अतीत गौरवशाली रहा है, किन्तु उसे निरन्तर बाहरी और भीतरी एवं
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दैवी संकटों का भी सामना करना पड़ा है। ऐसे संकटों के समय देश के प्रत्येक नागरिक के कुछ विशिष्ट कर्तव्य हो जाते हैं, जिनके द्वारा ही देश संकट-मुक्त हो पाता है।
 
जब किसी देश पर कोई अन्य देश आक्रमण कर उसकी प्रभुसत्ता एवं अस्तित्व को चुनौती देता है या उसे जड़-मूल से उखाड़ फेंकने का प्रयत्न करता है तब देश संकट अथवा आपात्कालीन स्थिति में माना जाता है । इसे बाहरी विपदा या संकट कहा जा सकता है। प्राचीनकाल में हमारे देश पर शकों, हूणों, सीथियनों, पार्थियनों एवं मुसलमानों के आक्रमण तो हुए ही वर्तमानकाल में भी इस पर विदेशों द्वारा आक्रमण किए गए। स्वतंत्रता के पश्चात् हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान ने तीन-चार बार आक्रमण किए किन्तु उसे प्रत्येक बार भयंकर मार खाकर पीछे हटना पड़ा। सन् 1965 और 1971 ई0 में तो उसे भयंकर पराजय का मुँह देखना पड़ा ।
 
पाकिस्तान के अलावा सन् 1962 ई० में चीन के हमले को भी हमारे देश को झेलना पड़ा। चीन ने विश्वासघात करके हमारे देश के कम-से-कम पचास वर्ग मील भूमि पर कब्जा कर लिया और वह भूमि आज तक मुक्त नहीं करायी जा सकी है। 

ये हैं बाहरी आक्रमण | किन्तु समय-समय पर देश को अलगाववाद, आतंकवाद और साम्प्रदायिक दंगों जैसे आन्तरिक संकटों का भी सामना करना पड़ा है और अब भी पड़ता है। इन संकटों से अपार जन-धन की हानि होती है तथा देश का विकास एक तरह से अवरुद्ध हो जाता है। विदेशी एजेन्ट जनता में घुल-मिलकर समय-समय पर अशांति एवं भय का वातावरण पैदा किया करते हैं, यह भी भीतरी संकट है।इनके अलावा दैवी आपदा एवं प्रकोपों के परिणामस्वरूप देश मुसीबत में फँस जाता है। बाढ़, भूकम्प, अकाल, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, रोग-प्रसार आदि प्राकृतिक प्रकोप हैं जो देश की सारी व्यवस्था को चरमरा देते हैं। इनसे जन और धन की अपूरणीय क्षति हुआ करती है।

संकट मे प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य

इन तीनों प्रकार के संकटों की स्थिति में देश के नागरिकों के सामान्य और विशेष दोनों प्रकार के कर्तव्य सामने आते हैं और उन्हें निभाना प्रत्येक व्यक्ति का धर्म होता है। बाहरी आक्रमण के समय प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य हो जाता है कि वह देश के भीतर शांति बनाये रखने में सरकार की सहायता करे, विदेशी जासूसों, खुफिया एजेन्टों एवं पंचमांगियों पर कड़ी नजर रक्खे जिससे भय का वातावरण न बन सके। ऐसे अक्सर पर सीमा पर लड़ रहे सैनिकों के परिवारों की सुरक्षा करनी चाहिए तथा कल- कारखानों एवं खेतों में दिन-दूनी रात चौगुनी मेहनत करके सैनिक साज-सामान एवं अन्य वस्तुओं का खूब उत्पादन किया जाना चाहिए। खाद्यान्न की कमी पराजय का बहुत बड़ा कारण बनती है। अतः खेतों में खूब अन्न पैदा करना चाहिए। इस तरह जब सैनिकों के साथ-साथ सामान्य नागरिक भी स्वयं को मोर्चे पर समझता है तब विदेशी आक्रमण विफल हो जाता है। हमारे देश के नागरिकों ने इसका कई बार प्रमाण प्रस्तुत किया है। ऐसे समय में प्रत्येक नागरिक को चाहिए कि वह अपने सारे मतभेद (राजनीतिक, धार्मिक, जातिगत) मिटाकर देश की सुरक्षा में एकजुट होकर लग जायें। इतना ही नहीं N.C.C. या A. C. C. जैसी संस्थाओं में भर्ती होकर सैनिक प्रशिक्षण ग्रहण करे और आवश्यकता पड़ने पर रणक्षेत्र में जाकर देश-रक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान करे ।
 
इसी प्रकार आन्तरिक गड़बड़ियों के समय भी प्रत्येक नागरिक को चाहिए कि वह तुच्छ स्वार्थों और वर्ग और जातिगत भावनाओं से ऊपर उठकर विचार करे और आसेतु हिमालय तक की भूमि को अपनी जन्मभूमि मानकर उसके लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान करने को सदैव तत्पर रहे। साम्प्रदायिक दंगों एवं धर्म के नाम पर भड़कने वाले झगड़ों में सूझ-बूझ से काम लेकर अराजक तत्वों के मनसूबों पर पानी फेर देना चाहिए। परस्पर भाई-चारा एवं सद्भाव एवं साम्प्रदायिक सौमनस्य का प्रदर्शन करके आन्तरिक कलह पर नियंत्रण किया जा सकता है।
 
हमारे देश में विदेशों से शस्त्र एवं धन की सहायता पाकर अलगाववादी आन्दोलन भी समय-समय पर चलते रहे हैं। पंजाब का खालिस्तान आन्दोलन और नागालैण्ड, मिजोरम एवं त्रिपुरा के पृथकतावादी आन्दोलन इसी श्रेणी में आते हैं जिनका हमारे देश की जनता ने एकजुट होकर न केवल मुकाबला किया है, अपितु उनकी कमर तोड़ने में सरकार की भरपूर सहायता की है।
 

भारत का विकास सर्वोपरि

प्राकृतिक प्रकोपों- बाढ़, भूकम्प, अकाल या महामारी जैसी आपदाओं के समय चाहिए कि हर नागरिक जी-जान से संकटग्रस्त लोगों की सहायता और सेवा करे तथा उन्हें पुनर्वासित करने में मनोयोग पूर्वक कार्य करे। गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश में आये भूकम्पों से जान-माल की अपार क्षति हुई थी, किन्तु हमारे देश के नागरिकों ने जो समर्थन, एकजुटता और सहानुभूति के साथ-साथ सब प्रकार की शारीरिक सक्रियता दिखाई वह प्रशंसा के योग्य है। संकट की हर घड़ी में चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति स्वार्थ, भाषा-विवाद, जाति-पाँत, छुआ-छूत, गरीब-अमीर, प्रान्तवाद, रिश्वतखोरी, कुनबापरस्ती, कालाबाजारी आदि से ऊपर उठे और देश के चहुमुखी विकास और सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान करे। 

देश के संकट की घड़ी में प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वे राष्ट्र की सेवा करें और उसे संकट से उबारने में अपना योगदान दें। यदि हम सब मिलकर काम करें, तो हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं और अपने देश को मजबूत और अधिक समृद्ध बना सकते हैं।

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