अवधपुरी में राम Class 6 Hindi Bal Ram Katha भगवान राम के बालपन और अवध राज्य में उनके जीवन पर प्रकाश डालता है। यह अध्याय न केवल बच्चों को भगवान राम के
अवधपुरी में राम
अवधपुरी में राम, कक्षा 6वीं के हिंदी पाठ्यक्रम का एक प्रसिद्ध अध्याय है, जो भगवान राम के बालपन और अवध राज्य में उनके जीवन पर प्रकाश डालता है। यह अध्याय न केवल बच्चों को भगवान राम के चरित्र और उनके आदर्शों से परिचित कराता है, बल्कि यह हमें जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों जैसे मर्यादा, भक्ति, त्याग और कर्तव्य का भी पाठ पढ़ाता है।
अवधपुरी में राम पाठ का सारांश
सरयू नदी के किनारे अयोध्या नामक सुन्दर नगर था। इसकी इमारत, राजमहल, सड़कें, बाग-बगीचे, सरोवर, हरे-भरे खेत, फसलें अत्यंत सुन्दर थे। अयोध्या हर तरह से सम्पन्न नगरी थी। पूरा नगर अत्यंत अद्भुत, मनोरम व विलक्षण था।
कुशल योद्धा राजा दशरथ (अज के पुत्र) वहीं रहते थे। वे रघुकुल के उत्तराधिकारी, रघुकुल की रीति-नीति का पालन करने वाले, सदाचारी व मर्यादा का पालन करने वाले थे। उनके मन में एक छोटा-सा दुःख था कि उनके कोई संतान नहीं थी।
राजा दशरथ ने रघुकुल के अगले उत्तराधिकारी की चिंता के संबंध में मुनि वशिष्ठ से चर्चा की। उन्होंने महाराज दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ महान तपस्वी ऋष्यश्रृंग की देख-रेख में पूरा हुआ। अग्नि देवता ने महाराज दशरथ को आशीर्वाद दिया। तीनों रानियाँ पुत्रवती हुईं। कौशल्या ने नवमी के दिन राम को, सुमित्रा ने दो पुत्रों लक्ष्मण व शत्रुघ्न, कैकेयी ने भरत को जन्म दिया।
राजमहल में खुशी छा गई। मंगलगीत गाए गए। चारों राजकुमार धीरे-धीरे बड़े हुए। चारों भाई अत्यंत सुन्दर थे। चारों में आपस में बहुत प्रेम था। बड़े होने पर राजकुमारों को शिक्षा-दीक्षा के लिए गुरुजनों के पास भेज दिया गया। चारों ने शास्त्रों व शस्त्रों का अध्ययन किया। चारों ही कुशाग्र-बुद्धि थे।
राजा दशरथ को राम सबसे अधिक प्रिय थे। राजकुमार विवाह योग्य हो गए। राजा दशरथ भी अपनी संतानों के लिए सुयोग्य वधुएँ चाहते थे।
एक दिन अचानक महर्षि विश्वामित्र अयोध्या आए। दशरथ ने उन्हें ऊँचा आसन दिया। दशरथ ने पूछा-"महर्षि, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?"
महर्षि ने कहा-“राजन! मैं जो माँगने जा रहा हूँ उसे देना आपके लिए कठिन होगा। मैं सिद्धि के लिए एक यज्ञ कर रहा हूँ। दो राक्षस उसमें बाधा डाल रहे हैं। उन राक्षसों को केवल आपके ज्येष्ठ पुत्र राम ही मार सकते हैं। अब आप अपने पुत्र राम को मुझे दे दें ताकि यज्ञ पूरा हो।" दशरथ चिंता में पड़ गए, पुत्र-वियोग की आशंका से काँपकर बेहोश हो गए। ऐसा दो बार हो गया। ऋषि विश्वामित्र ने कहा-"मैं राम को केवल कुछ दिनों के लिए माँग रहा हूँ।
राजा दशरथ ने कहा- "राम अभी छोटा है, मैं आपके साथ चलने को तैयार हूँ। मैं राम के बिना एक पल भी नहीं रह सकता। आप राम को छोड़कर जो चाहें मांग लें। "
ऋषि ने कहा-"आप रघुकुल की रीति तोड़ रहे हैं। वचन देकर पीछे हट रहे हैं। यह बरताव कुल के विनाश का सूचक है।"
गुरु वशिष्ठ ने कहा, "महाराज, महर्षि विश्वामित्र सिद्ध पुरुष हैं। तपस्वी हैं। अनेक गुप्त विद्याओं के जानकार हैं। वह कुछ सोचकर ही यहाँ आए हैं। राम उनसे अनेक नई विद्याएँ सीख सकेंगे।"
दशरथ ने मुनि वशिष्ठ की बात दुःखी मन से स्वीकार कर ली लेकिन उन्होंने राम के साथ लक्ष्मण को भेजने की भी अनुमति माँगी। विश्वामित्र मान गए।
राम-लक्ष्मण को दरबार में बुलाकर तैयार होने को कहा गया। महाराज दशरथ ने भावुक होकर दोनों पुत्रों का मस्तक सूँघकर उन्हें महर्षि को सौंप दिया।
दोनों राजकुमार बिना विलंब किए महर्षि के साथ चल पड़े, बीहड़ और भयानक जंगलों की ओर। विश्वामित्र आगे-आगे चल रहे थे राम उनके पीछे थे। लक्ष्मण राम से दो कदम पीछे। अपने धनुष संभाले हुए। पीठ पर तुणीर बाँधे। कमर में तलवारें लटकाए।
अवधपुरी में राम के प्रश्न उत्तर
प्रश्न. अयोध्या का सौन्दर्य वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर- अवध में सरयू नदी के किनारे एक अति सुंदर नगर था अयोध्या। सही अर्थों में दर्शनीय। देखने लायक। भव्यता जैसे उसका दूसरा नाम हो। अयोध्या में केवल राजमहल भव्य नहीं था। उसकी एक-एक इमारत आलीशान थी। आम लोगों के घर भव्य थे। सड़कें चौड़ी थीं। सुंदर बाग-बगीचे, पानी से लबालब भरे सरोवर, खेतों में लहराती हरियाली। हवा में हिलती फसलें सरयू की लहरों के साथ खेलती थीं। अयोध्या हर तरह से संपन्न नगरी थी। संपन्नता कोने-अंतरे तक बिखरी हुई थी। सभी सुखी। सब समृद्ध । दुःख और विपन्नता को अयोध्या का पता नहीं मालूम था, या उन्हें नगर की सीमा में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। पूरा नगर विलक्षण था। अद्भुत और मनोरम।
प्रश्न. महाराजा दशरथ कौन थे? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर -राजा दशरथ कुशल योद्धा और न्यायप्रिय शासक थे। महाराज अज के पुत्र । महाराज रघु के वंशज। रघुकुल के उत्तराधिकारी । रघुकुल की रीति-नीति का प्रभाव हर जगह दिखाई देता था। सुख-समृद्धि से लेकर बात-व्यवहार तक लोग मर्यादाओं का पालन करते थे, सदाचारी थे।
प्रश्न. महाराजा दशरथ की चिन्ता का क्या कारण था?
उत्तर- दशरथ को एक दुःख था। छोटा-सा दुःख मन के एक कोने में छिपा हुआ। वह रह-रहकर उभर आता था। उन्हें सालता रहता था। उनके कोई संतान नहीं थी। आयु लगातार बढ़ती जा रही थी। उनकी तीन रानियाँ थीं। कौशल्या, कैकैयी और सुमित्रा । रानियों के मन में भी बस यही एक दुःख था। संतान की कमी। जीवन सूना-सूना लगता था। राजा दशरथ से रानियों की बातचीत प्रायः इसी विषय पर आकर रुक जाती थी। राजा दशरथ की चिंता बढ़ती जा रही थी।
प्रश्न. मुनि वशिष्ठ ने दशरथ की चिंता मुक्ति का क्या उपाय बताया?
उत्तर- मुनि वशिष्ठ राजा दशरथ की चिंता समझते थे। उन्होंने दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। महर्षि ने कहा, "आप पुत्रेष्टि यज्ञ करें, महाराज! आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी। "
प्रश्न. पुत्रेष्टि यज्ञ का वर्णन अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-यज्ञ महान तपस्वी ऋष्यश्रृंग की देखरेख में हुआ। पूरा नगर उसकी तैयारी में लगा हुआ था। यज्ञशाला सरयू नदी के किनारे बनाई गई। यज्ञ में अनेक राजाओं को आमंत्रित किया गया। तमाम ऋषि-मुनि पधारे। शंखध्वनि और मंत्रोच्चार के बीच एक-एक कर सबने आहुति डाली। अंतिम आहुति राजा दशरथ की थी।
प्रश्न. दशरथ की रानियों ने किन-किन पुत्रों को जन्म दिया?
उत्तर- दशरथ की तीनों रानियाँ पुत्रवती हुईं। महारानी कौशल्या ने राम को जन्म दिया। चैत्र माह की नवमी के दिन। रानी सुमित्रा के दो पुत्र हुए, लक्ष्मण और शत्रुघ्न। रानी कैकेयी के पुत्र का नाम भरत रखा गया।
प्रश्न. राजा दशरथ ने अपने पुत्रों की शिक्षा का कौन-सा प्रबन्ध किया?
उत्तर- बड़े होने पर राजकुमारों को शिक्षा-दीक्षा के लिए भेजा गया। उन्होंने कुशल और अपनी विद्या में दक्ष गुरुजनों से ज्ञान अर्जित किया। शास्त्रों का अध्ययन किया। शस्त्र विद्या सीखी। चारों राजकुमार कुशाग्र-बुद्धि थे। जल्द ही सब विद्याओं में पारंगत हो गए।
प्रश्न. दशरथ को राम अधिक प्रिय क्यों थे?
उत्तर- राजा दशरथ को राम सबसे अधिक प्रिय थे। ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण और मानवीय गुणों के भी कूट-कूटकर भरे होने के कारण दशरथ को राम अधिक प्रिय थे।
प्रश्न. महर्षि विश्वामित्र ने दशरथ से क्या कहा?
उत्तर- महर्षि विश्वामित्र ने दशरथ से कहा, "मैं सिद्धि के लिए एक यज्ञ कर रहा हूँ। अनुष्ठान लगभग पूरा हो गया है। लेकिन दो राक्षस उसमें बाधा डाल रहे हैं। मैं जानता हूँ कि उन राक्षसों को केवल एक ही व्यक्ति मार सकता है। वह राम है। आप अपने ज्येष्ठ पुत्र को मुझे दे दें ताकि यज्ञ पूरा हो।"
प्रश्न. महाराज दशरथ ने राम को विश्वामित्र के साथ न भेजने के बारे में क्या युक्ति दी?
उत्तर-"महामुनि! मेरा राम तो अभी सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ है। वह राक्षसों से कैसे लड़ेगा? राक्षस मायावी हैं। वह उनका छल-कपट कैसे समझेगा? उन्हें कैसे मारेगा? इससे अच्छा तो यही होगा कि आप मेरी सेना ले जाएँ। मैं स्वयं आपके साथ चलूँ। राक्षसों से युद्ध करूँ।"
"मैं राम के बिना नहीं रह सकता महामुनि! एक पल भी नहीं। आप राम को छोड़कर जो चाहें माँग लें। उसे मत ले जाइए। मैं राम को नहीं दूँगा। बिल्कुल नहीं। वह मेरी बुढ़ापे की संतान है। मैं उससे बहुत प्रेम करता हूँ।"
प्रश्न. मुनि वशिष्ठ ने दशरथ को क्या कहकर समझाया ?
उत्तर- "राजन, आपको अपना वचन पूरा करना चाहिए। रघुकुल की रीति यही है। प्राण देकर भी आपके पूर्वजों ने वचन निभाया है। आप राम की चिंता न करें। महर्षि के होते उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
"महाराज, महर्षि विश्वामित्र सिद्ध पुरुष हैं। तपस्वी हैं। अनेक गुप्त विद्याओं के जानकार हैं। वह कुछ सोचकर ही यहाँ आए हैं। राम उनसे अनेक नई विद्याएँ सीख सकेंगे। आप राम को महर्षि विश्वामित्र के साथ जाने दें। राम को उन्हें सौंप दें।"
अवधपुरी में राम के कठिन शब्दार्थ
दर्शनीय - देखने योग्य।
भव्य - सुन्दर।
विलक्षण - अद्वितीय।
सालता - दुखी करना।
समारोह - उत्सव।
लबालब - पूरे के पूरे ।
पुत्रेष्टि - पुत्र की इच्छा।
तत्काल - उसी समय।
संज्ञाशून्य - जान न होना (ऐसा महसूस होना) ।
पुत्र बिछोह - पुत्र से बिछुड़ना ।
स्वस्तिवचन - मंगलगीत |
बीहड़ - घना।
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