ध्रुवस्वामिनी नाटक का उद्देश्य जयशंकर प्रसाद ऐतिहासिक नाटक है जो गुप्तकालीन रानी ध्रुवस्वामिनी के जीवन पर आधारित है ध्रुवस्वामिनी के चरित्र कथावस्तु
ध्रुवस्वामिनी नाटक का उद्देश्य | जयशंकर प्रसाद
ध्रुवस्वामिनी नाटक जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एक ऐतिहासिक नाटक है जो गुप्तकालीन रानी ध्रुवस्वामिनी के जीवन पर आधारित है। नाटक में ध्रुवस्वामिनी के चरित्र को वीरता, दृढ़ता, और बुद्धिमत्ता के साथ चित्रित किया गया है।
जयशंकर प्रसाद कृत नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' का प्रमुख उद्देश्य अत्याचारों एवं शोषण के खिलाफ आवाज उठाने एवं लड़ने की सीख देना है। स्त्री अपनी शिक्षा, अधिकारों, इच्छा एवं सम्मान के प्रति सजग होने के बावजूद सदैव समझौतावादी दृष्टिकोण अपनाने के लिए मजबूर थी। इन समस्याओं को जयशंकर प्रसाद ने अपने हृदय में महसूस किया तथा नाटक चंद्रगुप्त (1931) और ध्रुवस्वामिनी (1933) लिखकर प्रकाशित किया। इन नाटकों का मूल उद्देश्य नारी स्वातंत्रय की चेतना को अभिव्यक्ति प्रदान कराना है। नाटक द्वारा लेखक यह स्पष्ट करता है कि वर्तमान समय में आधुनिक नारी जागरूक हो गई है। आधुनिक नारी अब मूक-पशु नहीं रह गयीं हैं बल्कि वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने के साथ-साथ उनको प्राप्त करने के लिए आन्दोलन कर रही है।
नाटक की कथावस्तु अधिक यथार्थ स्वाभाविक एवं प्रभावशाली है। इसमें यदि एक ओर शास्त्रीय रूढ़ियों के दर्शन होते हैं तो दूसरी ओर अन्य कथात्मक विशेषताएँ भी परिलक्षित होती हैं। “ध्रुवस्वामिनी की मुख्य समस्या नारी जीवन एवं विवाह से सम्बद्ध है। धर्म शास्त्रों का विरोध प्रसाद ने नहीं किया, पर उन्होंने इस प्रश्न पर आधुनिक दृष्टि डाली है।" प्रस्तुत नाटक में ध्रुवस्वामिनी के व्यक्तित्व को रामगुप्त के क्लीवत्व ने कुण्ठित बना दिया है, यहाँ तक कि वह अपनी पत्नी को शकराज की अंकशायिनी बनाने में भी शर्मिंदगी नहीं महसूस करता है। इस स्थिति में ध्रुवस्वामिनी अपनी रक्षा के लिए तैयार होकर कहती है-
"मैं अपनी रक्षा स्वयं करूँगी। मुझमें रक्त की तरल लालिमा है।" ध्रुवस्वामिनी का दाम्पत्य-जीवन उसके पति की विलासिता एवं क्लीवता से उसका दम घोंट रहा है। ऐसे में वह यह सोचकर कि उसका पति कहलाने वाला पुरुष उसके सम्मान की रक्षा भी नहीं कर सकता और वह विद्रोह कर उठती है। इस विद्रोह में वर्तमान नारी का स्वर गूँज उठता है, जो पुरुषों के अत्याचार के विरुद्ध अपना सिर उठा कर आवाज उठाने में सक्षम बन रही हैं और निरन्तर प्रयास कर रही है। ध्रुवस्वामिनी इसी सन्दर्भ में स्पष्ट रूप से कहती है-"पुरुषों ने स्त्रियों को अपनी पशु-सम्पत्ति समझकर उन पर अत्याचार करने का अभ्यास बना लिया है, वह मेरे साथ नहीं चल सकता।"
ध्रुवस्वामिनी और मंदाकिनी की अपने अधिकारों के प्रति दृढ़ता ही थी, जिसने परिस्थिति को उनके अनुकूल बना दिया। नाटक में प्रस्तुत संघर्ष तत्त्व को वह ही खड़ा रखती है। आधुनिक नारी अपने अधिकारों के लिए अत्यधिक जागरूक हो गई है कि वह अविचारी एवं अयोग्य पुरुष के साथ जीवनयापन द्वारा अपनी अभिलाषाओं को ख़त्म नहीं करना चाहती है बल्कि वह ऐसे पुरुषों से सम्बन्ध तोड़ने की स्थिति पर पहुँच गई है। प्रस्तुत नाटक में जयशंकर प्रसाद जी ने धर्मशास्त्र की पृष्ठभूमि में कुछ परिस्थितियों के मध्य में नारी मोक्ष एवं उसके पुनर्लग्न को सही ठहराया है। यदि पुरुष क्लीव, प्रव्रजित हो या मर गया हो, तो नारी को धर्मशास्त्र के अनुसार क्लीव पति से मोक्ष पाकर पुनर्लग्न का अधिकार है।
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