निर्मला उपन्यास में मध्यम वर्ग का यथार्थपूर्ण चित्रण हुआ है मुंशी प्रेमचंद मध्यमवर्ग का आचार-विहार इस उपन्यास में प्रतिबिम्बित है । मध्यमवर्ग झूठी मान
निर्मला उपन्यास में मध्यम वर्ग का यथार्थपूर्ण चित्रण हुआ है
भारत जैसे निर्धन राष्ट्र में जहां आज भी करोड़ों लोग गरीबी की रेखा के नीचे रहते हैं, मध्यमवर्ग को पहचानना सरल नहीं है । आर्थिक दृष्टि से मध्यमवर्ग में हम ऐसे लोगों को ले सकते हैं जो कि इतना कमा लेते हैं कि भूखों न मरना पड़े परन्तु इतना अधिक नहीं कमा पाते कि ऐश कर सकें। जिनके पास इतने आर्थिक साधन अवश्य होते हैं कि साधारण सुखमय जिन्दगी जी सकें परन्तु इतने धनी नहीं होते कि विलासिताओं पर खर्च कर सकें । मध्यवर्ग में भी आय भेद पर्याप्त मात्रा में हो सकता है । आज के युग में हजार-बारह सौ रुपया कमाने वाले से लेकर चार-पांच हजार रुपया कमाने वाले तक को मध्यमवर्ग में रखा जा सकता है ।
मध्यम वर्ग मे केवल आर्थिक विभाजन नहीं है। मध्यवर्ग की मानसिकता इसकी असली पहचान है। मध्यवर्ग आर्थिक दृष्टि से निम्न वर्ग के निकट होकर भी नकल उच्च वर्ग की करता है । इस वर्ग के लोग समाज में धनी होने का दिखावा करते हैं, अपनी हैसियत से बढ़ कर मेले, त्यौहारों पर खर्च करते हैं सामाजिक स्तर की प्रतीक वस्तुओं की ओर भागते हैं, अंग्रेजी शिक्षा को अपनाते हैं, अन्धविश्वासों में फंसे रहते हैं, शीघ्र अमीर होना चाहते हैं । इस वर्ग की औरतें उच्च वर्ग की औरतों की तरह स्वतन्त्र होना चाहती हैं परन्त संस्कारों से मक्त भी नहीं हो पातीं । पारस्परिक ईर्ष्या एवं द्वेष इनका गहना होता है । नाम के पीछे यह वर्ग दीवाना होता है और घर फूँक तमाशा देखता है ।
प्रस्तुत उपन्यास में तीन मध्यवर्गीय परिवारों का चित्रण किया गया है। एक परिवार वकील उदयभानु लाल का है, दूसरा भालचन्द्र सिन्हा का तथा तीसरा मुंशी तोताराम का । इन तीनों मध्यवर्गीय परिवारों के चित्रण से भारतीय मध्यमवर्ग को चित्रित किया गया है ।
वकील उदयभानु लाल खाते-कमाते वकील हैं। समाज में उनकी प्रतिष्ठा है । लोग उन्हें धनी समझते हैं । वे मित्रों, सम्बन्धियों पर खर्च करके तथा फिजूलखर्ची करके अपना धन नष्ट करते हैं ताकि उनकी प्रतिष्ठा बनी रहे । बेटी के विवाह पर खर्च करने के लिए उनके पास धन नहीं है परन्तु वे कर्ज लेकर भी दस हजार खर्च करना चाहते हैं । उनकी एकमात्र चिन्ता यही है कि समाज में उनका नाम बना रहे । दिखावे की यह प्रवृत्ति मध्यमवर्ग की विशेषता है । भालचन्द्र सिन्हा भी समाज में अमीर दीखने के लिए पांच-पांच नौकरों को रखने का ढोंग करते हैं ।
मध्यमवर्ग में नारी की स्थिति दयनीय होती है । वह निम्न वर्ग की नारी की तरह मुक्त नहीं होती क्योंकि वह पुरुष के साथ घर से बाहर काम नहीं कर सकती । वह उच्च वर्ग की नारी की तरह समृद्ध नहीं होती कि विलासिता का जीवन जी सके । वह घर में उचित सम्मान पाने के लिए संघर्ष करती है । कल्याणी अपने पति उदयभानु लाल को फिजूलखर्ची से रोकना चाहती है परन्तु उदयभानु लाल कहते हैं कि वे स्त्री के गुलाम बन कर नहीं रह सकते । स्त्री की बात मानना उनके लिए गुलामी है । कल्याणी भी दासी बन कर नहीं रहना चाहती, वह तर्क-वितर्क करती है, झगड़ती है । उदयभानु लाल का तर्क है, "मैं कमा कर लाता हूं, जैसे चाहूं खर्च कर सकता हूं । किसी को बोलने का अधिकार नहीं ।" कल्याणी को लगता है कि जिस घर में उसका कोई अधिकार नहीं, वहां वह क्यों रहे ? मध्यमवर्गीय नारी अपने माता-पिता के यहां भी नहीं रह सकती । पति-पत्नी के बीच घर पर अधिकार जमाने का संघर्ष निरन्तर चलता रहता भालचन्द्र के घर में भी नारी की स्थिति कुछ भिन्न नहीं है । रंगीलीबाई चाहती है कि उसके बेटे की शादी निर्मला से हो जाए परन्तु बाप, बेटा उसकी बात को विशेष महत्त्व नहीं देते । मुंशी तोताराम के घर में भी स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती । वह बुढ़ापे में शादी करके लाता है परन्तु पत्नी पर शक करता है । अपनी बहन से भी बुरा बर्ताव करने लगता है ।
मध्यवर्गीय परिवारों में लड़की का पैदा होना एक अभिशाप समझा जाता है। मध्यवर्ग दहेज प्रथा से सर्वाधिक पीड़ित है । निम्न वर्गीय नारी पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर काम करती है इसलिए उसे दहेज नहीं देना पड़ता, उच्चवर्ग में दहेज देना सामाजिक प्रतिष्ठा का द्योतक है और वहां पर साधनों की भी कोई कमी नहीं होती । मध्यमवर्ग में लड़की के पैदा होते ही दहेज की चिन्ता प्रारम्भ हो जाती है । लड़की को घर में बोझ समझा जाता है । कल्याणी जिस प्रकार निर्मला को जान बूझकर मुंशी के पल्ले बांधती है वह उसकी मध्यमवर्गीय चेतना का परिणाम है । वह सोचती है कि लड़की के भाग्य में सुख होगा तो उसे मिल ही जाएगा । वह हज़ार रुपया खर्च कर निर्मला के लिए अच्छा वर ढूंढ सकती थी परन्तु वह तो पैसे पर पहला अधिकार अपने बेटे का समझती है। वह निर्मला की इच्छा-अनिच्छा भी नहीं पूछती । भालचन्द्र सिन्हा ऊपर से तो दहेज न लेने का ढोंग करते हैं परन्तु मन ही मन आशा करते हैं कि उनके बेटे को दहेज अवश्य मिलेगा ।"
उदयभानु लाल की मृत्यु पर वे बेटे का रिश्ता निर्मला से तोड़ लेते हैं। उनका बेटा भुवन मोहन डाक्टरी पढ़ रहा है इसलिए कम से कम एक लाख का दहेज चाहता है ताकि जीवन आराम से कट जाए। वह तो किसी धनी बेवा की बेटी की खोज में है जो कि मरते समय सारी जायदाद लड़की के नाम कर जाए। लड़की के गुण-अवगुण दहेज की रकम के साथ ही घटते-बढ़ते हैं । दहेज के लिए अधिकांश हत्याएं मध्यमवर्गीय परिवारों में ही होती हैं । दहेज विषयक मानसिकता यहां स्पष्ट हो गई है। निर्मला भी बेटी की मां होने के कारण कंजूस हो जाती है, पैसा जोड़ती है ताकि बेटी का दहेज इकट्ठा हो सके । मध्यमवर्ग में भी कुछ आदर्शवादी युवक पैदा हो रहे थे जोकि इस कुप्रथा का विरोध कर रहे थे । कृष्णा की शादी ऐसे ही एक आदर्श युवक से होने जा रही है ।
मध्यमवर्ग रातों-रात अमीर बन जाना चाहता है। वह परिश्रम की अपेक्षा भाग्य, तिकड़म अथवा भ्रष्टाचार पर विश्वास करने लगता है । भालचन्द्र सिन्हा 500 रुपया मासिक कमा कर संतुष्ट नहीं हैं । वे रिश्वत लेते हैं, शराब पीते हैं और बेटे की शादी में दहेज भी चाहते हैं । उनके बेटे भुवन मोहन की मानसिकता भी उनसे भिन्न नहीं है । मंशी तोताराम भी पैसा कमाने की धन में समय से पहले ही बूढ़े हो गए हैं ।
स्त्रियों की आपसी कलह भी मध्यमवर्ग की विशेषता है। रुक्मिणी और निर्मला का सम्बन्ध ननद-भाभी का है। पचास वर्षीय विधवा रुक्मिणी अपने भाई के घर पर आधिपत्य जमाए रखना चाहती है इसलिए भाई को निर्मला के विरुद्ध उकसाती है, उसे जली कटी सुनाती है । उपन्यास के अन्त में उनका समझौता हो जाता है। मुसीबत दोनों का हृदय निर्मल कर देती है । सुधा का निर्मला के प्रति व्यवहार असाधारण अवश्य दिखाई पड़ता है ।
नारियों की आभूषण प्रियता भी मध्यमवर्ग की विशेषता है। आभूषण नारी का सौन्दर्य ही नहीं बढ़ाते बल्कि मध्यवर्गीय नारी उन्हें मुसीबत का साथी भी समझती है। निर्मला के आभूषण चोरी हो जाते हैं । उसका जीवन के प्रति दृष्टिकोण ही बदल जाता है । वह अपने को असुरक्षित समझने लगती है। भविष्य के लिए धन जोड़ते हुए वह अपने वर्त्तमान का विनाश कर लेती है । मध्यमवर्गीय नारियों की आभूषण प्रियता का सन्दर चित्रण हुआ है ।
मध्यगवर्ग में अनमेल विवाह विनाशकारी होता है। यदि बड़ी आय की सन्तान वाला विधर शादी करता है तो घर में कलह का होना स्वाभाविक है। बच्चे मां को स्वीकार नहीं कर पाते। मां और बेटों के सम्बन्धों को भी गलत समझा जा सकता है ।
मध्यमवर्ग अधिकतर अन्धविश्वासों का शिकार भी होता है। सुधा का बेटा बीमार हो जाता है । कल्याणी और उसकी बूढ़ी नौकरानी घोषित कर देती है कि बच्चे को केवल नजर लगी है । ओझा और मौलवी अपने जादुई उपचार करते हैं । बच्चा मर जाता है । समाज में अधिकतर अन्ध-विश्वास मध्यवर्ग के सहारे ही जीवित हैं ।
मध्यमवर्ग में अपनी नाक बचाने या नाम कमाने का बहुत लालच होता है। उदयभानु लाल बारात को खुश करके वाह-वाही लूटना चाहते हैं जबकि कल्याणी जानती है कि बारातियों को प्रसन्न करना तो ब्रह्मा के भी वश में नहीं है । वह दस हज़ार तक खर्च करना चाहता है। मुंशी जी थानेदार को 500 रुपए की घूस दे आते हैं ताकि उनका चोर बेटा पकड़ा न जाय ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि 'निर्मला' उपन्यास में भारतीय मध्यमवर्ग का विस्तृत एवं सुन्दर चित्रण हुआ है । मध्यमवर्ग का आचार-विहार इस उपन्यास में प्रतिबिम्बित है । मध्यमवर्ग झूठी मान मर्यादा के पीछे भागता है, फिजूलखर्ची करके समाज में अपनी नाक ऊंची रखना चाहता है, दिखावा करता है, कर्ज से दबा रहता है, रातों-रात धनी बन जाना चाहता है । मध्यमवर्ग में पुरुष और नारी के बीच आधिपत्य जमाने के लिए संघर्ष चलता रहता है, पुरुष आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के कारण नारी की उपेक्षा करता है । दहेज प्रथा का भयंकर रूप मध्यवर्ग में देखने को मिलता है। स्त्रियों की आपसी कलह, निन्द्य, चुबली भी इस वर्ष में अधिक दिखाई पड़ती है। पड़ौस की स्त्रियां सियाराम को ही भड़काने लगती हैं। नारियों की आभूषण प्रियता भी इस वर्ग में अधिक है । अनमेल विवाह की त्रासदी भी यही वर्ग अधिक भोगता है । संक्षेप में कहा जा सकता है कि मंशी प्रेमचंद ने अपने समय के मध्यमवर्ग का सुन्दर चित्रण किया है।
आज मध्यमवर्ग की स्थिति बदल रही है। मध्यमवर्गीय नारी पढ़ लिखकर पति के कन्धे से कन्धा मिलाकर संघर्ष कर रही है। वह बराबर नौकरी करती है इसलिए पति का आधिपत्य स्वीकार नहीं करती । अब आभूषण उसके एकमात्र सहायक नहीं रहे। अनमेल विवाह मे इन्कार कर देती है । दहेज मांगने वालों का विरोध भी करती है। भारत का मध्यमवर्ग बदल रहा है परन्तु सामाजिक परिवर्तन की यह प्रक्रिया बहुत धीमी होती है ।
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