अकेली बाग में जाया न करो | एक भावनात्मक कहानी

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अकेली बाग में जाया न करो एक भावात्मक कहानी सुबह होते ही लोगों की बाग मे भीड़ जमा होने लगी।लोगों ने देखा मन्नो तथा बिल्लू की लाश आम की डाली से लटक रही

अकेली बाग में जाया न करो


म के बाग में किसे कुछ समय बिताना अच्छा नही लगता है जहां बहती सुरीली हवा तन मन को रोमांचित कर देती है। आनन्द की ऐसी अनुभूति होती है जिसका वर्णन करना बहुत मुश्किल काम होता है। गांव का यह बाग अब भी जिन्दा है । कई बाग तो अब नहीं रहे, नहीं रहे वो पुराने आम के पेड़, जिस पर कोयल गीत गाती थी। तोतों का एक बडा़ झुंड आम के फलों को दिन भर चखते रहते हैं और बच्चों का झुंड गिरे आम को बीनते नजर आते हैं।
 
गांव का तालाब है। इस तालाब के चारो तरफ आम के पेड़ ही पेड़ हैं। कुछ झाड़ियां हैं। अभी यह बाग इसलिये जिन्दा है कि गांव वाले इस बाग को खत्म नहीं करना चाहते हैं। इस एरिया का सबसे बड़ा बाग है। सरकारी तालाब है। इस तालाब की खासियत यह है कि बारहमासा जल भरा रहता है। इस बाग में गांव के सारे बच्चेंं,लड़के,लड़कियां, बूढ़े, जवान सब आम बीनने चल देते हैं। अचार सबके घर बन जाता है क्योंकि आम इसी बाग से मिल जाते हैं।

भोर होते कोयलों की कूं-कूं की आवाज से सब उठ जाते और आम बीनने के लिये बागों की तरफ भागते। ढेर सारा आम बिन लाते थे। आम का पना घर-घर बनता था। खटाई भी बनती थी। कूं-कूं की आवाज मे तान मिलाते बच्चे खूब आनन्द लेते है। 

मन्नों गाव की ही सबसे खूबसूरत लड़की है। वह भी भोर में ही आम बीनने भागती है। मतवाली चाल है। अल्हड़ जवानी है। सरपट भागकर आम के बाग में सबसे पहले पहुंचती है। ढेर सारा आम मन्नों ही बीनती है। झपट-झपट कर आम को बीनती है। कई लड़के-लड़कियां उससे चिढ़ने लगे थे। एक झोला आम। बड़े -बड़े आम। कभी -कभी ईंट के टुकड़े फेंककर आम तोड़ लेती थी। इस तरह से मन्नो के पास ढेर सारा आम हो जाता था। 

ढेर सारा आम देखकर खूब खुश हो जाती है। कई बार खूब खिलखिलाकर हंसती है। ठहाका लगाती है। गोरी है। एकदम बिन्दास लड़की है। दुपट्टा तो रखती नहीं कि दुपट्टा संभालना पड़े इस प्रकार दौड़-दौड़कर आम बीनती है।

एक दिन भयंकर आंधी आयी थी। खूब आम झड़ गये थे। सबको पता है कि आम खूब गिरा है। आधी रात को ही बिना डर के मन्नो आम बीनने चल दी। आज कोई कोयल नहीं बोली। बिन कोयल की आवाज के ही पहुंच गई मन्नों। डर नहीं लग रहा था। ढेर सारा आम पाने की चाहत थी।
 
अचानक झाड़ियों से तेज खरखराहट की आवाज सुनाई दी। मन्नो कुछ डर गई। खड़ी होकर आवाज को परखने लगी। बड़ी तेजी से ऐसी आवाज आई जैसे दो शेर आपस में गुर्रा रहे थे। मन्नो को आज पहली बार इस बाग में डर लगा वैसे इतनी रात को और कई बार आई थी लेकिन डरी नहीं कभी लेकिन आज डर गई। कदम पीछे हटने लगा। बड़ी तेजी से गुर्राहट सुनकर वहां से भागी।

आम के चक्कर में आधी रात को बिल्लू भी बीनने आंख मीचते हुये बाग की तरफ तेजी से चला आ रहा है। जैसे ही बाग में पहुंचा वैसे बड़ी तेजी से भागती मन्नो आकर बिल्लू से लिपट गई। थर-थर कांप रही थी। बिल्लू ने अपने दोंनों हाथों से मन्नो के कंधे को पकड़ं कर झझकोरते हुये पूछा--

क्या हुआ..? डर क्यों रही हो..?

वह कुछ नहीं बोल पा रही है। मन्नों काफी तेजी से बिल्लू से चिपकती जा रही है। कुछ देर बाद उसकी कंपकंपी बंद हुई। गुर्राहट की आवाज भी बंद हो गई लेकिन बिल्लू को नहीं छोड़ रही थी। पहली बार वह एक लड़के से चिपकी थी। बिल्लू भी इस तरग से पहली बार एहसास प्रेम का जग रहा था कि कोई लड़की इतनी तीव्रता से कस कर पकड़ ली हो। दोनों के नसों में प्रेम की तरंग दौड़ रही थी। काफी देर तक इस दिव्य प्रेम से अपने को भिगो रहे थे।

डर का माहौल खत्म होते ही मन्नों ने बिल्लू को अपने से अलग करने का प्रयास किया लेकिन प्रेम का चुम्बकीय शक्ति अलग ऩहीं होने दे रही थी। दोनों ने आंखे बंद कर लिये थे। प्रेम के आलिंगन में डूब गये थे। कुछ बच्चों का झुंड आते उनका शोर सुनकर दोनों अलग हो गये।

अकेली बाग में जाया न करो
बच्चों के झुंड के साथ मन्नो तथा बिल्लू भी आम बीनने चल दिये। सारे बच्चे दौड़ दौड़कर बिन रहे थे लेकिन मन्नो की चाल आम बीनने में धीमी हो गई थी। वह सोंच रही थी कि बिल्लू क्या सोंच रहा होगा?....मैं तो डर गयी थी इसलिये उसको पकड़ ली थी..नहीं नहीं ...वह मुझे गलत नहीं सोंच रहा होगा..मैं भी तो ऐसी वैसी लड़की तो नहीं हूं..सीधी सादी..भोली भाली..कोई बात नहीं..मैं बिल्लू से माफी मांग लूंगी...आदि आदि वह आम बीनते हुये सोंच रही थी।

बिल्लू भी सोंच रहा है कि पहली बार कोई लड़की मुझसे इस तरह से चिपकी रही...कितना आनन्द आ रहा था। सुखद अनुभव हो रहा था। मन्नों सुंदर लड़की है..चंचलता से लबरेज है..कितनी भोली है बेचारी...इतना डर गयी थी कि मुझे छोड़ ही नहीं रही थी...बेचारी का कोई दोष नहीं था वह तो डर गयी थी...इसलिये मुझे पकड़ी थी...अब थोडी वह पकड़ेगी मुझे़...इस तरह से आम बीनते हुये बिल्लू ने सोंचा।

बिल्लू उसी गांव का है जिस गांव की मन्नो थी। दोनों के घर पास-पास ही हैं। एक ही घर का अंतर है। बिल्लू अपने छत से देख सकता है अगर मन्नो अपने छत पर खड़ी रहेगी। मन्नो तो जैसे बिल्लू के मन में समा सी गई हो। पहली बार लड़की के संपर्क का एहसास अन्त:मन को हिलाकर रख दिया था।

मन्नो बिल्लू को जानती है कि एक घर छोड़कर उसका घर है अक्सर वह छत पर आता है किताबें लेकर बैठा रहता है। 

अगले दिन आम बीनने के लिये मन्नो चली तो गयी लेकिन दिल दिमाग में बिल्लू ही छाया रहा। बिल्लू भी आम बीनने चल दिया। बिल्लू मन्नो को देखकर कुछ देर उसके पास रूक गया।

"आज तो नहीं डर रही हो।" --बिल्लू ने मुश्कराते हुये कहा।

"नहीं..आज नहीं डर लग रहा है..कल तो झाड़ियों से बहुत गुर्राहट की आवाज आ रही थी।" --मन्नों ने शर्माते हुये कहा।

दोनों आम बीनने लगे। दूर तक बाग में चले गये लेकिन दोनों एक दूसरे के बारे में सोंच रहे थे। 

सुबह का समय था। कोयल की आवाज आ रही थी। कुछ बच्चे कोयल की आवाज में बोल रहे थे। बीच-बीच में मोर की भी आवाज सुनाई दे रही थी। मंद-मंद गति से हवा चल रही थी। सब बच्चे आम बीन रहे थे।  

तभी मन्नो ने एक ईंट का टुकड़ा उठाकर आम तोड़ने के लिये तेजी से फेंका और वह ईंट का टुकड़ा बिल्लू को लग गया। बिल्लू को खून बहने लगा। मन्नों डर गयी कि बिल्लू मुझे मारेगा। वह वहां से भागकर घर चली गयी। बिल्लू की दवा पट्टी हुई। 

मन्नो जल्दी घर पहुंच गयी और और उसकी धड़कने बढ़ गयी उसका ह्रदय धक-धक कर रहा था। क्या सोंच रहा होगा कि मन्नो मुझे मारकार भाग गयी। वह शिकायत करेगा पापा मम्मी से... पापा मुझे मारेगें। हे भगवान  उसी को लगना था। कितना दर्द हो रहा होगा। खून भी बह रहा था।

अगले दिन आम बीनने नहीं गई। डर समाया था कि बिल्लू को मेरे वजह से चोट लग गई थी। मैं तो उसको चाहने लगी थी उस दिन तो डर के कारण उसको पकड़ ली थी। मदहोश कर देने वाला दृष्य मैं भूल नहीं सकती लेकिन मेरे वजह से उस बेचारे को चोट लग गई। अब मैं कैसे उसको मुंह दिखाऊंगी। मुझे तो बहुत दुख है। वह अब नफरत की आग में जल रहा होगा। अब वह मुझे देखना पसंद नही करेगा। मेरा पहले प्यार का एहसास अब नही मिल पायेगा। इस तरह से मन्नो प्रेम के इस डोर को टूटते देखकर बहुत निराश उदास है। वेदना की अग्नि में बेचारी जल रही है उसी दिन से खाना पीना में उसका मन नहीं लग रहा है जैसे मन टूट गया हो।

बिल्लू आम बिनने आया है लेकिन उसकी निगाहें बार-बार बाग में ढ़ूढ़ रही है मन्नों को..मन्नो तो रोज आती है ...आज नहीं आयी...वह लगता है डर गयी...उस दिन तो वह भाग गई थी ..उसकी कोई गलती नहीं थी...जानबूझकर थोड़ी मारा था...हमारी गलती थी उसके सामने मैं आ गया था...मन मे बड़ी बेचैनी है...जैसे अब लगता है कि उसको देखे बगैर जिन्दगी अधूरी है। वह अगर आम बीनने आयेगी तो मैं उसको कुछ नहीं कहूंगा। वह नहीं आयी। बिना आम बीने बिल्लू निराश मन से घर लौट आया

दोनों को एक दूसरे से मिलने की आग प्रबल है। प्रेम का प्रवाह तीव्रता का रूप धर लिया है। एक नई- नई प्रेम की चिंगारी निकली है जो अब अग्नि का रूप धारण करती जा रही है लेकिन दोनों के हालात एकदम बिगड़ते जा रहे हैं। 

बिल्लू उसको देखने के लिये छत पर चला आया कि छत से ही दिख जायेगी लेकिन काफी समय तक टहलता रहा लेकिन मन्नों नजर नही ंआयी। मन्नों का न दिखना काफी बेचैन कर रहा था बिल्लू को। बार - बार बिल्लू मन्नो की छत की तरफ निगाह गड़ाये था लेकिन मन्नो की झलक नहीं दिखी। निगाहें तलाशती रही मन्नों को।

मन्नो ने देख लिया कि बिल्लू मेरे छत की तरफ देख रहा था। लगता है बदला लेगा। मेरी कौन सी गलती थी। मुझे क्यों दंड देगा। बार -बार मन्नो छत की तरफ निहारती बिल्लू की। आंखे बिल्कुल भय से भर गई थी मन्नो को। मन्नो सोंच रही है कि मुझे उससे माफी मांग लेनी चाहिये मेरी वजह से उस बेचारे को चोट लग गई थी।

आज सुबह आम बीनने के उद्देश्य से वह नहीं गई थी। बिल्लू से माफी मांगने गयी थी। कह रही है.. अपनी ही गलती मान लेती हूं। इतने में बिल्लू आ गया। मन्नो सिर नीचे किये हुये थी।

"क्या हुआ मन्नो, आज आम नहीं बिन रही हो क्या ? कल तुम आई नहीं काफी देर तक मैं इंतजार करता रहा तुम्हे कल छत पर भी देख रहा था तुम दिखी नहीं।"  

"देखो, मेरे वजह से आपको चोट लग गई थी जिसके वजह से मैं बहुत डर रही थी। यह चोट पर लगाने वाली दवा है" ---लगाने वाली दवा देते हुये मन्नो ने कहा।

गलती मेरी थी, तुम्हारी नहीं मन्नो, अगर मैं वहां नहीं गया होता तो चोट मुझे नहीं लगती.. बिल्लू ने मन्नो का बचाव करते हुये कहा।

"उस रात तो मैं बहुत डर गयी थी। तुम नहीं आये होते तो शायद मेरी डर खत्म न होती" -- मन्नो ने कहा।

"आज आम नहीं बिन रही हो " --बिल्लू ने कहा।

आज आम नहीं बीनने आयी थी। आज तो तुमसे मिलने आयी थी। माफी मांगने आयी थी। मैने जो तुमको मारा था रात भर नींद नहीं आई थी। पूरी रात जागती रह गयी।

रात भर तो मैं भी जागता रह गया। उस दिन जो डर गयी थी
तुम..बहुत देर तक कांपती रह गयी थी। सच कहूं मुझे बहुत अच्छा लग रहा था तुम्हारा इस तरह से चिपकना...

"मुझे भी तो... " --मन्नों शरमा कर कहा।  

इतना कह कर मन्नो बहुत तेजी से घर की तरफ भागी। हल्की मुश्कान लिये थे। दौड़ने से उसके स्तन उपर नीचे हो रहे थे। उसको भी बीच- बीच में निहारते हुये घर पहुंच गयी। हांफ रही थी। जल्दी से तख्त पर लेट गयी।

मन ही मन सोंच रही है कि बिल्लू कह रहा था...तुम्हारा चिपकना अच्छा लग रहा था। मुझे क्या नहीं अच्छा लग रहा था।..मैं तो अब ऐसा लग रहा था कि बिल्लू के बगैर नहीं रह पाऊंगी। कितना भोला है बिल्लू। मुझे कुछ नहीं कह रहा है। मेरी गलती को अपनी गलती बता रहा है। बचाना चाह रहा है।

बिल्लू को भी बेचैनी हो गयी है कि मन्नो कितनी भोली है। इसकी मुश्कान तो बहुत ही मन मोहक है। निराला अंदाज है। इसके बालों का लहराना मुझे बहुत भाता है और जब दौड़ती है तो पूरी दुनियां को हिलाकर भागती है। मन्नों तुझे इसलिये कुछ नहीं कहा कि मैं तुमको चाहने लगा हूं। वैसे गलती तेरी ही थी। तुझे मैं नाराज नहीं होने देना चाह रहा हूं।

दोनों ने एक दूसरे को मन में बसा लिये हैं। एक दूसरे के सपने दिन रात बस एक ही ख्याल है दोनों को, कि मिले और प्रेम की दो बाते हो। अब दोनो न ठीक से खा पा रहे हैं न तो कायदे से नींद ले पा रहे हैं बस एक प्रेम के अंतरंग दुनिया में विचरण कर रहे हैं। कल्पनाओं का शहर बसा रहे हैं। एक नये आसमां में उड़ने की तीव्र इच्छा है।

प्रेम एक मधुर मिलन है जब प्रेम एक दूसरे से मिलता है तो एक सच्ची संवेदना तैरने लगती है। कोमल भावना के बादल उमड़ने- घुमड़ने लगते है और एक नये फूलों की दुनिया हो जाती है। नये गीत तराने गूंजने लगते हैं। एक ऐसा वहशीपन आ जाता है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है कि यह कितना गहरा है। इस तरह का अपरिपक्व प्रेम तीव्रता के आवेग में फलता फूलता है जो खतरनाक भी हो जाता है। युवा वर्ग को इस प्रकार के प्रेम से बचना चाहिये। इस तरह का प्रेम का ज्यादा दिन अस्तित्व नहीं है।

मन्नो अब बाग में आम बीनने नही ंजाती है। वह जाती है तो बिल्लू से मिलने के लिये क्योंकि अब वह बिल्लू को चाहने लगी है। बिल्लू ही उसका सबकुछ हो गया है। भोर में आम बीनने के लिये पहुंच गई। बिल्लू भी पहुंच गया। बिल्लू ने मन्नों का हाथ पकड़ कर कहता है। 

"हम दोनों का मिलना किसी को पता नहीं चलना चाहिये, नहीं तो बदनामी होगी" 

"हां बिल्लू, तुम सहीं कह रहे हो.. अगर गांववालों को पता चल जायेगा तो ठीक नहीं रहेगा। यहां के लोग बहुत कट्टर हैं"।"

"हां मन्नो.. हम दोनों अलग-अलग जाति के है...किसी तरह से छुप-छुप कर ही मिला जाये। यह बाग मिलने का सहीं जगह है। आम बीनना तो एक बहाना रहेगा। इन्हीं अमराइंयों में प्रेम परवान होगा हम दोनों का.." बिल्लू ने कहा। 

मन्नू और बिल्लू सत्रह अट्ठारह साल की उम्र एक कच्ची उम्र है लेकिन प्रेम एक ऐसा है, आग की ज्वाला से भी तीव्र। तीव्र प्रवाह है। यह एक प्रेम का आवेग है। एक ऐसा आवेग जो नये घराने को बसाने का एक स्वप्न की तरह है। इस कम उम्र में पनपता प्यार की उम्र बहुत कम होती है जो किसी भी खतरा को लेने को तैयार रहता है। इस तरह का प्यार किसी का नहीं सुनता है ऐसा तीव्र प्रवाह होता है कि इस प्रवाह को रोकना बहुत की कठिन है।

इस तरह से बिल्लू और मन्नो दोनों का मिलना रोज आम बीनने के बहाने शुरू हो गया। प्रेम कहानी का प्रवाह आगे की ओर बढ़ रहा है । इन दोंनों का मिलना रात में होता है। कुछ बच्चे ने इन दोनों को मिलते देख लिया था। 

अंधेरी रात में कभी ये दोनों एक दूसरे के बाहों मे रहते और कभी गहरी किस लेने में भीड़े रहते कभी बिल्लू मन्नों के बालों को सहलाते मिलता, कभी बिल्लू और मन्नो एक दूसरे के होंठों का रसपान करते नजर आते इस तरह से लोगों से निगाह से बचा कर अपने प्रेम को एक नया कीर्तिमान बनाने में लगे हैं।

इन दोनों का मिलना जुलना कई लोगों ने देख लिया था। इस तरह से मिलना ठीक विषय नहीं था। गांव में आग की तरह फैल गया कि बिल्लू और मन्नो मे प्रेम की कहानी भोर मे आम बीनने के बहाने बाग में शुरू होती है जब तक कोई नही रहता है जैसे ही किसी के आहट शुरू हो जाती। दोनों अलग हो जाते हैं । कई बार ये लोग पकड़े भी जा चुके थे। 

दोनों का प्रेम परवान हो गया। एक दिन ये दोनों घर छोड़कर कहीं दूर चले गये ताकि इनके प्यार में कोई बाधा न बने। समाज की नजरों से बचकर रहना चाहते थे। वे जानते थे। समाज हम दोनों के प्यार को कोई पसन्द नहीं करेगा। दोनों अलग -अलग जाति के थे। दोनों अगर गांव मे रहते हैं तो बहुत बड़ा बवाल के चान्स हैं।

इस तरह से घर से बिल्लू और मन्नो का चले जाना गांव में दहशत का माहौल है। लोगों ने अपने बच्चों को बाग में जाने से मनाकर दिया गया कि अकेले बाग नहीं जाना है। बाग में ही मन्नों तथा बिल्लू ने एक दूसरे से प्रेम करने लगे लेकिन हालात कुछ इस तरह बदल गये कि दोनों भाग गये। गांव के लोग अपनी बेइज्जती महसूस कर रहे हैं। अब उस बाग में कोई आम बीनने नहीं जा रहा है।

गांव के लोग अब बिल्लू और मन्नो को ढूंढ रहे हैं कि आखिर ये दोनों कहां गये। थाने मे एफआईआर भी परिजनों ने लिखा दिया और अखबार में भी यह खबर खूब चली कि मन्नो बिल्लू की प्रेम कहानी पूरे एरिया में हड़कम्प मचा दिया है। दोनों के उपर पुलिस ने इनाम भी घोषित कर दिया था जो दोनों की खबर बतायेगा उसको पुरस्कृत किया जायेगा।

अपरिपक्व प्रेम में स्वयं को खत्म करने की धारणा जन्म लेने लगी। दर-दर ठोकरे खा रहे हैं लेकिन कोई सहायता करने को तैयार नहीं है। न खाने की सुध न पीने की सुध केवल अस्तित्व बचाने के लिये दोनो मन्नो और बिल्लू भटक रहे हैं। इनका कहीं ठिकाना नहीं बन रहा है।

इस कम उम्र और गैरबिरादरी की लड़का लड़की में हो रहे समाज मान्यता नहीं देता है। इतना दबाव समाज का बनता है कि इस तरह के प्रेमी युगल की सोंचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। दोनो से अब ठोकरे सहने की शक्ति कम होती जा रही है। घर लौटना ही ठीक समझा। 

सुबह होते ही लोगों की बाग मे भीड़ जमा होने लगी।लोगों ने देखा मन्नो तथा बिल्लू की लाश आम की डाली से लटक रही है। दोनों ने समाज के सहयोग न पाने और उनके कड़े व्यवहार से दोनों अपने प्रेम का अंत कर दिया। इस घटना के बाद लोगों ने अपने लड़कियों को आम बीनने के लिये...अकेले बाग में जाया न करो.. इस तरह से कह कर रोक लगा दी।


- जयचन्द प्रजापति ’ज़य’ जैतापुर, 
हंडिया, प्रयागराज मो..7880438226

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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: अकेली बाग में जाया न करो | एक भावनात्मक कहानी
अकेली बाग में जाया न करो | एक भावनात्मक कहानी
अकेली बाग में जाया न करो एक भावात्मक कहानी सुबह होते ही लोगों की बाग मे भीड़ जमा होने लगी।लोगों ने देखा मन्नो तथा बिल्लू की लाश आम की डाली से लटक रही
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