विद्यालय में मेरा अंतिम वर्ष कैसे बीता पर निबंध विद्यालय का अंतिम वर्ष पर निबंध विद्यालय में मेरा अंतिम वर्ष चुनौतियों और खुशियों से भरा रहा। मैंने इस
विद्यालय में मेरा अंतिम वर्ष कैसे बीता पर निबंध
विद्यालय! जीवन का वो स्वर्णिम अध्याय जहाँ ज्ञान की रोशनी जगमगाती है, दोस्ती के बंधन मजबूत होते हैं, और अनुभवों का खजाना इकट्ठा होता है। मेरे लिए भी, विद्यालय में बिताया गया अंतिम वर्ष अविस्मरणीय रहा।यह साल न केवल अकादमिक चुनौतियों से भरा था, बल्कि भावनाओं के तूफान से भी गुज़रना पड़ा। परीक्षाओं का बोझ, भविष्य की चिंता, और विद्यालय के दोस्तों से बिछड़ने का डर - ये सभी भाव एक साथ मेरे मन में उमड़ रहे थे।
लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद, इस साल ने मुझे बहुत कुछ दिया। मैंने नई चीजें सीखीं, पुराने दोस्तों के साथ यादें ताज़ा कीं, और नए दोस्त बनाए। मैंने हार का सामना करना सीखा, जीत का जश्न मनाना सीखा, और सबसे ज़रूरी, खुद पर भरोसा करना सीखा।
अपने विद्यालय की वरिष्ठ छात्राओं में नाम आ गया था मेरा। मैं बारहवीं कक्षा में गयी थी और देखते ही देखते वह दिन भी आ गया, जब हमारे लिए विदाई समारोह आयोजित हुआ। विद्यालय के अंतिम वर्ष में आते ही वरिष्ठ हो जाने के प्रसन्नता थी, वह आज विदाई समारोह के दिन विद्यालय छूटने के दुःख में बदल गई थी। चौदह साल हो गये थे इस विद्यालय में। विद्यालय की दीवारें, मैदान, झूले, कैंटीन सभी तो अपने ही लगते थे, अब इन्हें छोड़कर जाना पड़ेगा, मन भारी हो रहा था।
आँखों के आगे चलचित्र की भाँति बीते वर्ष घूम रहे थे। जीवन के कितने खट्टे-मीठे अनुभव इसी विद्यालय से मिले थे। विद्यालय का पहला दिन जब माँ-पिताजी का हाथ पकड़कर विद्यालय में प्रवेश किया था। आया रमा दीदी ने मेरा हाथ अपने हाथों में लिया और माँ-पिताजी से कहा कि आप इससे आगे नहीं जा सकते। कितना रोई थी मैं, उस समय रमा दीदी बहुत क्रूर लग रहीं थीं, ऐसा लगा था कि मुझे मेरे माँ-पिताजी से दूर कर दिया गया है। कक्षा शिक्षिका अल्का मिश्रा ने सारे बच्चों को इतने प्यार से संभाला कि कब घर से अच्छा स्कूल लगने लगा पता ही नहीं चला। जिन रमा दीदी को मैंने क्रूर समझा था, वह आज तक मेरी सबसे पसंदीदा दीदी हैं।
पाँचवी कक्षा से छठी कक्षा में पहुँचे, तो विद्यालय का भवन, शिक्षक-शिक्षिकाएँ सब बदल गये। मन में डर और प्रसन्नता के मिले-जुले भाव थे। हमारी खेल-शिक्षिका अनीता मिश्रा, सबसे अधिक डर उनसे ही लगता था। उनकी डाँट सुनकर तो सब पत्ते की तरह काँप जाते थे। हम सारे बच्चों को वह खेलों के साथ-साथ अनुशासन का पाठ भी पढ़ाती थीं। आज अगर हम सब इतने अनुशासित हैं, तो यह उनकी ही देन है।
विज्ञान के शिक्षक की नकल उतारते हुए पकड़े जाना, फिर विद्यालय के मंच पर खड़े होकर अभिनय करने की सजा।नृत्य-शिक्षिका के साथ की गई मस्ती, इतिहास पढ़ते समय ऊँघना, गणित के शिक्षक का दिमाग चाटना, हिन्दी शिक्षिका को अंग्रेजी में अर्थ बताने को कहकर परेशान करना। खाली समय में कागज का हवाई जहाज उड़ाना और चाक से मारकर मित्रों को तंग करना।प्रयोगशाला में की गई मस्ती, पुस्तकालय की खुसुर-पुसुर सब आज याद आ रहा है। यह सब याद करके आँखें भर आई हैं।
हमें अपना भविष्य सँवारने के लिए, आगे बढ़ने के लिए इस विद्यालय को छोड़ना पड़ेगा। पर हमारे मन में यहाँ बिताये समय की जो यादें हैं, वह हमेशा हमारे स्मृति-पटल पर अंकित रहेंगी। अपने अध्यापक-अध्यापिकाओं से मिलने हम आते रहेंगे, अपनी यादों को ताजा करते रहेंगे।
विद्यालय का अंतिम वर्ष मेरे जीवन का एक अविस्मरणीय अध्याय रहा। यहाँ मैंने ज्ञान अर्जित किया, दोस्ती की, जिम्मेदारियां निभाईं, और भविष्य के लिए तैयार हुई। यह साल मेरे लिए सीखने, बढ़ने और खुद को खोजने का समय था।विद्यालय छोड़कर मैं आगे बढ़ रही हूँ, लेकिन इसकी यादें हमेशा मेरे दिल में संजोकर रखूँगी।
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