तीसरी कसम कहानी की समीक्षा फणीश्वरनाथ रेणु तीसरी कसम फणीश्वरनाथ रेणु की प्रसिद्ध कहानी एक गाँव के गरीब किसान हीरामन और एक नौटंकी कलाकार हीराबाई प्रेम
तीसरी कसम कहानी की समीक्षा | फणीश्वरनाथ रेणु
तीसरी कसम, फणीश्वरनाथ रेणु की प्रसिद्ध कहानी, एक गाँव के गरीब किसान, हीरामन और एक नौटंकी कलाकार, हीराबाई के बीच प्रेम संबंधों पर केंद्रित है। कहानी सामाजिक असमानता, गरीबी और प्रेम की त्रासदी को दर्शाती है। फणीश्वर नाथ रेणु आंचलिक कहानियों के प्रणेता रहे हैं। इन्होंने अपनी कहानियों में एक विशेष अंचल की अपनी निजी छवियाँ और अछवियाँ शक्ति और अशक्ति तथा प्राकृतिक विशेषताओं को उभारा है। अपनी प्रसिद्ध कहानी 'तीसरी कसम' में भी उन्होंने अपनी आंचलिकता को उभारने का प्रयास किया है। 'तीसरी कसम' कहानी की समीक्षा कहानी कला के कहानी कला के प्रमुख तत्व निम्न हैं-
- कथानक अथवा कथावस्तु,
- पात्र अथवा चरित्र-चित्रण,
- संवाद-योजना अथवा कथोपकथन
- देशकाल और वातावरण,
- भाषा-शैली,
- उद्देश्य एवं शीर्षक
कथानक अथवा कथावस्तु
'तीसरी कसम' कहानी में प्रेम की एक गहरी पीड़ा है और सामाजिक परिवेश भी बड़ी जीवन्तता और सुगमता से उसके इर्द-गिर्द बुना हुआ है। इस कहानी का प्रमुख पात्र अथवा नायक हीरामन बैलगाड़ी वाला भोला-भाला बिहारी युवक पहले वह नेपाल से तस्करी का सामान ढोकर भारत में लाता था। एक बार एक सेठ के कपड़े की गाँठें पकड़ी गईं तो उसने रात के अंधेरे में अपने बैलों के साथ भागकर जान बचाई। तब उसने पहली कसम खाई थी कि वह कभी तस्करी का माल नहीं ढोयेगा। इसके बाद हीरामन जानवरों की ढुलाई करने लगा। वह बाँस भी ढोता था। जिसमें उसे बड़ी परेशानी होती थी। एक दिन वह अपनी गाड़ी में बाँस लादकर ले जा रहा था। बाँसों का कुछ हिस्सा आगे और कुछ की ओर निकला था। हीरामन की बैलगाड़ी एक बग्धी से टकरा गई। बग्धी की छतरी टूट जाने पर बग्धी हाँकने वाले ने हीरामन को कोड़े से मारा। उस समय हीरामन ने दूसरी कसम खाई कि अब कभी वह अपनी गाड़ी में बाँस नहीं ढोयेगा। इसके बाद की घटना है कि फारबिसगंज की नौटंकी में नाचने वाली हीराबाई उसकी गाड़ी में सवार हुई और एक अपरिचित सम्बन्ध इसके साथ जुड़ गया। इस बार उसने तीसरी कसम खाई की भाड़ा चाहे कितना भी मिले, ऐसी लदनी फिर नहीं लादूँगा। यह कहानी गाड़ीवान हीरामन और नर्तकी हीराबाई के सरल, स्निग्ध एवं सहज सम्बन्धों की है-फारबिसगंज में मेला लगता है और हीरामन कई बार फरबिसगंज आया है, परन्तु हीराबाई के कारण राह चलते हुए हीरामन ने किसी दूसरे गाड़ीवान को गलत बता दिया कि वह 'छत्तापुर पचीरा' जा रहा है और दूसरी बार दूसरे गाड़ीवानों से कह दिया कि वह 'कुड़मा' 'गाँव' जा रहा है। हीराबाई हैरान होकर कह उठी कि 'छत्तापुर पचीरा' कहाँ है? जिस पर हँसते हँसते हीरामन के पेट में बल पड़ गये। हीरामन के 'तगच्छिया' के पास पहुँचने पर पर्दे वाली गाड़ी को देखकर बच्चे तालियाँ बजाकर गा उठे - "लाली लाली डोलियाँ में 'लाली रे दुलहनियाँ।" हीरामन भी स्वप्नों में दुल्हन को लेकर लौटा है। कई बार और इस बार 'तगच्छिया' गाँव की ही नहीं, किसी दूसरे गाँव की स्मृति भी उसकी नस-नस में समा रही है। 'कजरी नदी' के साथ-साथ उसकी सड़क जा रही हैं और 'परमान नदी' का तो महुआ घटयारिन की लोककथा के सम्बन्ध ही हैं। हीराबाई को कथा सुनने की रुचि को पूरा करने के लिए हीरामन को लीक छोड़कर ननकपुर के रास्ते पर जाना पड़ा। कहानी के अन्त में हीराबाई जब हीरामन से विदा लेती है, तब हीरामन को बहुत दुःख होता है, क्योंकि वह उससे अत्यधिक प्रेम करने लगता है।
श्री फणीश्वरनाथ 'रेणु' ने 'तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम' कहानी का गठन सुव्यवस्थित रूप से किया है, जिससे कहानी सशक्त सगाहा प्रभावशाली और रोचक बन पड़ी है। लेखक ने कहानी में ऐसे विषय का चयन किया है, जो सहज ही पाठक को बाँधने में समर्थ है।
पात्र और चरित्र चित्रण
फणीश्वनाथ रेणु की कहानी 'तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम' कहानी में हीरामन और हीराबाई प्रमुख पात्र हैं। इनके अतिरिक्त धुन्नीराम, पलटदास, लालमोहर गाड़ीवान हैं। हीरामन की भाभी और भाई का भी चरित्र चित्रण किया गया है।
हीरामन गाड़ीवान है। वह पूर्णिया जिले का रहने वाला चालीस साल का हट्टा-कट्ठा, काला-कलूटा देहाती नौजवान अपनी गाड़ी और अपने बैलों के सिवाय दुनिया की किसी और बात में विशेष दिलचस्पी नहीं लेता। हीरामन भाई से बढ़कर भाभी की इज्जत करता है। भाभी से डरता भी है, हीरामन की भी शादी हुई थी, बचपन में ही गौने से पहल की दुल्हिन मर गई। हीरामन को अपनी गाड़ीवानी से बहुत लगाव है, चाहे सब कुछ छूट जाये, गाड़ीवानी नहीं छोड़ सकता हीरामन । उसे इस बार विचित्र अनुभव हुआ। दो बार पहले चोरी का माल और बाँसों की लदनी लादकर जो प्राण फँसे थे, सो बाल-बाल बचा। अब टप्पर में लाद रहा है। हीराबाई को और परदा डालने पर भी उसे पीठ में गुदगुदी-सी लगती है। वह आश्चर्यचकित है कि यह औरत फूल - सी महक रही है, उसकी गँवई बातों, गाँव-गीत, लोककथाओं आदि में इतनी रुचि लेती है और स्वयं उसे 'मीता', 'भैयन', 'गुरुजी' कहती है। इतनी सुन्दर स्त्री कोई डाकिन-पिशचिन नहीं हो सकती है, परन्तु हीरामन का कलेजा धड़कता है लेकिन जब वह उसे देख लेता है कि वह तो अति सुन्दर युवा स्त्री है तो हीरामन मन-ही-मन में उससे प्रेम करने लगता है। हीरामन का एकतरफा प्रेम ही कहानी को बाँधे रखता है।
संवाद योजना अथवा कथोपकथन
श्री फणीश्वरनाथ रेणु बहुचर्चित एवं सुप्रसिद्ध आंचलिक कथाकार हैं। इसीलिए यह स्वाभाविक हो जाता है कि उनकी कहानियों में अंचल विशेष की भाषा का प्रयोग संवादों के अन्तर्गत किया जाये, जिससे उस ग्राम्यांचल में रहने वाले लोगों के जीवन को सरलता से समझा जा सके। इस सन्दर्भ में 'तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम' कहानी से निम्नलिखित उदाहरण दृष्टव्य हैं-
"भय्या तुम्हारा नाम क्या है ?"
"मेरा नाम.... मेरा नाम है हीरामन ।"
“तब तो मीता कहूँगी भैया नहीं मेरा नाम भी हीरा है।"
इस्स! मर्द और औरत के नाम में फर्क होता है। "हाँ जी, मेरा नाम भी हीराबाई है।"
देशकाल तथा वातावरण
श्री फणीश्वरनाथ रेणु उपरोक्त कहानी में बिहार में ग्राम्यांचल के वातावरण का अत्यन्त सूक्ष्मता से चित्रण किया है। रेणुजी ने फारबिसगंज, चम्पानगर तथा खरैहिया ग्राम्यांचलों का चित्रांकन किया है। ग्राम्यांचल में रहने वालों का जीवन कैसा होता है ? गाँव में नौटंकी का मेला लगने पर लोगों के जीवन में परिवर्तन आता है। वहाँ के वातावरण में भी एक विचित्र-सा परिवर्तन आ जाता है, जहाँ नौटंकी का आयोजन होता है उसके आसपास लोगों की चहल-पहल बढ़ जाती है। वहाँ के लोग नौटंकी में नृत्य करने वाली बाई के विषय में भी अनेक प्रकार की ऊलूल-जलूल बातें करने लगते हैं। 'तीसरी कसम' कहानी देशकाल व वातावरण की दृष्टि से विशिष्ट कहानी है। इसमें सामाजिक परिवेश के बीच प्रेम की संवेदना निर्मित की गयी है।
भाषा शैली
कहानी विधा के क्षेत्र में श्री फणीश्वरनाथ रेणु एक महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय कथाकार इसलिए माने जाते हैं, क्योंकि उन्होंने परम्परागत रूढ़ भाषा में अपनी कहानियों की रचना न करके अंचल-विशेष में प्रयुक्त होने वाली भाषा का प्रयोग किया है। यही कारण है कि उनकी कहानियों की भाषा जन-जीवन को तो सूक्ष्मता से रूपायित करती ही है, इसके अतिरिक्त उनकी भाषा यथार्थ के धरातल पर भी अवस्थित है। यही गुण उनकी 'तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम' कहानी में भी परिलक्षित होता है। उनकी आंचलिक भाषा सहज एवं स्वाभाविक होने के साथ-साथ प्रभावशाली, सशक्त तथा सार्थक भी है।
नामकरण एवं उद्देश्य
श्री फणीश्वरनाथ रेणु ने 'तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम' कहानी का नामकरण उसके कथानक के आधार पर किया है। कहानी का नायक हीरामन एक भावुक एवं संवेदनशील व्यक्ति है। उसे यह ज्ञात भी नहीं होता है कि वह किन क्षणों में हीराबाई के प्रति इतना अधिक अनुरक्त हो गया था कि कहानी के अन्त में जब हीराबाई उससे विदा लेती है, तब उसके लिए यह दुःख सहन करना कठिन हो जाता है। इसलिए वह 'तीसरी कसम' इस बात की लेता है कि वह अपनी गाड़ी में किसी नौटंकी की बाई को नहीं बिठायेगा। वस्तुतः कहानीकार ने प्रणय की अत्यन्त सूक्ष्म भावनाओं को आलोच्य कहानी में अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है, जिससे वे पूर्णरूप से सफल रहे हैं।
तीसरी कसम कहानी का प्रकाशन वर्ष
तीसरी कसम कहानी का प्रकाशन वर्ष 1956 था। यह कहानी फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा लिखी गई थी और यह उनकी सबसे प्रसिद्ध कहानियों में से एक है। यह कहानी 1966 में एक फिल्म में भी रूपांतरित हुई थी, जिसमें राज कपूर और वहीदा रहमान ने अभिनय किया था।
"तीसरी कसम" कहानी एक महत्वपूर्ण कहानी है जो ग्रामीण जीवन की सच्चाई और प्रेम, वासना और त्याग जैसे जटिल विषयों को दर्शाती है। कहानी हमें सिखाती है कि प्रेम हमेशा आसान नहीं होता, और कभी-कभी हमें त्याग भी करना पड़ता है।कुल मिलाकर, "तीसरी कसम" कहानी एक अच्छी कहानी है जो हमें समाज की सच्चाई को समझने में मदद करती है।
यह कहानी फणीश्वर नाथ रेणु की रचनाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, और उनकी रचनात्मक प्रतिभा और सामाजिक चेतना को दर्शाती है।
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