एक खोटे सिक्के की आत्मकथा पर हिंदी निबंध मैं एक खोटा सिक्का हूँ। मेरा जन्म धोखे और लालच की दुनिया में हुआ था। जहाँ असली सिक्कों की चमक से प्रेरित होकर
एक खोटे सिक्के की आत्मकथा पर हिंदी निबंध
मैं एक खोटा सिक्का हूँ। मेरा जन्म धोखे और लालच की दुनिया में हुआ था। जहाँ असली सिक्कों की चमक से प्रेरित होकर, मुझे बनाया गया था, परंतु मेरे अंदर की धातु नकली थी।
अंधेरे कमरे में, चोरों के गिरोह ने मुझे जन्म दिया। गर्म धातु से ढाला गया, मैं चमकदार और असली सिक्के की तरह दिखने लगा। मेरे अंदर की धातु भले ही नकली थी, परंतु बाहर की चमक ने मुझे असली समझने में लोगों को धोखा दिया।बाज़ार में प्रवेश करते ही, मैं असली सिक्कों के बीच मिल गया। धीरे-धीरे लोगों के हाथों से गुज़रते हुए, मैंने जीवन की सच्चाईयों को जाना।
अरे, प्रियबन्धु । तुम मेरे पीछे क्यों पड़ गये हो कि मै तुम्हें अपनी आपबीती बतलाऊँ । अरे, जो स्वयं खोटा है, उसका सब कुछ खोटा ही तो होगा। साथ ही तुम्हें यह भी समझना चाहिए कि अपने अतीत को याद करने से सुख कम और दुःख ज्यादा होता है। सब का बचपन एक सा ही होता है। सुखी, सम्पन्न, चिन्तारहित और साथियों के साथ मस्त, बेपरवाह और आनन्द मग्न, बचपन और सुख के दिनों की याद आनें पर प्रायः सबको कष्ट होता है। आप ऐसे ही हैं कि बार-बार एक ही रट लगा रखी है कि मैं अपनी आत्मकथा बतलाऊँ ।
अपनी कहानी और वह भी अपनी जबानी कहने में ही कुछ लज्जा आती है। बड़े लोग तो इस काम से निरंतर कतराते रहते हैं। जो छोटे लोग हैं, उन्हें भी अपनी कहानी कहने में बड़ा कष्ट होता है। अतः यदि आप अपना हठ छोड़कर मुझे अपने भाग्य व भगवान पर छोड़ देते तो बहुत अच्छा होता। मैं आप से हाथ जोड़कर विनम्र प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे अकेले छोड़ दीजिए और अपने पाप का प्रायश्चित करने दीजिए। किन्तु आप भी ऐसे हैं जो अपने बटुवे में मुझे जगह दिये हुए हैं और समय-समय पर मुझे किसी दूसरे के हाथ देने की कोशिश करते रहते हैं।
इतना ही नहीं, मेरे खोटे भाग्य के कारण आपको कभी-कभी उल्टी-सीधी बातें सुननी पड़ती हैं। कल जब आप ने मुझे दूकानदार को दिया था तो उसने मुझे खूब ध्यान से देखा था और अनुभवी होने के कारण पहचान भी लिया था कि मैं भाग्य का मारा खोटा सिक्का हूँ। अपने मूल्य और अस्मिता को अपने से अलग कर दुर्भाग्य का जीवन जी रहा हूँ तथा अपने स्वामी के बटुवे में पड़ा अपने भाइयों के साथ रहते हुए भी लज्जा व ग्लानि का बोध कर रहा हूँ। उस दूकानदार ने भी आपको मुझे फेंक देने की राय दी थी और आप हैं कि मुझे अपने साथ रखते हैं।
उस दिन कई लोगों के बीच मेरे कारण आपकी बेइज्जती हो गई थी जब आपने तमोली को मुझे देकर आगे बढ़ गये थे। वह तमोली मुझे देखते ही गाली देने लगा, भले वह गाली आप नहीं सुने, किन्तु मैंने तो सुना और उसने आपको पीछे से बुलाकर अपमानजनक शब्द कहता हुआ लौटा दिया था। उस समय आपके मन में मेरे प्रति घृणा जरूर पैदा हुई होगी, फिर आपने धैर्य से मुझे अपने बटुवे में मेरे किसी दूसरे भाई के साथ रख दी थी। आखिर इतना अपमान आप क्यों सहन कर रहे हैं? मेरी आत्मकथा सुनने के लिए सह रहे हैं अथवा मुझे गंगा नदी के किनारे स्नान-ध्यान के बाद पड़ा हुआ पाकर माँ का वरदान समझकर सह रहे हैं ? आखिर आपका अपना रहस्य क्या है ?
अच्छा आप मुझे माँ का आशीर्वाद समझकर अपने बटुवे में रखते हैं तब फिर दूसरों को देना क्यों चाहते हैं? अपनी हँसी कराने के लिए या मेरा अपमान कराने के लिए ? अब मैं समझ गया कि आप एक सच्चे पारखी हैं व जिज्ञासु भी । तो सुनिये मेरी आत्मकथा ।
“मैं भी टकसाल से अपने अन्य भाइयों के साथ चमकता हुआ और अपने पूर्ण नवयौवन से भरपूर निकला था। वहाँ से निकलकर सीधे एक बड़े भवन में लाया गया और अपने अन्य भाइयों के साथ एक सुन्दर कागज में बहुत दिनों तक पड़ा रहा। एक दिन अपने ही जाति-भाइयों के साथ मैं बैंक के एक छोटे काउण्टर पर रखा गया। एक धर्मनिष्ठ सेठ ने मेरे कई भाइयों के साथ मुझे भी अपने घर लाया। धीरे-धीरे मेरे कई भाई मुझसे बिछुड़ते गये और मैं अकेला उस सेठ के साथ उसके बटुवे के एक कोने में पड़ा तीर्थों का भ्रमण कर बनारस में काशी विश्वनाथजी का भी दर्शन किया। सेठ चाह रहा था कि वह मुझे बाबा विश्वनाथजी के पास रख दे, किन्तु वह स्थान मेरे किसी दूसरे भाई को मिला। सेठ मुझे लेकर गंगा स्नान करने दूसरे दिन गया। वहाँ जब उसे जरूरत पड़ी उसने अपने बटुवे से कुछ पैसे निकाले । मैं भी उसमें एक था। सेठ ने मुझे भी गंगा मैया को समर्पित कर दिया। मैं माँ के उस पवित्र जल में बहुत दिनों तक पड़ा रहा। "
"एक बार भयंकर बाढ़ आई और गंगा माँ ने मुझे लाकर शिव मन्दिर के पास छोड़ दिया। मैं वहीं मन्दिर के भक्तों के साथ शिव भक्त हो गया। बालू व मिट्टी में रहने के कारण मैं अपना पहला रूप खो चुका हूँ। अब मन में सिर्फ शिव भक्ति समाई है। आप भी शिव भक्त हैं। अतः मैं आपके पास हूँ। आप चाहे जो करें। यही हमारी राम कहानी है। मै एक रूपये का सिक्का हूँ। आज लोग मुझे खोटा सिक्का कहते हैं, किन्तु मैं जिसके पास रहा वह कभी खोटा नहीं रहा। आप भी नहीं हैं।
मेरी कहानी केवल एक कल्पना नहीं है, यह उन सभी लोगों के लिए एक सबक है जो गलत तरीकों से धन प्राप्त करना चाहते हैं। यह एक चेतावनी है कि लालच और छल का रास्ता हमेशा विनाश की ओर ले जाता है।
ईमानदारी और सच्चाई ही जीवन के सच्चे मूल्य हैं। हमें हमेशा सही रास्ते पर चलना चाहिए, चाहे वो कितना भी मुश्किल क्यों न हो।
COMMENTS