मुखौटा | दीपशिखा मित्तल की कहानी

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मुखौटा दीपशिखा मित्तल की कहानी ईश्वर उसे समझ दें,अगले दस बरस बाद वह दो बेटों की बहुओं को घर लाएंगे। कल ही मैंने पढ़ा था बर्बाद होने के लिए सिर्फ बददुआ

मुखौटा


रात के डेढ़ बज चुके थे दिशा की आंखों में दूर-दूर तक नींद नहीं थी।  कितनी देर से सोने का प्रयास कर रही थी फिर भी नींद नहीं आई। फिर सोचा क्यों ना एक नींद की गोली खा ली जाए कम से कम कुछ घंटे की नींद आ जाएगी तो कल का पूरा दिन आराम से कट जाएगा। मन बार-बार एक ही बात सोच रहा था आज उससे ऐसी गलती कैसे हो गई। वह तो अपने आप को बहुत एक्सपर्ट समझती थी उसे लगता था कि वह लोगों के हाव -भाव, चेहरा देखकर और उनकी बातें सुनकर उनकी असलियत को जान लेती है परंतु आज तक वह अपने जिस भाई को मासूम, बेचारा और भोला कहती रही उसे उससे ऐसी उम्मीद नहीं थी।  बेशक उसके भाई को कैद नहीं हुई थी लेकिन हत्या तो उसने की थी एक ऐसी  हत्या जो प्रत्यक्ष रूप से चाकू या बंदूक से नहीं की गई थी बल्कि धीरे-धीरे शारीरिक,मानसिक और आर्थिक रूप से मन को प्रताड़ित करके की गई थी। इस तरह दो चेहरे लगाकर भी इंसान जीता है इस बात को समझने का प्रयास दिशा रात भर करती रही। कल तक भोला सा, सीधा-साधा मासूम सा लगने वाला भाई आज उसे एक बड़ा अपराधी नजर आ रहा था कैसे उसने एक नकली चेहरे के पीछे असली चेहरा छुपाया था और उसी नकली चेहरे की आड़ से वह अपनी माँ,बहन और रिश्तेदारों सबको मूर्ख बनाता चला आ रहा था। उसकी पत्नी तो गैर जिम्मेदार,बेशर्म और कुलक्षिणी थी ही किन्तु हर बात का इल्जाम अपनी पत्नी पर डालकर भी हमेशा उसके साथ खड़े  रहने वाले भी को क्या कहूँ ? माँ की मृत्यु के बाद भी इस हकीकत को सामने आने में बरस से ज्यादा का समय लग गया।  यह सच अभी भी झूठ के पर्दों में शायद यूँ  ही छुपा रहता अगर दिशा ने सही समय पर बाबूजी की संपत्ति में से अपने हिस्से की माँग ना की होती।

15 फरवरी 2023 मकर संक्रांति की वह रात थी जिस दिन माँ  ने अंतिम सांस ली और आज 10 मई 2024 अक्षय तृतीया का दिन है।  लगभग सवा साल हो गया माँ को हम सब से विदा लिए। माँ के दीन, असहाय और लाचार चेहरे की छवि आज भी आँखों के सामने आ जाती है तो सिहर उठती हूँ।  

विधवा, बीमार, बूढ़ी,असहाय, लाचार माँ को अकेला घर में छोड़कर,खुद मियां बीवी दोनों एक बड़े शहर में एक बड़े फ्लैट में जा बसे थे। माँ जो  अनेक बीमारियों से ग्रसित थी,चलने फिरने में भी जिन्हें जिन्हें तकलीफ होती थी, शरीर जैसे बीमारियों का घर था।  किसी तरह किसी चीज का सहारा लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर धीरे-धीरे-धीरे किसी तरह पहुंचती। कमरे से वॉशरूम तक भी जाना उनके लिए एक बड़ा मुश्किल भरा काम होता था। इस हालत में माँ  को अकेला छोड़कर जा रहे हैं।  दिशा और बड़ी बहन ने जब यह सुना तो उनके होश उड़ गए। जाने का कारण पूछा, समझने की बहुत कोशिश की लेकिन भाई का कहना था कि उसकी पत्नी अब यहाँ  नहीं रहना चाहती उसे जाना ही होगा वह हर हफ्ते माँ  की देखभाल के लिए आया करेगा। माँ  की आँखों से आंसू झर -झर बह रहे थे। लेकिन बहू बेटे को तरस नहीं आया। माँ  और बाबूजी की पेंशन से ही अपना घर चला रहे दोनों माँ को उसके हाल पर छोड़कर बड़े शहर में जा बसे।दोनों बहनों ने माँ से उनके साथ रहने के लिए कहा लेकिन वे न मानीं । 

दिशा ने  जब भाई को समझाना चाह तब भाई की बातें सुनकर ऐसा लगा कि नहीं माँ और पत्नी दोनों के बीच में वह विवश है और इसी कारण उसको अपनी पत्नी के साथ अपनी माँ को अकेला छोड़कर जाना पड़ रहा है। माँ को अलग छोड़कर जाने के बाद भी भाई बार-बार अपनी पत्नी की बुराई करता।  उसे खाना न देने की बात करता और भी न जाने कितनी बातें कभी-कभी तो वह तलाक लेने की भी बात करता।  तब हमें लगता कि शायद उसकी पत्नी बहुत ही खराब है और तब दिशा  सोचती कि ठीक है सास और ननदों से नहीं निभाया तो कोई बात नहीं अपने पति से तो कम से कम उसे निभाकर चलना चाहिए। भाई जब तलाक  की बातें करता तो हम उसे समझाते  कि नहीं अब तुम्हारे बच्चे बड़े हो गए हैं जैसे भी हो  तुम उसी के साथ निर्वाह करो और उसके दुख में दुखी हो जाते।  उसके बारे में सोचते की बेचारा कैसी स्थिति में फँस गया है। परंतु आज एक के बाद एक सारी परतें खुलती  जा रही  थीं । पत्नी की आड़ में वह खुद ही माँ को इस हालत में छोड़कर से दूर चला गया था और माँ  बहू  को दोष देती और बेटे कि हालत पर दुखी होती । 

जब पैसों की जरूरत होती तो तो वह माँ का एटीएम कार्ड ले जाता है और जितना मर्जी उतना पैसा निकलता माँ  के रोकने टोकने पर अक्सर वह कहता कि आज मेरा यहाँ  नुकसान हो गया आज मेरा वहाँ  नुकसान हो गया।  ऐसा एक बार नहीं अनेक बार हुआ जब उसने यह कहा कि अब मेरा 5 लाख का नुकसान हो गया।  अब मेरा 2 लाख का नुकसान हो गया या अब मेरा 30 लाख का नुकसान हो गया। कुछ ना कुछ दर्द भरी कहानी बनाता। माँ  बेचारी सुनकर, रोती और परेशान होकर रह जाती हमें जब पता चलता तो हमें भी लगता बेचारा भाई इतना सीधा है कैसे हर बार किसी की बातों में आ जाता है।  लेकिन अब समझ में आया कि  वास्तविकता कुछ और ही थी।  बार-बार नुकसान नहीं हो रहा था बल्कि बार-बार माँ से पैसा निकाला जा रहा था। माँ ने  तिनका तिनका कर खून पसीने की जो कमाई अपने बुढ़ापे के लिए रखी थी  उसने वह सब बर्बाद कर दी थी। फिर भी माँ ने कुछ पैसे जमा कर शहर में एक नया फ्लैट उन्हें दिलवा  दिया ताकि सर पर छत रहे ।

उसकी पत्नी का हम ननदों से कोई संबंध नहीं था।  यहाँ  तक कि  दिशा के बड़े बेटे की जब शादी हुई तो उसने शादी में आने से भी साफ इनकार कर दिया। भाई ने फिर पत्नी का बचाव किया और कहा मैं क्या कर सकता हूँ  वह आने के लिए तैयार नहीं है और मुझे फिर लगा कि  बेचारा उसको अकेले ही आना पड़ेगा क्योंकि उसकी पत्नी संबंध निभाने के लिए तैयार ही नहीं है। इधर माँ की तबीयत दिन पर दिन खराब होती जा रही थी । शुगर इतना ज्यादा बढ़ गया था कि शरीर के घाव ठीक नहीं होते थे। उनका पैर पक गया था,उसमें से हमेशा पस बहता था।  डॉक्टर्स का कहना था कि पैर काटना पड़ेगा । पहाड़ से लंबा दिन,इतना दर्द और तकलीफ जाने कैसे सहती होगी माँ। कभी-कभी टीवी देखते देखते कुर्सी पर ही बैठी -बैठी सो जाया करती।  घंटों  बाद नींद खुलती। अकेले बैठ घंटों रोती । पैर का दर्द बहुत परेशान करता था कभी-कभी पूरी- पूरी रात रोते-रोते कट जाती दर्द से चिल्लाते- चिल्लाते अनेक प्रकार की दवाई गोलियां खाते-खाते वह किसी तरह अपना समय काट रहीं थी। 

लेकिन मेरा भाई जिसे मैं समझती थी  कि वह अपनी पत्नी के कारण कुछ नहीं कर पा रहा है क्योंकि हर बार उसके पास एक ही बहाना होता था उसकी पत्नी ने उसे ऐसा कहा है।  उसकी पत्नी उसका काम नहीं कर रही है।  उसकी पत्नी उसे बिना बताए मायके चली गई । उसकी पत्नी पिछले पूरे महीने घर से गायब थी । उसकी पत्नी उसके साथ कोई संबंध भी नहीं रखती । वह उसकी पत्नी से तलाक लेना चाहता है।  यह सारी बातें जानने के बाद मुझे हमेशा यही लगता की बेचारा मेरा भाई कितना दुखी है। 

आज रात माँ का फोन आया और लगभग आधा घंटा बात करती रहीं । मैंने कहा ठीक है माँ अब आप आराम करो कल फिर बातें करेंगे।  दिशा ने भी अपनी दवाई खाई और सोने चली गई।  सुबह-सुबह अचानक जब भाई के फोन की  घंटी बजी तो दिशा घबरा उठी।  इतने सवेरे फोन करने की क्या आवश्यकता हो सकती है और उसका  डरना सही था भाई कह रहा था दीदी मम्मी को फोन कर रहा हूं तो मम्मी फोन नहीं उठा रही हैं ,रात भी फोन किया था पता नहीं क्या हो गया। मैं तो उनसे बहुत दूर दूसरे राज्य में थी फिर भी मैंने अपने पति को सारी बात बताई,उन्होंने अपने छोटे भी को  वहाँ भेजा, आस पड़ोस वालों को वहाँ  इकट्ठा किया और दरवाजा बजाने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला दरवाजा तोड़ दिया गया और अंदर का दृश्य देखकर सभी की  अंतरात्मा हिल गई।  माँ आँगन में बेसुध पड़ी हुई थी।  शायद रात को उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ और वह वहीं  गिर गई लेकिन मदद के लिए कोई पास नहीं था इसलिए वह इस हालत में पूरी रात वहीं पड़ी रही। सही समय पर इलाज न मिल पाने के कारण,वे पैरालाइज हो चुकी थीं । अस्पताल में भर्ती कर दिया गया। वह कुछ बोल नहीं पा रही थीं ,कुछ सुन और समझ रही थी कि नहीं यह कहना मुश्किल है। हाँ बहू को कोई चिंता नहीं थी उनकी खरीदारी चल रही थी बाजार से डबल बेड आर्डर किया गया था और घर में उसको फिक्स किया जा रहा था। माँ का अंतिम समय शायद निकट था उनका दो-तीन दिन आईसीयू में रखने के बाद डॉक्टर में जवाब दे दिया और कहा कि घर ले जाओ और जितनी सेवा कर सकते हो करो । लेकिन प्रश्न यह  था कि  सेवा करेगा कौन वह बहू बेटा जो माँ को इतनी बुरी हालत घर में अकेला  छोड़कर शहर में आ बसे थे । लेकिन माँ  के ATM में पैसा था । माँ की अपनी पूरी पेंशन और पिताजी की पेंशन, कुल मिलाकर काफी पैसे आते थे । सो माँ  के पैसे थे और दुनिया सामने थी तो बेटे को अपने फ्लैट में माँ को लाना पड़ा । एक अटेंडेंट को उनकी सेवा के लिए रख दिया गया लेकिन ईश्वर भला करें कि उन्होंने माँ को इस  हालत में और ज्यादा दिन नहीं रखा और उनकी मृत्यु हो गई। 

मुखौटा | दीपशिखा मित्तल की कहानी
मृत्यु की सूचना रिश्तेदारों को दे  दी गई।  बहु बेटे के पास ज्यादा वक्त नहीं था जो माँ के लिए बैठकर रोते। 13 दिन तक उनकी तेरहवी करने का इंतजार करते हैं या अगले बरस उनको याद कर उनकी बरसी करते सो एक साथ अगले दिन सारे काम निपटा दिए गए।  13वीं बरसी सब एक साथ में ताकि आगे कोई व्यवधान ही ना रहे। माँ रूपी व्यथा से बहू बेटे को मुक्ति मिल चुकी थी लेकिन अब थी बात माल मसाले की । माँ  के पास जेवर बहुत था इसके बारे में वह ना किसी को बताती थी ना किसी को देती थी हमेशा अपने कलेजे से लगाकर रखतीं थीं । ये बात बहू -बेटा बहुत अच्छे से जानते थे और माँ  के मरने के तीसरे दिन बाद ही वह वापस उस घर में पहुँच गए और उनके सारे सामान को खोलकर जितनी नगदी और जेवर मिला वह सब समेट लाए।  अब बात बची थी मकान बेचने की मकान ऐसी जगह पर था जिसकी कीमत करोड़ों में थी।  दोनों की किस्मत खुल गई  थी कि अब तो हम करोड़पति बन गए माँ ने जो  फ्लैट दिलाया था उस फ्लैट में कौन जाएगा।  मेरी पत्नी को वह पसंद नहीं है अब तो हम दो ढाई करोड़ का एक अच्छा घर खरीदेंगे और वही रहेंगे।  सवा साल गुजर गया अनेक सुख और दुख दिशा के  जीवन में आए लेकिन उसकी पत्नी का कभी कोई फोन नहीं आया उसने कभी ननदों से बात करने की कोशिश नहीं की जब दिशा  अपनी ससुराल में गई तो उसने सूचित किया कि वह आ रही है लेकिन फिर भी उसकी पत्नी ने एक बार भी नहीं कहा कि आप मिलने आना। 

दिशा की  आँखें  हर बार भर आती थी माँ  के चले जाने के बाद उसका मायका ही   खत्म हो गया था।  भाभी ने बरसों पहले हमसे संबंध तोड़ लिया था भाई का कभी-कभी मन होता था तो शुरू में एक -दो  बार फोन आया लेकिन धीरे-धीरे वह भी बंद हो गया।  आज सवा साल बाद दिशा को अचानक एहसास हुआ कि जिन लोगों ने माँ के साथ ऐसा बर्ताव किया उनका उस संपत्ति पर कैसे हक हो सकता है।  जेवर और नगदी तो वे ले चुके थे।  उसने  दीदी से बात की और कहा कि हमें संपत्ति में अपना अधिकार माँगना चाहिए क्योंकि ऐसे भाई भाभी जो ना सुख में साथ खड़े थे ना दुख में,जो ना माँ के बन सके ना बहन के, उनको इस तरह सारा हिस्सा क्यों दे दिया जाए? दीदी पहले तो डरीं  लेकिन फिर तैयार हो गई और दिशा ने  एक लिखित सूचना दे दी कि वह हमारी  पैतृक संपत्ति है और उस पर हम तीनों भाई बहनों का समान अधिकार होगा। यह खबर पढ़ते ही भाई और उसकी पत्नी के होश उड़ना लाजमी था। उसने तुरंत दीदी को फोन किया और कहा की दिशा दीदी ने ऐसा ऐसा मैसेज भेजा है बड़ी दीदी ने उसे समझाया ठीक ही है उसने जो कुछ किया है सोच समझ कर किया है वैसे भी तुम्हारे हाथों से बार-बार पैसों का नुकसान होता है और तुम्हारी पत्नी भी तुम्हारा साथ नहीं देती पैसा तीन हिस्से में बँटेगा तो हो सकता है हम बहनों के पास में आया हिस्सा कभी तुम्हारे ही काम आ सके।  उसके पास अभी कोई जवाब नहीं था वह चुप हो गया।  दूसरी बार दिशा ने उसको फिर फोन किया।  कुछ हाल-चाल पूछने के बाद मकान के बारे में बात की ताकि वह समझ सके कि यह कोई मजाक नहीं था बल्कि हकीकत है इस बार उसने बहुत सारे बहाने बनाए उसने कहा कि आज ही मेरा 2 लाख का नुकसान हुआ है कुछ समय पहले 6 लाख का नुकसान हो गया था और भी न जाने कितने सारे बहाने मैं सब सुनती रही लेकिन मकान की बात पर अटल रही । 

आज लगभग महीना भर हो गया मैंने सोचा एक बार याद दिला दूं मैंने रात को उसे फोन किया तो उसने फोन नहीं उठाया मुझे लगा शायद व्यस्त होगा फिर अचानक यह भी ख्याल आया कहीं उसकी तबीयत तो खराब नहीं ?कहीं कुछ और परेशानी तो नहीं ?यही सोचते सोचते रात गुजर गई सोचा कल दोपहर को फोन करूंगी दोपहर 2:30 बजे फिर फोन किया उसने फोन तो उठाया लेकिन कहा कि वह रास्ते में है और शाम को बात करेगा।  मैं प्रतीक्षा करती रही शाम तक फोन नहीं आया रात 8:30 बजे मैंने फोन किया उसकी आवाज मुझे बिल्कुल स्पष्ट सुनाई दे रही थी लेकिन वह बहाना बना रहा था कि जैसे मेरी आवाज उस तक ना पहुंच रही हो।  लेकिन जब मैं बार-बार हेलो हेलो करती रही तो उसको लगा कि अब तो बात करनी पड़ेगी । हाल-चाल पूछने के बाद मैंने फिर से उस मकान की बात की। बात तो उसने सुन ली लेकिन वह अंदर से पूरी तरह से भड़क गया और उसने अगले ही पल दीदी  को फोन कर उनसे मेरे बारे में न जाने क्या क्या भला - बुरा कहा। दीदी तो डर गई और एक ही बार में उन्होंने हथियार डाल दिए । बोली मुझे नहीं चाहिए तेरा मकान तू ऐसा करना जब भी मकान बिकेगा तीन हिस्से करके तू  मेरा हिस्सा अपने पास रख लेना मैं अपना रिश्ता नहीं खोना चाहती और उन्होंने अपना निर्णय अगले दिन फोन पर मुझे सुना दिया उन्होंने ही मुझे बताया कि वह कह रहा है कि मैं बार-बार उसे फोन करके मकान के बारे में उससे पूछती  हूँ,उसे परेशान करती हूँ । मेरा उसकी संपत्ति पर क्या हक  है? 

हम लड़कियाँ  ऐसे मामलों में चुप रह जाती हैं । ये हम भीख नहीं माँग रहे, ये हमारा कानूनी हक है।  बहुत देर कर दी मैंने बोलने में यह कार्य तो मुझे इस समय कर देना चाहिए था जब वह मेरी माँ के साथ इस तरह का बर्ताव कर रहा था।  बहुत अफसोस है मुझे कि मैं उसे समय नहीं बोली। हाँ लेकिन यह सच है कि मेरे आवाज उठाने से उसका चेहरा बेनकाब हो गया। उसकी पत्नी से संबंध अच्छे हो गए और शायद अब बड़ी बहन के साथ भी अच्छे हो जाएं क्योंकि वे अपना हिस्सा उसे दान में दे रहीं हैं । ईश्वर उसे समझ दें,अगले दस बरस बाद वह दो बेटों की बहुओं को घर लाएंगे। कल ही मैंने पढ़ा था बर्बाद होने के लिए सिर्फ बददुआ की जरूरत नहीं है किसी का सब्र भी बर्बाद करने के लिए काफी है। मेरी माँ ने बहुत सब्र किया।



- दीपशिखा मित्तल 
हिन्दी अध्यापिका ,अशोका यूनिवर्सल स्कूल 
नाशिक महाराष्ट्र

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मुखौटा दीपशिखा मित्तल की कहानी ईश्वर उसे समझ दें,अगले दस बरस बाद वह दो बेटों की बहुओं को घर लाएंगे। कल ही मैंने पढ़ा था बर्बाद होने के लिए सिर्फ बददुआ
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