मलबे का मालिक कहानी की समीक्षा मोहन राकेश मलबे का मालिक कहानी का सारांश शीर्षक की सार्थकता मलबे का मालिक कहानी का उद्देश्य मूल संवेदना प्रासंगिकता
मलबे का मालिक कहानी की समीक्षा | मोहन राकेश
मलबे का मालिक मोहन राकेश द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध हिंदी कहानी है। यह कहानी भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान हुए दंगों और उनके विनाशकारी प्रभावों पर आधारित है।
यह कहानी विभाजन के दर्द और पीड़ा को बखूबी दर्शाती है। यह दिखाती है कि कैसे विभाजन ने लोगों को न केवल उनके घरों और परिवारों से, बल्कि उनकी पहचान और गरिमा से भी वंचित कर दिया।
कहानी में गनी मियां का चरित्र विभाजन के शिकार लोगों का प्रतीक है। वह एक टूटा हुआ और हताश व्यक्ति है, जो अपने अतीत की यादों में जी रहा है।
मलबे का मालिक एक मार्मिक कहानी है जो पाठकों को विभाजन के दौरान हुए दर्द और पीड़ा को समझने में मदद करती है। यह कहानी हमें मानवीय रिश्तों की मजबूती और स्मृतियों की शक्ति के बारे में भी याद दिलाती है।
मलबे का मालिक कहानी का सारांश
मलवे का मालिक मोहन राकेश की नई कहानियों में से एक प्रमुख कहानी है। यह कहानी मोहन राकेश के संघर्षों को भी मनोभाव के साथ प्रकट करती है। मलबे का मालिक कहानी भारत विभाजन की घटना से सम्बन्धित है। अगर ध्यान से देखा जाय, तो पता चलेगा कि मोहन राकेश का जीवन स्वयं लाहौर में बीता है। विभाजन की त्रासदी इसीलिए उनके कहानियों में गहराई से उतरती चली गयी है। इसका कारण है कि उन्होंने उन परिस्थितियों को देखा और स्वयं भोगा भी है। व्यक्ति जहाँ जिस हालात में रहा हो और अपनी आँखों से हर परिस्थितियों का अंकन किया हो, वह भी बड़ी मार्मिकता के साथ, तब रचना के दौरान उस चीज का उतर आना स्वाभाविक है।
कहानी की शुरुआत हॉकी के मैच को लेकर होती है। मैच भारत में होनेवाला है। इसलिए पाकिस्तान से बहुत से मुसलमान लोग वापस भारत आये हैं। वापस तो आये हैं, परन्तु नये होकर नहीं, वही पुराने होकर और पुरानी यादों के साथ साम्प्रदायिकता की लहर में लोग पाकिस्तान और हिन्दुस्तान जाकर बसे, परन्तु वे अपनी जन्मभूमि का बिछोह साथ ही उससे अलग होने के दर्द को साथ लिये गये। लाहौर से अनेक मुसलमान आज मैच देखने आए हैं। परन्तु यह एक बहाना है कि मैच देखना है। बहुत सारे के अन्दर अपनी मातृभूमि को पास से घूरकर निहारने का मौका मिलेगा। इस घूरकर निहारने में उनके अपनी मातृभूमि का प्यार देखा जा सकता है।
लाहौर से आये अनेक मुसलमान मैच देखने के बहाने जो विभाजन के समय के सात साल बाद हो रहा है, लोग अब अपने मन के अन्दर उठते गिरते दर्द, टीस और गुस्सा को भुलाकर मैच का लुफ्त उठाने आये हैं। परन्तु उनमें से बहुतेरे ऐसे हैं, जो सिर्फ अपनी मातृभूमि को नमन करने और उसे छूने के वास्ते इधर को शिरकत किये हैं। उन्हीं में एक गरीब मुसलमान गनी भी है। आज के समय में उसका घर जो एक शानदार घर था, एक मलबे में तब्दील हो गया है। बचा है, तो सिर्फ राख-राख धूल-कण। साम्प्रदायिकता की आग में एक हिन्दू पहलवान द्वारा गनी का बेटा चिराग़दीन और उसके बीबी बच्चे सब मारे जाते हैं। गनी उसी रक्खे पहलवान से अपना दुखड़ा रोता है, बेटे की याद उसे रुला देती है। वह मुसलमान गनी इतना भोला है कि उसे इतना भी पता नहीं कि रक्खा ही उसके बेटे और उसके अपने परिवार का कातिल है। जिससे वह इतनी हमदर्दी जताकर-जताकर मिल रहा है, उसने ही उसके एक हँसते-खेलते परिवार को काट डाला था। परन्तु जब गनी वापस लाहौर आता है और अपने घर-बार को देखता है, तो गाँव-मुहल्ले के लोग सशंकित और भयाकुल हैं कि आज शायद फिर से कोई बारदात दुहराई न जाय। क्योंकि जब गनी को मालूम होगा कि रक्खा पहलवान ही उसके परिवार का हत्यारा है, तो वह भी वैसा ही करेगा। किसी को भी उसके (गनी) दिल के भोलेपन का पता ही नहीं है। गनी अपने मकान का मलबा ही देखकर तसल्ली करता है और लौट जाता है। रक्खा गनी के इस अप्रत्याशित व्यवहार से अन्दर से हिल जाता है, परन्तु प्रकट नहीं करता है। अंत में उस मलबे पर बैठा एक कुत्ता रक्खे पर भौंक रहा है।
प्रस्तुत कहानी इस प्रकार साम्प्रदायिकता की आग में बरबाद हुए निर्दोष नागरिकों का प्रतिनिधित्व करती है। मलबे पर बैठा कुत्ता मनुष्य की पशु-प्रवृत्ति के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है। कहानी एक सनसनीपूर्ण वातावरण में घटित होती आगे बढ़ती है। मोहन राकेश की इस कहानी की भाषा भी उस विभाजन के यथार्थ को जीवन्त कर देती है। बहुत ही सधे और सटीक दृश्य को प्रस्तुत करने की कला इस कहानी में दिखाई पड़ती है। इतना यथार्थ रूप उनकी कहानियों में नहीं दिखता, जितना कि मलबे के मालिक में दिखता है । यह कहानी विभाजन की त्रासदी को देखते हुए ऐसी तमाम कहानियों में उनकी एक श्रेष्ठ कहानी है।
मलबे का मालिक कहानी शीर्षक की सार्थकता
मलबे का मालिक कहानी मोहन राकेश के लेखकीय अवलोकन का एक आदर्श उदाहरण है। प्रस्तुत कहानी के शीर्षक में निहित मलबे शब्द से बँटवारे की निरर्थकता और उसके विनाशकारी चरित्र का बयान होता है। गनी मियाँ साढ़े सात साल बाद हॉकी का मैच देखने के बहाने भारत आते हैं, जहाँ वे अपने घर के जले हुए अवशेषों को मलबे के ढेर के रूप में पाते हैं। जिसे हड़पने के लिए रक्खे पहलवान ने जला दिया था। गनी मियाँ उस ढेर को देखकर दुःखी होते हैं। "मलबे में पड़ी चौखट से गनी के सिर के छूते ही भुरभुरे रेशों के साथ एक केंचुआ नीचे गिरता है और अपने छिपने के लिए सुराख खोजता है।” कहानी में ठीक इसके बाद अपने-अपने घरों में छिपे हुए खिड़कियों से झाँक रहे लोगों को लगता है जैसे - "वह मलबा ही गनी को सारी कहानी सुना देगा।”
चूँकि पूरी की पूरी कहानी एक मलबे के मालिकाने के इर्द-गिर्द घूमती है और इसी के माध्यम से लेखक ने अपने संदेश को अभिव्यक्त किया है। अतः कहानी का शीर्षक अत्यन्त सार्थक एवं सटीक है।
मलबे का मालिक कहानी का उद्देश्य मूल संवेदना
मोहन राकेश की कहानी 'मलबे का मालिक' आजादी के बाद की कहानी है। नई कहानी के शुरुआती दौर का प्रतिनिधित्व करनेवाली इस कहानी की विषय वस्तु ही विभाजन की त्रासदी को दिखाना है। एक ऐसी परिस्थिति, जो दो साथ रह रहीं कौमों को राजनैतिक और धार्मिक आधार पर बाँट दिए जाने के दर्द को दर्शाती है। अपने परायेपन को ये इंसान भूलकर खुद मानवीय गलतियों के बीच फँस जाते हैं। 'मलबे का मालिक' में कहानीकार ने गनी मियाँ के हृदय में बसे अपनी मातृभूमि के प्रति आकर्षण को दिखाने का सफल प्रयास किया है। साधारणतः यह कहा जाता रहा है कि अपनी जमीन जायदाद से बेदखल किये जाने और बँटवारा होने पर उन्हें अलग मुल्क प्रदान किये जाने पर मुसलमान लोग ही अत्याचारी और क्रूर दिखाई देते हैं। वे धर्म और जेहाद की बात करते हैं। हिन्दुस्तान की पराजय और पाक जिन्दाबाद के नारे लगाते हैं, परन्तु कुछ ऐसे हिन्दू भी हैं जो इस विभाजन और आन्दोलन बँटवा की बाट जोहते नजर आते हैं। मौका पाकर निरीह की हत्या भी कर देते हैं और अपने आप को बादशाह बना बैठते हैं। कहानी में एक जगह लिखा भी गया है कि हिन्दुओं पर ही उसका दबदबा था, चिराग तो खैर मुसलमान था, उससे रक्खे पहलवान की बादशाहत का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस बादशाहत ने उसके अन्दर लालच पैदा कर दी और निर्दोष चिराग और उसके परिवारवालों की उसने हत्या के लिए उकसाया ।
'मलबे का मालिक में मोहन राकेश हमें यह बताना चाहते हैं कि आखिर उस मलबे का अधिकारी कौन है ? रक्खे पहलवान या गनी मियाँ । परन्तु राजनैतिक प्रवृत्ति ने इंसान की पशुवत प्रवृत्ति को पूरी तरह से उजागर कर दिया। गनी को अपने मकान का मलबा देख कर ही खुशी होती है जबकि रक्खे पहलवान सारी जमीन पर अपना मालिकाना हक जमाने के बावजूद भी गनी मियाँ के आने पर सशंकित दिखाई देता है। यह भी इंसान की एक प्रवृत्ति की तरफ ही ईशारा करती है। दुष्ट मनुष्य की प्रकृति के समान मलबे पर बैठा कुत्ता रक्खे पहलवान की पशु-प्रवृत्ति के प्रतीक रूप में चित्रित हुआ है। वह कुत्ता जो अपने ही जाति के कुत्ते पर भौंकता है, उसी प्रकार रक्खे पहलवान की आन्तरिक कुप्रवृत्ति ही उसे हिला रही है और आज उस पर कुत्ता भोंके जा रहा है। आज का इंसान पशुता की सरहद पार कर गया है। वह जमीनी सरहद पर विश्वास करता है। उसके अन्दर संतोष नहीं बल्कि सामग्री संकलन की वृत्ति आ गयी है जो इंसान के मेल-जोल और भाईचारे के लिए भी खतरनाक है। विभाजन की त्रासदी तो राजनैतिक विसंगति का एक नमूना माना जा सकता है; परन्तु कहानी के अनुसार दिलों का बँटवारा तो अपने अन्दर है, उसे हम क्यों खोते हैं, जिससे अमन चैन लुट जाए और आदमी का आदमीयत से विश्वास उठ जाए। कहानी की एक पंक्ति में इसे महसूस किया जा सकता है - 'रक्खे, उसे तेरा बहुत भरोसा था।'
मलबे का मालिक की प्रासंगिकता पर विचार
मलबे का मालिक मोहन राकेश की एक महत्त्वपूर्ण कहानी है। इस कहानी की मुख्य विषय-वस्तु भारत विभाजन की त्रासदी है। उस भारत के विभाजन की त्रासदी जहाँ हिन्दू और मुसलमान एक साथ रहकर । इस हिन्दुस्तान के नाम को सार्थक करते थे । हिन्दुस्तान शब्द ही हिन्दू और मुसलमान दोनों को एक जगह एकत्रित करता है। दोनों के मिलन से ही हिन्दुस्तान की कल्पना की गयी थी। परन्तु आज वह कल्पना मिथकीय रूप में सामने आती है। हिन्दू को अपना कर्म और देश प्यारा है तो, मुसलमान को कुरान और सरिया । दोनों एक जगह नहीं मिलना चाहते हैं। वे धर्म के नाम पर ही हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की बात करते हैं। जो अभी तक चला आ रहा है। गली-मुहल्ले में हिन्दू और मुस्लिम दो अलग-अलग क़ौमें दिखाई पड़ने लगी है। पहले से ज्यादा अब विभाजन की बात दुहराई जाने लगी है और उसमें तरह-तरह की कमियाँ, नीति और राजनैतिक दाव-पेंच घुमाए जाने लगे हैं। तब से आज के समय में यह कहानी पूरी प्रासंगिकता के साथ वर्तमान समय के सच को उद्घाटित करती है।
मलबे का मालिक कहानी का भावपक्ष एवं कलापक्ष
मलबे का मालिक एक उत्कृष्ट कहानी है जो भावनाओं और कलात्मकता का एक अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करती है। यह कहानी पाठकों को विभाजन के दौरान हुए दर्द और पीड़ा को समझने में मदद करती है, और मानवीय रिश्तों की मजबूती और स्मृतियों की शक्ति के बारे में भी याद दिलाती है।
कहानी का वस्तुगत सौन्दर्य - मोहन राकेश की कहानियाँ आधुनिक समय की होने के कारण नयी संवेदना और चेतना को उजागर करती हैं। उनकी कहानी अपने आप में नये विषयों को चुनकर समाज के समक्ष प्रस्तुत होती है। मलबे का मालिक कहानी में मोहन राकेश ने विभाजन की त्रासदी को समाज के सामने रखा है। विभाजन की विभीषिका कितनी भयानक होती है, जिसमें आम आदमी और सच्चे देश से प्रेम करनेवाला व्यक्ति किस प्रकार अपनी सारी जिन्दगी को और अपने जीवन के आधार को खो देता है। प्रस्तुत कहानी इसी बात को उजागर करती है। विभाजन की भयावहता को यथार्थ रूप देने और उसके अन्दर छुपे गुण-दोषों को निकालने का काम मोहन राकेश अच्छी तरह जानते हैं । यथार्थ को व्यक्त करनेवाली यह कहानी विभाजन के सन्दर्भ को लेकर और अपने अन्दर से समय और परिवेश को आँकने की दृष्टि हमें प्रदान करती है। कहानी हर बार अपने को अर्थात् विभाजन के यथार्थ को उसकी सजीवता के साथ व्यक्त करने की एक नयी कोशिश करती रहती है। मोहन राकेश की कहानियों की उपलब्धि ही काल-सापेक्ष के कारण है और इसी स्तर पर यथार्थ की अभिव्यक्ति के कोण से उठाने पर आज के समाज की विशेष स्थितियाँ उभर आती हैं। इसलिए वे नितांत यथार्थपरक सामाजिक वृष्टि की मर्यादित अनुभूति के आवेग को एक नयी और सहज अभिव्यक्ति प्रदान करती है । कहानी को पढ़ने पर उसकी भाषा का सरलपन और छुपे हुए भाव अपने आप में एक चित्र की भाँति हमारे सामने उपस्थित होने लगता है। कहानी को और सजीव बनाने के लिए मोहन राकेश पशुओं के लिए उनकी आवाज, कुत्ते के भौंकने की आवाज और मनुष्य के मुँह से निकलनेवाली उस समय तत्कालीन आवाज का प्रयोग 'कर' कहानी में और जान डालने का काम करते हैं। कहानी में हिन्दी और उर्दू भाषा का अच्छा-सा मेल है। जो विभाजन के लिए और हिन्दू मुस्लिम के बीच के अन्तर को भी व्यक्त करता है। कहानी अपने भावपक्ष और कलापक्ष दोनों से सर्वोत्तम है। मोहन राकेश की भाषा तत्कालीन यथार्थ को जीवन्त करने में बहुत ही नियंत्रित और सधी हुई दिखाई देती है।
मलबे का मालिक कहानी के प्रमुख पात्र
मलबे का मालिक कहानी में कई प्रभावशाली पात्र हैं जो विभाजन के दौरान हुए विस्थापन और लोगों की पीड़ा को दर्शाते हैं। गनी मियां का चरित्र कहानी का केंद्र बिंदु है और उसकी भावनाएं और अनुभव पाठकों को कहानी से जोड़ते हैं।
गनी मियां का चरित्र चित्रण
कहानी के आधार पर गनी मियाँ के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ है :-
- देशभक्त - गनी मियाँ मुसलमान होते हुए भी अपने देश को भुला नहीं पाया है। वह विभाजन के पहले ही हिन्दुस्तान को छोड़कर चला गया था। परन्तु उसका जाना हिन्दुस्तान से नफरत नहीं थी, उसका अपना काम, अपनी जिम्मेदारी थी। वहाँ जाकर भी वह अपने हिन्दुस्तान में अपना दिल छोड़ गया था। अपने वतन से लगाव उसे बार-बार हिन्दुस्तान वापस आने को कह रहा था। जब विभाजन की बात उसने सुनी तो उसे बड़ा दुःख हुआ। उसके इस दुःख से प्रकट होता है कि वह कितना वतनपरस्त इंसान है।
- मिलनसार - गनी मियाँ के चरित्र में मिलनसारिता भी शामिल है। उसके पाकिस्तान प्रवास ने मिलनसारिता को और बढ़ा दिया है। पाकिस्तान में रहते हुए अपने देश, गाँव, घर को देखने की ललक उसमें बरकरार रहती है। उसके बेटे-बहू और नवासे सब हिन्दुस्तान में ही रहा करते हैं जिसके कारण उसका प्रेम अपनी मातृभूमि के साथ, अपने आस-पास के लोगों के साथ बना रहता है। जब वह हॉकी मैच के बहाने हिन्दुस्तान वापस आता है, तो उसे मनोरी मिलता है। वह देखते ही उसको पहचान जाता है और जल्दी-जल्दी अपना परिचय देता है, जो इस प्रकार है- "साढ़े सात साल पहले तू इतना-सा था', कहकर बुड्ढे ने मुसकराने की कोशिश की।" उसके अन्दर अपने लोगों को देखकर इतनी खुशी होती है कि वह जल्दी से परिचय का क्रम खत्म करके अपने देश-गाँव के लोगों का हालचाल जान लेना चाहता है और जल्दी-जल्दी अपना परिचय भी देना चाहता है।
- बाल-प्रेमी - गनी मियाँ मुसलमान होते हुए भी एक भावुक इंसान है। उसमें बच्चों के प्रति प्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ है। अपने परिवार से दूर करने के कारण उसके भीतर इस प्रकार की भावना अत्यधिक सुदृढ अदिखाई पड़ती है। हिन्दुस्तान वापसी में जब वह अपने गली-मुहल्ले को घूम- घूमकर देख रहा था तब गली से एक बच्चा रोता हुआ बाहर की ओर आ रहा था। उसने उसे पुचकारा और कहा - "इधर आ बेटे, आ इधर । देख तुझे चिज्जी देंगे।" इस वाक्य से उसके दिल में बच्चों के प्रति कितना प्रेम है, अपने आप ही झलक पड़ता है।
- विश्वासी - गनी मियाँ को अपने आस-पास के लोगों पर बहुत विश्वास था । उसका मन पास्ता. जाने को नहीं कर रहा था, पर अपने आप पर और अपने पड़ोसियों पर विश्वास कर वह चला गर । उसे रक्खे पहलवान पर भी अत्यधिक विश्वास था, जबकि रक्खे पहलवान ही उसके परिवारवालों का हत्यारा निकला ।
रक्खा पहलवान का चरित्र चित्रण
कहानी के आधार पर रक्खे पहलवान के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- आततायी और घमण्डी : 'मलबे के मालिक' कहानी में रक्खे पहलवान एक खलनायक- नायक के रूप में है। वह एक नम्बरी आततायी और घमण्डी किस्म का है। कहानी में एक स्थान पर लिखा गया है कि 'पहलवान उन दिनों गली का बादशाह था। हिन्दुओं पर भी उसका दबदबा था, चिराग तो खैर मुसलमान था।” इस वाक्य से ही उसके आतंक का पता चलता है।
- बेरहम इन्सान : विभाजन के समय वह बड़ी बेरहमी से चिरागदीन का कत्ल करता है। साथ ही उसके परिवार में उसकी बीबी और बच्चियों को तो और बेरहमी से मौत के घाट उतार देता है।
- बेखौफ गुण्डा : वह अपने गली का एक बेखौफ गुण्डा ही था। उसका खौफ हिन्दू और मुसलमान दोनों पर बराबर था। तभी तो विभाजन के बाद भी वह चिरागदीन ज़मीन पर कब्जा किये हुए था। उसपर इंसान की तो क्या, जानवरों को भी फटकने नहीं देता था।
- विश्वासघाती : वह विश्वासघाती है। जिस गनी मियाँ ने रक्खे पहलवान पर सबसे ज्यादा भरोसा कर जिस पाकिस्तान का रूख किया था, उस भरोसे को तोड़कर रक्खे पहलवान ने उसके परिवार वालों का ही सफाया कर दिया ।
- लोभी : उसके हृदय में पशु-प्रवृत्ति है, जिसका नाम लोभ है। वह लोभी होने के कारण ही गनी मियाँ के घर को हड़पने के लिए उसके परिवारवालों की हत्या करता है।
- पाशविक प्रवृत्ति : मलबे पर बैठा कुत्ता कहानी के अन्त में रक्खे पहलवान की पशुप्रवृत्ति को ही दर्शाता है। 'कुत्ता' रक्खे पहलवान की विकृत मानसिकता का प्रतीक है। वह बातचीत करने में भी चतुर है। गनी मियाँ से वह ऐसे बात करता है कि वह भी उसका हितैषी ही है, पर उसके अन्दर एक सशंकित चेहरा छुपा हुआ है।
मलबे का मालिक कहानी के प्रश्न उत्तर
प्र।मलबे का मालिक कहानी में मानवीय मूल्यों का विघटन उजागर होता है-स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर : 'मोहन राकेश' द्वारा रचित 'मलबे का मालिक' भारत विभाजन की घटना से सम्बन्धित कहानी है। कहानी की शुरूआत हॉकी के मैच को लेकर होती है। पाकिस्तान से बहुत से मुसलमान हॉकी का मैच देखने के बहाने भारत आये। वे साम्प्रदायिकता की लहर से प्रभावित होकर पाकिस्तान में जाकर बस गये थे, परन्तु उनके मन में अपनी जन्मभूमि के विक्षोभ के साथ-साथ उससे अलग होने का दर्द भी था । उन्हीं में एक गरीब मुसलमान गनी मियाँ थे । उनका घर शानदार था। उनका भरा खुशहाल परिवार था। लेकिन अब उनका घर मलबे में तब्दील हो गया; क्योंकि साम्प्रदायिकता की आग में एक हिन्दू पहलवान रक्खा ने घर पर कब्जा करने के लालच में गनी मियाँ के बेटे चिरागदीन, उसकी बीबी जुबैदा और बेटा-बेटी किश्वर और सुल्ताना की हत्या कर दी। गनी मियाँ रक्खे पहलवान के भरोसे ही अपने परिवार के लोगों को छोड़कर पाकिस्तान गया था।
इस तरह हम देखते हैं कि कुछ मुट्ठी भर लोग धर्म और राजनीतिक चालबाजी के कुचक्र में फँसकर इंसानियत को भूल जाते हैं। कहानी विभाजन की त्रासदी और राजनैतिक विसंगति का एक नमूना है और कहानी में मानवीय मूल्यों का विघटन उजागर हुआ है।
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