दूल्हा बनना आसान नहीं गांव में लोग शादी विवाह गर्मी के दिनों में अक्सर करते हैं। कुछ लड़के दूल्हा बनने के नाम पर डरते हैं। कुछ तो हंसी खुशी बनने को
दूल्हा बनना आसान नहीं
गांव में लोग शादी विवाह गर्मी के दिनों में अक्सर करते हैं। कुछ लड़के दूल्हा बनने के नाम पर डरते हैं। कुछ तो हंसी खुशी बनने को तैयार रहते हैं। सचमुच दूल्हा बनना कोई आसान काम नहीं है। पूरा रूप रंग बदलना पड़ता है। ह्रदय पर वज्रपात गिरने के सामान है। जैसे-जैसे दूल्हा बनने के दिन नजदीक आते हैं, धड़कने बढ़ सी जाती है। डर भय अन्त:मन में प्रवेश कर जाता हैं।
अशर्फीलाल के बेटे की शादी तय हो गई है। शादी के दिन बहुत कम रह गए हैं। अशर्फीलाल का बेटा फिरंगी लाल को सरसो का उबटन लगाया जा रहा है। खूब मालिश हो रही है। हल्दी भी लगाई जा रही है। बाहर जाने से रोक लगा दी गई है। कहीं किसी की नजर न लगे। विवशता लाचारी का लबादा पहना दिया गया है। बेचारे की हंसी गायब है। सुस्त हो गए हैं।
नाई आकर दूल्हे का बाल काट रहा है। बार बार आइने में देखकर फिरंगीलाल समझा रहे हैं कि बाल ऐसा काटना कि कोई लड़की या औरत कुछ कह न सके। दो घंटे में बाल काट दिया गया। उनकी बुआ और भाभी ने मेंहदी लगा दी। बाल में डाई लगा कर काला कर दिया गया।
बाजा वाले आ गए। बाजा बज गया। दूल्हे को सजाया जा रहा है। दूल्हे की पोशाक पहना दिया गया है। मुकुट भी लगा दिया गया। काजल भी लगा दिया गया। पैरों में रंग से कलर कर दिया गया है। बाजा बजते ही गांव के लड़को का डांस शुरू हो गया। लड़कियां भी जम कर नाच रही हैं। दूल्हा बेचारा की हंसी गायब है। बगल की भाभी ने कहा।
”देवर जी मुश्कराओ जरा एक तस्वीर लेना है।" भाभी ने दूल्हे की सेल्फी ली। बारात जाने की तैयारी जोरों से हो रही है। घोड़ी भी आ गई है। घोड़ी को सजाया जा रहा है। फिरंगीलाल को घोड़ी पर बैठने का डर सता रहा है कि कहीं घोड़ी बिदक गई तो हाथ पैर न टूट जाए। सरजू का पैर घोड़ी बिदकने से ही टूटा है। आज तक ठीक नही हो सका।
गांव के छुन्नू मुन्नू नये कपड़े पहन लिए हैं। दादा जी कुरता धोती पहन लिए हैं। रामलाल भी नहा धो कर कपड़े पहन रहे हैं कि आज बारात में जाना है। सरसो का तेल बाल में चपोड़ लिए हैं। बड़की अम्मा भी नई-नई साड़ी पहन ली है। लड़कियां भी लहंगा चुनरी पहन कर बारात की शोभा बढ़ा रही हैं। गांव की दुल्हनिया लोग भी सजकर क्रीम पाउडर,लिपिस्टिक लगा कर, आंखो में सुरमा लगाकर तिरछी नजर से बारात के माहौल को परख रही है।
बारात चल दी। फिरंगीलाल को हैदराबादी घोड़ी पर बैठा दिया गया। बाजा बजते ही घोड़ी उछल पड़ी। फिरंगीलाल जमीन पा गिर गए। कोई ठहाका लगा कर हंसा, कोई मुंह दबाकर, बच्चे खिलखिलाकर कर हंस पड़े। किसी तरह दूल्हे को उठाया गया। पैरों में आई चोट से दूल्हे बेचारे की हिम्मत टूट गई। दवा की व्यवस्था की गई।
दूसरी घोड़ी मंगाई गई। यह घोड़ी बाजा बजने पर नहीं उछलेगी। दूल्हे की हिम्मत जवाब दे रही थी कि वह बिन दुल्हन का रह लेगा लेकिन घोड़ी पर नही चढ़ेगा। बहुत लोग आकर कहे लेकिन फिरंगीलाल घोड़ी पर चढ़ने से इंकार कर दिया। पसीने से भीग गए थे फिरंगीलाल।
फिरंगीलाल सोच रहे है कि बड़ी मेहनत से यहां तक पहुंचे हैं। दुल्हन हाथ से निकल न जाए। चार लोग घोड़ी को पकड़े रहे। तब दूल्हे को बैठाया गया। घोड़ी धीरे चल रही है। चार लोग पकड़ रखे हैं कि घोड़ी भड़के न, कहीं बारात को वापिस न होना पड़ जाए। आतिशबाजियां हो रही है। पटाखे फोड़े जा रहे हैं। बडी तेजी से पटाखा फटा। घोड़ी फिर बिदकने वाली थी। जोर से चारो लोग घोड़ी को पकड़े रहे। दूल्हे को लगा कि घोड़ी अब भड़क जायेगी। दूल्हे साहब घोड़ी से कूद गए। अफरा तफरी भरा महौल हो गया।
"क्या हुआ" एक ने चिल्लाया
”कुछ नही भाई, घोड़ी थोड़ा पटाखे की वजह से डर गई। दूल्हे साहब अपने को जोखिम में नही डालना चाहते थे। "दूल्हे जी इसलिए घोड़ी पर से उतर गए।” दूसरे बाराती ने जवाब दिया।
"जल्दी करो दूल्हे साहब, बैठिए देर हो रही है, सही समय पर पहुंचना जरूरी है, घराती लोग इंतजार कर रहे हैं"
एक ने कहा
दो तीन लड़के दूल्हे का हाथ पकड़ कर बैठाने लगे। दूल्हे साहब नही बैठना चाह रहे थे लेकिन दबाव इतना था कि दूल्हे साहब बहुत ही अनमने से घोड़ी की तरफ घूरते हुए देखा। एक बार कदम बढ़ाए फिर ठिठके। चेहरा भय से भर गया था। ह्रदय की धड़कने तीव्रता से बढ़ती जा रही थी। अस्त व्यस्त भरा माहौल। बहुत मनाने के बाद घोड़ी पर दूल्हे राजा बैठ गए। दूल्हे को महसूस हो रहा था आतंक के साए में यह बारात जा रही है। दुल्हन लाना बहुत आसान नही है।
बाजा को रोक दिया गया। आतिशबाजियाँ रोक दी गई कि कहीं घोड़ी भड़कने न पाए। डांस रुक गया। डीजे बजना बंद हो गया। कुछ लड़के न कहा कि बारात में डांस होना चाहिए । बाजा बजना चाहिए। घराती लोग क्या कहेंगे। बारात वाले एकदम कमजोर घर के हैं। बाजा नही बज रहा है। पटाखे नही फोड़े जा रहे हैं। तौहीनी होगी। बेइज्जती हो जायेगी।
कुछ लोग और घोड़ी को पकड़ लिए कि घोड़ी को कंट्रोल किया जाए और डीजे बजने के लिए कह दिया गया। आतिशबाजियां होने लगी। लड़के लड़कियां बूढ़े जवान सब डांस करने लगे। शादी वाला गाना बज रहा था।
आज मेरे यार की शादी है....मस्ती का माहौल।
बारात धीरे-धीरे लड़की के घर की तरफ चल दी। किसी ने मस्ती में घोड़ी को खोद दिया। घोड़ी बड़ी तेजी से भड़की।जितने लोग पकड़े थे। सब घोड़ी को छोड़ दिए। दूल्हे बेचारे फिर गिर गए। घोड़ी वहां से भागी। बहुत तेजी से जा रही है। कुछ लोग घोड़ी को पकड़ने के लिए दौड़े। कुछ लोग दूल्हे को खड़ा कराए। मिट्टी को साफ किया गया। शेरवानी ठीक की गई। मुकुट गिर गया था। पहनाया गया। दूल्हे ने पैदल ही चलना चाहा। हालात देखते हुए सहमति बन गई।
बारात फिर आगे की ओर बढ़ी। दूल्हे राजा पैदल जा रहे हैं। कुछ लोग दूल्हे को पकड़ का डांस की तरफ ले गए। डांस के लिए उकसाने लगे। बहुत अनमने से थोड़ा कमर हिला दी हाथ ऊपर करके। डीजे बज रहा है । पटाखे फोड़े जा रहे हैं। लाइट से जगामग। सारी व्यवस्था ठीक ठाक। बारात पहुंच गई।
दूल्हे साहब एक गिलास पानी पिया। राहत की सांस ली। घोड़ी से जान छूटी।
"जीजाजी बहुत देर कर दी आने में" एक लड़की ने पूछा।
लड़कियों का एक झुंड दूल्हे राजा को घेर लिया था। हंसी मजाक सा माहौल।
"जीजा जी,लिजिए रसगुल्ला खा लीजिए, दीदी ने भेजी है। बहुत बढ़िया बना है। खा लेंगे तो दिल खुश हो जायेगा।" एक लडकी ने रसगुल्ला देते हुए कहा।
दूल्हे जी बहुत ही सहज भाव से उस लड़की को देखा। दांत बड़े-बड़े दिख रहे थे। दूल्हे साहब को महसूस होने लगा कि मेरी होने वाली बीबी की बहन है क्या ? इसके दांत बड़े-बड़े दिख रहे हैं। कही मेरी बीबी के भी तो ऐसे नही है।
दूल्हे; जी को शंका घर कर गई। बार-बार निहार रहे हैं। वह लड़की भी निहार रही है। शरमा भी रही है
"जीजा जी ,रसगुल्ला कैसा है ?" लड़की ने कहा।
"बहुत बढ़िया है... आप जैसा रसगुल्ला है..एकदम मीठा...मुलायम।" दूल्हे ने कहा।
"जीजा जी, काहे मजाक कर रहे हैं...जीजी, हमारी बहुत अच्छी हैं...आप जैसे हैं।" लड़की ने कहा।
"हम सोंचे आप जैसी हैं।" दूल्हे ने अपनी बात बहुत ही सहज मजाक करते हुए रखा।
"वो मेरे मौसी की लड़की है।" लड़की ने कहा।
दूल्हे को पता चल गया कि यह लड़की सगी बहन नहीं है। लड़कियों ने दूल्हे को छेड़ने लगी। कोई दूल्हे के गाल को काट लिया। कोई पीछे अंगुली कर रही है। कोई उनके शेरवानी को खींच रही है।
दूल्हे ने पिताजी के कहने पर शादी कर रहे हैं। दूल्हा लड़की नही देखा है। लड़का संस्कारित है। आज्ञाकारी पुत्र है।
गांव में अभी भी परंपरा है कि लड़का लड़की देखने नही जाता है। मां बाप जहां रिश्ता तय कर देते हैं। वहीं मान लिया जाता है।
किसी तरह से लड़कियों से पीछा छूटा। इतने में औरतों का एक झुंड आ गया। दूल्हे राजा को देखने।
औरतों में फुसफुसाहट हो रही है
"लड़का ठीक नही लग रहा है। उमरदार है।" एक औरत ने कहा।
"कौन सी लड़की ही उतनी ठीक है, जोड़ा सही है दोनो का"
दूसरी ने कहा।
किसी तरह से शादी हो गई। बारात वापस आ गई। लड़की ठीक-ठाक थी।
फिरंगीलाल को दूल्हे से मुक्ति मिली। बारात वापस आ गई। घोड़ी पर से गिरने की याद आ रही है। हंसी भी आ रही है।शादी हो गई।
दुल्हन ठीक ही है। सुंदर है। मेरा और उसक हिसाब किताब ठीक रहेगा। हम दोनो की जोड़ी सही है। ऐसी-ऐसी कल्पना घर पर बैठकर फिरंगीलाल कर रहे हैं।
रात के बारह बज रहे थे जब अपनी पत्नी के रूम में प्रवेश किया। पत्नी जग रही थी। उठकर पति के पैर को छुआ और आशीर्वाद लिया।
पत्नी सोच रही है। आज मेरा सुहागरात है। क्या सोंचेगे जब सब कुछ जान जायेंगे मेरे बारे में। सच्चाई अब तो छुप न पाएगी। हमे धोखेबाज कहेंगे। हमको अपनाएंगे कि नही।
फिरंगीलाल ने अपने पत्नी के हाथों को पकड़ ली और मुश्कराते हुए एक किस किया।
"कैसी हो" पति ने पूछा
"ठीक हूं, आज व्रत हूं," पत्नी ने कहा।
"आज व्रत हो....! भगवान की बहुत भक्त लगती हो"
"भोलेबाबा की व्रत हूं आज"
फिरंगीलाल अपने पत्नी को बाहों में भर ली। चूमने लगा। पत्नी पति के इस भाव को देख कर कहा।
"आज नही, आज तो व्रत हूं। आज सो जाओ, थक गई हूं "
पत्नी की बात मानते हुए। पति महोदय प्रेम प्रदर्शन पर रोक लगा दी। रात बात करते गए। अपने-अपने बारे में एक दूसरे को बताते रह गए। कब नींद आ गई। पता ही नही चला। सुबह हो गई।
किसी ने दरवाजा खटखटाया। हड़बड़ा कर दोनो उठे। अस्त व्यस्त कपड़े ठीक किए। पत्नी ने राहत की सांस ली।
आज तो रात गुजार गई। कितने दिन बेवकूफ बनाऊंगी। ज्यादा दिन तो बना नहीं पाऊंगी। एक दिन तो परदा उठ ही जायेगा। दूसरी रात आने को है। पति बेताब है।
प्रेम मिलन होना चाहिए। प्रेम मिलाप पति पत्नी के रिश्ते की मजबूती का आधार है। जहां इस तरह का प्रेम बना रहता है वहां कलह नही होता है। परिवार में स्नेह पारदर्शी रहता है। पति पत्नी का भरोसा कायम रहता है। अस्तित्व जीवन पर्यंत बना रहता है।
रात के दस बजे पति का प्रवेश। पत्नी अर्धनिद्रा में थी। पति के प्रवेश करते ही उठ गई। दोनो एक दूसरे का हालचाल पूछा।
"आज तो व्रत नही हो" पति ने पूछा।
"नही, आज नहीं हूं।" पत्नी कुछ दबे स्वर में बोली।
"आज रात अपनी है।" पति ने कहा।
"एक बात कहूं, मां ने कहा है। शादी के व्रत के बाद कथा सुनना चाहिए। तब आगे सोचना ठीक रहेगा। कल कथा सुन लीजिए मेरे साथ फिर सारी रात अपनी ही रहेगी।" एक ही सांस में पत्नी ने बात कही।
"तो, आज फिर रुकना पड़ेगा....ठीक है।" पति ने धीमे से कहा फिर दोनो बिना सुहागरात मनाए सो गए।
दो दिन बीत गए। शारीरिक प्रेम प्रदर्शन दोनो नही कर सके। मन में प्रेम का बहाव तीव्र है। व्रत ने प्रेम की प्रवाह को रोक दिया है। पत्नी को अपने विषय में सोच-सोच कर अंदर से दुखी है।
पत्नी चाह रही है कि सारी बात बता देना ही ठीक रहेगा अगर बता दूंगी तो भरोसा एक दूसरे के प्रति बनेगा। जीवन मेरा अंधेरे में नही रहेगा। ईश्वर ने मुझे ऐसा क्यों बना दिया। जब मातृत्व सुख जैसी अभिलाषा हम नहीं रख सकते तो इस कटु जिंदगी से बेहतर है मर जाना ही उचित था।
जिस जीवन का महत्व नही है। समाज स्वीकार नहीं करता है। वह जिंदगी एक खतरनाक घड़ियाल से कम नही होता है। कथा भी सुन लिया गया। आज क्या बहाना करेगी। तमाम चीजे सोच कर उसके आंखो में आंसू टपक पड़े।
फिर रात आ टपकी। अंधेरी रात थी। सुनसान सा वातावरण हो चुका था। कुत्ते भौंक रहे थे। भयानक हालात पर आज फिरंगीलाल की पत्नी सोच रही है कि इसी तरह काली अंधेरी रात की तरह मेरी जिंदगी होने जा रही है। पति को जैसे ही पता चलेगा कि मैं जिंदगी में कभी मां नही बन पाऊंगी तो मेरे पति पर क्या गुजरेगी। उसके जीवन की खुशी, पत्नी सुख भी वह नही प्राप्त कर पाएगा।
तीसरी रात फिरंगीलाल किसी काम से बाहर चला गया। वह फोन करके बता दिया कि आज रात किसी काम से बाहर रहेगा। पत्नी आज घर में अकेले है। पति बाहर है। आज की रात भी कट जाएगी लेकिन कितने दिन तक बकरे की मां खैर मनाएगी।
एक चुभन कांटे से भी खतरनाक मन को बेध रहा है। उलझन है। विवशता है। संदेह का ज्वर है जैसे ही पति को पता चलेगा। किसी मौत से कम नहीं ज्वर होगा। गीत भी कंठ से नही निकल रहा है।
रात भर ली करवटें। नही आई नींद। आंखे टकटकी लगाए कमरे के अंदर की चीजे को देखती रह गई। बेडरूम सजा है। अच्छा खूबसूरत सजावट किसी का भी मन मोह ले सकता है लेकिन फिरंगीलाल की पत्नी के ऊपर इन सजावटी चीजों का कोई असर नहीं। कंटक जैसी सैया लग रही थी।
रात में मोबाइल की घंटी बजी। सकपका कर उठी देखा कि पति का फोन, उसने फोन उठाया। पति की तरफ से आवाज आई।
"हेलो, जग रही हो, नींद नहीं आ रही है "
"जी, नहीं आ रही है।" पत्नी डरी सी आवाज में बोली।
"अच्छा सो जाओ, दोपहर तक आ जाऊंगा।" पति ने कहा।
पत्नी मोबाइल हाथ में लिए कुछ देर तक शून्य सी हो गई।
सोच रही है। दोपहर तक आ जायेंगे। कोशिश किया सोने की, नींद नहीं आई। जागते-जागते सुबह हो गई। परिवार के लोग जग गए थे।
कौवा कांव-कांव करने लगा था। कोयल बोलने लगी थी। चिड़िया द्वार पर फुदक रही थी। मंदिरो में भक्ति के गीत बज रहे थे। सूर्य की प्रथम किरण धरा पर उतर चुकी थी। खुशनुमा माहौल था। बच्चे उछलने कूदने लगे थे। खेतों में पानी जा रहा था। किसान खेती बाड़ी में लग गए थे। जानवरो को चारा पानी दिया जा रहा है। बड़की अम्मा जोर- जोर से बतिया रही हैं।
"अरे बहू , कहां हो, चाय पिया कि नहीं।" बड़की अम्मा ने कहा।
"पी लेती हूं,अम्मा।" बहू ने बरामदे में आकर धीरे से कहा।
"बहू कुछ उदास लग रही हो, ओह, आज तेरा दूल्हा तो बाहर गया है इसलिए उदास लग रही है।" बड़की अम्मा मजाक करते हुए बोली।
घर में सब लोग हंसने लगे। बहू भी मुस्करा कर नजरे नीचे कर ली।
"बहू अगले साल तक पोता चाहिए, घर में कोई लल्ला नही हैं इसलिए भगवान से प्रार्थना कर रही हूं कि तेरी गोद जल्दी हरी भरी हो जाए।"
सब लोग खुश नजर आ रहे थे। बड़की अम्मा खुले विचारों की महिला हैं। पड़ोस की है। हंसी मजाक अक्सर नई नवेली लड़कियों बहुओं से करती रहती हैं। आसपास में काफी लोकप्रिय हैं।
बहू को समझाते हुए बड़की अम्मा कह रही हैं।
"पति का ध्यान रखना, पति परमेश्वर है तुम्हारा।"
बहू शरमा कर घर के अंदर चली गई। बड़की अम्मा को अगले साल तक पोता चाहिए। पोता..पोता। बहू का हृदय की गति तीव्र हो गई। पोता कैसे होगा। बहू केवल उस घर में जानती है। वह मां नहीं बन पाएगी। किसी तरह से पोता चाहिए, नही तो ताना मिलना चालू रहेगा। पति को मेरी सच्चाई का पता चलेगा तो हमे छोड़ेगा नही अर्थात तलाक दे देगा।
मन में वेदना का स्वर, ह्रदय में तीव्रता का प्रवाह, निगोडी रात आ गई। सब लोग खाना खा कर अपने-अपने कमरे में चले गए। बहू भी अपने कमरे में चली गई। तभी फिरंगीलाल मस्ती में प्रवेश किया। सकपका कर बहू उठ गई। फिरंगीलाल कपड़े उतारते हुए अपनी पत्नी से एक ग्लास पानी मांगा।
बहू उठ कर एक गिलास पानी लाकर दिया। पानी पीते वक्त फिरंगीलाल ने पत्नी को बताया कि जिस घोड़ी पर बैठ कर तुम्हारे यहां गए थे वह घोड़ी भड़की जा रही थी। दो बार मैं गिर गया था फिर पैदल ही चलना पड़ा था। कोई मुझे दुबारा दूल्हा बनने के लिए कहेगा। मैं कभी नही बनूंगा। दूल्हा बनना आसान नहीं है। झेलना पड़ता है। हमारा बस चलता तो शादी ही नही करता। घोड़ी पर चढ़ना अच्छा नही लगता है। एक बार एक लड़के की घोड़ी भड़क गई थी। दूल्हा गिर गया था। उसका पैर ही टूट गया था।
घोड़ी पर से गिरने की बात से बहू खिलखिलाकर हंसी। ठहाका लगाया। बहू बोली.."अगर मैं मर गई तब।"
"तब भी नही करूंगा। कह दिया घोड़ी दुबारा नहीं चढ़ूंगा।"
"अकेले जिंदगी काट लोगे।” बहू पति के विचारों को टटोल रही है।
"मर्द हूं, काट लूंगा अकेले ही जिंदगी" पति थोड़ा तेज आवाज में बोला और पत्नी को बाहों में भर ली और प्रेम आलिंगन करने लगा। पत्नी बाहों से निकलने के लिए छटपटा रही है जैसे बिना पानी के मछली। बाहों से छुड़ा कर कुछ दूर जाकर पत्नी खड़ी हो गई।
"सुना हूं लोग पत्नी को बच्चा न होने पर पत्नी को छोड़ देते हैं अगर मुझे बच्चा न हुआ तो क्या आप हमको भी छोड़ देंगे।" पत्नी ने धीमे आवाज में पति से पूछा।
पत्नी अपने पति के विचारो को जानना समझना चाहती है कि इस तरह से तरह-तरह के सवाल पूछ रही है।
"क्या तुम बहकी-बहकी बात कर रही हो ? किस्मत की बात है। किस्मत में बच्चा लिखा है तो होगा। नही लिखा होगा नही होगा। नही होगा तब भी हमारे प्यार में कोई कमी नही आयेगी पगली। डर मत प्यार करो।" इतना कह कर फिरंगीलाल पत्नी को पकड़ कर पुन: बाहों में भरकर चूमने लगा। पत्नी असहाय सी खड़ी रही।
फिरंगीलाल आज अपनी सुहागरात मनाना चाह रहा है। कई दिन शादी के बीत गए लेकिन सुहागरात अभी नसीब नहीं हुआ । पत्नी की अदब करता है। पत्नी की भावना का सम्मान करता है इसलिए पत्नी के कहने पर सुहागरात नही मनाया।
फिरंगीलाल एक संस्कारी युवक है। संस्कार में बंधा है। संस्कार जीवन का मुख्य बिंदु है। संस्कार रहित जीवन एक गेंहू में लगे घुन की तरह है जो व्यक्ति के जीवन को धीमे धीमे खा जाता है। संस्कार के कारण व्यक्ति रिश्तों को बचा लेता है। संस्कार विहीन व्यक्ति रिश्तों को बचाने में कामयाब नही होता है।
आधुनिक युग में लड़का अपनी पसंद की ही शादी करता है। खुद लड़की देखता है लेकिन फिरंगीलाल इस तरह का लड़का नही है। अपनी शादी अपनी मर्जी से नही किया है।पिताजी का सम्मान करना उसके मन की बात है। इस तरह से जिस लड़की का दामन थामा है वह पिताजी की मर्जी के अनुसार शादी किया है।
फिरंगीलाल का कहना है कि शादी करना कोई आसान खेल नही है। दूल्हा बनना आसान नहीं है। इस तरह से सोंचता है। दूल्हा बनने के बाद जीवनसंगिनी के साथ-साथ जीवन गुजारना होता है। पति धर्म का निर्वाह करना पड़ता है। पत्नी का जीवन अपना जीवन मानकर जीना पड़ता है। सुख-दुख को अपनाना पड़ता है।
फिरंगीलाल की पत्नी भी सहज सरल स्वभाव की है। वह पति से सच्चा प्रेम करती है। उसके आंतरिक शारीरिक बनावट के कारण सुहागरात को न मनाने का बहाना कर कई दिन टरका दिया लेकिन वह भयभीत है कभी तो उसका पति उसके आंतरिक कमी को जान जायेगा।
”सच कहूं , मैं कभी भी मां नही बन पाऊंगी" फिरंगीलाल की पत्नी ने कहा।
"क्यों नही बन सकती मां ?” गंभीर होकर पति बोला।
"मैं एक गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गई थी। गर्भाशय का आपरेशन कर निकाल दिया गया और अब ऑपरेशन के कारण मैं अपनी स्त्रीत्व को खो चुकी हूं। " पत्नी कहती हुई रुहांसी हो गई।
सारी बातें सुनकर फिरंगीलाल खामोश हो गया। धीरे से पति ने पत्नी को बाहों में लेते हुए कहा.."पगली, दिल छोटा मत कर ....दूल्हा बनना आसान नहीं है। तुम चाहे जैसी हो रखना मुझे मंजूर है.. दुबारा दूल्हा बनना नहीं मंज़ूर है।"
पत्नी पति की बात सुनकर उसे महसूस हो गया है कि अब उसका पति उसको नहीं छोड़ेगा। पत्नी खुश हो गई और अपने पति को सच्चा प्रेम करने की इजाजत दे दी।
फिरंगीलाल को पता चल गया कि पत्नी ऑपरेशन के बाद अब थर्डजेंडर है लेकिन पत्नी से किए वादे को वह तोड़ना नही चाहता है। वह एक अपना नसीब मान लेता है। दोनो खुशी-खुशी एक दूसरे के बाहों में हो लिए और प्रेम आलिंगन करने लगे।
- जयचन्द प्रजापति ’जय’
पता...जैतापुर,हंडिया,प्रयागराज, यूपी..221503
मो..7880438226
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