निर्मला उपन्यास के आधार पर जियाराम का चरित्र चित्रण मुंशी तोताराम का मंझला लड़का जियाराम है । वह उपन्यास का महत्त्वपूर्ण पात्र है। मुंशी जी की शादी
निर्मला उपन्यास के आधार पर जियाराम का चरित्र चित्रण
निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद का प्रसिद्ध सामाजिक उपन्यास है । प्रस्तुत उपन्यास मे मुंशी तोताराम का मंझला लड़का जियाराम है । वह उपन्यास का महत्त्वपूर्ण पात्र है। मुंशी जी की शादी के समय उस की आयु बारह वर्ष की है । वह सरल है तथा सहज रूप में ही निर्मला को मां के रूप में स्वीकार कर लेता है । वह निर्मला और मंसाराम के बीच संदेशवाहक का काम भी करता है क्योंकि वह मंसाराम के साथ ही स्कूल में पढ़ता है । उस का चरित्र निम्नलिखित शीर्षकों में विश्लेषित किया जा सकता है-
संवेदनशील एवं आज्ञाकारी
उपन्यास के प्रारम्भ में हम उसे एक संवेदनशील एवं आज्ञाकारी पुत्र के रूप में देखते हैं । वह अपने भाई मंसाराम से प्यार करता है । वह मंसाराम से कहता है, "तुम चले आये, तो मैंने भी शाम को अपनी किताबें संभाली ! यहीं तुम्हारे साथ रहना चाहता था ।" वह निर्मला की हर आज्ञा का पालन करता है, उसका आदर भी करता है ।
जियाराम आयु में छोटा है परन्तु फिर भी निर्मला की हालत समझता है । वह मंसाराम को बताता है कि मां उस के लिए बहुत रोती है परन्तु पिता जी को सामने देख कर हंसने का अभिनय करती है । मंसाराम के घर से जाने का कारण वह मां तथा तो पिता को समझता है इस लिए मां से भी वह रुष्ट रहने लगता है ।
कठोर एवं उद्दण्ड
जियाराम के लिए बड़े भाई की मृत्यु एक आघात सिद्ध हुई । वह मंसाराम की मृत्यु के लिए पिता को पूरी तरह दोषी ठहराता है । वह आरोप लगाता है कि पिता ने उसे विष दे कर मारा है । वह अपने पिता को इस लिए भी दोषी समझता है क्योंकि उन्होंने बुढ़ापे में शादी करवाई है । बुढ़ापे की इस अनमेल शादी को ही वह सारे झंझट की जड़ समझता है । वह उद्दण्ड हो गया है क्योंकि पिता के प्रति उस के मन में घृणा भर गई है । वह पिता पर हाथ उठाने को भी तैयार है और उन्हें पिटवाने की धमकी भी देता है । वह पिता के अनुशासन को बिल्कुल स्वीकार नहीं करता । उसे लगता है कि उसके पिता का व्यवहार ऐसा नहीं रहा कि उसका सम्मान किया जा सके ।
स्नेह से सुधर सकता है
जियाराम, डॉ० भुवन मोहन का सम्मान करता है । उनके समझाने पर पिता का आदर करने और मिल कर रहने के लिए भी मान जाता है । उसमें सुधार की संभावना है । पिता का आवेश युक्त एवं व्यंग्यात्मक व्यवहार उसे फिर से बुराई की ओर ले जाता है । उसे लगता है कि उसके पिता का व्यवहार शत्रुतापूर्ण है । वह अपने मित्रों को आवारा कहा जाना भी स्वीकार नहीं करता । यदि मुंशी जी धैर्य से काम लेते तो वह सुधर सकता था ।
कुसंगति में पड़ा युवक
निर्मला, अपनी बहन कृष्णा की शादी में चली जाती है और दो तीन मास लौट कर नहीं आती । इस बीच लगता है कि वह बुरी संगति में फंस गया है । भाई की मृत्यु का आक्रोश पिता पर केन्द्रित हो गया है । मुंशी जी अपने दुःख में उस के भावों को समझ नहीं पाते और अक्रामक बन जाते हैं। पिता-पुत्र में विरोध भाव एक प्रकार की दुश्मनी का रूप धारण कर लेता है । कसंगति से इस भाव को हवा मिलती है । वह चोरी करके अपनी मां के गहने बेच आता है । उस की पहली भूल की घातक सिद्ध होती है । पकड़े जाने के भय से तथा कलंक लगने के डर से वह आत्महत्या कर लेता है ।
पश्चात्ताप की अग्नि में जलता सरल युवक
जियाराम स्पष्ट वक्ता है । वह जल्दी ही क्रोध में आ जाता है । डॉ० भवन मोहन के समझाने पर सचमुच दुःखी होता है और पछताता हुआ डाक्टर से कहता है, उनसे कहिए, "मेरे अपराध क्षमा कर दें नहीं तो मैं मुंह में कालिख लगा कर कहीं निकल जाऊंगा-डूब मरूंगा ।"
इस प्रकार हम देखते हैं कि उसके चरित्र में अच्छाई का अंश विद्यमान है । क्षणिक आवेश में वह कुछ कह भी जाता है तो बाद में उस पर पछताता है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जियाराम एक भावुक, संवेदनशील, उपेक्षित एवं कुसंगति में धकेला गया युवक है । उस के जीवन की त्रासदी यही है कि उसे ठीक मार्ग-दर्शक नहीं मिला और पिता ने उसे गलत ही समझा । वह यथार्थवादी पात्र है ।
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