केवल राम राम रटनेवाले तोता को इंसान नहीं बनाया जा सकता, बिना तर्क-वितर्क सोच-विचार आचार-संस्कार का ज्ञान बेकार होता! संस्कारहीन महाज्ञानी-विज्ञानी कुट
सदाचरण सिखानेवाले प्रथम आचार्य माँ द्वितीय पिता तृतीय सद्गुरु
मनुष्य को मनुर्भवः यानि मनुष्य बनने क्यों कहा जाता है?
क्योंकि ईश्वर मनुष्य को मनुष्य नहीं पशु रुप में जन्म देता!
गाय को गौ भवः कुत्ता को श्वान भवः क्यों नहीं कहा जाता?
क्योंकि गाय भैंस घोड़ा कुत्ता पशु रुप में जन्मा,पशु ही रहता!
अगर मनुष्य को मनुष्य बनाना है तो सदाचार सिखलाना होता,
सदाचार हीन साक्षर मनुष्य भी राक्षस के सिवा कुछ नहीं होता!
आचारहीन शिक्षा से मनुज कुछ और अधिक हिंस्र पशु हो जाता,
सदाचार आचरण सिखाने वाले प्रथम आचार्य माँ द्वितीय पिता!
मनुस्मृति अध्याय द्वितीय श्लोक एक सौ पैंतालीसवां बतलाता
‘उपाध्यायान्दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता सहस्त्रं तु पितृन्माता
गौरवेणातिरिच्यते’ मानव शिशु के लिए दस उपाचार्य से उच्चतर
एक आचार्य, सौ आचार्य से बड़ा पिता, हजार पिता से ऊपर माता!
माता ही कोख से आँचल तक में सिखाती दया ममता मानवता,
पिता ही आचार विचार संस्कार सदाचार व्यवहार की शिक्षा देता!
आरंभिक शिक्षा उपाचार्य,विशिष्ट पेशेवर ज्ञान आचार्य से मिलता,
माता पिता के साथ सद्गुरु की शिक्षा आदमी को इंसान बनाता!
माता पिता में से किसी की शिक्षा ना मिले तो शिक्षा अधूरी होती,
सिर्फ माँ की शिक्षा से संतान सत्य असत्य में भेद नहीं कर पाती,
अकेली माँ की शिक्षा संतान को अभिमन्यु और बर्बरीक बना देती!
अभिमन्यु माँ की कोख में पिता के संपूर्ण ज्ञान को सीख ना सका,
रणभूमि में कूद तो गया मगर पिता की पूरी शिक्षा बिना अधूरा था,
शस्त्रहीन होते ही मातृसम कोमल बालक गया अकबका, मारा गया,
बर्बरीक को शिक्षा दादी हिडिम्बा ने दी पक्षधर होने की निर्बल का!
बर्बरीक को न्याय अन्याय पीड़ित पीड़क में भेद समझ नहीं आया,
बर्बरीक ने कृष्ण से कहा पहले अपने निर्बल पितृ पक्ष से लड़ कर
सबल कौरव को निर्बल करूँगा, फिर बलहीन कौरव पक्ष में जा कर
पाण्डव पक्ष को मारूँगा, ऐसे में बर्बरीक नजरिया सृष्टि संहारक था!
केवल राम राम रटनेवाले तोता को इंसान नहीं बनाया जा सकता,
बिना तर्क-वितर्क सोच-विचार आचार-संस्कार का ज्ञान बेकार होता!
संस्कारहीन महाज्ञानी-विज्ञानी कुटिलमति स्वार्थी भ्रष्टाचारी होता,
लूटपाट बलात्कार हिंसा आतंक मचाने वाला असभ्य अज्ञानी होता!
रावण भी तो आचारहीन पंडित था,अंगुलीमाल तक्षशिला में पढ़ा था,
दानवगुरु भार्गव शुक्राचार्य देवगुरु वृहस्पति से अधिक बढ़ा चढ़ा था,
मृतसंजीवनी विद्या ज्ञाता शिवलिंगोपासक नाम उसना और्व काव्या,
स्वनाम से बसाए अरबदेश काबा,बन गए पश्चिम का खुदा शुक्रिया!
आरंभ से सकारात्मक औ’ नकारात्मक शक्ति की उपासना होती रही,
आरंभ से शिव पूजा दैवीय व कापालिक अघोरी पद्धति से होती रही,
शिव ही शव है, शिव ही रब है शिवलिंग उपासना पाशुपत पंथ विधि,
आरंभ से ही शैव शाक्त विष्णु उपासक वैष्णव आपस में रहे हैं वैरी!
संस्कारहीन मानव खाद्य अखाद्य रक्त मांस मदिरा सर्वभक्षी होता,
ये मानव और मानवेतर प्राणी की बेवजह नृशंस हत्या कर डालता!
जबकि शाकाहारी पशु रक्त मांस नहीं खाता,भूखा प्यासा मर जाता,
मांसभक्षी पशु भूख होने पर शिकार करता बाकी समय उदार रहता!
आज आदमी मजहब के नाम पर आपस में बर्वर बलवाई होने लगा,
ईश्वर अल्लाह खुदा रब के नाम पर आदमी क्रूर व कसाई होने लगा!
आज इंसान धार्मिक भेदभाव के कारण एहसान फरामोश होने लगा,
एक दूसरे के ईश की ईश निंदा कर आदमी खुद का होश खोने लगा!
वक्त की जरूरत है कि शैव शाक्त वैष्णव में हो सामंजस्य स्थापित,
माता बने संपूर्ण शक्ति स्वरुपा त्रिदेवी सरस्वती, लक्ष्मी और भवानी,
पिता बने विष्णु सा पालक वैष्णव राम कृष्ण बुद्ध महावीर वीतरागी,
गुरु बने शिव सा पशुपति जगत कल्याणकारी,नानक गोविंद सर्वदानी!
-विनय कुमार विनायक, झारखण्ड
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