मुसीबत में ही सच्चे मित्र की पहचान होती है कहानी लेखन सच्चे मित्र जीवन के अनमोल रत्न होते हैं। वे हमें मुश्किलों में सहारा देते हैं, हमारे जीवन में ख
मुसीबत में ही सच्चे मित्र की पहचान होती है कहानी लेखन
सच्चे मित्र जीवन के अनमोल रत्न होते हैं। वे हमें मुश्किलों में सहारा देते हैं, हमारे जीवन में खुशियां लाते हैं और हमें एक बेहतर इंसान बनने में मदद करते हैं। हमें सदैव अपने जीवन में सच्चे मित्रों की कद्र करनी चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए।
जब हम खुश होते हैं और सफलता के शिखर पर होते हैं, तो हमारे आसपास कई लोग होते हैं जो हमें अपना मित्र बताते हैं। परंतु जब जीवन में मुश्किलें आती हैं, जब हम अकेले और निराश होते हैं, तब सच्चे मित्र ही हमारे साथ खड़े रहते हैं।
'विपत्ति कसौटी जे कसे, तेहि साँचे मीत।' यह पंक्ति अक्षरशः सही व उचित है कि विपत्ति ही एक ऐसी कसौटी है जिस पर मित्रता को परखा जाता है। मित्रता बड़े-से-बड़े और अच्छे-से-अच्छे व्यक्ति को उसके बूरे समय में पहचान सिखाती है। वास्तविकता तो यही है कि मित्र की असली पहचान बुरे वक्त में ही होती है। जो हमारा बुरे वक्त में साथ देता है, वही हमारा सच्चा मित्र होता है।
मित्रता पर आधारित कहानी
एक बार की बात है। रामपुर शहर में दो मित्र रहते थे। एक का नाम था-अतुल और दूसरे का नाम था-सुबोध। दोनों बहुत ही गहरे मित्र थे और उनकी मित्रता बचपन से थी। दोनों बड़े हुए और नौकरी करने लगे। अतुल नौकरी की तलाश में दिल्ली आ गया और सुबोध रामपुर में ही नौकरी करने लगा। सुबोध अपनी नौकरी से खुश था। उसकी एक सुशील घरेलू पत्नी थी और दो लड़के थे। अतुल दिल्ली आकर नौकरी ढूँढ़ने लगा, उसे भी नौकरी मिल गई। उसका भी विवाह हुआ और वह भी अपने परिवार के साथ खुश था। अतुल का विवाह एक संपन्न परिवार में हुआ। उसकी पत्नी एक उच्च कुल से संबंध रखती थी। अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी, महत्त्वाकांक्षी एवं उच्चाकांक्षी थी। समय-समय पर अपने पति को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती थी। अतुल के एक बेटा और एक बेटी थे। एक ओर दिल्ली में अतुल का परिवार और दूसरी ओर सुबोध का रामपुर में परिवार, दोनों मित्र अपनी-अपनी जगह खुश थे।
सुबोध की पत्नी रामपुर के एक स्कूल में अध्यापन कार्य करती थी और अतुल की पत्नी नोएडा के नामी स्कूल में अध्यापन कार्य करती थी। दोनों के परिवार की धीरे-धीरे जरूरतें बढ़ने लगीं और दोनों अपने-अपने पारिवारिक झंझटों में फँसने लगे। यदा-कदा दोनों एक-दूसरे के घर आते-जाते भी थे। धीरे-धीरे परिवारों में आना-जाना कम हो गया, परंतु दोस्ती में कोई दरार नहीं आई। कुछ वर्ष बीतने पर दोनों के बच्चे बड़े हो गए अब सुबोध को अपने बच्चों की चिंता होने लगी, क्योंकि उसके खर्चे अधिक और आमदनी कम थी। बच्चे बड़े होने पर माँग भी रखने लगे। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि सुबोध का बड़ा बेटा पढ़ाई में अच्छा था और वह उसे इंजीनियरिंग कराना चाहता था। ऐसे में उसे पैसों की सख्त आवश्यकता थी। उसकी पत्नी भी इस बात को लेकर चिंतित रहती थी। वे अपने संबंधियों को यह बात बताना नहीं चाहते थे और उनके आगे मुँह खोलना नहीं चाहते थे। सुबोध के पास एक ही आशा की किरण थी और वह था उसका बचपन का मित्र अतुल ।
समस्या का हल
उसने आव देखा न ताव, तुरंत अपने मित्र को फोन लगाया और उससे उसने अपनी समस्या बताई। उसकी समस्या सुनकर अतुल का दिल पसीज गया और वह सुबोध की बात सुनकर उसे उसके बेटे आदित्य की पढ़ाई के लिए पैसे देने को राजी हो गया। सुबोध को अपने मित्र पर पूरा विश्वास था कि वह उसे मना नहीं करेगा और वही हुआ। इस प्रकार सुबोध को यह विश्वास हो गया कि मुसीबत के समय काम आने वाला उसका सच्चा मित्र अतुल ही है, उसने उसे मुसीबत के समय सहायता देकर अपनी सच्ची मित्रता का परिचय दिया।
बहुत ही शानदार लिखते है आप, बहुत दिनों के बाद कोई अच्छी कहानी पढ़ी है। दिल खुश हो गया। इस कहानी के माध्यम से आपने सच्ची मित्रता का वर्णन किया हो बहुत दिल को छूने वाले शब्दों में किया है। बहुत बहुत धन्यवाद इस तरह की कहानी पेश करने के लिए। 🙏
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