नारियों को किसी भी व्यवसाय से बहिष्कृत नहीं करना चाहिए नारी के विकास में बाधक अशिक्षा, अज्ञान, भय आदि भावों को दूर कर उनके स्वाभाविक गुणों के प्रचार
नारियों को किसी भी व्यवसाय से बहिष्कृत नहीं करना चाहिए
विधाता ने नर व नारी बनाकर इस संसार की रचना की। समाज ने दोनों के क्षेत्र बाँट दिये। पुरुष को घर के बाहर तथा स्त्री को घर के अन्दर का क्षेत्र दिया गया और एक सीमा में आबद्ध कर दिया गया।
"शक्ति को कोई सीमा में आबद्ध नहीं कर सकता है शक्ति तो स्वतः प्रकट हो जाती है, बहती हुई हवा की तरह, फूल की खुशबू की तरह शक्ति को सीमाबद्ध नहीं किया जा सकता है। मनुष्य की योग्यता उसके क्षेत्र को विशाल बना देती है।" नारी के स्वाभाविक गुण, दया, परोपकार, सहनशीलता, धैर्य, साहस, पराक्रम आदि ने उसकी सीमाएँ नष्ट कर दीं और चारदीवारी से बाहर निकलकर उसने ऐसे अद्भुत अविस्मरणीय कार्य किये जिसका पुरुष समाज सदा ऋणी रहेगा।
शक्ति को सीमा में बाँधना बुद्धिमानी नहीं है
व्यक्ति को काम देकर उसका पालन-पोषण कर अपने पाँव पर खड़ा करने का कार्य राष्ट्र निर्माण का प्रमुख कार्य है,जिसका सम्पादन नारी ही करती है। घर में माँ, बहन, पत्नी आदि का कर्त्तव्य पूर्ण करते हुए मनुष्य की अधिकांश सुख-सुविधा का ध्यान नारी ही रखती है। आदिकाल से अब तक प्रत्येक क्षेत्र का कुशल नेतृत्व करके नारी ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि नारी का क्षेत्र सीमित नहीं होना चाहिए। शक्ति को सीमा में बाँधना बुद्धिमानी नहीं है ।
अपने देश भारत के निर्माण में नारी का सदा योगदान रहा है। वैदिक काल में पवित्र वैदिक ऋचाओं की स्रष्टा तथा आम आदमियों को उनका साक्षात्कार कराने वाली भी नारियाँ थीं। गार्गी, गौतमी, कात्यायनी आदि के उदाहरण हमारे सामने हैं।
पौराणिक काल में युद्ध क्षेत्र में कैकेयी आदि ने अपना कौशल दिखाया ।मध्यकाल में युद्ध क्षेत्र में सत्यभामा आदि ने अपना कौशल दिखाकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया था ।
आधुनिक युग में राजकुमारी अमृत कौर, सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी पण्डित ने राष्ट्र निर्माण में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।विकासशील भारत के विकास में आज नारी का योगदान और अधिक कर दिया गया है। पहले नारी का क्षेत्र शिक्षिका, नर्स या गृहिणी तक था, किन्तु आज नारी हर क्षेत्र में सक्रिय हो गयी है।चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या स्वास्थ्य का या राजनीति का।वह अपनी क्षमता व बुद्धि से पालन-पोषण के साथ-साथ समाज एवं राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व को निभाने में पूर्णतया समर्थ एवं सक्रिय है, फिर भी पुरुष में पता नहीं वह कौन-सी हीन ग्रन्थि है जिसके कारण वह नारी को समाज में बराबरी का दर्जा देने से डरता है। नारी के कार्यों ने उसे सर्वगुण सम्पन्न सर्वक्षेत्र का नेतृत्व कर सकने में समर्थ सिद्ध कर दिया है, किन्तु हमारे देश का दुर्भाग्य है कि वह नारी शक्ति का पूर्ण उपयोग करने से घबराता है और उसे एक सीमा में बन्द कर देना चाहता है।
मानव को स्वतन्त्र चिन्तन करना होगा
देश एवं राष्ट्र के विकास के लिए मानव को स्वतन्त्र चिन्तन करना होगा। नारी वह दहकता हुआ अंगारा है जिसमे 'घृणा', 'द्वेष' आदि भाव जलकर नष्ट हो जाते हैं, जो देश में प्रेम की भावना उत्पन्न करने में समर्थ है। नारी यद्यपि कोमलता के स्वाभाविक गुण से सम्पन्न है फिर भी उसमें कर्त्तव्यनिष्ठा, सहनशीलता आदि ऐसे गुण हैं जिनके कारण वह राष्ट्र निर्माण के कार्यों में नर की अपेक्षा अधिक सहायक सिद्ध हो सकती है।
आज देश को अन्य राष्ट्रों के समान विकसित करने के लिए नारी शक्ति का आह्वान करना होगा। पुरुष को अपनी संकीर्णता से ऊपर उठकर नारी को निर्भर भाव से मुक्त करके कार्य करने का अवसर प्रदान करना होगा तभी देश एवं राष्ट्र का सर्वतोन्मुखी विकास त्वरित गति से होगा।
नारी के विकास में बाधक अशिक्षा, अज्ञान, भय आदि भावों को दूर कर उनके स्वाभाविक गुणों के प्रचार-प्रसार का उचित अवसर देकर उसकी शक्ति को निर्माण कार्यों में लगाया जाये। नारी के भीतर विद्यमान अद्भुत शक्ति को विकास के पूर्ण अवसर प्रदान करने के लिए नारी का हर क्षेत्र में प्रवेश होना चाहिए। उसका क्षेत्र सीमित नहीं करना चाहिए।
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