पंच परमेश्वर कहानी की समीक्षा मुंशी प्रेमचंद कहानी का सारांश उद्देश्य शीर्षक पात्र चरित्र चित्रण कहानी की भाषा शैली जुम्मन शेख और अलगू चौधरी मित्रता
पंच परमेश्वर कहानी की समीक्षा | मुंशी प्रेमचंद
पंच परमेश्वर प्रेमचन्द की लिखी कहानी है। यह उनकी पहली कहानी है, जो 1916 में लिखी गई थी। पंच परमेश्वर, मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी, ग्रामीण जीवन और पंचायत प्रणाली के कामकाज पर एक गहरी नज़र डालती है। कहानी में, पाँच पंचों की एक पंचायत, गाँव के मुखिया के रूप में कार्य करती है, और विवादों को सुलझाने और न्याय प्रदान करने का दायित्व निभाती है। कहानी विभिन्न मामलों और पंचों द्वारा दिए गए फैसलों का वर्णन करती है, जिसमें अन्याय और भ्रष्टाचार भी शामिल है।
पंच परमेश्वर कहानी का सारांश
जुम्मन शेख और अलगू चौधरी में मित्रता थी। उन दोनों के विचार मेल खाते थे। उनकी मित्रता लेन-देन में साझेदारी की थी। उन दोनों में परस्पर विश्वास था । जुम्मन शेख हज करने गया। अपने घर की देखरेख उसने अलगू पर छोड़ रखी थी। अलगू चौधरी भी ऐसा ही करता था। बचपन से ही उन दोनों में मित्रता थी। जुम्मन के पिता जुमराती ही दोनों के शिक्षक थे। जुम्मन का मान विद्या के कारण होता तो अलगू का सम्मान धन के कारण होता था।
एक बार ऐसी घटना होती है कि दोनों की मित्रता टूटने लगी। जुम्मन की बूढ़ी खाला ने पंचायत बुलायी। उसकी सम्पत्ति जुम्मन को मिलने के बावजूद उसकी सेवा ठीक से नहीं हो रही थी। जुम्मन की बीबी करीमन तीखा बोलती थी "जुम्मन की पत्नी करीमन रोटियों के साथ कड़वी बातों के कुछ तेज-तीखे सालन भी देने लगी। जुम्मन शेख भी निष्ठुर हो गए। अब बेचारी खालाजान को प्राय: नित्य ही ऐसी बातें सुननी पड़ती थीं।"
दूसरी तरफ जुम्मन के अपने तर्क थे 'बुढ़िया न जाने कब तक जिएगी। दो-तीन बीघे ऊसर क्या दे दिया, मानो मोल ले लिया। बघारी दाल के बिना रोटियाँ नहीं उतरतीं। जितना रुपया इसके पेट में झोंक चुके, उतने से तो अब तक गाँव मोल ले लेते।
अलगू पंच बनाए गए। बूढ़ी खाला ने कहा- "बेटा, क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?" अलगू उधेड़बुन में फंस जाता है। "हमारे सोये हुए धर्म, ज्ञान की सारी सम्पत्ति लुट जाए, तो उसे खबर नहीं होती, परन्तु ललकार सुनकर वह सचेत हो जाता है। फिर उससे कोई कह नहीं सकता।" अलगू बार-बार सोचता क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ।
बूढ़ी खाला पंचायत से कहती है-"मुझे न पेट को रोटी मिलती है, न तन का कपड़ा । बेसक बेवा हूँ। कचहरी-दरबार नहीं कर सकती। तुम्हारे सिवा और किसको अपना दुःख सुनाऊँ? तुम लोग जो राह निकाल दो उसी पर चलूँ।"
अलगू चौधरी पंच थे। उन्होंने हिब्बनामा रद्द करने का फैसला दिया। खाला को मिलकियत वापस करने का फैसला दिया। फैसले को सुनकर जुम्मन शेख सन्नाटे में आ जाता है। शीघ्र ही एक दूसरी घटना में जुम्मन शेख को मौका मिलता है। अलगू चौधरी और समझू साहू के बीच पंच बनने का। बटेसर मेले से अलगू चौधरी ने बड़े मजबूत बैल खरीदे थे। एक बैल उसमें से मर जाता है। अब एक बैल को लेकर अलगू क्या करता ? उसने उसे समझू साहू के हाथ बेच दिया। साहू उससे बेगारी लेता था। खूब पिटाई भी करता था। चारा खाने को भरपेट नहीं देता था। सड़क पर बैल गिर पड़ता है। वहीं रात काटनी पड़ती है। लेकिन किसी समय पलक झपक जाने पर किसी ने आंटी से रुपये ही नहीं गायब कर दिए, कई कनस्तर तेल भी नदारत । सहुआइन इन सबके लिए अलगू चौधरी को कोसती है-न निगोड़ा ऐसा कुलच्छनी बैल देता, न जन्म भर की कमाई लुटती ।
अब अलगू चौधरी के बैल का दाम समझू साहू देने से इन्कार कर देता है। गाँव में पंचायत बैठती है। इस बार दृश्य बदल जाता है। अलगू वादी है और जुम्मन पंच ।
जुम्मन शेख के मन में जिम्मेवारी का भाव पैदा होता है। वह बदला लेने की भावना मिटा देता है। जुम्मन सोचता है- "मैं इस वक्त न्याय और धर्म के सर्वोच्च आसन पर बैठा हूँ। मेरे मुँह से इस समय जो कुछ निकलेगा वह देववाणी के सदृश होगा और देववाणी में मेरे मनोविकारों का कदापि समावेश न होना चाहिए। मुझे सत्य से जौ भर भी टलना उचित नहीं ।" अन्त में जुम्मन ने फैसला सुनाया- "अलगू और समझू साहू। समझू साहू को उचित है कि बैल का पूरा दाम दे"- सभी प्रसन्न हुए-'पंच परमेश्वर की जय। '
इसे कहते हैं न्याय ! यह मनुष्य का काम नहीं, पंच में परमेश्वर वास करते हैं। यह उन्हीं की महिमा है। पंच के सामने खोटे को कौन खरा कह सकता है ?
थोड़ी देर बाद जुम्मन अलगू के पास आये। गले मिलकर बोले-“भैया, जब तुमने मेरी पंचायत की तब से मैं तुम्हारा प्राणघातक शत्रु बन गया था। पर आज मुझे ज्ञात हुआ कि पंच के पद पर बैठकर न कोई किसी का दोस्त है, न दुश्मन। न्याय के सिवा उसे और कुछ नहीं सूझता । आज मुझे विश्वास हो गया कि पंच की जुबान से खुदा बोलता है। अलगू रोने लगा। उसकी आँख से निकले इस पानी से दोनों के दिलों का मैल धुल गया। मित्रता की मुरझायी हुई लता फिर हरी हो गयी।
पंच परमेश्वर कहानी का उद्देश्य
'पंच परमेश्वर' प्रेमचंद की प्रारंभिक काल की कहानी होकर भी अत्यन्त कौतूहलवर्द्धक कहानी है। यह समाज में न्याय की भावना का संचार करती है। "पंच परमेश्वर" कहानी एक महत्वपूर्ण कहानी है जो ग्रामीण जीवन और पंचायत प्रणाली के कामकाज की सच्चाई को दर्शाती है। कहानी न्याय और अन्याय के बीच संघर्ष को उजागर करती है, और हमें सिखाती है कि हमें हमेशा न्याय के लिए लड़ना चाहिए।
कुल मिलाकर, "पंच परमेश्वर" कहानी एक अच्छी कहानी है जो हमें समाज की सच्चाई को समझने में मदद करती है।यह कहानी प्रेमचंद की रचनाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, और सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर उनकी गहरी समझ को दर्शाती है।
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