मातृभाषा में शिक्षा का महत्व मातृभाषा में शिक्षण के उद्देश्य मानव जीवन में शिक्षा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है भविष्य उज्ज्वल मातृभाषा की उन्नति
मातृभाषा में शिक्षा का महत्व
मानव जीवन में शिक्षा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह ज्ञान, कौशल और समझ प्रदान कर व्यक्तित्व विकास में सहायक होती है। शिक्षा का माध्यम जितना प्रभावी होगा, उतना ही बेहतर ज्ञान अर्जन संभव होगा।
इस दृष्टि से मातृभाषा में शिक्षा का महत्व सर्वोपरि है। मातृभाषा वह भाषा होती है जो जन्म के साथ ही मां से सीखी जाती है। यह हमारे विचारों, भावनाओं और अनुभवों को व्यक्त करने का सबसे स्वाभाविक और सहज माध्यम होती है।
विश्व राष्ट्रों का समुदाय है । विश्व में विभिन्न राष्ट्र हैं और उनकी विभिन्न भाषाएँ हैं। कुछ ऐसे भी राष्ट्र हैं, जिनमें एक प्रमुख भाषा के अतिरिक्त कई प्रान्तीय भाषाएँ हैं और कई बोलियाँ बोली जाती हैं । स्वयं हमारे ही राष्ट्र में कई बोलियाँ और प्रान्तीय भाषाएँ विद्यमान हैं; किन्तु सभी भाषाओं को मातृभाषा की संज्ञा देना उपयुक्त नहीं है । ऐसी दशा में उसका महत्त्व जानने से पहले मातृभाषा की शाब्दिक परिभाषा जानना आवश्यक होगा।
मातृभाषा की परिभाषा
मातृभाषा का पहला शब्द मातृ है, जिसका अर्थ है माता । अत: मातृभाषा वह भाषा है, जिसे बालक अपनी माता के मुख से पहले-पहल सुनता है, किन्तु भारत सरीखे राष्ट्र के लिए यह परिभाषा उपयुक्त नहीं होगी, क्योंकि ऐसे विस्तृत राष्ट्र में मराठी, गुजराती, बंगाली और पंजाबी इत्यादि अठारह भाषाएँ हैं । अतः माता का अर्थ जन्म प्रसूता माँ से नहीं ग्रहण करना होगा । वास्तव में मातृ शब्द राष्ट्रमाता का ही द्योतक है । अत: मातृभाषा उसे कहते हैं, जिसे देश के बहुसंख्यक मनुष्य बोलते हैं और जिसमें उसके राष्ट्र की संस्कृति और धर्म का भंडार सुरक्षित रहता है।
मातृभाषा और कार्य
किसी भी व्यक्ति के जीवन में मातृभाषा का सर्वाधिक महत्व होता है । किसी व्यक्ति के जीवन को विकसित करने में मातृभाषा की महत्ता होती है । कोई भी व्यक्ति सर्वप्रथम मातृभाषा से ही शब्दोच्चारण सीखता है । व्यक्ति का पथ-प्रदर्शक, नियन्ता अथवा आचार्य मातृभाषा को ही कहना पड़ेगा । जीवन के प्रथम चरण से लेकर अन्तिम चरण तक व्यक्ति का मातृभाषा से ही सम्बन्ध होता है । उसके जीवन की सम्पूर्ण उन्नति और उसके जीवन का सम्पूर्ण विकास मातृभाषा के ही द्वारा होता है । वह अपने जीवन में जो कुछ भी सीखता है, वह मातृभाषा के ही द्वाराा व्यक्त करता है । मातृभाषा का व्यक्ति के जीवन पर महान् ऋण होता है । मानव अपने अन्यान्य ऋणों से मुक्ति पा सकता है, किन्तु मातृभाषा के ऋण से वह कभी मुक्ति नहीं पा सकता । यही कारण है कि महापुरुषों का जीवन मातृभाषा के प्रेम से ओतप्रोत रहा है ।
एकता, प्रेम और मातृभाषा
मातृभाषा प्रेम और एकता का प्रतीक भी कही जा सकती है । जिस प्रकार एक माता की सन्तानों में बन्धुत्व होता है, उसी प्रकार एक भाषा बोलने वाले पारस्परिक एकता और सौहार्द के में गूँथे रहते हैं । मातृभाषा का सम्बन्ध आत्मा और प्राणों से होता है । जब कहीं-कभी-कोई अपनी मातृभाषा का श्रवण कता है, तो उसका रोम-रोम पुलकित हो जाता है । मातृभाषा में, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक एकता को दृढ़ करने की भावना रहती है । मातृभाषा से हृदय में राष्ट्रीय और जातीय परम्पराओं का भी समावेश रहता है। एकता के कारण ही मातृभाषा राष्ट्रीय विचारधारा को पुष्ट करती है । लोगों के हृदय में एक राष्ट्र की भावना का जागरण भी मातृभाषा द्वारा ही होता है
धर्म, संस्कृति और मातृभाषा
किसी भी देश की आत्मा मातृभाषा है । धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में हमारा राष्ट्र युगों से जो कुछ भी प्राप्त करता आया है, उसे मातृ-भाषा में ही सुरक्षित रख सका है । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मातृभाषा में राष्ट्र की संचित ज्ञान निधि सुरक्षित रहती है। राष्ट्र युगों तक मातृभाषा की ही दृष्टि से धर्म और संस्कृति को देखता है । मातृभाषा ही राष्ट्र के वास्तविक गौरव को सामने उपस्थित करती है । मातृभाषा के ही द्वारा राष्ट्र के अतीत जीवन का स्वर्णयुग हमारे सम्मुख उपस्थित हो सकता है । यदि मातृभाषा न होती, तो आज हम अपने धर्म, संस्कृति और इतिहास के सम्बन्ध में कुछ भी न जान पाते ।
मातृभाषा और राष्ट्रीयता
मातृभाषा राष्ट्र की आत्मा है । जिस प्रकार माली विभिन्न पुष्पों से पुष्पहार तैयार करता है, उसी प्रकार मातृभाषा राष्ट्र के सभी मानवों को एक सूत्र में गूँथती है । मातृभाषा के ही द्वारा राष्ट्र के मानवों में विचारों की एकता स्थापित होती है । विचारों की एकता, राष्ट्रीयता के विकास की जननी है, अतः राष्ट्र के भीतर राष्ट्रीयता की जागृति के लिए मातृभाषा का प्रचार अत्यन्त आवश्यक है। जिस राष्ट्र के मानवों में मातृभाषा का जितना अधिक सम्मान होगा, उस राष्ट्र में उतना ही अधिक राष्ट्रीयता का विकास होगा। इंग्लैण्ड, जर्मनी और रूस इत्यादि राष्ट्रों में आज जो राष्ट्रीयता की भावना जागृत है, उसका एकमात्र कारण यही है कि उन राष्ट्रों में मातृभाषा के लिए अधिक प्रेम है ।
मातृभाषा और शिक्षा
इंग्लैण्ड, जर्मनी और रूस इत्यादि पश्चिमी राष्ट्रों में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही है। बालक को प्रारम्भ से ही मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाती है और शिक्षा की परिसमाप्ति भी मातृभाषा द्वारा होती है । शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होने के कारण इन राष्ट्रों के युवकों के हृदय में अपने धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के लिए अधिक प्रेम होता है । आज वे अपने धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के गौरव की रक्षा के लिए महान् से महान् त्याग करने के लिए सदैव प्रस्तुत रहते हैं। खेद का विषय है कि अभी तक हमारे राष्ट्र में शिक्षा का माध्यम पूर्ण रूप से मातृभाषा नहीं बन सका है । यद्यपि राष्ट्र को स्वाधीन हुए पाँच दशकों से अधिक समय हो चुका है, फिर भी शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी भाषा के प्रति मोह उत्पन्न हो गया है, इसे हम राष्ट्र के अध: पतन का चिह्न कहेंगे। यदि राष्ट्र को उठाना है, यदि राष्ट्र के भीतर राष्ट्रीयता का विकास करना है, तो शीघ्र ही विदेशी भाषा का अन्त होना चाहिए।
मातृभाषा में शिक्षण के उद्देश्य
मातृभाषा की उन्नति ही राष्ट्र का वास्तरिक गौरव है । यदि राष्ट्र को उन्नति के मार्ग पर ले जाना है, तो सर्वप्रथम मातृभाषा को ही महत्त्व देना चाहिए । जो लोग विदेशी भाषा को महत्त्व देकर राष्ट्र को उन्नति के शिखर पर चढ़ाना चाहते हैं, वे उस व्यक्ति के समान मूढ़ हैं, जो बिना किसी वास्तविक प्रज्ञा के सहारे अंधकार में अभीप्सित वस्तु को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है । अतः राष्ट्र के प्रेमियों को चाहिए कि वे मातृभाषा की उन्नति पर ध्यान दें और सदैव स्मरण रखें भारतेन्दु हरिश्चंद्र के प्रेरक शब्द - निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल!'
मातृभाषा में शिक्षा न केवल ज्ञान प्राप्ति का एक प्रभावी माध्यम है, बल्कि यह सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। सरकार और समाज को मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए मिलकर प्रयास करने चाहिए।यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि अंग्रेजी भाषा के महत्व को बढ़ावा देते हुए भी मातृभाषा को कमजोर न होने दिया जाए।
एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण के लिए शिक्षा का आधार मातृभाषा में मजबूत होना चाहिए।यह सरकार, शिक्षाविदों और अभिभावकों का दायित्व है कि वे मिलकर मातृभाषा शिक्षा को बढ़ावा दें और आने वाली पीढ़ी को एक मजबूत नींव प्रदान करें, जिस पर वे अपना भविष्य उज्ज्वल बना सकें।
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