आप अपना दर्द मुझे शेयर कर सकते हैं सब ठीक है या 'आल ओके' यह किसी दूसरे से सुन कर हम लोग निश्चित हो जाते हैं कि हमारे आप पास सब कुछ ठीक है। तो हम म
आप अपना दर्द मुझे शेयर कर सकते हैं
सब ठीक है या 'आल ओके' यह किसी दूसरे से सुन कर हम लोग निश्चित हो जाते हैं कि हमारे आप पास सब कुछ ठीक है।
तो हम मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाते हैं लेकिन हमने कभी यह सोचा है कि जिस व्यक्ति ने यह बोला है वह वाकई में ठीक है कभी यह जानने की हम में से किसी ने जहमत उठाई है कि यह सब ठीक कहने वाला अंदर से कितना ठीक है और इसके अंदर मन में क्या चल रहा है किस स्थिति से गुजर रहा है,कितनी चुनौतियों का सामना कर किन- किन परेशानियों से घिरा हुआ है, शायद नहीं......
आज यही सवाल मैंने इस लेख में उठाया है कि हम जब किसी अपने या आस- पास जानने वाले इंसान को देखते हैं और उसका बदला हुआ व्यवहार या बदली हुई स्थिति पे नजर डालते हैं तो कभी-कभी हम शंका की स्थिति में हो जाते हैं और हम उससे पूछ बैठे हैं क्या हुआ आज मिजाज़ कुछ बदला सा लग रहा हैं, कुछ उदास दिख रहे हो क्या सब ठीक है और तब वह सामने वाला शख्स बहुत हल्की मुस्कान देते हुए बोल देता है हां सब कुछ ठीक है तो हम मान लेते हैं कि सब कुछ ठीक है और हंसते-हंसते अपने काम में लग जाते हैं। पर ये जो सब ठीक कहने वाला वाकई ठीक हैं..........प्रश्न अब ये उठता हैं। यह जो 'सब ठीक' है बहुत ही छोटा और पूर्ण मालूम होने वाला शब्द इसके पीछे की अपूर्णता शायद इतना पूर्ण नहीं होती है सब ठीक कहने वाला कभी- कभी पूरी तरह से बिखरा, टूटा, कमजोर और दर्द से भरा होता है वह अपनी व्यथा अपनी पीड़ा अपनी कमजोरी किसी को बताने से कतराता है और यह कहकर चुप हो जाता है कि सब कुछ ठीक है उसे कहीं ना कहीं यह डर सताता है कि यदि उसने अपनी पीड़ा अपना दर्द अपनी स्थिति किसी दूसरे के सामने जिक्र की तो लोग कहीं उसका मजाक या उसकी स्थिति पर हँसने ना लग जाए और उसे कमजोर समझ उसकी स्थिति का समाज में मजाक ना बना दे इसलिए वह अपने चेहरे पर झूठी हंसी लिए चलता रहता है।
आज के आधुनिक समाज में किसी के पास इतना वक़्त नहीं कि वह जानने की कोशिश करें कि फ़्ला व्यक्ति के साथ क्या बीत रहा या क्या गुजर रहा है वह किस स्थिति या समस्या से जूझ रहा है बड़े-बड़े शहरों पर मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने वाले लोग अपने में इस कदर मसरूफ़ हो चुके हैं कि उन्हें कहां किसके साथ क्या घटना घट रह इसकी जानकारी बहुत कम ही होती हैं।
पहले लोग आपस में बैठ कर बातें करते थे जिससे आधे दर्द, आधी समस्या का कहां समाधान हाथों- हाथ हो जाता था पता ही नहीं चलता था।
एक दूसरे के सुख-दुख के सहभागी हुआ करते थे, किसी के घर में क्या चल रहा है और थोड़ी बहुत जानकारी रहती थी अब तो आमने-सामने फ्लैट में कौन रहता है और कौन नहीं रहता है यह बहुत कम लोगों को जानकारी होती होगी बस अपने काम से कम रखना आज के आधुनिक समाज का यह रिवाज़ हो गया है। माना कि अपने काम से कम रखना ठीक है पर किस हद, यह माना कि बिना इजाज़त हमको किसी के जीवन में या घर में दखलअंदाजी करना या उसके जीवन में ताकत झांकी करना ठीक बात नहीं है फिर भी यदि कोई हमारे आसपास रहता है और हम उसके व्यवहार में कुछ बदलाव देखते हैं या कुछ ऐसा अनएक्सपेक्टेड चीज देखते हैं तो क्या हमको उसके बारे में जानने और वो क्या महसूस कर रहा हैं हमारा फर्ज नहीं बनता कि हम उसके पास जाएं उससे बात करें कि वह किस मजबूरी किस दुविधा किस परेशानी या पीड़ा से गुजर रहा वह हँसता मुस्कुराता चेहरा अचानक से खामोश क्यों हो गया है।
इसके पीछे का क्या कारण है .....उस वक्त़ हम- आप जो भी उसे व्यक्ति के यदि आसपास रहता या काम करता हैं तो हमें उसके पास एक पड़ोसी एक दोस्त या एक सामान्य व्यक्ति के रूप में जाना चाहिए और जाकर उसके पास बात करनी चाहिए उस व्यक्ति को शायद हमारी सहानुभूति की सबसे ज्यादा आवश्यकता हो तब हमारा उसकी सहायता करना एक सामान्य व्यक्ति की तरह होना चाहिए।
देखा जाए तो आज परिवार के सदस्य ही अपनो के जीवन में क्या चल रहा है नहीं पता होता है कितनी बार हम सब ठीक सुनकर छोड़ देते हैं और व्यक्ति अंदर ही अंदर घुटता रहता है और हार कर एक दिन अपनी जान तक दे देता है लेकिन उसके बाद हमारे पास कुछ नहीं बचता हाथ से सब फिसल जाता है और हम मलाल करते ही रह जाते हैं कि काश हमने उसे पर ध्यान दिया होता काश हमने उसका दुख का कारण पूछा होता।
यहां पर मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि हम जिस घर-परिवार, मोहल्ले और समाज में रहते हैं वहां क्या चल रहा इसके प्रति हमें थोड़ा सजक रहने की जरूरत है।लोगों से बात करें उनके संपर्क में रहे उनके बारे में जाने उनके सुख दुख के साथी बने उनके साथ समय गुजारे और बातों बातों में उनके अंदर क्या चल रहा है यह जानने की कोशिश करें चाहे बच्चे हो चाहे बड़े सभी की तकलीफें अपनी-अपनी अलग होती है लेकिन होती हैं जिसे हम नजर अंदाज कर बैठते हैं और ठीक से जानने की कोशिश नहीं करते हैं।
बस यहां पर इतना ही कहना चाहती हूं कि अगर आपके आसपास कभी कोई ऐसा चेहरा दुख-दर्द में दिखे तो उनके पास अपना समय निकाल कर उससे संपर्क कीजिए और उनसे बात करके उनके दर्द में शामिल होकर अपना वक़्त दे शायद आपका थोड़ा सा समय उसके बहुत काम आए आपकी सांत्वना आपका थोड़ा सा स्नेह उसके जीवन को बदल दे।
और उसका हाथ अपने हाथों में लेकर बोले अब सब कुछ ठीक है आप अपना दर्द मुझसे शेयर कर सकते हैं अपनी पीड़ा मुझे बता सकते हैं मैं आपके काम आ पाऊं तो यह मेरा सौभाग्य होगा, देखना फिर वह व्यक्ति अपना सारा दर्द आपके सामने उड़ेल कर रख देगा और सब ठीक कहने वाला कितना दर्द में है यह आप पहचान पाएंगे ।
हमारी एक छोटी सी कोशिका कितने लोगों को खुशियां दे सकती है। एक बार सोचना जरूर....!!
- मधु गुप्ता "अपराजिता"
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