आज भी देश के बहुत से ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां लड़कियों को खेलने से वंचित रखा जाता है. जबकि किशोरियों के लिए भी खेल के मैदान का होना जरूरी है
किशोरियों के लिए भी ज़रूरी है खेल का मैदान
हमारे गांव में लड़कियों के खेलने के लिए कोई मैदान नहीं है. जिससे इस क्षेत्र में अपना करियर बनाने का सपना देखने वाली लड़कियों के पास अवसर खत्म हो रहे हैं. पूरे गाँव में केवल एक स्कूल है जहां खेलने लायक जमीन उपलब्ध है. लेकिन वहां लड़कों का कब्जा बना रहता है और हम लड़कियां उस मैदान के एक कोने में प्रैक्टिस करने को मजबूर हैं. यहां पर ज्यादातर कबड्डी और खो खो खेलते हैं, जिसमें हमें बहुत अधिक भागदौड़ करनी पड़ती है. लेकिन हमारे लिए मैदान छोटा होने के कारण हम अच्छे से खेल नहीं पाती हैं. जिसका असर हमारे प्रदर्शन पर पड़ता है.". यह कहना घड़सीसर गांव की 16 वर्षीय किशोरी सोनू का, जो प्रतिदिन अपनी अन्य साथी खिलाड़ियों के साथ गाँव में बने एकमात्र उच्च माध्यमिक विद्यालय के मैदान में खो खो का प्रैक्टिस करने आती है.
राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 254 किमी दूर और चुरु जिला के सरदारशहर ब्लॉक से 50 किमी की दूरी पर बसे घड़सीसर गांव की आबादी करीब 3900 है. यहां की पंचायत में दर्ज आंकड़ों के अनुसार गाँव में महिला और पुरुष की साक्षरता दर में काफी अंतर है. जहां पुरुषों में साक्षरता की दर 62.73 प्रतिशत के करीब है वहीं महिलाओं में यह मात्र 38.8 प्रतिशत दर्ज की गई है. राजपूत बहुल इस गाँव में उच्च और निम्न वर्गों की भी अच्छी आबादी है. देश को खेती में काम आने वाला खनिज तत्व पोटाश की प्रचुर मात्रा उपलब्ध कराने वाले घड़सीसर गांव की किशोरियों के पास आज भी खेल का अपना कोई मैदान नहीं है. जिससे उनकी प्रैक्टिस छूट रही है और इसका नकारात्मक प्रभाव उनके प्रदर्शनों पर पड़ रहा है.
सोनू के साथ खो खो की प्रैक्टिस करने आई एक अन्य खिलाड़ी 17 वर्षीय आरती कहती है कि "हमारी टीम खेलने के लिए एक बार सरदारशहर तहसील गई थी और एक बार फोगा गांव गई थी. उसके बाद हम कहीं नहीं गए हैं. हमें कहीं जाने का मौका ही नहीं मिलता है क्योंकि हमारा प्रदर्शन अच्छा नहीं रहता है. जब प्रैक्टिस का उचित अवसर नहीं मिलेगा तो प्रदर्शन अच्छा कहां से होगा? प्रैक्टिस के लिए मैदान का होना जरूरी है, जो हमारे पास उपलब्ध नहीं है." वह कहती है कि गांव से बाहर प्रैक्टिस करने के लिए हमारे घर वाले हमें जाने नहीं देते हैं. हम अपनी इच्छा को अपने अंदर मार कर बैठ जाते हैं. हमारा भी बहुत मन करता है खेलने का और खेल की दुनिया में अपना भविष्य बनाने का, परंतु मैदान के बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं.
वहीं 10वीं में पढ़ने वाली गांव की एक 15 वर्षीय किशोरी मोनिका का कहना है कि "हमारे गांव में खेलकूद के मामले में लड़कियों में काफी प्रतिभाएं हैं. परंतु उनके खेलने के लिए मैदान ही नहीं है. पूरे गाँव में केवल स्कूल का एक मैदान है. जिसमें लड़कों का कब्जा रहता है. ऐसे में उसी मैदान में हमें खेलने में बहुत दिक्कत होती है. इसलिए गांव में लड़कियों के लिए अलग से खेल का मैदान होना चाहिए." वह बताती है कि अभी स्कूल में ग्रीष्मकालीन अवकाश शुरू हो गया है जिससे स्कूल के गेट पर ताला लग गया है. लड़के अक्सर स्कूल की दीवार फांद कर मैदान में खेलने चले जाते हैं लेकिन हम लड़कियां ऐसा नहीं कर सकती हैं. गांव की एक अन्य किशोरी कांता का कहना है कि "इस गांव में करीब 800 घर हैं. जिन घरों की लड़कियां गांव के उस स्कूल में पढ़ती हैं उन्हें तो स्कूल के दिनों में फिर भी प्रैक्टिस के अवसर मिल जाते हैं लेकिन जो लड़कियां अब यहां नहीं पढ़ती हैं वह प्रैक्टिस के लिए कहां जाएं?" वह कहती है कि लड़के तो कहीं भी या अन्य गाँव में जाकर वहां के मैदान पर खेल सकते हैं लेकिन हमारे घर वाले हमें घर से दूर प्रैक्टिस के लिए नहीं जाने देते हैं. इसलिए हमारे गांव में लड़कियों के लिए खेल का मैदान तो होना ही चाहिए जिसमें वह गांव में खेल सकें. साथ ही उन्हें खेल के सभी किट्स भी उपलब्ध कराये जाने चाहिए जिससे कि हमारे प्रैक्टिस में निखार आ सके और हम भी जिला और राज्य स्तरीय टूर्नामेंटों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें.
इस संबंध में गांव के सरपंच मनोज कुमार भी स्वीकार करते हैं कि गांव में लड़कियों के लिए अलग से खेल का मैदान नहीं है. जिससे उन्हें प्रैक्टिस करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है. उन्होंने बताया कि ग्राम पंचायत की ओर से इस संबंध में तहसील मुख्यालय को एक प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन तहसील की ओर से बताया गया है कि घड़सीसर गांव में खाली जमीन तो है परंतु वह जोहड़ पायतन (जल भंडार) और खनन विभाग की है. जिसे खेल के मैदान के लिए आवंटित करना तहसील के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. इसके बाद पंचायत ने अलग जगह का चयन करके नया प्रस्ताव बनाकर दोबारा तहसील को दिया है. जो जोहड़ पायतन और खनन विभाग की नहीं है. इस पर लोकसभा चुनाव के मद्देनजर लगे आचार संहिता के कारण कार्यवाही नहीं हो पाई है. चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने के बाद पंचायत की ओर से फिर से प्रयास किया जाएगा ताकि लड़कियों के लिए खेल का मैदान उपलब्ध हो सके.
इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता हीरा शर्मा कहती हैं कि "चाहे वह लड़का हो या लड़की खेलना हर एक बच्चे के शारीरिक विकास के लिए बहुत जरूरी है. इससे न सिर्फ आपका शरीर स्वस्थ रहता है बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी फिट रहता है. ऐसे में लड़कियों के लिए खेलने का अवसर उपलब्ध नहीं कराना उनके साथ अन्याय होगा. खेलने से लड़कियों के अंदर कॉन्फिडेंस आता है वह फील्ड में खुलकर दौड़ भाग कर सकती हैं. इससे उनका शारीरिक विकास भी होता है." वह कहती हैं कि एक तरफ खेल जहां आपके फिटनेस के लिए बेहतर है, वहीं इसमें कैरियर बनाकर खिलाड़ी देश का नाम भी रोशन करते हैं. यही कारण है कि सरकार भी अब ‘खेलो इंडिया’ के माध्यम से खेल और खिलाड़ियों को अधिक से अधिक प्रमोट कर रही है. ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों से निकल कर न केवल जिला और राज्य स्तर पर बल्कि ओलंपिक और कॉमनवेल्थ गेम में भारत का प्रतिनिधित्व कर देश के लिए मेडल जीत चुकी हैं.
इसी वर्ष तमिलनाडु में आयोजित छठे खेलों इंडिया यूथ गेम्स में राजस्थान के खिलाड़ियों ने भी विभिन्न प्रतिस्पर्धा में बेहतरीन प्रदर्शन कर राज्य को टॉप 5 में स्थान दिलाया है. इसमें लड़कों के साथ साथ लड़कियों ने भी बेहतरीन प्रदर्शन किया और राज्य की झोली में स्वर्ण पदक डाला. अपने प्रदर्शन से इन्होंने यह साबित किया कि यदि लड़कियों को भी अवसर उपलब्ध कराए जाएं तो वह भी अपने गाँव, जिला और राज्य का नाम रौशन कर सकती है. लेकिन आज भी देश के बहुत से ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां लड़कियों को खेलने से वंचित रखा जाता है. जबकि किशोरियों के लिए भी खेल के मैदान का होना जरूरी है. (चरखा फीचर)
- मीरा नायक
लूणकरणसर, राजस्थान
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