जब जिंदगी से परेशान हो जाए तो क्या करना चाहिए हमारी लड़ाई कभी-कभी खुद से होती है, सही और गलत का निर्णय करने में हम असमजस्य की स्थिति में फंस जाते हैं
जब जिंदगी से परेशान हो जाए तो क्या करना चाहिए
हमारी लड़ाई कभी-कभी खुद से होती है, सही और गलत का निर्णय करने में हम असमजस्य की स्थिति में फंस जाते हैं समझ नहीं आता क्या करना ठीक रहेगा।
उस वक्त हमको सारी परिस्थितियों से निकलकर खुद को आगे बढ़ाना होता है, कभी-कभी बड़ी विषम परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं हमारी आंखों के सामने ऐसी घटना घटित हो रही होती है जो हर मायने में गलत होती है और तब हमारे अंदर का सच्चा इंसान जाग उठता है और जिद पर आ जाता है कि इसको रोकना हर स्थिति में जरूरी है और वहीं पर मन के अंदर एक जंग शुरू हो जाती है.....
सही और गलत की जहां पर हमको दोनों में से एक को चुनना होता है। तब हम निर्णय लेने में थोड़ा सा असहज महसूस करते हैं क्योंकि जो घटित हो रहा होता है वह यदि सही तरीके से सामने आ गया तो,,,,बहुत से लोगों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा .....??हम यह सोच से व्याकुल हो जाते हैं, वह एक सच्ची घटना कई जिंदगी में कोहराम ला सकती, और तभी हम कमजोर पड़ने लगते हैं सही और गलत के बीच का निर्णय लेने और घटनाओं को सही ढंग से प्रस्तुत करने की असली लड़ाई हमारे मन के अंदर तब चलनी शुरु होने लगती है कि क्या किया जाए....चुपचाप जो चल रहा है चलने दिया जाए या उसके प्रारूप में सच की आवाज उठाई जाए। इसी चक्रव्यूह में फंसकर हम कई दफा अपने आपको मार लेते हैं और आंखें बंद कर चेहरा पीछे मोड़ कर खड़े हो जाते हैं यही सोचकर कि अगर सच कह दिया तो परिणाम घोर भयंकर हो जाएगा तो बेहतर है कि पीछे हट जाओ और अपने सच के उस इंसान को अंदर ही खत्म कर दो,
जो बार-बार दिन में कई दफा जाग उठता हैं और बेचैनी पैदा करके पागल जैसी स्थिति में ला कर खड़ा कर देता है और कभी-कभी तो सारी हदें तोड़कर छटपटाहट में अपने आप ही बुदबुदाने लगता है पर हम कुछ अपने बने रिश्तों और अपनेपन की भावना से ग्रसित होकर उसे परिधि में बंध जाते हैं और अपना अपना मुंह चुपचाप बंद कर लेते हैं।
और इसी द्वंद में हम लड़ते और छटपटाते बेमन से आगे बढ़ते रहते हैं।
यहां पर अब सवाल यह उठता है कि बकाई में संबंधों के डर और यह ध्यान में रखते हुए कि आस- पास के लोगों को किसी भी तरह की तकलीफ ना हो यह सोचकर जो गलत हो रहा है उसको होने देना चाहिए या फिर भय और मन की दुविधा को एक तरफ़ हटा कर निर्भीक हो अपना कदम बिना किसी डर के जो भी अनुचित और आप्रसांगिक हमारे आसपास या समाज में हो रहा है उसके प्रति हम अपनी आवाज तुरंत उठाए आप ही की तरह और लोग भी यही सोच रहे होंगे काश कोई इसके प्रति आवाज उठाए तो मैं भी उसका साथ दूँ लेकिन वह भी इसी वजह से चुप बैठा हुए हो तो क्या हो...???
इसलिए किसी एक को तो निडर हो कर आगे आ अपनी आवाज उठाने जरूरी होता है और फिर लोगों का साथ मिलता ही जाता हैं और करवा बनता चला जाता है।
हम उन गलत चीजों को रोकने में अपना सहयोग प्रदान करें ना कि किसी भय के कारण अपने आप को घर के अंदर बंद कर आँखें बूंद कर बैठ जाए।
किसी एक की आवाज कई लोगों की जिंदगियों और समाज में होती अनुचित चीजों को रोकने में सहायक हो सकती है।
इसलिए अपने अंदर के बैठे सच्चे इन्सान को कभी मरने मत दे उसे हमेशा जिंदा रखो हो सकता है थोड़ी शुरू में परिस्थितियों आपके मुताबिक ना हो और कठिनाइयां आए लेकिन आखिर में जीत हमेशा सही और सच की ही होगी याद रखिए।
इसलिए भय छोड़कर आपके आसपास जो भी अनुचित हो रहा हो उसे रोकने का हमेशा प्रयत्न करें और आगे बढ़े निर्भीक हो कर बिना किसी डर के।।
- मधु गुप्ता "अपराजिता"
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