आषाढ़ का एक दिन नाटक की संवाद योजना मोहन राकेश द्वारा लिखित आषाढ़ का एक दिन हिंदी नाटक साहित्य का एक उत्कृष्ट कृति है 1958 में प्रकाशित यह नाटक मान
आषाढ़ का एक दिन नाटक की संवाद योजना
मोहन राकेश द्वारा लिखित आषाढ़ का एक दिन हिंदी नाटक साहित्य का एक उत्कृष्ट कृति है।1958 में प्रकाशित यह नाटक, मानवीय भावनाओं, संघर्षों और जीवन के क्षणभंगुरता को गहनता से दर्शाता है।
आषाढ़ का एक दिन नाटक की रचना संवादों के बिना की ही नहीं जा सकती। नाटक में विभिन्न पात्रों की आपस में बातचीत से ही कथा का विकास होता है और घटनाएँ एक-दूसरे से जुड़ती हैं। संवादों की दृष्टि से यदि देखा जाए तो 'आषाढ़ का एक दिन' में निम्नलिखित विशेषताएँ दिखाई देती हैं -
छोटे छोटे संवाद
नाटक में मोहन राकेश जी ने कहीं-कहीं बहुत छोटे संवाद लिखे हैं । ये संवाद कहीं-कहीं तो एक दो शब्द के ही हैं । इतने छोटे होने पर भी पूरे अर्थ को प्रगट कर देते हैं। अनुस्वार और अनुनासिक के संवाद इसी प्रकार के हैं जो हास्य उत्पन्न करते हैं ।
दीर्घ संवाद योजना
आषाढ़ का एक दिन नाटक में छोटे-छोटे संवादों के साथ-साथ नाटककार ने बडे-बडे संवादों को भी महत्व दिया है। ये संवाद नाटक के अंतिम अंक में ही अधिक दिखाई देते हैं और इनका प्रयोग मोहन राकेश ने पात्रों की मनोदशा को प्रस्तुत करने में किया है। इन संवादों में कालिदास और मातुल के संवाद ही अधिक बड़े हैं परन्तु इनसे पाठक ऊबता नहीं है।
अनुकूलता
इस नाटक के संवाद पात्र, समय और अवसर के अनुकूल हैं और यह गुण बनाए रखने के लिए नाटककार ने भाषा और भाव दोनों का बहुत सुंदर समन्वय किया है। नाटक में मल्लिका के संवाद उसके कालिदास के प्रति गहरे प्रेम को प्रकट करते हैं तो अम्बिका के संवादों से उसका दुःख प्रकट होता है। अन्य पात्रों के संवाद भी उनकी अपनी-अपनी स्थिति के अनुकूल ही हैं ।
सरलता और स्वाभाविकता
संवादों की भाषा सरल होना ज़रूरी है क्योंकि तभी उन्हें ज्यादा से ज्यादा लोग समझ सकेंगे । 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक के संवादों की भाषा आम बोलचाल की भाषा है, इसलिए इसमें सरलता है। कहीं-कहीं संस्कृत तथा हिन्दी के शुद्ध शब्दों का प्रयोग किया गया है, परन्तु ये शब्द भी प्रचलित होने के कारण आसानी से समझ में आ जाते हैं। इन संवादों में बनावटीपन कहीं भी दिखाई नहीं देता, इसलिए इनमें स्वाभाविकता का गुण भी है।
सम्बद्धता
पात्रों के संवाद कथानक और पात्रों से सम्बद्ध होने चाहिए। 'आषाढ़ का एक दिन' के संवाद पात्रों और कथानक से मेल खाते हुए हैं और कथानक की गति के अनुकूल हैं। कुछ संवाद पिछली कथा की और इशारा करते हैं तो कुछ आने वाली घटना का संकेत देते हैं।
गतिशीलता
संवादों में गतिशीलता होना भी ज़रूरी है, इसलिए नाटककार नाटक में ऐसे संवाद प्रयोग करता है जिससे कथानक आगे की ओर बढ़ता रहे। इससे दर्शक आने वाली घटना को जानने को उत्सुक रहते हैं।'आषाढ़ का एक दिन' में यह गुण शुरू से आखिर तक दिखाई देता है । इस नाटक के छोटे-छोटे संवाद नाटक की गतिशीलता को बढ़ाने में पूरी तरह सफल हैं।
नाटकीयता
आषाढ़ का एक दिन एक नाटक है और नाटक होने के कारण इसमें नाटकीयता होना बहुत ज़रूरी है।इस प्रकार के संवादों में नाटककार पात्रों के मन की दशा, उनके चरित्र और उनके भावों को व्यक्त करता है।ये संवाद ही नाटक में नाटकीयता लाते हैं और ऐसी सूचना देते हैं कि जिससे कथा में नाटकीय मोड़ आना सम्भव होने लगता है ।
पात्रों के चरित्र को प्रकट करने की क्षमता
नाटक में संवाद योजना इस प्रकार की जानी चाहिए कि वे नाटक के पात्रों के चरित्र पर भली-भाँति प्रकाश डाल सकें । नाटक में चरित्रों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दो रूपों से प्रकाश डाला जाता है। 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक में ये दोनों ही रूप दिखाई देते हैं। जब दो पात्रों की बातचीत से सीधे उनका चरित्र प्रकाशित हो वहाँ प्रत्यक्ष और जब दो पात्रों की बातचीत से तीसरे पात्र का चरित्र प्रकाशित होता है, वहाँ अप्रत्यक्ष चरित्र प्रकाशन की विधि होती है। 'आषाढ़ का एक दिन' में नाटककार ने चरित्र प्रकाशित करने की इन दोनों ही विधियों को अपनाया है।
इन गुणों के अतिरिक्त नाटक के संवादों में मार्मिकता और प्रभावोत्पादकता होना भी जरूरी है।आषाढ़ का एक दिन नाटक में मल्लिका के संवादों में यह गुण सभी स्थानों पर दिखाई देता है। कहीं-कहीं कालिदास के संवाद भी पाठकों के हृदय को छूने में सफल हुए हैं। इसके अतिरिक्त इस नाटक के संवादों में पाठकों को प्रभावित करने की क्षमता भी बहुत है।नाटक का कोई भी संवाद ऐसा नहीं है जो दर्शक अथवा पाठक पर अपना प्रभाव न छोड़ता हो ।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि नाटक आषाढ़ का एक दिन में स्वाभाविकता, सरलता, संक्षिप्तता, अनुकूलता, रोचकता, प्रभावोत्पादकता आदि सभी गुणदेखने को मिलते हैं। और इन्हीं गुणों के कारण नाटक में नाटकीयता अपने आप ही आ गई है। संवाद-योजना की दृष्टि से भी यह एक पूर्णतः सफल नाटक है।
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