आषाढ़ का एक दिन नाटक का मुख्य पात्र कौन है आषाढ़ का एक दिन नाटक मानवीय जीवन की जटिलताओं और विरोधाभासों को दर्शाता है। यह नाटक जीवन और मृत्यु, प्रेम
आषाढ़ का एक दिन नाटक का मुख्य पात्र कौन है?
आषाढ़ का एक दिन नाटक मानवीय जीवन की जटिलताओं और विरोधाभासों को दर्शाता है। यह नाटक जीवन और मृत्यु, प्रेम और त्याग, और सामाजिक रूढ़ियों और परंपराओं जैसे विषयों पर गहन विचार करता है।
कालिदास का चरित्र इस नाटक का मुख्य केंद्र है। वे एक प्रतिभाशाली कवि हैं, लेकिन वे अपने जीवन में खुश नहीं हैं। वे प्रेम, धन और प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें संतुष्टि नहीं मिल पाती है।आषाढ़ का एक दिन एक महत्वपूर्ण नाटक है जो हिंदी साहित्य और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह नाटक न केवल कालिदास के जीवन की एक झलक पेश करता है, बल्कि मानव मन की जटिलताओं और रचनात्मक प्रक्रिया की चुनौतियों का भी चित्रण करता है।
हमारी दृष्टि में “आषाढ़ का एक दिन" नाटक की मुख्य पात्र मल्लिका है। मोहन राकेश ने अपने इस नाटक में मल्लिका को एक ऐसी सीधी-सादी समर्पित स्त्री के रूप में चित्रित किया है जो कालिदास के प्रति अपने अनन्य प्रेम, अनुपम त्याग, निश्छल स्वभाव और समर्पण के कारण पाठकों तथा दर्शकों की सहानुभूति का पात्र बन जाती है। वह अपने प्रिय को उन्नति के पथ पर निरन्तर आगे बढ़ते हुए देखना चाहती और इसके लिए वह अपना सब कुछ छोड़ देने के लिए तत्पर रहती है। वह कालिदास की उन्नति में बाधक नहीं बनती है और वही एक अकेली ऐसी पात्र है, जो कालिदास को राजकवि का सम्मान प्राप्त करने के लिए उज्जयिनी जाने को विवश कर देती है।
उज्जयिनी जाने के बाद कालिदास फिर पीछे मुड़कर नहीं देखता कि जिस प्रेयसी (मल्लिका) को वह ग्राम-प्रान्तर में छोड़ आया था, वह किस स्थिति में है और कैसे अपना जीवन व्यतीत कर रही है। जीवन में सफलता प्राप्त कर लेने के बाद कालिदास राजमहिषी प्रियंगुमंजरी से विवाह कर लेता है और ग्राम-प्रान्तर से होकर काश्मीर जाते समय भी वह मल्लिका से मिलने और उसके हालचाल जानने भी नहीं आता, इतना होने पर भी मल्लिका कालिदास की मंगल कामना करती है और अपने अटूट प्रेम का बलिदान करके कालिदास को महाकवि बना देती है।
मल्लिका स्वयं समाज के ताने सुनती है, प्रताड़ना सहती है, अपने अकेलेपन से लड़ती है, विपरीत परिस्थितियों से जूझती है परन्तु फिर भी कालिदास के प्रति उसकी निष्ठा और प्रेम में कोई कमी नहीं आती। यहाँ तक कि माँ अम्बिका जब भी उसके भविष्य को लेकर चिन्तित होती है और कालिदास को आत्मकेन्द्रित, स्वार्थी और विश्वासघाती कहती है, तब भी मल्लिका कालिदास का यह अपमान सहन नहीं कर पाती है और अम्बिका के प्रति अपना विरोध ही प्रदर्शित करती है, परन्तु अंत में कालिदास की उपेक्षा के कारण वह परिस्थितियों से समझौता कर लेती है और विलोम के साथ रहने को मज़बूर हो जाती है वह उसकी पुत्री को भी जन्म देती है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मल्लिका नाटक की एक ऐसी पात्र है जो समस्त कथानक का मूल केन्द्र है। नाटक का प्रत्येक पात्र उससे जुड़ा हुआ है और वह प्रत्येक घटना की गवाह है। उसकी मज़बूरियाँ और परेशानियाँ नाटक के प्रथम अंक से प्रारम्भ होकर तृतीय अंक तक चलती रहती हैं जो पाठकों और दर्शकों की आँखों को बरबस आँसूओं से भिगो देती हैं।
इसलिए हमारी दृष्टि में “आषाढ़ का एक दिन" नाटक की मुख्य पात्र मल्लिका है जो एक आदर्श भारतीय नारी के रूप में हमारे सामने उपस्थित होती है और सभी की सहानुभूति का पात्र बन जाती है।
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