प्रश्न पत्र की आत्मकथा पर निबंध Prashan Patra ki Atmakatha essay मैं एक प्रश्नपत्र हूँ, परीक्षाओं की दुनिया का एक अनिवार्य अंग। मेरा जन्म परीक्षकों के
प्रश्न पत्र की आत्मकथा पर निबंध
प्रश्न पत्र की आत्मकथा पर निबंध मैं एक प्रश्नपत्र हूँ, परीक्षाओं की दुनिया का एक अनिवार्य अंग। मेरा जन्म परीक्षकों के मस्तिष्क में होता है, जहाँ वे मेरे अस्तित्व के लिए विचारों को जन्म देते हैं। मेरे पालन-पोषण में अनेक शिक्षक और विद्वान शामिल होते हैं, जो मेरे प्रश्नों को तराशते हैं और उन्हें ज्ञान की कसौटी पर कसते हैं।
परीक्षा और प्रश्नपत्र द्वारा विद्यार्थी की योग्यता का पता चलता है। जो विद्यार्थी इस परीक्षा को पास कर लेता है, वही सफल माना जाता है और जो नहीं कर पाता, वह असफल। परीक्षा के नाम से सभी घबराते हैं।
परीक्षा की तैयारी
सभी विद्यार्थी परीक्षा के आते ही तैयारी शुरू कर देते हैं। पिछले वर्ष के प्रश्नपत्र खोजते हैं। ऐसे ही एक दिन छात्र और छात्राएँ मिलकर पिछले वर्षों के प्रश्नपत्र हल कर रहे थे। अचानक उन्हें उसमें एक प्रश्न कठिन दिखाई दिया। हल करते-करते थक जाने पर उन्होंने गुस्से में उस प्रश्नपत्र को फेंक दिया और प्रश्नपत्र के बारे में अनुचित भाषा का प्रयोग करने लगे। तभी उन्हें कुछ आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने देखा कि आवाज़ प्रश्नपत्र में से आ रही थी। उन्होंने सुनने की कोशिश की। वह प्रश्नपत्र उन बच्चों से कह रहा था कि तुमने मुझे क्यों फेंका ? इसमें मेरा कोई दोष नहीं था, क्योंकि जैसा मुझे अध्यापक बनाते हैं वैसा ही बन जाता हूँ। चलो आज मैं तुम्हें अपनी जीवन यात्रा के बारे में बताता हूँ।
प्रश्न पत्र की जीवन यात्रा
मैं हिंदी का प्रश्नपत्र हूँ। मुझे महात्मा गाँधी स्मारक विद्यालय की अध्यापिका रानी देवी जी ने बनाया था। उन्होंने सबसे पहले मेरी रूपरेखा तैयार की। पहले उन्होंने पच्चीस-तीस प्रश्न तैयार किए। फिर उसमें कुछ सुधार करके अंत में एक साफ़ कागज़ पर सुंदर लिखाई में लिखा गया। इसके बाद मुझे एक लिफ़ाफे में बंद किया और स्पीड पोस्ट द्वारा आई०सी०एस०ई० कार्यालय में भेज दिया। वहाँ से मुझे छपने के लिए एक प्रेस में भेजा गया। वहाँ मुझे अपने कई और साथी भी दिखाई दिए, जिन्होंने मेरा स्वागत किया। मुझे उनको देखकर बहुत खुशी हुई। प्रेस में मुझे और मेरे भाइयों को बहुत ही गोपनीय तरीके से रखा जाता है ताकि कोई हमें देख न सके। मेरे बारे में सिवाय मेरी अध्यापिका के और कोई नहीं जानता।
प्रेस में छपने से पहले भी मुझमें से त्रुटियाँ दूर की जाती हैं, क्योंकि यदि मुझमें कुछ त्रुटि हुई, तो उसका असर छात्रों के ऊपर पड़ेगा। उनका अहित होगा। अंत में मैं छपकर तैयार हो जाता हूँ और मुझे तथा मेरे दूसरे भाइयों को अलग-अलग पैकेट में बंद करके वापस आई०सी०एस०सी० कार्यालय में भेज दिया जाता है। वहाँ से परीक्षा की तिथि के समयानुसार हमें विभिन्न परीक्षा केंद्रों में भेजा जाता है। बच्चो, ज़रा यह सोचो कि इन पैकेटों में बंद हमें कितनी तकलीफ होती होगी। हम ठीक से साँस भी नहीं ले सकते हैं और यह सब हम, आप जैसे छात्रों के लिए सहते हैं। फिर आखिर में हमारे स्वतंत्र होने का दिन आता है, जब परीक्षा केंद्रों पर हमें खोला जाता है और हम खुली हवा में साँस लेते हैं।
प्रश्न पत्र का सम्मान
अब हमें विद्यार्थियों में बाँटा जाता है। इतने दिन तक पैकेटों में साथ रहने के बाद हमें अपने भाइयों से बिछुड़ना पड़ता है। विद्यार्थी हमें प्यार से हाथ में लेकर चूमते हैं तथा माथे से लगाते हैं। उनसे इतना सम्मान पाकर हम अपने-आप को धन्य समझते हैं और गौरव का अनुभव करते हैं, फिर वे हमें पढ़ते हैं। कुछ तो खुशी से झूम उठते हैं और कुछ उदास हो जाते हैं।
अरे यह क्या? एक छात्रा तो मुझे पढ़कर खुशी से झूम रही है क्योंकि जो कुछ मुझमें लिखा था, वह सब पढ़कर आई थी। और एक छात्र मुझे देखकर आँखों में आँसू भर लाया क्योंकि उसने कुछ पढ़ा ही नहीं था। जिनको मेरे सारे प्रश्न आते थे वे खुशी-खुशी लिख रहे थे और मेरी प्रशंसा कर रहे थे। पर कुछ मुझे गालियाँ दे रहे थे। कुछ ने तो मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। ज़रा सोचो, मुझे कितनी पीड़ा हुई होगी।
इसलिए हे विद्यार्थियो! मेरा अपमान करने या टुकड़े करने के स्थान पर तुम लोग पढ़ो, जिससे मेरी यह दशा न हो, क्योंकि मेरा मान-सम्मान तुम्हारे ही हाथों में है और मेरे हाथों में है तुम्हारी योग्यता/अयोग्यता को मापने का मानदंड।
शिक्षा प्रणाली में बदलाव
मेरा भविष्य अनिश्चित है। शिक्षा प्रणाली में बदलाव के साथ, मेरा स्वरूप भी बदल सकता है। हो सकता है कि मैं डिजिटल रूप में आ जाऊं, या फिर कोई नया तरीका आविष्कृत हो जाए।मैं एक प्रश्नपत्र हूँ, ज्ञान और शिक्षा का एक साधन। मैं विद्यार्थियों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हूँ और उन्हें सफलता प्राप्त करने में मदद करता हूँ।
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