पहली हवाई यात्रा का अनुभव अपनी इस हवाईयात्रा को मैं भुला नहीं सकती। इस यात्रा से मुझे एक लाभ और हुआ। मैंने तय कर लिया है कि बड़ी होकर मैं विमान-परिचा
पहली हवाई यात्रा का अनुभव
मैं बेंगलुरु में रहती हूँ और यहीं के एक प्रसिद्ध विद्यालय में पढ़ती हूँ । यात्रा के नाम पर कभी कुर्ग, कभी मैसूर, कभी वृंदावन गार्डन और कभी चेन्नई जाना होता है। हम या तो कार से चले जाते हैं, या रेलगाड़ी से। पहली बार दिल्ली जाने का अवसर मिला। पिताजी को अवकाश अधिक नहीं मिल सकता था, इसलिए वायुयान से जाने का कार्यक्रम बना। मैं बहुत प्रसन्न थी, क्योंकि यह मेरी पहली हवाई यात्रा थी ।
कब क्यों ? कदम-कदम पर उत्सुकता
पिताजी ने ट्रेवल एजेंट से तीन टिकटें मँगा ली थीं। निश्चित तिथि को हम लोग हवाई अड्डे को चले। निर्धारित समय से एक घंटा पूर्व पहुँचना आवश्यक होता है। मुख्य भवन के अंदर प्रवेश करने पर सबसे पहले सामान की सुरक्षा जाँच हुई। हमने अटैचियाँ मशीन के सामने रख दीं और दूसरी ओर से उठाकर उन्हें पुनः ट्रॉली में रख लिया। आगे काउंटर पर जाकर पिताजी ने टिकट दिखाकर बोर्डिंग पास लिया । यहाँ से हमारी दोनों अटैचियाँ हमसे अलग हो गईं। पिताजी ने बताया कि वे हमारे ही वायुयान में अलग से लादी जाएँगी और दिल्ली में हमें मिल जाएँगी। हमारे पास हाथ का कुछ सामान, पर्स आदि ही रह गया था।
रोमांच और नई जानकारियाँ
बोर्डिंग पास लेकर हम आगे बढ़े। यहाँ हमारी सुरक्षा जाँच होनी थी। पुरुषों की कतार अलग थी और महिलाओं की अलग। पर्स और हैंडबैग मशीन के सामने रख दिया गया। सुरक्षा अधिकारी एक-एक कर हमारे बदन पर ऊपर-नीचे एक यंत्र घुमा रहा था और हमें आगे बढ़ा रहा था। आगे बढ़ने की इज़ाज़त मिली तो हमने पुन: अपने बैग उठाए। उन पर 'सुरक्षा जाँच' होने का कूपन बाँध दिया गया। मैंने पिताजी से कि हमारी सुरक्षा जाँच क्यों होती है ? पिताजी ने बताया – यह हमारे ही हित में है। आजकल विश्व-भर में उग्रवाद बढ़ रहा है। आतंकवादी विमानों का अपहरण कर लेते हैं। इसलिए प्रत्येक यात्री की जाँच ज़रूरी है। तभी हमारे वायुयान के उड़ान की घोषणा हुई। गेट के पास ही गाड़ी खड़ी थी। उस पर सवार होकर हम अपने वायुयान की ओर बढ़े। वायुयान में चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ लग चुकी थीं। अपना बोर्डिंग पास दिखाकर हम भी विमान में सवार हो गए।
हम तीनों की सीटें एक ही पंक्ति में थीं। मैं खिड़की की ओर बैठ गई। यान में कुछ कर्मचारियों ने सीट-बेल्ट बाँधने को कहा और उड़ान की सावधानियों के बारे में कुछ बताया, थोड़ी ही देर में हमारा यान हवाई पट्टी पर दौड़ने लगा। अचानक एक हलके झटके के साथ यान ने धरती छोड़ी और हवा उठ
में गया। मेरे लिए यह रोमांच का क्षण था ।
ऊँचाई के दृश्य का अनुभव
पिताजी ने एक पत्रिका खोल ली। पर मैं तो खिड़की से बाहर का दृश्य देखकर प्रसन्न थी। धीरे-धीरे बेंगलुरु नगर एक जगमगाते धब्बे-सा लगने लगा। तभी एक परिचारिका ने एक टोकरी मेरी ओर बढ़ाई । उसमें मेरी प्रिय टॉफ़ियाँ थीं। मैंने टॉफ़ियाँ ले लीं और उसे धन्यवाद दिया। पर मेरा मन तो खिड़की से बाहर के दृश्य में ही उलझा था। अब हमारा वायुयान बादलों से भी ऊपर था। नीचे बादल रुई के फाहों से लग रहे थे। घोषणा हुई-हम समुद्रतल से 25000 मीटर ऊपर उड़ रहे हैं। मैं चकित थी। कुछ ही देर में परिचारिकाओं की हलचल दिखाई थी। चाय-नाश्ता परोसा जा रहा था। सुंदर और सजी-धजी महिला, बड़ी विनम्रता से पूछती - शाकाहारी या ? हमें शाकाहारी नाश्ते की ट्रे दे दी गई। मैं चाय नहीं पीती, इसलिए पिताजी ने मेरे लिए फलों का रस मँगवा लिया।
अब सूर्य पश्चिम के क्षितिज की ओर बढ़ रहा था। बादल हमसे नीचे थे। सूर्य का प्रकाश रंग-बिरंगा हो चला था और उन्हीं रंगों से बादल भी रँग गए थे। बादल मैंने सदा अपने सिर के ऊपर ही देखे थे। आज मैं बादलों से भी ऊँची थी। कल्पना से ही मैं सिहर उठी । बीच-बीच में मैं पिताजी से विमान- परिचारिकाओं के काम और प्रशिक्षण के बारे में भी पूछती जा रही थी ।
नाश्ता पौष्टिक और स्वादिष्ट था। भोजन समाप्त होते-होते विमान की पेटियाँ बाँधने का आदेश हुआ। हम दिल्ली के निकट पहुँच रहे थे। विमान की ऊँचाई कम हो रही थी। थोड़ी देर में जगमगाती रोशनियाँ दिखाई देनी लगीं। पिताजी ने बताया कि हम दिल्ली के बहुत निकट हैं और हमारा विमान गुड़गाँव के ऊपर से उड़ रहा है। थोड़ी ही देर में एक हिचकोले के साथ विमान धरती से आ लगा।
अपनी इस हवाईयात्रा को मैं भुला नहीं सकती। इस यात्रा से मुझे एक लाभ और हुआ। मैंने तय कर लिया है कि बड़ी होकर मैं विमान-परिचारिका बनूँगी। यात्रा भी करूँगी और सेवा भी।
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