किसी पर्वतीय स्थल की यात्रा का वर्णन parvatiya Pradesh ki yatra par nibandh Essay On Visit to a hill station पहाड़ों की यात्रा का अपना अलग ही महत्व एव
किसी पर्वतीय स्थल की यात्रा का वर्णन
पहाड़ों की यात्रा का अपना अलग ही महत्व एवं आनंद हुआ करता है। साधारणतः लोग प्रकृति सेवा के सौन्दर्य दर्शन के लिए पहाड़ों की यात्रा किया करते हैं, जबकि कुछ लोग मनोरंजन एवं आनंदानुभूति के लिए पहाड़ों पर जाते हैं। इसके साथ ही धनाढ्य वर्ग गर्मी से राहत पाने के लिए दो-एक महीने ठण्डे स्थान पर, पहाड़ों पर बिताया करते हैं। कभी-कभी लोग बर्फ़ गिरने (Snow fall) के अवलोकन हेतु भी भयानक सर्दी में टिकट काटकर पहाड़ों पर जाते हैं। अपनी-अपनी भावना के अनुसार सभी मनुष्य आचरण करते हैं। यही मानव-स्वभाव की सत्यता है ।
यात्रा का अवसर पिछले वर्ष मुझे भी पर्वतीय स्थल की यात्रा करने का अवसर प्राप्त हुआ। इस यात्रा पर जाने के लिए मेरे दो कारण थे। पहला तो मैं पहाड़ों के प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारना चाहता था। दूसरा यह जानना चाहता था कि वहाँ के लोगों का जीवन कैसे व्यतीत होता होगा? इसलिए मैंने मसूरी की यात्रा की योजना बनाई। मेरे दो-तीन अन्य साथी भी मेरे साथ चलने को तैयार हो गए।
देहरादून की वादी में प्रवेश
कॉलेज की छुट्टियाँ होने के कारण घर से भी हमें अनुमति मिल गई। निश्चित तिथि पर हम बस द्वारा मसूरी की यात्रा के लिए चल पड़े। शहर की भीड़-भाड़ को धीरे-धीरे पार कर हम मसूरी की यात्रा पर थे। हमारी बस देहरादून की राह पर मसूरी जाने के लिए दौड़ लगा रही थी। देहरादून की वादी में प्रवेश करने से पहले तक का सफर आम बस-मार्गों के समान ही रहा। कहीं सूखे मैदान तो कहीं हरे-भरे खेत, कहीं कुछ वृक्षों के साये और कहीं एक दम खाली सड़कें। कुछ आगे जाने पर सड़क के आस-पास उगे वृक्षों ने अचानक घना होना शुरू कर दिया। वातावरण में डर की अनुभूति होने लगी। धीरे-धीरे घने वृक्षों के जंगल और भी घने होते गए। हमारी बस भी पहाड़ों पर चढ़ती हुई दिखाई दी। गोलाकार चढ़ाई, ठण्डी हवा के तीखे झोंके, जंगली फूलों की महक, दूर से दिखने वाली बर्फ तथा सफेद पहाड़ी चोटियाँ, लगता था हम प्रकृमि के बड़े ही सुरम्य सुन्दर और रंगीन लोक में आ पधारे हैं।
वादी का यथार्थ
जी चाहता था कि बस से उतरकर इन घाटियों में दूर चला जाऊँ। घूमते बादलों में टुकड़ों को पकड़ कर इस प्रकार प्रकृति की आँख-मिचौली के दृश्य देखते हुए हम मसूरी पहुँचे।
बस के रुकने तक मेरा मन तरह-तरह की कल्पना की डोरियों में उलझा रहा, परन्तु मेरी भावना को उस समय गहरी ठेस लगी जब हमारे जैसा एक मनुष्य फटे-पुराने कपड़ों में ठिठुरते, पाँव में जूते के स्थान पर कुछ रस्सियों को लपेटे पीठ पर रस्सी और एक चौखटा-सा उठाए आकर कहने लगा-"कुली साहब। आगे बढ़कर उसने हमारा सामान उठाना शुरू भी कर दिया।"
पता नहीं किस भावना से जब मैंने उसे रोकना चाहा तो पास खड़े एक आदमी ने कहा-उठाने दीजिए साहब आपके वश में बैग लेकर चढ़ पाना सम्भव नहीं। यही लोग सामान उठाकर व भागकर चढ़ाई चढ़ा करते हैं।मैंने अनुभव किया कि दयनीयता में जीवन गुजारते, पहाड़ों के ये पुत्र ही इतनी शक्ति रखते हैं।
दर्शनीय स्थान
उस दिन विश्राम करके सुबह ही हम केम्पटी फॉल, फोती घाट, नेहरू पार्क आदि दर्शनीय स्थल देखने में व्यस्त हो गए, प्रकृति इतनी विराट, सुंदर एवं आकर्षक है इसका मुझे पहली बार अनुभव हुआ। साथ ही साथ यह भी महसूस किया कि प्रकृति उदारता से भरी है वह मुक्तभाव से निश्चित हमें कितना कुछ प्रदान करती है।
अगले दिन मैंने वहाँ के साधारण लोगों का रहन-सहन, व उनकी स्थिति को देखने में लगाए। वहाँ के जो लोग आम दिखते हैं, उन्हें बड़ा ही कठिन जीवन व्यतीत करना पड़ता है।
उपसंहार
इस पर्वतीय स्थल की मेरी यात्रा खट्टे मीठे दोनों प्रकार के अनुभव दे गई। प्रकृति की वह अनोखी घटाएँ अविस्मरणीय हैं। मेरे मन मस्तिष्क से इस यात्रा की छाप कभी नहीं मिट सकती।
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