जन गीत कविता की व्याख्या सारांश प्रश्न उत्तर सुमित्रानंदन पंत गीत भारत की धरती, उसकी संस्कृति और विविधता का भी गीत है कवि मानवता के बंधुत्व, प्रेम
जन गीत कविता सुमित्रानंदन पंत
जन गीत कविता में, सुमित्रानंदन पंत ने आम जनता के जीवन, उनकी भावनाओं, संघर्षों और आकांक्षाओं को चित्रित किया है। यह गीत भारत की धरती, उसकी संस्कृति और विविधता का भी गीत है। कवि मानवता के बंधुत्व, प्रेम, करुणा और शांति के संदेश पर बल देते हैं।
"जन गीत" आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि यह पहली बार लिखा गया था।हम आज भी गरीबी, भेदभाव, युद्ध और हिंसा जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं।यह गीत हमें इन चुनौतियों का सामना करने और एक अधिक न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण दुनिया बनाने के लिए प्रेरित करता है।
जन गीत कविता की व्याख्या भावार्थ
जीवन में फिर नया विहान हो,
एक प्राण, एक कंठ गान हो!
बीत अब रही विषाद की निशा,
दिखने लगी प्रयाण की दिशा, कि
गगन चूमता अभय निशान हो!
व्याख्या - कवि कहते हैं कि जीवन में अब नया सबेरा आ गया है। अब समय आ गया है सबको एकजुट होकर एक कंठ से उन्नति के गीत गाने का । अब जीवन से दुःखों और कष्टों की रात्रि बीत रही है और आगे बढ़कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा दिखाई देने लगी है। अब इस एकता के दम पर निर्भीक होकर हम आसमान की बुलंदियों को भी चूम रहे हैं। स्पष्ट है कि जीवन के तमाम भेदभाव को मिटाकर, कष्टों को भूल कर और एकजुट होकर उन्नति करने का समय आ गया है।
हम विभिन्न हो गये विनाश में,
हम अभिन्न हो रहे विकास में,
एक श्रेय, प्रेम अब समान हो।
शुद्ध स्वार्थ काम-नींद से जगे,
लोक-कर्म में महान सब लगें,
रक्त में उफान हो, उठान हो।
व्याख्या - कवि के अनुसार हम सब अलग-अलग होकर विनाश के मुख तक पहुँच गये थे, लेकिन आज पुनः एकजुट होकर विकास की राह पर अग्रसर हो रहे हैं। अब आवश्यकता इस बात की है कि हम आपस में समानता और प्रेम का संचार कर विकास का श्रेय सभी को दें। कवि का विचार है कि अब हमें लोभ, लालसा, स्वार्थ, घृणा, काम-निद्रा और वासना से स्वयं को मुक्त कर सभी लोगों के जीवन-स्तर को सुधारने के काम में संलग्न होना चाहिए। इसके लिए देश-सेवा और जन-सेवा की भावना अपने रक्त में भरकर अग्रसर होना चाहिए।
शोषित कोई कहीं न जन रहें,
पीड़न-अन्याय अब न मन सहे
जीवन-शिल्पी प्रथम, प्रधान हो ।
मुक्त व्यथित, संगठित समाज हो,
गुण ही जन-मन किरीट ताज हो,
नव-युग का अब नया विधान हो ।
व्याख्या - कवि समाज और संसार में व्याप्त सभी तरह के शोषण, अत्याचार के विरुद्ध है। वे लोगों से आह्वान करते हैं कि अब कोई भी अत्याचार और उत्पीड़न सहन न करें। अन्याय और शोषण का मुक्त विरोध हो । कवि की मान्यता है कि इस नवीन युग में जीवन और समाज को गढ़ने वाले शिल्पी अर्थात् कृषक-मजदूरों का समाज में सबसे ऊँचा स्थान हो। वे एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं, जो हर प्रकार के व्यथाओं से मुक्त और संगठित हो। इस समाज में मानव की विशिष्टताओं को महत्त्व दिया जाए। जाति, धर्म, रंग, वंश आदि के आधार पर किसी के महत्त्व को न तौलकर उसके गुणों की कद्र की जाय। इस नये युग में अब समस्त नियम नये हों ।
जन गीत कविता का सारांश मूल भाव
पंत मूलतः छायावादी कवि हैं, लेकिन काव्य-यात्रा के दूसरे पड़ाव में उनकी कविताओं में प्रगतिवादी, जनवादी और समाजवादी भावना का मुखर स्वर सुनायी पड़ता है। 'जन-गीत' नामक कविता के द्वारा उन्होंने साधारण मनुष्य के भीतर मुक्ति और स्वाधीनता की भावना का प्रसार किया है। कवि के अनुसार अब जीवन में एक नया सबेरा आने वाला है, यह नया सबेरा अपने साथ एकता, समानता, स्वाधीनता की भावना लेकर आ रहा है। अब सभी को एकजुट होकर एक कंठ से मुक्ति का गीत गाना है। अब तक हम सबने धर्म, जाति, संप्रदाय और संपत्ति के आधार पर बहुत सी विकट परिस्थितियों को सहा है, लेकिन अब जीवन की नई राह दिखाने लगी है।
विविध तरह के भेदभाव को मानने के कारण हम सब टुकड़ों में बँट गए और लाभ तीसरे ने उठाया है, लेकिन अब एक होकर अपना विकास स्वयं करना है, बस आवश्यकता है व्यक्तिगत स्वार्थ, काम वासना, आलस्य और भौतिक लिप्सा को त्यागकर प्रेम, भाईचारे, समानता की भावना को आत्मसात करें। अब समय आ रहा है कि हम जनता की हित के लिए, लोकमंगल के लिए और समाज की उन्नति के लिए अपने रक्त में उबाल लाएँ तथा क्रांति के द्वारा समस्त धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक जड़ताओं की दीवार को तोड़ने का महान कार्य संपादित करें।
कवि के अनुसार यह नया युग है, अतः इस नए युग में नियम भी बिल्कुल नये होने चाहिए। जाति, धर्म, वंश या धन के आधार पर साधारण मानव पर अत्याचार करने वालों के दिन अब लद गये हैं। अब केवल गुण के आधार पर ही लोगों को परखे जाने का समय है। अतः हमें ऐसे समाज का निर्माण करना है, जहाँ किसी प्रकार का शोषण, उत्पीड़न और अत्याचार के लिए कोई भी स्थान नहीं हो, कर्म की प्रधानता हो और कर्म से संसार एवं जीवन को गढ़ने वाले कृषक-मजदूर को समाज का सिरमौर माना जाय । कुल मिलाकर यह नवीन समाज के हर तरह के दुःख-दर्द से मुक्त संगठित समाज हो ।
कवि सुमित्रानंदन पत का जीवन परिचय
छायावादी काव्यधारा के सबसे प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म अल्मोड़ा जिला के कौसानी नामक ग्राम में 20 मई सन् 1900 को एक सभ्रांत परिवार में हुआ था। जन्म के साथ ही इनकी माता का स्वर्गवास हो गया, अतः इनके पालन-पोषण का दायित्व इनकी दादी ने संभाला। इनके बचपन का नाम गुसाई दत्त था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही हुई । बाद में इन्होंने काशी के जयनारायण हाई स्कूल और क्वींस कॉलेज से भी पढ़ाई की। तत्पश्चात् इन्होंने इलाहाबाद आकर म्योर कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन गाँधीजी के असहयोग आंदोलन के दौरान सरकारी कार्यालयों के बहिष्कार के कारण इन्होंने भी पढ़ाई छोड़ दी। अपनी व्यक्तिगत लगन के कारण ही इन्होंने घर पर ही हिन्दी, बंगला, संस्कृत और अंग्रेजी के भाषा-साहित्य का अध्ययन किया। पंत ने आकाशवाणी में सलाहकार और प्रमुख निर्माता के रूप में भी कार्य किया। 29 दिसंबर सन् 1977 को इनका देहावसान हो गया।
पंत सात वर्ष की अल्पायु में ही काव्य-सृजन की ओर प्रवृत हो गये थे और सन् 1919 तक हिन्दी के छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक के रूप में ख्याति अर्जित करने लगे। इनकी कविताओं में एक ओर प्रकृति के मनोरम दृश्यों का कोमलकांत पदों में चित्रण मिलता है, वहीं दूसरी ओर प्रगतिशील विचारों से युक्त कविताएँ भी पंत की रचनाओं की विशेषता है। पंत की रचनाओं पर प्रकृति के सौंदर्य का प्रभाव है। इसके साथ मार्क्स, फ्रायड, अरविंद और गाँधी-दर्शन का प्रभाव भी स्पष्ट दीखता है। इनकी साहित्यिक यात्रा के तीन पड़ाव हैं—प्रथम में छायावादी, दूसरे में समाजवादी और तीसरे में आध्यात्मवादी। वीणा, उच्छवास, पल्लव, ग्रंथि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, युगवाणी, लोकायतन, कला और बूढ़ा चाँद, चिदंबरा आदि इनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं। इसके अलावा इन्होंने कहानी, नाटक, उपन्यास भी लिखा। पंत ने 'रूपक' नामक पत्रिका का सम्पादन भी किया। इन्हें हिन्दी साहित्य की सेवा के लिए भारतीय ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी और पद्मभूषण जैसे विशिष्ट पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया। पंतजी की भाषा खड़ी बोली हिन्दी है। बीच-बीच में इन्होंने आंचलिक भाषा का भी प्रयोग किया है। इनकी शैली कोमलकांत पदावली वाली है। इनकी कविताएँ संगीत प्रधान हैं।
जन गीत कविता के प्रश्न उत्तर
प्र। कवि कैसी निशा के बीतने की बात कर रहा है और क्यों?
उत्तर : कवि विषाद की निशा के बीतने की बात कर रहा है। जीवन में समता, स्वाधीनता और एकता की भावना का प्रसार होने के कारण एक नया सबेरा आ रहा है। लोगों में मुक्ति की उत्कंठा तीव्र हो गई है और लोग समस्त भेद-भावों को भुलाकर विकास की राह में आगे बढ़ रहे हैं। अतः जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो रहे हैं।
प्र। 'जन-गीत' कविता का मूलभाव अपने शब्दों में लिखिये ।
उत्तर : 'जन-गीत' सुमित्रानंदन पंत की एक प्रगतिवादी कविता है । कवि के अनुसार समय बदल रहा है, जिसके कारण सदियों से शोषित, प्रताड़ित लोग एक कंठ से मुक्ति-गीत गा रहे हैं। अब तक जो लोग आपसी भेद-भाव, स्वार्थ, काम, क्रोध आदि जैसी दुर्भावनाओं के जाल में फंस कर अपना विनाश कर रहे थे, अब एक साथ मिलकर अपना, अपने समाज का और अपने देश का विकास कर रहे हैं। कवि के अनुसार इस नये युग के अपने नियम हैं, जहाँ किसी तरह के अत्याचार-अनाचार के लिए स्थान नहीं हैं। यह नया समाज है जो समस्त भेद-भावों से परे और संगठित हैं । यहाँ जीवन-शिल्पी का विशेष महत्त्व है।
प्र। 'नव युग का अब नया विधान हो' – इस पंक्ति के आधार पर बताइये कि कवि नए युग को किस रूप में देखना चाहता है?
उत्तर : कवि के अनुसार नये युग के अपने नये नियम होने चाहिए। वह समस्त परंपरागत जड़ नियमों को तोड़कर ऐसे समाज-निर्माण की कल्पना करता है, जहाँ एकता और संगठन हो। कवि को किसी प्रकार का भी भेद-भाव स्वीकार नहीं है। जीवन को अपने परिश्रम और कर्म से संवारने वाले लोगों को समाज में सबसे ऊँचा पद-प्रतिष्ठा प्राप्त हो, गुणों के आधार पर व्यक्ति की क्षमता को परखा जाये। इस तरह वह नये युग की कल्पना प्रगतिशील विचारधारा के आधार पर करता है।
प्र। 'जीवन-शिल्पी प्रथम, प्रधान हो' का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर : कवि ने इस नये युग में जीवन-शिल्पी को सबसे पहला स्थान देने की वकालत की है। जीवन-शिल्पी के द्वारा कवि ने परिश्रम और कर्म करने वाले मजदूरों-किसानों की बात की है। जीवन के वास्तविक आधार यही लोग हैं, यही संसार को वास्तव में गढ़ते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि दिन-रात मेहनत करने के बावजूद पूरे समाज पर कुछ खास वर्ग के लोगों का अधिकार होता है। मजदूर-किसान को न तो भरपेट भोजन प्राप्त होता है और न. ही उचित सम्मान। लेकिन कवि ने जिस नये युग का बिगुल बजाया है, उसमें यही निम्न कहा जाने वाला वर्ग सब कुछ है, प्रधान है ।
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