किसान और मजदूर का संबंध और महत्व किसानों और मजदूरों का जीवन हमें सिखाता है कि जीवन में कठोर परिश्रम, धैर्य, आशावाद, प्रकृति प्रेम, सादगी, आत्मनिर्भरता
किसान और मजदूर का संबंध और महत्व
कल्पना कीजिए, यदि धरती अन्न न उगाए और मनुष्य अपने श्रम से न बनाए, तो जीवन कैसा होगा? निश्चित रूप से, यह असंभव और कल्पना से परे है। किसान और मजदूर, मानव सभ्यता के दो आधार स्तंभ हैं, जिनके अथक परिश्रम और समर्पण से ही जीवन संभव होता है।किसान और मजदूर, मिलकर राष्ट्र का निर्माण करते हैं। इनके हितों की रक्षा करना और इनका विकास करना हम सबका दायित्व है। इनकी एकता और मजबूती ही राष्ट्र की समृद्धि और उन्नति की कुंजी है।
मजदूर का महत्त्व
मैं जहाँ बैठकर यह निबंध लिख रहा हूँ, वहाँ चारों ओर मज़दूरों के श्रम का उपहार बिखरा पड़ा है। देखने में यह शब्द कितना छोटा है, लेकिन इन चार अक्षरों में जो गरिमा और महिमा छिपी हुई है, उसका अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। ज़रा सोचिये, यदि मज़दूर नहीं होता, तो क्या होता? यह दुनिया नीरस, उजाड़ और बेकारों की बस्ती बनकर रह जाती। यह समाज का वह वर्ग है जो पीढ़ियों से देश के निर्माण में लगा हुआ है। अपने घर का प्रकाश बुझाकर वह दूसरे के घरों को प्रकाशित करता है। स्वयं भूखा रहकर दुनिया का पेट भरता है। अर्द्धनग्न रहकर दूसरे के लिए कीमती वस्त्र तैयार करता है। वह योगी है। खेत, कारख़ाने, खानें उसकी तपोभूमि हैं। उसका श्रम इनकी मिठास बनता है। उसका ख़ून अनार के दानों में चमकता है। सोना, चाँदी और क़ीमती हीरों की चमक बनकर वह बाज़ारों और पूँजीपतियों की शोभा बढ़ाता है। उसका जीवन श्रमशक्ति पर आधारित है। कर्म ही पूजा है, यही उसके जीवन-वेद की ऋचा है।
दुनिया के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक, क्षितिज के छोरों तक इसके वंशज फैले हुए हैं। विश्व का अतीत, वर्तमान और भविष्य मज़दूर पर ही निर्भर था, है और रहेगा। अतः यह स्वीकार करना होगा कि मज़दूर के पौरुष पर ही इस सुंदर संसार का वैभव-विलास अवलंबित है। उसकी महत्ता पर ही जन-जीवन का इतिहास खड़ा है। भारतीय मज़दूर दुनिया का सबसे उपेक्षित, लाचार और शोषित प्राणी है। उसका जीवन ग़रीबी का दस्तावेज़ है। वह कर्ज़ में पैदा होता है, कर्ज़ में बड़ा होता है, कर्ज़ में मरता है और मरने पर अपनी विरासत के रूप में कर्ज़ ही छोड़ जाता है जिसे उसकी पीढ़ी दर पीढ़ी ढोती रहती है। मज़दूर श्रमजीवी प्राणी है।
किसान का महत्त्व
भारत की आत्मा गाँवों में निवास करती है । गाँवों में रहने वालों का मुख्य पेशा कृषि है। कृषि कार्य करने वालों को किसान या कृषक कहते हैं। ये बिना मुकुट के गोपाल हैं। इन गोपालों के दर्शन से ही इनके हृदय की पवित्रता, उदारता और सरलता का पता चल जाता है। किसान अवधूत की तरह शीत, ताप और वर्षा की चिंता किये बगैर निरंतर कार्य करता रहता है। जब ग्रीष्म में धरती आग के धूम्रहीन गोले की तरह धू-धू करती जलती है, आकाश आग की वर्षा करता है, भू-तल तवे की तरह तप्त हो उठता है, तब भी भारतीय किसान अपना ख़ून-पसीना एक करता हुआ अपने खेतों में काम करता रहता है। खेत उसका हवनकुंड होता है, जहाँ वह अपने श्रम की आहुति देकर दुनिया को तृप्त कर देने वाली फ़सल तैयार करता है। उसका श्रम आम और ईख की मिठास बनकर बाहर आता है। उसकी ख़ुशियाँ सरसों और तीसी के फूलों से झाँकती हैं। यह गाँव का देवता होता है। राष्ट्र-निर्माण के लिये किसानों के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता है। जवान और किसान ही राष्ट्र के विकास की आधारशिला हैं। लालबहादुर शास्त्री ने इसी महत्त्व को समझकर ही 'जय जवान, जय किसान' का महत्त्वपूर्ण नारा दिया था।
इस प्रकार किसानों और मजदूरों का जीवन हमें सिखाता है कि जीवन में कठोर परिश्रम, धैर्य, आशावाद, प्रकृति प्रेम, सादगी, आत्मनिर्भरता और राष्ट्रप्रेम होना चाहिए। हमें इनसे प्रेरणा लेकर अपना जीवन सार्थक बनाना चाहिए।
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