ज्ञानरंजन की कहानी पिता की समीक्षा पिता कहानी ज्ञानरंजन की महत्त्वपूर्ण कहानियों में से एक है। पारिवारिक सम्बन्धों के बदलते स्वरूप को यह कहानी दर्शाता
ज्ञानरंजन की कहानी पिता की समीक्षा
पिता कहानी ज्ञानरंजन की महत्त्वपूर्ण कहानियों में से एक है। पारिवारिक सम्बन्धों के बदलते स्वरूप को यह कहानी दर्शाती है। पुरानी और नई पीढ़ियों के सोच में आए बदलावों का चित्रण करती है। पिता अपने पुत्र के पीढ़ी से तारतम्यता नहीं बैठा पा रहे। वही पुत्र अपने पिता के पीढ़ियों को नहीं समझ पा रहा। "पिता" कहानी एक मध्यमवर्गीय परिवार के पिता के जीवन और उनके बच्चों के साथ संबंधों पर केंद्रित है। यह कहानी पिता के त्याग, स्नेह और समर्पण को दर्शाती है। कहानी में पिता के बूढ़े होने और बच्चों के बड़े होने के साथ उनके बीच संबंधों में बदलाव को भी दर्शाया गया है।
पिता कहानी के पात्र
पिता कहानी के पात्र अच्छी तरह से विकसित किए गए हैं। पात्रों के माध्यम से लेखक ने कहानी का मुख्य विषय और मानवीय भावनाओं को दर्शाया है।
- पिता-मुख्य पात्र जो कि पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर पात्र ।
- पुत्र- यह भी एक महत्त्वपूर्ण पात्र है जो कि आधुनिक पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है।
पिता ज्ञानरंजन कहानी की कथावस्तु सारांश
पिता कहानी के माध्यम से पुरानी और आधुनिक पीढ़ी में अंतर और उनके बीच का द्वंद्व दर्शाया गया है। पुराने सोच वाले पिता को आजकल के परिवेश में ढल पाना मुश्किल हो रहा है। कहानी में पिता अपनी पुरानी परंपरा अपने बच्चों पर थोप भी नहीं रहे। बल्कि उन्हें आधुनिक युग को जीने की बातें कर रहे हैं, पर खुद को उस वातावरण से दूर ही रख रहे हैं।
जैसे कहानी में एक पंक्ति में पिता यह कहते हैं कि- "आप लोग जाइए न भाई, कॉफी हाऊस में बैठिए, झूठी वैनिटी के लिए बेयरा को टिप दीजिए, रहमान के यहाँ डेढ़ रुपए वाले बाल कटाइए, मुझे क्यों घसीटते हैं।"
इस कहानी में किसी भी पीढ़ी को निशाना नहीं बनाया गया है। पिता अपने बच्चों को आधुनिक बनने से नहीं रोकते किन्तु उसमें शामिल नहीं होते और पुत्र पिता को आधुनिक बनाना चाहता है। यह कहानी पिता और पुत्र के बीच दूरी होने के बावजूद उनके बीच एक समझ और द्वंद्व की बात करती है। पिता और पुत्र के मध्य एक प्रेमयुक्त और भावनात्मक दूरी है इसके पश्चात् दोनों एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं। दोनों एक साथ रहने के बावजूद साथ नहीं हो पाते हैं। यह उस दौर और समकालीन दौर में भी प्रासंगिक विडंबना है। पुत्र पिता को सारी सुविधाएँ देना चाहता है और प्रयासरत भी रहता किन्तु उन्हें वह सब नहीं पसंद।
जैसे, कहानी की पंक्ति देखिए- "पिताजी आराम से पंखे के नीचे सोए, गुसलखाने में खूबसूरत शावर में स्नान करें, लड़के द्वारा लाई गई खाद्य सामग्री का स्वाद लें, दिल्ली एम्पोरियम की बढ़िया धोती पहने, किन्तु पिताजी को यह बातें कतई पसंद नहीं।'
पुत्र पिता से बड़े प्यार से कहता है- "मुहल्ले में हम लोगों का सम्मान है, चार भले लोग आया-जाया करते हैं, आपका बाहर चौकीदारों की तरह रात को पहरा देना बड़ा ही भद्दा लगता है।"
पिता अपने पुत्र के वैवाहिक जीवन में कोई खलल न पड़े इस विचार से बाहर सोना पसन्द करते हैं।पिता के लाख मना करने पर पुत्र पिता से हमेशा आग्रह करता रहता है। इस मनाही से उसका हृदय कभी टूटता नहीं। इस कहानी में ज्ञानरंजन जी ने पिता पुत्र के संबंध की वास्तविक पहलुओं को उजागर किया है। दोनों के बीच प्रेम और चिंता करते हैं, पर कभी जाहिर नहीं करते जो कि हर परिवार में विद्यमान है। कहानी में कहीं भी दोनों के संबंध में कोई खटास नहीं दिखी।
पिता कहानी की मूल संवेदना
घर के बूढ़े-बुजुर्ग अपनी बाकी जिंदगी समय बिताने के कार्य में लगा देते हैं। यह सोचकर कि हम तो अपनी जिंदगी जी चुके । "पिता" कहानी एक भावनात्मक और प्रेरणादायक कहानी है। यह कहानी हमें पिता के त्याग, स्नेह और समर्पण का महत्व समझाती है। कहानी हमें अपने माता-पिता का सम्मान करने और उनकी देखभाल करने की प्रेरणा भी देती है।जिसके कारण खुद कष्ट सहते हैं यह हवाला देकर कि हमारे पास समय में नहीं था। तब भी तो जिंदगी बिता दी अब उसके पीछे क्यों भागे। ज्ञानरंजन जी ने दो पीढ़ियों के बीच के आपसी वैमनस्यता दिखा कर दोनों को भावात्मक रूप से एक दिखाया है।
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