संयुक्त परिवार के बारे में शिरीष भाई साहब के विचार सारा आकाश उपन्यास संयुक्त परिवार का एक नुकसान यह भी है कि प्रत्येक व्यक्ति काम करने से बचना चाहता ह
संयुक्त परिवार के बारे में शिरीष भाई साहब के विचार | सारा आकाश उपन्यास
सारा आकाश उपन्यास राजेंद्र यादव जी द्वारा लिखित प्रसिद्ध सामाजिक उपन्यास हैं । प्रस्तुत उपन्यास में शिरीष भाई साहब दिवाकर के चचेरे भाई हैं और अपनी बहन का इलाज कराने उसके यहाँ आये थे। अपनी बहन को मेंटल हॉस्पीटल में भर्ती करा दिया है और उससे मिलने आते रहते हैं। शिरीष भाईसाहब ने समर और दिवाकर से बात कर दोनों के परिवारों की स्थिति जानी और जानकर इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि लगातार चलने वाली तकरार या आपस के झगड़े संयुक्त परिवार के कारण ही होते हैं या तो परिवार इनता समर्थ हो कि एक घर में रहते हुए भी सबको अलग-अलग सुविधाएँ मिलें और स्वाभिमान की भी रक्षा हो सके तो ही संयुक्त परिवार चल सकता है अन्यथा अर्थाभाव और अशिक्षा में रहकर तो अशान्ति ही बनी रहेगी।
इस प्रकार स्थिति को जानकर शिरीष भाई बोले,“भाई समर जी ! आपकी, अपनी या दिवाकर की, सबकी वास्तविक स्थिति जानकर एक बात मेरी समझ में आ रही है-इस संयुक्त परिवार की परम्परा को तोड़ना ही होगा। अब आपके लिए ही कहूँ कि अगर आप खुद जिन्दा रहना चाहते हैं या चाहते हैं कि आपकी पत्नी भी जिन्दा रहे तो इसके सिवाय कोई रास्ता नहीं है कि अलग रहिए। जैसा भी हो अलग रहिए....।" उनकी सलाह अप्रत्याशित थी इसलिए समर स्तब्ध रह गया। उन्होंने फिर समझाया- "आप बुरा न मानिये, लेकिन समर भाई, सच्चाई यह है कि आपकी पत्नी की सारी आकांक्षाएँ और आपके सारे प्रयत्न इस वातावरण में बिल्कुल बेबस होकर घुट-घुटकर मर जायेंगे। एक के बाद एक मुसीबतें निकलती आयेंगी और आप लोग शायद सुख की नींद के सपने में ही जिन्दगी बिता देंगे।”फिर उन्होंने कहा, आज की आर्थिक स्थिति में संयुक्त परिवार चल नहीं सकता। अगर चलेगा भी तो ऊपर से देखने में चाहे जो भी हो, लेकिन अन्दर से उसमें छोटे-छोटे परिवारों की कई इकाइयाँ बन जायेंगी।
फिर उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाई - "संयुक्त परिवार का शाब्दिक अर्थ चाहे कितना महान हो, उसका सबसे बड़ा नुकसान यह होता है। कि परिवार का कोई भी सदस्य अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर पाता। सारा समय तो समस्याएँ बनाने में या बनी-बनाई समस्याओं को सुलझाने में चला जाता है। लड़ाई-झगड़ा, खींचतान, बदला, ग्लानि, सब मिलाकर वातावरण ऐसा विषैला और दमघोंटू बना रहता है कि आप भी जानते हैं। नतीजे में हम दो हिस्सों में बँटे रहते हैं। बाहर अपनी आर्थिक लड़ाई लड़ो और भीतर अपनी पारिवारिक उलझनें सुलझाओ ! सीधे-सरल दिल-दिमाग का आदमी इन्हीं झंझटों में पिस जाता है।"दिवाकर ने पूछ लिया, "लेकिन यह तो स्थिति हुई, परिणाम कहाँ हुआ ?"
शिरीष बोले- "मैंने बताया न, परिणाम यही होता है कि आप आपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर पाते। अपनी शक्तियों और प्रतिभा को सही दिशा में बढ़ाने का आपको अवसर ही नहीं मिलता। या कहें कि आप अपने-आपको ऐसी बातों में उलझाकर थका डालते हैं कि आपका दिल-दिमाग अपने सपने पूरे करने लायक नहीं रह जाता। पढ़ाई-लिखाई या किसी भी बौद्धिक और मानसिक विकास के लिए आपके पास शक्ति बच ही कहाँ पाती है।"आखिर में उन्होंने कहा, "भैया मेरे, सीधा-सादा हल यही है कि आप अलग रहिए और घर के लिए जो जिम्मेदारी महसूस करते हैं, वह पूरी कीजिए।
अब उनकी बातें सुनकर समर भी यह महसूस करने लगा कि बात तो वे सही कर रहे हैं।उन्हें संयुक्त परिवार में रहकर कितने ताने सुनने पड़ते हैं और प्रभा को दिन-रात काम में जुटे रहना पड़ता है।संयुक्त परिवार का एक नुकसान यह भी है कि प्रत्येक व्यक्ति काम करने से बचना चाहता है और दूसरे से काम करवाना चाहता है।
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