राम की शक्ति पूजा का साहित्यिक महत्व और मूल संवेदना सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी द्वारा रचित हिंदी साहित्य का एक अमूल्य रत्न है यह रामचरितमानस के लंका
राम की शक्ति पूजा का साहित्यिक महत्व और मूल संवेदना
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित "राम की शक्ति पूजा" आधुनिक हिंदी साहित्य की एक अमूल्य रचना है। यह रामचरितमानस के लंकाकांड में वर्णित रावण के साथ युद्ध से पूर्व भगवान राम द्वारा देवी दुर्गा की पूजा का काव्यात्मक चित्रण है।यह रचना केवल धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि मानवीय भावनाओं और संघर्षों का गहन चित्रण भी है।
राम की शक्ति पूजा' की यह कथा मानव की उस जीवनी शक्ति की अमर कहानी है, जिसके द्वारा मानव विघ्न-बाधाओं पर विजय प्राप्त करता आया है। मानव-सभ्यता जीवनी शक्ति के कंधों पर चढ़ की ही वर्तमान विकसित अवस्था को प्राप्त हुई है। राम की यह कथा मानव के इसी अनवरत संघर्ष की प्रतीक बनकर हमारे सामने आती हैं। डॉ. रामविलास शर्मा के शब्दों में - "इसकी प्रतीक व्यंजना अद्भुत है। रावण समस्त तमोगुणी विघ्न-बाधाओं का प्रतिनिधि मात्र दिखाई पड़ता है। उसके साथ शिव, आकाश और शक्ति-सभी क्रियाशील नान पड़ते हैं। इस अनन्त तमोगुण में राम के दिव्यशर श्रीहत होकर कहीं खो जाते हैं। मनुष्य का मन पराजित.. होकर पराजय स्वीकार नहीं करता। युद्ध के लिए, विजय के लिए वह पुनः चेष्टा करता है। राम की शक्ति पूजा का यही महान् आशावादी सन्देश है ।”
अपने लघु कलेवर में इतना महान् आशावादी सन्देश छिपाये रखने वाली काव्य-कृति महाकाव्य की कोटि में रखी जाने योग्य है।
महाकाव्य का स्वरूप
भारतीय तथा विदेशी, प्राचीन एवं अर्वाचीन विद्वानों ने महाकाव्य के स्वरूप को विभिन्न प्रकार से निर्धारित करने का प्रयत्न किया है। इन विभिन्न परिभाषाओं के समन्वय-स्वरूप महाकाव्य के मुख्य लक्षण इस प्रकार ठहरते हैं-
- यह एक छन्दबद्ध एवं सर्गबद्ध कथात्मक काव्य होता है।
- इसमें जीवन का सुनियोजित एवं सांगोपांग वर्णन होता है।
- इसमें विभिन्न प्रकार के वर्णन वस्तु वर्णन एवं भाव-वर्णन होते हैं।
- यह रसात्मकता उत्पन्न करने में समर्थ होता है।
- इसमें किसी लोक-विश्रुत चरित्र का वर्णन होता है।
- इसकी शैली उदात्त एवं गरिमामयी होती है।
- जीवन शक्ति इसका प्रधान तत्त्व होता है।
- यह जातीय भावों का प्रतिनिधित्व करता है, अर्थात् यह घंटनाओं का आश्रय लेकर संश्लिष्ट और समन्वित रूप से जाति- विशेष और युग-विशेष के समग्र जीवन के विविध रूपों, पक्षों, मानसिक अवस्थाओं अथवा नाना रूपात्मक कार्यों का वर्णन ही है और न जाति एवं युग-विशेष का संश्लिष्ट वर्णन है।
इसके अतिरिक्त इसमें पात्रों की संख्या सीमित है, खण्डों के विभाजन, समाज और प्रकृति के विभिन्न रूपों के उद्घाटन का अभाव है। अतः शास्त्रीय लक्षणों के आधार पर हम इसको महाकाव्य नहीं मान सकते।
क्या यह एक खण्डकाव्य है ?
आकार की लघुता के कारण तो इसको खण्डकाव्य भी नहीं मान सकते। इसके विरोध में कुछ लोगों का कहना है कि आकार को किसी भी काव्य-रूप का निर्णायक मानदण्ड मानना-अनुचित है। अपने मत के समर्थन में वे आनन्दवर्धन के उस कथन को उद्धृत करते हैं जिसके अनुसार उन्होंने अमरुक के एक-एक श्लोक को महाकाव्य के गौरव का अधिकारी घोषित किया था। हमारा विचार है कि काव्य में अभिधा के अतिरिक्त लक्षणा-व्यंजना नाम की शब्द-शक्तियाँ भी होती हैं। आनन्दवर्धन के कथन को मात्र अभिधार्थ मैं नहीं लेना चाहिए, अन्यथा बिहारी की सतसई सात सौ महाकाव्यों की जननी बन जायेगी और महाकाव्य एवं इतर काव्य में कुछ भी अन्तर ही नहीं रह जायेगा। यदि आकार और कथा-प्रबन्ध के मानदण्ड समाप्त कर दिये जाते हैं, तब तो प्रबन्ध-काव्य और मुक्तक काव्यों का अन्तर भी समाप्त कर देना पड़ेगा। केवल बारह पृष्ठों की कविता को श्रेष्ठ कविता कहना भी कम गौरव की बात नहीं है। हम इसको प्रबन्धात्मक कविता ही समीचीन समझते हैं।
जीवन शक्ति की कसौटी पर जीवनी शक्ति महाकाव्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। इसमें युग, समाज-विशेष की समग्र जीवन शक्ति मुखरित हो उठती है। एक आलोचक के शब्दों में, “सामाजिक की उद्दाम जिजीविषा, अखण्ड वेग और अजस्र प्रवाह जिस जीवन्त रूप में किसी जातीय महाकाव्य में दिखायी पड़ता है, वैसा मानव की अन्य किसी कृति में नहीं।” अतएव स्पष्ट है कि महाकाव्यों की मुख्य कसौटी उसकी जीवनी शक्ति है।
महाकाव्य की सबसे बड़ी सफलता इस बात से आँकी जाती है कि वह समाज को कितनी शक्ति, कितना साहस, कितनी उमंग और कितनी आस्था प्रदान करता है। निराला की यह काव्य-कृति आज के त्रस्त, हताश मानव को जाम्बवान के समान यही महान् सन्देश देती है कि आधुनिक मानव को प्रस्तुत विषम परिस्थितियों से त्राण पाने के लिए शक्ति का मौलिक आराधन करना पड़ेगा।
जातीय भावों का प्रतिनिधित्व
राम की शक्ति पूजा' के राम व्यक्ति राम न होकर हमारे सामने उस मानव के प्रतिनिधि के रूप में आते हैं, जो निरन्तर विषमताओं के विरुद्ध संघर्ष करता आया है। राम ब्रह्म के अवतार न होकर युग के नैतिक मूल्यों की रक्षा और स्थापना करने वाले मानव राम है। वह एक युग-विशेष के प्रतिनिधि न होकर युग-युग के प्रतिनिधि हैं।
शक्ति रावण रूपी अन्याय का समर्थन करती हैं और इस प्रकार नैतिक मूल्यों के क्षेत्र में एक विघटन की स्थिति उत्पन्न होती है। राम इसी का निराकरण करते हैं और नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना में सफल होते हैं। महाकाव्य की भाँति 'राम की शक्ति पूजा' भी जातीय भावों का प्रतिनिधित्व करती है।
उदात्त, गरिमामयी शैली
महान सन्देश को अभिव्यक्त करने के लिए निराला ने उसके अनुरूप ही महानू, उदात्त और गरिमामयी शैली को अपनाया है। 'राम की शक्ति पूजा' में महाकाव्योचित्त गाम्भीर्य एवं प्राणवत्ता है। इस काव्य कृति की शैली में हमको नाटकीय क्षिप्रता, भावों का मार्मिक उत्थान-पतन, सशक्त बिम्ब योजना, सुन्दर प्रतीक-विधान, प्रांजल भाषा से उत्पन्न उदात्तता आदि गुणों के दर्शन होते हैं। इन्हें देखकर ही अनेक आलोचक इसे महाकाव्य कह देते हैं।
शास्त्रीय लक्षणों की कसौटी पर 'राम की शक्ति पूजा' एक प्रबन्धात्मक कविता है। उसको महाकाव्य अथवा खण्डकाव्य कहना काव्यशास्त्र की उपेक्षा करना है। उसका सन्देश महाकाव्य के समान महान् है और उसकी शैली सन्देश के अनुरूप गरिमामयी है । परन्तु विशालता, व्यापकता तथा जातीय प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में यह काव्य-कृति महाकाव्य के बहुत पीछे रह जाती है।
हिंदी भाषा की समृद्धि का प्रमाण
यद्यपि यह रचना अपने लघु कलेवर में महाकाव्य की-सी उदात्तता एवं जीवनी शक्ति समेटे हुए दिखायी देती है, तथापि हम इसे महाकाव्य नहीं कह सकते हैं।राम की शक्ति पूजा हिंदी साहित्य की एक अमूल्य धरोहर है। इस रचना का साहित्यिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज भी यह रचना पाठकों को प्रेरित करती है और हिंदी भाषा की समृद्धि का प्रमाण है।
राम की शक्ति पूजा केवल एक युद्ध का वर्णन नहीं है, बल्कि यह मानवीय जीवन के अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाता है।आत्मविश्वास, भक्ति, कर्म, नारी शक्ति और सत्य की विजय इस रचना की मूल संवेदना है।यह पाठकों को प्रेरणा देती है और उन्हें जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन करती है।
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